सुरक्षा का दावा हुआ तार-तार, योगी के गृहनगर गोरखपुर में नाबालिग दलित युवती के साथ गैंगरेप

कौड़ीराम/गोरखपुर। गोरखपुर में एक नाबालिग दलित बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आयी है। घटना दिन के खुले आसमान के नीचे खेत में हुई है। घटनास्थल प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के घर से महज 35 किमी दूर है। गांव का नाम कलानी है जो कौड़ीराम से तीन किमी दूर स्थित है। तीन दिन बीत जाने बाद भी जब प्रशासन ने मामले में एफआईआर नहीं दर्ज किया तब पीड़िता को कोर्ट की शरण में जाना पड़ा है। लेकिन वहां से भी उचित न्याय नहीं मिल सका है।

पीड़ित बच्ची की उम्र 16 साल है। जनचौक ने पीड़िता से गोरखपुर के विकास भवन में मुलाकात की। पीड़िता पूजा (बदला हुआ नाम) ने घटना को जो ब्योरा दिया वह बेहद परेशान करने वाला है। उसने बताया कि  22 फरवरी को शाम को तकरीबन चार बजे वह खेत देखने के लिए बाहर गयी थी। तभी वहां पांच युवक आए और उन्होंने उसको गाली देना शुरू कर दिया। उनमें से एक ने बाकायदा जाति सूचक गाली देते हुए कहा कि “सा….चमा…है और बहुत बन ठन कर चलती है। आज इसकी सारी गर्मी निकाल देंगे।” यह कहते ही उन लोगों ने पूजा को उठा लिया और उसे सुनसान जगह पर ले कर चले गए। उसके बाद उन लोगों ने पूजा का मोबाइल छीन लिया। और उसके ऊपर टूट पड़े। पूजा का कहना था कि “बारी-बारी से पांचों लोगों ने मेरे साथ गंदा काम किया।” बलात्कारियों की हैवानियत का नंगा नाच यहीं खत्म नहीं हुआ।

उन्होंने पूजा का गला दबा कर उसकी हत्या करने की कोशिश की। पूजा का कहना था कि “वो लोग गला दबाकर मेरी हत्या करना चाहते थे।” लेकिन इस बीच पूजा चिल्ला पड़ी। उसने बताया कि “उसी समय मेरी बड़ी अम्मा पास से गुजर रही थीं और उन्होंने मेरी आवाज सुनी। वह दौड़कर मेरी तरफ आयीं। उन्हें देखते ही पांचों लोग भाग गए।” इस बीच पूजा के न केवल कपड़े फट गए बल्कि वह बेहोशी की हालत में पहुंच गयी। और उसके शरीर में कई जगहों पर चोटें आयीं। उसके पैर के अंगूठे के ऊपर वो निशान अब भी देखे जा सकते हैं। यह पूछने पर कि क्या वह बलात्कारियों को पहचानती है। तो उसका कहना था कि वह दो लोगों को चेहरे से पहचानती है। गगहा थाने में दिए गए आवेदन के मुताबिक इसमें एक का नाम धर्मेंद्र प्रजापति और दूसरे का गोलू पासवान है। इसके अलावा तीन दूसरे लोगों को वह नहीं जानती थी। पूजा का कहना था कि “अगर इन सबको सामने ले आया जाए तो मैं उन्हें पहचान लूंगी।” यह पूछने पर कि क्या इसके पहले भी इन लोगों ने कभी उसके साथ छेड़छाड़ या बदतमीजी की थी।

थाने को परिजनों द्वारा दिया गया आवेदन

पूजा ने कहा कि “कभी ऐसी कोई घटना नहीं हुई।” घर आने के बाद परिजनों को जब पता चला तो उन्होंने मामले की प्राथमिकी दर्ज कराने की कवायद शुरू कर दी। और अगले दिन उन्होंने गगहा थाने का रुख किया। जहां प्राथमिकी दर्ज करने की बात तो दूर थाना प्रभारी जयंत कुमार सिंह ने पीड़िता को ही दोषी ठहराने की कोशिश की। पीड़िता की बड़ी बहन के मुताबिक “इंस्पेक्टर का कहना था कि क्या जरूरत थी खेत में जाने की। उसे घर में ही रहना चाहिए।” इतना ही नहीं जब परिजनों ने एफआईआर के लिए दबाव बनाया तो थाना प्रभारी सिंह ने कहा कि “लड़की खुद ही इशारे से लड़कों को बुलायी होगी।” और आखिर में उन्होंने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया। उनका कहना था कि पहले वह मामले की जांच करेंगे उसके बाद ही कोई कानूनी कार्यवाही होगी। जबकि यह कानून का खुला उल्लंघन है।

महिला एक्टिविस्ट सीमा गौतम और सामाजिक कार्यकर्ता श्रवण निराला

बलात्कार के मामले में अगर कोई महिला या लड़की कोई एफआईआर दर्ज कराना चाहती है तो उसे पुलिस को तत्काल दर्ज करना होगा। और विधिक प्रावधानों के मुताबिक पीड़िता का 24 घंटे के भीतर मेडिकल परीक्षण कराया जाना जरूरी होता है। ऐसा न होने पर सुबूत के गायब हो जाने का खतरा रहता है। लेकिन यहां इन सभी कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया। आपको बता दें कि बच्ची के पिता मजदूर हैं और उसकी बड़ी बहन पास के स्कूल में झाड़ू लगाने का काम करती है। परिवार बेहद गरीब है। मामले के प्रति स्थानीय थाने के उदासीन रवैये को देखते हुए पीड़िता के परिजनों ने कुछ एक्टिविस्टों से संपर्क किया। जिसमें महिला एक्टिविस्ट सीमा गौतम और समाजसेवी श्रवण निराला सामने आए और उन्होंने इस मामले में हर तरीके से परिजनों को न्याय दिलाने की बात कही। जनचौक से बात करते हुए एक्टिविस्ट सीमा गौतम ने कहा कि ” मामले की जानकारी मिलने के बाद मैं पीड़िता के गांव गयी और उससे मुलाकात कर पूरी घटना का ब्योरा लिया।” उन्होंने बताया कि थाना प्रभारी के एफआईआर न दर्ज करने पर उन लोगों ने एसएसपी का रुख किया। लेकिन वहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई।

सामाजिक कार्यकर्ता श्रवण निराला ने बताया कि घटना की जानकारी मिलने के बाद ही वह सक्रिय हो गए। पहले एसओ से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। फिर सीओ से बात की। यहां तक कि उन्होंने एसएसपी से भी बात करने की कोशिश की। इसके बाद अपने साथियों को पीड़िता के परिजनों के साथ एसएसपी से मिलने के लिए भेज दिया। उनका कहना था कि डीआईजी के दरवाजे पर भी दस्तक दी गयी। उनका कहना था कि “मुख्यमंत्री का शहर होने के बावजूद कोई अधिकारी पीड़िता से मिलना जरूरी नहीं समझा।” उन्होंने आगे बताया कि एडीजी के यहां कोई प्रभारी थे उन्होंने जरूर सीओ से बात की। लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। उनका कहना था कि “गगहा के थाना प्रभारी मामले की लीपापोती करना चाहते हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि स्थानीय सांसद कमलेश पासवान का आरोपियों को खुला संरक्षण हासिल है”।

उन्होंने बाकायदा आरोप लगाया कि कमलेश पासवान मामले में शामिल हो चुके हैं और प्रशासन पर कोई कार्रवाई न करने का दबाव बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि रात में जब एडीजी के दफ्तर का थाना प्रभारी के पास फोन आया तो उनके साथी पीड़िता को लेकर शाम को 6 बजे थाने पहुंच गए थे। लेकिन वहां उनको 2 घंटे तक मिलने का इंतजार कराया गया। और उसके बाद जब थाना प्रभारी मिले तो उन्होंने पीड़िता के परिजनों का पक्ष सुनने और एफआईआर दर्ज करने की जगह उनके सहयोग में गए लोगों को ही धमकाना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि “थानेदार ने एक्टिविस्टों से कहा कि अगर आप इन लोगों की मदद करेंगे तो आप लोगों के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज हो जाएगा और आप लोग बचोगे नहीं। जो करना होगा हम करेंगे। आप लोगों के कहने से नहीं करेंगे।” इस बीच बच्ची बिल्कुल कांप रही थी। 9 बजे रात में जयंत कुमार सिंह ने अंत में कहा कि वह मुकदमा दर्ज नहीं करेंगे।

श्रवण निराला का कहना था कि इस बीच सांसद और बलात्कारियों के पक्ष के लोग लगातार परिवार को धमकी दे रहे थे और उन पर मामले में सुलह करने का दबाव बना रहे थे। उन्होंने बताया कि “अगली सुबह सांसद और बलात्कारियों के पक्ष के लोग सात-आठ गाड़ियों में पीड़िता के घर पहुंच जाते हैं और उन्हें धमकी देना शुरू कर देते हैं। वो कह रहे थे कि तुमको इसी गांव में रहना है और मुकदमा करा कर रह नहीं पाओगे।“ इतना ही नहीं वो पैसे देकर मामले को रफा-दफा करने की बात कह रहे थे। इस सिलसिले में उन लोगों ने डेढ़ से लेकर दो लाख रुपये तक देने का भी प्रस्ताव दिया। निराला का कहना था कि पुलिस-प्रशासन के इस रवैये को देखते हुए उन लोगों को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा है। इस सिलसिले में पीड़िता के वकीलों ने कोर्ट में आवेदन दिया था। और कोर्ट ने मामले की सुनवाई भी की। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय ने पीड़िता और परिजनों से उनका पक्ष सुना और उन्होंने स्थानीय प्रशासन से 28 फरवरी तक आख्या मांगी है।

पीड़िता के वकील दिनेश यादव

पीड़िता के वकील दिनेश यादव ने बताया कि “कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और उसने 28 फरवरी तक थाने से आख्या मांगी है।” हालांकि कोर्ट से सीधे पीड़िता के मेडिकल परीक्षण का आदेश मिलना चाहिए था। क्योंकि बलात्कार के मामले में कानूनी प्रावधान यह है कि पीड़िता का 24 घंटे के भीतर मेडिकल परीक्षण होना चाहिए। लेकिन यहां 28 फरवरी तक यह अवधि बीत जाएगी। ऐसे में सुबूत के खत्म हो जाने की आशंका है। इसके बारे में पूछे जाने पर एडवोकेट दिनेश यादव का कहना था कि “कानूनी प्रावधान तो ऐसा ही है लेकिन कोर्ट के फैसले पर मैं कोई टिप्पणी करना उचित नहीं समझता।” इस बारे में जब पीड़िता के दूसरे वकील ब्रजेश्वर निषाद से बात हुई तो उनका कहना था कि ऐसे मामलों में लापरवाही बरतने के लिए धारा 161 के तहत न केवल प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई होती है बल्कि इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि सुबूतों को उचित समय पर दर्ज किया गया है या नहीं।

इस पूरे मसले पर जब जनचौक ने गगहा के थाना प्रभारी जयंत कुमार सिंह से फोन पर बात की तो उनका कहना था कि”एफआईआर दर्ज कर लिया गया है”। हालांकि बावजूद इसके अभी तक थाने की तरफ से पीड़िता के मेडिकल परीक्षण की कोई पहल नहीं की गयी है। इस मामले में पूछे जाने पर सामाजिक कार्यकर्ता श्रणव निराला का कहना था कि दबाव के बाद अब थाना प्रभारी सक्रिय हुए हैं लेकिन अभी भी वह मेडिकल परीक्षण समेत तमाम जरूरी प्रक्रियाओं को नहीं पूरा कर रहे हैं। 

इस सिलसिले में जब भीम आर्मी के नेता और गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद रावण से जनचौक की बात हुई तो उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि “यह बेहद गंभीर घटना है। और प्रशासन ऐसे मामलों में इसी तरह की लीपापोती करती है। और पीड़िता को न्याय मिले इसके लिए वह प्रशासन पर हर तरह से दबाव बनाने की कोशिश करेंगे। जरूरत पड़ी तो पीड़िता से मिलने उसके घर भी जाएंगे”।  

महेंद्र मिश्र
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