सरकार नहीं करेगी कृषि कानूनों के बुनियादी चरित्र में बदलाव!

नई दिल्ली। इस समय पूरे देशवासियों के जेहन में सरकार को लेकर एक ही बात सवाल बनकर घूम रही है कि किसानों के मुद्दे पर वह क्या करेगी? कानूनों को रद्द करेगी या किसी समझौते में जाएगी या फिर तीन-तिकड़म और साजिश करके आंदोलन को तोड़ देगी? ये कई सवाल हैं जिनका उत्तर भविष्य के गर्भ में है। लेकिन पांच दौर की वार्ताओं के बाद कुछ स्पष्ट संकेत जो मिल रहे हैं उनके मुताबिक सरकार किसी भी कीमत पर कानूनों को रद्द करने के मूड में नहीं है। यह बात अलग है कि वह कुछ समझौतों के लिए तैयार हो गयी है। लेकिन उसमें भी कोई ऐसा समझौता नहीं होगा जो कानूनों के असर को किसी भी रूप में कम करता हुआ दिखे।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि तीनों कानूनों को रद्द करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है लेकिन सभी दूसरे विकल्प खुले हुए हैं और सरकार उन सब पर बात करने के लिए भी तैयार है।

अधिकारी ने बताया कि “हल केवल बातचीत के जरिये ही संभव है।” साथ ही आगे कहा कि अगर किसान अपना विरोध लंबे समय तक जारी रखने के मूड में हैं तो सरकार भी उसके लिए तैयार है।

वह उस घटना के बाद बोल रहे थे जब सरकार ने किसानों से कानून के कुछ प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव दिया था। जिसमें एमएसपी पर खरीद के लिए लिखित आश्वासन की बात भी शामिल थी। लेकिन किसानों के प्रतिनिधि तीनों कानूनों को रद्द करवाने की अपनी बात पर अड़े थे।

एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस मांग को पूरा करने का मतलब होगा इस बात को साबित करना कि सरकार के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। और यह कृषि क्षेत्र में भविष्य में लाए जाने वाले दूसरे सुधारों को भी प्रभावित कर देगा।

एक सूत्र ने बताया कि इन स्थितियों में एक विकल्प सरकार के पास है वह यह कि कानूनों के कुछ प्रावधानों को रद्द करना या फिर विवादित कानूनों को लागू करने की योजना को कुछ दिनों के लिए स्थगित कर देना।

उच्च पदस्थ अधिकारी ने कहा कि “निश्चित तौर पर हम लोग इस बात का इंतजार करेंगे कि 9 दिसंबर को किसान किस चीज के साथ वापस आते हैं। लेकिन हमें कोई जल्दी नहीं है। जहां तक अभी की बात है तो कृषि मंत्री ने किसानों को जो कहा है वही सरकार का स्टैंड है”।

9 दिसंबर की बातचीत की तैयारी के क्रम में कृषि मंत्री तोमर ने अपने डिप्टी कैलाश चौधरी और पुरुषोत्तम रुपाला के साथ बैठक की है। उच्च अधिकारी ने कहा कि सरकार के लिए एक छोटी टीम से बात करना सुविधाजनक होता। 35-40 लोगों से बात करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।

1 दिसंबर को पहली बैठक में सरकार ने बातचीत के लिए एक छोटी टीम बनाने का सुझाव दिया था। जिसमें कुछ सरकार के अधिकारी शामिल होते जो मामले को देख सकते थे। लेकिन किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने उसे खारिज कर दिया। उनका कहना था कि बातचीत सबके साथ होनी चाहिए। यह अलग बात है कि उसमें बातचीत कुछ ही लोग रखेंगे।

शनिवार को पांचवें चक्र की वार्ता में तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के जाने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह के साथ एक बैठक की थी। सूत्रों का कहना है कि बाद के चरण में सरकार सिंह या शाह या फिर दोनों को बातचीत में शामिल कर सकती है। यह तब होगा जब उसे लगता है कि किसानों के साथ बातचीत के बाद अब उसे कुछ पीछे हटना है।

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पहले चक्र में उन्हें ठंडा करना था- क्योंकि सरकार को यह पता था कि वार्ता कई चक्रों में होने जा रही है- और इस तरह से एक साझा आधार हासिल करने की कोशिश थी जिससे वरिष्ठ फिर उसमें प्रवेश कर पाते। हालांकि अभी तक किसानों ने झुकने का कोई संकेत नहीं दिया है।

नेता ने बताया कि सरकार ने अभी इस बात की आशा नहीं छोड़ी है कि दोनों पक्ष किसी मध्य मार्ग के लिए राजी नहीं हो जाएंगे।

हालांकि पार्टी के एक सेक्शन में यह बात जरूर है कि कानून पारित करने से पहले इस पर और बातचीत तथा सलाह-मशविरे की जरूरत थी। एक नेता ने बताया कि “कुछ नेता ऐसा महसूस करते हैं कि विधेयक को पेश करने और उसके बीच बहुत ज्यादा समय था। हम इस तरह की स्थितियों से बच सकते थे।”

अगर हम उसे संसदीय समिति के पास भेजने के लिए राजी हो जाते तो कम से कम कुछ राजनीतिक दलों को अपनी पूरी ताकत इस आंदोलन के पीछे लगाने से रोक सकते थे।

उच्च पदस्थ अधिकारी ने बताया कि एमएसपी को किसी भी कीमत पर कानून का हिस्सा नहीं बनने दिया जा सकता है। क्योंकि इससे तमाम तरह की वित्तीय परेशानियां खड़ी जाएंगी और उससे मंदी पैदा होने का खतरा है।

शनिवार की बैठक के बाद तोमर ने कहा था कि बातचीत के दौरान कई मुद्दे सामने आए और जो भी नतीजा निकलेगा वह किसानों के हित में होगा।

उन्होंने कहा कि एपीएमसी एक्ट स्टेट एक्ट है। और सरकार की न तो राज्यों की मंडियों को प्रभावित करने की मंशा है और न ही नये कानून से वो प्रभावित होने जा रही हैं।

सरकार के सूत्रों ने संकेत दिया है कि मामले को हल करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने पर विचार जरूर चल रहा है लेकिन उस पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है।

(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।)

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