जेल में चोरी हुआ गौतम नवलखा का चश्मा, डाक से दूसरा भेजे जाने पर जेल प्रशासन ने नहीं लिया

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ़्तार 67 साल के सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के साथ तलोजा जेल प्रशासन द्वारा भीषण अमानवीय व्यवहार का मामले सामने आया है। बीते 27 नवंबर को जेल में गौतम नवलखा का चश्मा चोरी हो गया जिनके बिना वे ठीक से देख नहीं पाते। इस घटना के तीन दिन बाद तक जेल अधिकारियों ने उन्हें अपने घर वालों से बात करने की अनुमति नहीं दी। गौतम की पत्नी सहबा हुसैन ने आरोप लगाया कि जब परिवार की ओर से उनके लिए नया चश्मा जेल भेजा गया तो नवी मुंबई के खारघर स्थित तलोजा जेल अधिकारियों ने उसे लेने से मना कर दिया। 

सहबा हुसैन ने सोमवार, 7 दिसंबर को एक बयान जारी कर कहा कि, 27 नवंबर को चश्मा चोरी होने के बाद इस बारे में परिवार वालों को सूचित करने के लिए तीन दिन तक गौतम नवलखा को घर पर फोन करने की अनुमति नहीं दी गयी। 30 तारीख को उन्हें घर वालों से बात करने की अनुमति मिली और घर से उन्हें एक जोड़ा नया चश्मा भारतीय डाक से भेजा गया और जेल प्रशासन को इस बारे में सूचना भी दी गयी किंतु 5 दिसंबर को जब पार्सल जेल पहुंचा तो जेल अधिकारियों ने उसे लेने से मना कर दिया। हुसैन ने इसे अमानवीय और अन्याय करार दिया है। चश्मा 3 दिसंबर को स्पीड पोस्ट से भेजा गया था।

सहबा हुसैन के मुताबिक, गौतम के परिजनों ने जेल प्रशासन को बता दिया था कि बिना चश्मे के गौतम की नज़र न के बराबर हो जाती है, उन्हें कुछ साफ़ दिखाई नहीं देता और उनके लिए डाक से नया चश्मे का जोड़ा भेजा जा रहा है। किंतु जेल प्रशासन ने पार्सल पैकेट लेने से इंकार कर दिया। 

गौतम कई गंभीर रोगों से ग्रस्त हैं और कोरोना काल में यह उनके लिए बेहद घातक है। 

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, “सहबा हुसैन जब वीडियो कॉल पर गौतम नवलखा से बात कर रही थीं, तो उनकी आंखें अधखुली थीं और जब उनसे सहबा ने चश्में के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि तीन दिन पहले चोरी हो गया और जेल प्रशासन ने उन्हें कहा था कि घर फोन करने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करो।”

वहीं जेल प्रशासन ने कहा है कि, डाक या कूरियर जेल में स्वीकार नहीं किये जायेंगे इस बारे में बता दिया गया था और कहा गया था कि कोई निजी तौर पर आकर चश्मा दे जा सकता है। जेल प्रशासन ने कहा कि, “ हमने यहीं चश्मा बनवाकर देने का प्रस्ताव दिया था किंतु उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं है। जेल प्रशासन ने कहा कि जेल में पार्सल लेने में खतरा है, यदि कोई आकर उन्हें दे जाता है तो हम ले लेंगे।”

‘फ्री प्रेस जर्नल’ की रिपोर्ट के अनुसार जब जेल अधीक्षक कौस्तुभ कुर्लेकर से कहा गया कि गौतम की फैमिली तो दिल्ली में है तो कौन देने आएगा चश्मा? इस पर अधीक्षक कौस्तुभ कुर्लेकर का जवाब था कि उनके बहुत से दोस्त और चाहने वाले मुंबई में हैं, कोई भी आकर दे जा सकता है। जेल के अधीक्षक ने कहा कि बंदियों को अपने सामान का ध्यान खुद रखना होता है और सुरक्षा कारणों से पार्सल आदि स्वीकार नहीं किये जाते। इसलिए उसे लेने से मना कर दिया था। 

जेल अधीक्षक कौस्तुभ कुर्लेकर की इस बात पर सहबा हुसैन ने कहा कि, इससे पहले जब गौतम के लिए उनके वकील अन्य संपर्कों के जरिये चप्पल और कपड़े भिजवाये गये थे तब उन्हें कई बार वापस लौटाया जा चुका है। 

गौतम नवलखा केस की सुनवाई से चीफ़ जस्टिस सहित सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने किया था खुद को अलग 

पुणे पुलिस ने 31 दिसंबर, 2017 को एलगार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में हुई कथित हिंसा के मामले में 8 जनवरी, 2018 को प्राथमिकी दर्ज की थी। लेकिन गौतम नवलखा का नाम इसमें सात महीने बाद 22 अगस्त को जोड़ा गया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट से राहत न मिलने पर गौतम नवलखा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। हाई कोर्ट से 13 सितंबर 2019 को याचिका खारिज होने के बाद नवलखा ने 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिका को पहली बार तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच में लिस्ट किया गया, लेकिन चीफ जस्टिस इसकी सुनवाई से अलग हो गए। उसके बाद जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस बी सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और बाद में जस्टिस रवींद्र भट्ट ने गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। 

सबसे हैरानी की बात यह थी कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सहित किसी भी जज ने नवलखा की याचिका पर सुनवाई करने से खुद अलग किये जाने का कोई कारण नहीं दिया था। वह कारण आज तक एक राज बना हुआ है।

पहले भी हुई ऐसी घटनाएं 

भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद तमाम वृद्ध, बीमार और शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के साथ लगातार इस तरह के व्यवहार की ख़बरें आती रही हैं। 

इससे पहले वरवर राव, हाल ही में स्टेन स्वामी के साथ जेल प्रशासन का व्यवहार सबके सामने आ चुका है।

(पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।) 

नित्यानंद गायेन
Published by
नित्यानंद गायेन