किसान आंदोलन पर मोदी सरकर को सुप्रीम फटकार, अटॉर्नी जनरल से कहा- हमें लेक्‍चर मत दी‍जिए

उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों पर सुनवाई में सख्त रुख अपनाते हुए मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगाई। चीफ जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने सरकार से सीधे पूछ लिया कि क्या वह कानून को स्थगित करती है या फिर वह इस पर रोक लगा दे? उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसानों की चिंताओं को कमेटी के सामने रखे जाने की जरूरत है। कोर्ट ने किसान आंदोलन पर सरकार के विवाद निपटाने के तरीके पर पर नाराजगी जताई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई तीखे सवाल भी पूछे और अटॉर्नी जनरल से कहा कि हमें लेक्‍चर मत दी‍जिए।

पीठ ने कानून के अमल पर स्टे के संकेत दिए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हम स्टे करेंगे जब तक कि कमेटी के सामने बातचीत चल रही है। हम स्टे करने जा रहे हैं। चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि हम आज की सुनवाई बंद कर रहे हैं। किसान मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी। आदेश पारित होगा। कब होगा ये नहीं बताया गया।

खंडपीठ ने कहा कि हम प्रस्ताव करते हैं कि किसानों के मुद्दों के समाधान के लिए कमेटी बने। हम ये भी प्रस्ताव करते हैं कि कानून के अमल पर रोक लगे। इस पर जिसे दलील पेश करना है कर सकता है।

पीठ ने सरकर को फटकार लगाते हुए केंद्र से कहा कि हम नहीं समझते कि आपने सही तरह से मामले को हैंडल किया। हम अभी कानून के मेरिट पर नहीं जा रहे हैं लेकिन हमारी चिंता मौजूदा ग्राउंड स्थिति को लेकर है जो किसानों के प्रदर्शन के कारण हुआ है।

किसान संगठनों के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि हम 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च नहीं करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इतना महत्वपूर्ण कानून कैसे संसद में बिना बहस के ध्वनिमत से पास किया गया। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें खुशी हुई कि दवे ने यह कहा।

पीठ ने कहा कि हम प्रदर्शन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन अगर कानून पर रोक लगा दी जाती है तो किसान क्या प्रदर्शन स्थल से अपने घर को लौट जाएंगे? उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसान कानून वापस करना चाहते हैं जबकि सरकार मुद्दों पर बात करना चाहती है। हम अभी कमेटी बनाएंगे और कमेटी की बातचीत जारी रहने तक कानून के अमल पर हम स्टे करेंगे।

जब सॉलिसिटर जनरल ने कमेटी के लिए नाम सुझाने की खातिर एक दिन का वक्‍त मांगा तो सीजेआई ने कहा कि अपने हाथों पर खून नहीं चाहते, आप कानून लागू करने से रोकेंगे या हम उठाएं कदम? हम आदेश जारी करेंगे। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि आदेश कल दीजिएगा, जल्‍दी मत कीजिए।’ तो सीजेआई ने कहा कि क्‍यों नहीं? हमने आपको बहुत लंबा रास्‍ता दिया है। हमें धैर्य पर लेक्‍चर मत दीजिए। हम तय करेंगे कि कब आदेश देना है। हम आदेश का कुछ हिस्‍सा आज दे सकते हैं और बाकी कल।

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अगर अदालत कानून पर रोक लगाती है तो किसान अपना आंदोलन वापस ले लें। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि मिस्टर साल्वे, सब कुछ एक आदेश के जरिए हासिल नहीं किया जा सकता है। किसान कमेटी के पास जाएंगे। अदालत यह आदेश पारित नहीं कर सकती है कि नागरिक प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं। स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं और जाड़े में सफर कर रहे हैं। किसान कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्हें अपनी समस्याओं को कमेटी के सामने कहने दें। हम कमेटी की रिपोर्ट फाइल करने के बाद कानून पर कोई फैसला करेंगे।

चीफ जस्टिस ने सुनवाई शुरू होते ही कहा कि हम अपने इंटेशन को सबको साफ-साफ बता दें। हम इस मसले का सर्वमान्य समाधान चाहते हैं। यही वजह है कि हमने आपको पिछली बार (केंद्र सरकार) कहा था कि क्यों नहीं इस कानून को कुछ दिन के लिए स्थगित कर देते हैं? आप या तो समाधान हैं या फिर समस्या हैं। आप बताइए कि कानून पर रोक लगाएंगे या नहीं ? नहीं तो हम लगा देंगे।

चीफ जस्टिस ने कहा कि जिस तरह से प्रक्रिया चल रही है, हम उससे निराश हैं। उन्होंने अटार्नी जनरल से कहा कि पीठ सरकार के किसान आंदोलन को हैंडल करने के तरीके से बेहद नाराज है। पीठ ने कहा कि यह भी नहीं मालूम कि आपने कानून को पास करने से पहले किस तरह की प्रक्रिया का पालन किया।

पीठ ने कहा कि हम किसान मामलों के एक्सपर्ट नहीं हैं, क्या आप इन कानूनों को रोकेंगे या हम कदम उठाएं। हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं, लोग मर रहे हैं और ठंड में बैठे हैं। वहां खाने, पानी का कौन ख्याल रख रहा है। हम किसी का खून अपने हाथ पर नहीं लेना चाहते हैं। लेकिन हम किसी को भी प्रदर्शन करने से मना नहीं कर सकते हैं। हम ये आलोचना अपने सिर नहीं ले सकते हैं कि हम किसी के पक्ष में हैं और दूसरे के विरोध में।

चीफ जस्टिस ने कहा कि आप हल नहीं निकाल पा रहे हैं। लोग मर रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं। हम नहीं जानते क्यों महिलाओं और वृद्धों को भी बैठा रखा है। खैर, हम कमेटी बनाने जा रहे हैं। किसी को इस पर कहना है तो कहे।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम हम ये नहीं सुनना चाहते हैं कि ये मामला कोर्ट में ही हल हो या नहीं हो। हम बस यही चाहते हैं कि क्या आप इस मामले को बातचीत से सुलझा सकते हैं। अगर आप चाहते तो कह सकते थे कि मुद्दा सुलझने तक इस कानून को लागू नहीं करेंगे। पीठ ने कहा कि हमें आशंका है कि किसी दिन वहां (सिंघु बॉर्डर) हिंसा भड़क सकती है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐसे अहम कानून संसद में ध्वनिमत से कैसे पास हो गए। अगर सरकार गंभीर है तो उसे संसद का संयुक्त सत्र बुलाना चाहिए। हम एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव दे रहे हैं। साथ ही अगले आदेश तक कानून लागू नहीं करने का आदेश देने पर भी विचार कर रहे हैं। अब कमेटी ही बताएगी कि कानून लोगों के हित में हैं या नहीं।

नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों का आंदोलन सोमवार को 47वें दिन में प्रवेश कर गया। केंद्र सरकार के साथ कई दौर की बातचीत फेल होने के बाद, किसान संगठनों के नेता आंदोलन तेज करने की रणनीति बनाने में लगे हैं। अगले दौर की बातचीत 15 जनवरी को होनी है। किसान संगठनों ने ऐलान किया है कि 26 जनवरी से पहले उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वो गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्‍टर परेड निकालेंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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