राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि आगे वे महाराष्ट्र में नहीं रहेंगे। महाराष्ट्र अस्मिता को घायल करने के बाद यह स्थिति बनी है। महाराष्ट्र की सियासत में महाराष्ट्र अस्मिता का सम्मान करने की मजबूरी बीजेपी की भी है और एकनाथ शिन्दे वाली शिवसेना की भी। राज्यपाल कोश्यारी की ओर से स्पष्टीकरण के बावजूद मराठी सियासत उबाल पर है और इसकी परिणति कोश्यारी की वापसी के रूप में ही होगी- यह भी तय है।
महाराष्ट्र में बीते तीन साल में भगत सिंह कोश्यारी ने एकाधिक बार अपने बयानों से ऐसी स्थिति पैदा की है जिसमें महाराष्ट्र की अस्मिता को वे चोटिल करते नज़र आए। मगर, इस बार ऐसा क्यों है कि महाराष्ट्र में राज्यपाल के तौर पर भगत सिंह कोश्यारी के बने रहने की संभावनाएं कमजोर होती नज़र आ रही हैं? उत्तर है महाराष्ट्र की सियासत में मराठी अस्मिता का केंद्र में होना। इसके कई प्रमाण हैं-
अकेले पड़े राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपने विवादास्पद बयान में कहा था- “अगर गुजराती और राजस्थानी लोगों को यहां से हटा दिया गया, तो आपके पास पैसे नहीं रहेंगे।” इस बयान की कोई आवश्यकता नहीं थी। सवाल भी उन्होंने खुद पैदा किए और जवाब भी खुद ही दिए। यह राज्यपाल जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति का काम कत्तई नहीं होना चाहिए। इससे विभिन्न राज्यों के लोगों के बीच वैमनस्यता फैलती है। जो सफाई राज्यपाल की तरफ से आयी उसमें कहा गया कि वे मराठी को कमतर नहीं आंकते।
मगर, मराठी अस्मिता से जुड़े नेता मानने को तैयार नहीं हैं। उद्धव ठाकरे ने साफ कहा है कि राज्यपाल कोश्यारी को वापस भेजा जाए या जेल भेजा जाए- यह तय करने का वक्त आ गया है। उन्होंने कोल्हापुरी चप्पल देखने-दिखाने के नाम पर भी गैरजरूरी आपत्तिजनक मगर मराठी अस्मिता को सहलाने वाली टिप्पणी कर डाली है। राज ठाकरे से लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे या उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस या फिर कांग्रेस, एनसीपी और दूसरे दलों के किसी भी नेता ने राज्यपाल का बचाव नहीं किया है। कह सकते हैं कि राज्यपाल बयान देकर फंस चुके हैं और बिल्कुल अकेले पड़ गये हैं।
निष्ठा दिखाते-दिखाते बीजेपी का अनिष्ट कर बैठे कोश्यारी
भगत सिंह कोश्यारी राज्यपाल के तौर पर राजनीतिक रूप से बीजेपी को जितना समर्थन दे सकते थे, उससे अधिक समर्थन दिया है। चाहे वह रात के अंधेरे में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को शपथ दिलाने का अवसर हो या फिर उद्धव ठाकरे को अल्पमत में मान लेने के लिए ई-मेल को आधार बनाना हो और आखिरकार महाराष्ट्र में बीजेपी के गठबंधन वाली सरकार को सुनिश्चित करना हो- भगत सिंह कोश्यारी ने बीजेपी की पूरी सेवा कर दिखलायी है। मगर, आगे भगत सिंह कोश्यारी बीजेपी के लिए महाराष्ट्र की सियासत में बोझ बनने वाले हैं।
महाराष्ट्र में मुंबई महानगर निगम चुनाव से लेकर आगे विधानसभा चुनाव तक होने हैं। ऐसे में महाराष्ट्र की अस्मिता के सवाल पर विपक्ष को हमलावर होने देने का अवसर बीजेपी कत्तई बनाए नहीं रखना चाहेगी। मतलब यह कि भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र से बाहर ले जाना अब बीजेपी की राजनीतिक जरूरत बन चुकी है।
धनखड़ उपराष्ट्रपति बनेंगे, कोश्यारी महाराष्ट्र से हटेंगे!
तुलना ज़रूरी है। जगदीप धनखड़ और भगत सिंह कोश्यारी की। दोनों ने राज्यपाल रहते हुए बीजेपी के राजनीतिक हितों को खुलकर पाला-पोषा। मगर, फर्क यह है कि जगदीप धनखड़ उपराज्यपाल होंगे और भगत सिंह कोश्यारी किसी और प्रदेश में राज्यपाल पद पर बने रह सकते हैं। इसकी वजह साफ है कि धनखड़ ने राजनीतिक बुद्धिमत्ता दिखलाई। कभी जनभावना के खिलाफ वे जाते नहीं दिखे।
मगर, भगत सिंह कोश्यारी ने अपरिपक्वता का परिचय दिया। जनभावना के खिलाफ जाने का मतलब ही होता है कि राजनीति इसे स्वीकार नहीं करती। ऐसा नहीं है कि बीजेपी भगत सिंह कोश्यारी को उनकी सेवा का ईनाम नहीं देना चाहेगी और उन्हें दंड देगी। बल्कि, आवश्यकतानुसार कोश्यारी को कहीं और पदस्थ कर पुरस्कृत तो ज़रूर करेगी, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा संदेश बीजेपी देगी मानो उन्होंने मराठी अस्मिता पर प्रहार करने वाले को दंडित करने का काम किया है।
कोश्यारी ने नहीं समझी राजनीति की नब्ज़
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र की राजनीति की नब्ज़ समझने में चूक कर दी। कोश्यारी ने मराठी अस्मिता के नाम पर गैर बीजेपी दलों को एकजुट करने का काम किया है जो बीजेपी के राजनीतिक मकसद को नुकसान पहुंचा सकता है। इस बात की समझ बीजेपी को है।
संदेश एकनाथ शिन्दे की प्रतिक्रिया में मिल चुका है। उन्होंने राज्यपाल के बयान से पल्ला झाड़ लिया है और कहा है कि यह उनका निजी बयान है। बीजेपी के लिए इतना संदेश काफी है। ऐसे में अब निश्चित लगता है कि महाराष्ट्र से भगत सिंह कोश्यारी को जाना ही होगा। मगर, इसका तरीका क्या होगा? यह काम कैसे होगा? बीजेपी कब फैसला करेगी? आदि-आदि सवाल अनुत्तरित हैं।
यह तय लगता है कि मुंबई महानगर पालिका या थाणे महानगर पालिका चुनाव से पहले ही कोश्यारी को महाराष्ट्र से बाहर ले जाया जा सकता है। ये दोनों वे इलाके हैं जहां एकनाथ शिन्दे का प्रभाव है और जहां उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में जुटे हैं। जाहिर है उद्धव ठाकरे को राजनीतिक रूप से जीवित होने का मौका ना मिले, यह बीजेपी की प्राथमिकता है। यही प्राथमिकता भगत सिंह कोश्यारी के लिए अभिशाप बन सकती है।
(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)