सिलगेर आंदोलन: छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को पदयात्रा तक की अनुमति नहीं

बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र अंतर्गत सिलगेर में आदिवासियों के आंदोलन का करीब डेढ़ साल होने जा रहा है। इस बीच सिलेगर में 15 और 16 सितम्बर को संगोष्ठी का आयोजन किया गया जहां पेसा कानून और वन अधिकार मान्यता कानून को लेकर जानकरी दी गई इस संगोष्ठी में सीपीआई के नेता मनीष कुंजाम के साथ सामाजिक कार्यकर्ता विजय भाई भी पहुंचे थे।

संगोष्ठी के दौरान मनीष कुंजाम ने बताया कि वह सुकमा से रायपुर तक सिलगेर के आदिवासियों के साथ पैदल यात्रा करना चाहते हैं जिसकी अनुमति के लिए उन्होंने प्रशासन को आवेदन दिया था लेकिन अनुमति नहीं दी गयी। मनीष कुंजाम ने कहा कि एक ओर जहां कांग्रेस पार्टी के ही नेता कन्याकुमारी से कश्मीर तक हजारों किमी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं वहीं बस्तर के आदिवासियों को 100 किमी पैदल यात्रा की अनुमति नहीं दी जा रही है ये कैसा न्याय है।

आदिवासी महासभा के संयोजक मनीष कुंजाम ने कहा कि सुकमा कलेक्टर की ओर से जारी आदेश एक मजाक है। इस अनुमति में संविधान और जनतंत्र का गला घोटा गया है। अब ये साबित हो गया है कि बस्तर में संविधान और कानून के हिसाब से शासन-प्रशासन नहीं चलत है। पूर्व विधायक कुंजाम ने कहा कि कलेक्टर का आदेश प्रजातांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है। संविधान की शपथ लेने वाले आईएएस और आईपीएस की ओर से इस तरह से पदयात्रा को लेकर आदेश जारी करना कहीं न कहीं से दबाव नजर आता है। सिलगेर की यात्रा से कहीं न कही मंत्री भी घबराए हुए हैं, उन्हें डर है कि सत्ता में रहते हुए जो वादा किया था वो पूरा नहीं किया तो वो कहीं आक्रोश में न बदल जाए। आज सुकमा जिले की जनता में भारी नाराजगी व्याप्त है।

संगोष्ठी में क्या हुआ?

 सिलगेर में संगोष्ठी के दौरान काफी संख्या में युवक-युवतियों ने कानूनी बातों की जानकारी ली और अपने मोबाइलों पर पूरा वीडियो फोटो लेकर जाना कि कैसे आज कांग्रेस सरकार उनके हाथ पैर बांध रही है ।

गौरतलब हो कि 8 अगस्त, 2022 को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने पेसा एक्ट कानून के विस्तार का नियम बना कर उसे लागू किया है। सिलगेर में मनीष कुंजाम का कहना था कि पेसा कानून के नियम लाए गए उस कानून के तहत कहीं भी ग्रामीणों को अधिकार नहीं दिया गया । 

पूर्व विधायक मनीष कुंजाम कहते हैं कि गांव हमारी सरकार हमारा पेसा कानून 1996 और वन अधिकार मान्यता कानून 2006 पर आज ग्रामीणों से चर्चा हुई इस संबंध में उन्होंने बताया कि कैसे सरकार के द्वारा ग्रामीणों के अधिकार का हनन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि गांव को अपना अधिकार देता है सब गांव के सीमाओं में जो भी संसाधन हैं पानी, जल, जंगल, जमीन, मिट्टी के नीचे का गौण खनिज वह सब जो गांव के अधिकार में है। उसका भी प्रबंधन देखने का वास्तव में गांव वालों को बेचने के लिए भी एक समिति बनानी होती है। परंतु केंद्र सरकार और राज्य सरकार के द्वारा सारे कानूनों को नहीं लाया जा रहा है। दस साल में आज तक वन अधिकार भी वनवासियों को नहीं मिल पाया है। सरकार के द्वारा पेसा कानून पहले से बना हुआ है उस नियम के मुंह बांधकर आज सरकार कहती है कि हमने पेसा कानून को लाया है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया है।

मूलवासी बचाओ मंच के आंदोलन के अध्यक्ष रघु मोरियाम ने कहा कि कई तरह की कानूनी जानकारी के अभाव में आंदोलन कार्यों को दिक्कतें आती हैं। वह आज हमने पेसा कानून 1996 और वन अधिकार मान्य 2006 के संगोष्ठी के माध्यम से जानकारी ली वहीं आज सरकार के द्वारा क्या संशोधन किया है उसकी भी जानकारी ली। हमारा आंदोलन पिछले डेढ़ साल से जारी है ।

क्या है सिलगेर का मामला

2021 मई में सुकमा और बीजापुर के सिलगेर में जब सीआरपीएफ़ का कैंप बनाए जाने की ख़बर शुरुआत में सामने आई तो गाँव वाले विरोध के लिए पहुँचे। उनसे कहा गया कि अभी कोई कैंप स्थापित नहीं किया जा रहा है लेकिन 12 मई को कैंप बन गया। इसके दो दिन बाद आस-पास के कुछ गाँवों के आदिवासी विरोध प्रदर्शन के लिए कैंप के पास सड़क पर बैठ गये। उनका आरोप था कि जहाँ कैंप बनाया गया है, वहाँ ग्रामीणों की ज़मीन है। ग्रामीणों का कहना है कि 17 मई को आदिवासियों और सुरक्षाबल के जवानों के बीच बहस शुरू हुई और सुरक्षाबल के जवानों ने लाठी चार्ज कर दिया। गाँव के लोगों का आरोप है कि लाठी चार्ज के बाद भी जब वो नहीं माने और कैंप की ओर बढ़े तो जवानों ने फ़ायरिंग शुरू कर दी।

हालांकि पुलिस का दावा है कि पहले भीड़ में शामिल माओवादियों ने फ़ायरिंग की जिसके जवाब में सुरक्षाबलों ने बाद में फ़ायरिंग की। पुलिस की इस गोलीबारी में तीन प्रदर्शनकारी मारे गए और दो दर्जन से अधिक लोग घायल हो गये। इसके अलावा पुलिस ने आठ लोगों को हिरासत में भी लिया।

(बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

तामेश्वर सिन्हा
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