ग्राउंड रिपोर्ट: सरकारी सनक की भेंट चढ़ा बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ। भारत के चार धामों में से एक और भू-बैकुंठ कहा जाने वाला बद्रीनाथ धाम सरकारी सनक की भेंट चढ़ गया है। स्मार्ट हिल सिटी या स्मार्ट धाम बनाने के नाम पर बद्रीनाथ को मलबे के ढेर में तब्दील किया जा चुका है। सैकड़ों दुकानें तोड़ दी गई हैं और कई पवित्र जलधाराओं का अस्तित्व खत्म हो गया है। कई छोटे-छोटे मंदिर तोड़े जा चुके है। इस तोड़फोड़ से निकला मलबा या तो बद्रीनाथ धाम के चारों ओर बिखरा हुआ है या फिर अलकनंदा में फेंक दिया गया है। मलबे के कारण अलकनंदा का जलस्तर पहले से ज्यादा ऊपर आ चुका है, जो बद्रीनाथ धाम के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

रिवर फ्रंट डेवलपमेंट के नाम पर नदी के किनारे पहाड़ियों को काटा जा रहा है, जिससे ऊपर के हिस्सों को खतरा पैदा हो गया है। कई मकान खतरे की जद में आ गए हैं। बद्रीनाथ मंदिर के एक हिस्से में भी झुकाव आ गया है। इस हिस्से को लोहे के गार्डर का सहारा दिया गया है। आम लोगों को यह झुकाव महसूस न हो इसके लिए मंदिर के प्रभावित हिस्से को ग्रीन नेट से कवर किया गया है।

बद्रीनाथ मंदिर के पीछे नारायण पर्वत की तलहटी में भवनों को हटाने के बाद जमा मलबा

भारी बारिश के कारण बदहाल ऑलवेदर रोड की चुनौतियों को पार करके जनचौक बद्रीनाथ पहुंचा तो करोड़ों सनातनियों की आस्था का प्रतीक यह धाम एक बड़ा बीहड़ प्रतीत हुआ। धाम में प्रवेश करते ही चारों तरफ मलबे के ढेर लगे हुए हैं। पोकलैंड और जेसीबी मशीनें अब भी जगह-जगह खुदाई कर रही हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थिति जिस बद्रीनाथ धाम में ग्लेशियरों के टूटने की आशंका के कारण शंख बजाने की भी मनाही है, वहां मशीनों का कानफोड़ू शोर रात-दिन हो रहा है। केन्द्र सरकार 2024 चुनाव से पहले बद्रीनाथ को नया स्वरूप देना चाहती है, यह बात अलग है कि इस प्रयास में पूरे धाम को खंडहर कर दिया गया है। सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी छीन ली गई है और इस उच्च हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण को बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया है।

बद्रीनाथ बस अड्डे से कुछ ही दूरी पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस देवलोक है। गेस्ट हाउस के अहाते में चमोली के जिला अधिकारी और अपर जिला अधिकारी के साथ ही जोशीमठ के उप जिला अधिकारी और तहसीलदार की गाड़ियां खड़ी हैं। पूछने पर पता चला कि बद्रीनाथ में चल रहे मास्टर प्लान कार्यों का निरीक्षण करने के लिए आये हैं और निरीक्षण के बाद पंडा-पुरोहित समाज और स्थानीय व्यापारियों के साथ बैठक कर रहे हैं, जो इस तोड़फोड़ से नाराज हैं।

गेस्ट हाउस के बाहर बद्रीनाथ मास्टर प्लान का मैप एक बड़े होर्डिंग के रूप में लगा हुआ है। जिस पर बद्रीनाथ के प्रस्तावित नये स्वरूप को दर्शाया गया है। पास ही बद्रीनाथ में चढ़ाये जाने वाले प्रसाद, वस्त्र आदि की दुकान है। दुकान पर भुवनेश्वर प्रसाद डिमरी मिलते हैं। वे बताते हैं कि पिछले वर्ष नवम्बर में कपाट बंद होने के बाद वे अपनी दुकान में काफी सामान छोड़ गये थे। इसमें उनके बर्तन, गैस सिलेंडर आदि शामिल थे। इस बीच उन्हें पता चला कि मास्टर प्लान के लिए बद्रीनाथ में दुकानों को तोड़ा जा रहा है। वे मार्च में यहां आये तो दुकान तोड़ी जा चुकी थी। सामान का कहीं कोई पता नहीं चला। संबंधित अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सामान सुरक्षित रखा हुआ है।

भुवनेश्वर के अनुसार वे कपाट खुलने से कुछ दिन पहले फिर से आये, लेकिन सामान का तब भी पता नहीं चला। ऐसे में सीजन के शुरुआती दौर में वे दुकान नहीं खोल पाये। मई में उन्हें आधा-अधूरा सामान मिला। एक लिस्ट भी उन्हें दिखाई गई, जिसमें उनका पूरा सामान नहीं लिखा हुआ था। गैस का सिलेंडर, घी के कनस्तर, खाने के बर्तन और दुकान का काफी सामान उन्हें नहीं मिला।

प्रह्लाद जलधारा, जो अब मलबे के ढेर के बीच में अपने अस्तित्व का बचाने का प्रयास कर रही है

गेस्ट हाउस चौक से नीचे उतर कर एक छोटा सा बाजार है, जो अभी सही सलामत है। हालांकि दुकानदारों ने बताया कि कपाट बंद होने के बाद उनकी दुकानें तोड़े जाने की आशंका है। कुछ नीचे उतरकर अलकनन्दा नदी का पुल है और पुल के दूसरी तरफ बद्रीनाथ मंदिर है।

मंदिर के दाहिनी तरफ एक रास्ता है। इस रास्ते पर करीब 200 मीटर आगे तक दोनों तरफ 50 से ज्यादा दुकानें थी। इस क्षेत्र को मायापुरी कहा जाता है। मायापुरी बाजार की अलकनन्दा की तरफ वाली दुकानें तोड़ दी गई हैं। यह पूरा क्षेत्र अब मलबे का ढेर बना हुआ है। इसी मार्केट के बीच में दो पवित्र जलधाराएं भी थी, जिन्हें प्रह्लाद धारा और कुर्म धारा कहा जाता है। ये दोनों जलधाराएं भी मलबे में दब गई थी। बाद में पंडा-पुरोहितों के विरोध पर जलधाराओं के ऊपर से मलबा तो हटा दिया गया, लेकिन सुन्दर तरीके से सजाई गई ये जलधाराएं अब उजाड़ हैं। इन धाराओं के आसपास मलबे के अलावा प्लास्टिक का कचरा और शराब की बोतलें भी नजर आई। मायापुरी मार्केट के दूसरी तरफ वाले दुकानदारों को भी इस सीजन के बाद दुकानें खाली करने के लिए कहा गया है। हालांकि कोई लिखित नोटिस उन्हें नहीं मिला है।

बद्रीनाथ में इस विनाशकारी विकास का विरोध करने के लिए दो समितियां भी बनाई गई हैं। इनमें एक समिति है ‘मास्टर प्लान संघर्ष समिति’ और दूसरी है ‘बद्रीश संघर्ष समिति’। दोनों समितियां अपने-अपने स्तर पर बेतरतीब तोड़फोड़ का विरोध कर रही हैं। बद्रीनाथ मंदिर के पास ही हमें मास्टर प्लान संघर्ष समिति के कुछ पदाधिकारी मिले। इनमें समिति के अध्यक्ष जमुना प्रसाद रहमानी, कोषाध्यक्ष अशोक टोडरिया आदि शामिल हैं। अशोक टोडरिया हाल ही में 5 दिन का आमरण अनशन भी कर चुके हैं। वे कहते हैं कि पंडा-पुरोहित समाज को विकास कार्यों से कोई विरोध नहीं है, लेकिन बद्रीनाथ में जो किया जा रहा है, वह विनाश का प्रतीक है।

जमुना प्रसाद रहमानी कहते हैं कि मास्टर प्लान पर काम शुरू करने से पहले स्थानीय लोगों, पंडा-पुरोहितों और व्यापारियों से कोई सलाह नहीं ली गई। कपाट बंद होने के बाद लोग यहां से लौट गये तो चुपके से आकर तोड़फोड़ शुरू कर दी गई। वे कहते हैं कि तोड़फोड़ से निकला आधा से ज्यादा मलबा अलकनन्दा में फेंक दिया गया है। मलबे की मिट्टी तो बह गई है, लेकिन पत्थर रह गये हैं, जिनके कारण अलकनन्दा का जलस्तर इस बार बढ़ा हुआ है। यह तय है कि चारों ओर बिखरे इस मलबे को भी कपाट बंद होने के बाद अलकनन्दा में फेंक दिया जाएगा। इससे अलकनन्दा का पानी और चढ़ेगा, जो पूरे धाम को खतरे में डाल सकता है।

मास्टर प्लान संघर्ष समिति से जुड़े चंद्र प्रकाश रहमानी बद्रीनाथ मंदिर के एक हिस्से को दिखाते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार के दाहिनी तरफ के इस हिस्से में कुछ दरारें हैं और कुछ पत्थर छिटके हुए हैं। इसे रोकने के लिए लोहे के गार्डर वेल्डिंग करके जोड़ दिये गये हैं। इस हिस्से को ग्रीन नेट से कवर कर दिया गया है। चंद्र प्रकाश बताते हैं कि तोड़फोड़ के दौरान बड़ी-बड़ी मशीनें चलाने और नदी के किनारे रिवर फ्रंट परियोजना के नाम पर की गई खुदाई के कारण मंदिर को भी नुकसान हुआ है। वे कहते हैं कि मंदिर के इस हिस्से में झुकाव आ गया है, जो भविष्य में मंदिर को नुकसान पहुंचा सकता है।

बद्रीनाथ में जहां शंख बजाने की भी मनाही है, वहां बड़ी-बड़ी मशीने रात-दिन काम कर रही हैं

मंदिर के ठीक पीछे वाले हिस्से, यानी नारायण पर्वत की तलहटी में कुछ धर्मशालाएं, पंडा-पुरोहितों के निवास थे। उन्हें भी पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया है। करीब दो दर्जन निर्माण यहां तोड़े गये हैं। इससे मंदिर के पीछे का पूरा हिस्सा मलबे के ढेर में बदला हुआ है।

मलबे के ढेर के सबसे पीछे एक मकान सलामत नजर आया। यह राम प्रकाश ध्यानी का मकान है और इस मकान में बद्रीश संघर्ष समिति की ओर से मास्टर प्लान के विरोध में धरना दिया जा रहा है। 29 अगस्त को इस धरने को 48 दिन हो गये थे। धरना स्थल पर राम प्रकाश ध्यानी, श्रीश कोटियाल और पंडा-पुरोहित समाज के कई अन्य लोग मिले।

बुजुर्ग राम प्रकाश ध्यानी मास्टर प्लान को लेकर बेहद गुस्से में हैं। उनका कहना है कि बद्रीनाथ को मोदी की सनक ने बर्बाद कर दिया है। यह घर उनके दादा लज्जा राम ने बनाया था। उन्हीं लज्जा राम ने गरम कुंड भी बनवाया था। वे अपने यजमानों के रहने खाने की व्यवस्था खुद इसी घर में करते हैं। परेशानी में फंसे तीर्थ यात्रियों की मदद करने के लिए सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं है, लेकिन वे अपने हर यजमान का पूरा ध्यान रखते हैं।

खुद को आरएसएस का पुराना कार्यकर्ता बताने वाले राम प्रकाश ध्यानी कहते हैं कि यदि उन्हें यहां से हटाया जाता है तो उन्हें दोगुनी जमीन पक्की रजिस्टरी के साथ देनी होगी। यदि ऐसा नहीं होता तो वे बद्रीनाथ में आत्मदाह कर देंगे। इसके लिए उन्होंने लकड़ियां भी जमा करवा ली हैं। वे कहते हैं कि उनके घर मंदिर के पीछे इसलिए बनाये गये हैं, ताकि नारायण पर्वत की चोटी से आने वाले ग्लेशियर से मंदिर को बचाया जा सके। ऐसा कई बार हुआ भी है। ग्लेशियर से कई बार उनका घर टूटा है और उन्होंने फिर से बनाया है। इन घरों को आज सब्बल और मशीनें लगाकर तोड़ा जा रहा है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

मंदिर के साथ मायापुरी बाजार जो अब मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका है

धरना स्थल पर तीर्थ पुरोहित श्रीश कोटियाल भी मौजूद थे। वे कहते हैं कि मास्टर प्लान के तहत भारी तोड़फोड़ की जा चुकी है, लेकिन सरकार ने अब तक कोई विस्थापन नीति नहीं बनाई है। वे इस मास्टर प्लान के खतरों की तरफ भी इशारा करते हैं और कहते हैं कि बद्रीनाथ को स्मार्ट सिटी बनाने का ठेका जिस कंपनी को दिया गया है, वह कंपनी और उसके अधिकारियों को हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण, यहां की भूगर्भीय संरचना, यहां के पहाड़ों की प्रकृति और जलवायु परिवर्तन के खतरों की कोई जानकारी नहीं है। कंपनी या सरकार ने मास्टर प्लान बनाने और इस पर काम शुरू करने से पहले किसी भूवैज्ञानिक अथवा पर्यावरणविद् से भी कोई सलाह-मशविरा नहीं किया है।

श्रीश कोटियाल के अनुसार यह पहला मौका नहीं है, जब बद्रीनाथ के पुनर्निर्माण की बात हो रही है। इससे पहले 1974 में भी इस तरह के प्रयास किये गये थे। मंदिर के बाहर सीमेंट कंकरीट का चबूतरा भी बनाया गया था। लेकिन, स्थानीय लोगों और पर्यावरण से जुड़े लोग बद्रीनाथ के साथ की जा रही इस तरह की छेड़छाड़ के विरोध में आ गये थे। इनमें पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट, गोविन्द सिंह रावत, गौरा देवी आदि शामिल थे।

विरोध के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने नारायण दत्त तिवारी की अध्यक्षता में एक समिति बनाकर जांच करवाई थी। पर्यावरण सहित तमाम पहलुओं जांच के बाद बद्रीनाथ में सौन्दर्यीकरण के नाम पर किये जाने वाले किसी भी निर्माण कार्य पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी। मौजूदा सरकार ने उस रिपोर्ट को भी नजर अंदाज कर दिया है। जबकि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन संबंधी खतरे पहले से ज्यादा बढ़े हैं। श्रीश कोटियाल 1974 और 2023 की तुलना करते हुए कहते हैं कि आज पूरा पंडा-पुरोहित समाज, बद्रीनाथ का एक-एक व्यापारी और यहां तक कि तमाम भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद् भी बद्रीनाथ को स्मार्ट धाम बनाने के नाम पर यहां के मूल स्वरूप से की जा रही छेड़छाड़ का विरोध कर रहे हैं। वे खुद 48 दिनों से अनशन कर रहे हैं, लेकिन किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

बद्रीनाथ में तीर्थ पुरोहित मास्टर प्लान के खिलाफ 48 दिन से धरने पर हैं

बद्रीनाथ में कई पीढ़ियों से व्यवसाय कर रहे लोगों का धंधा किस तरह चौपट हो गया है, इसका उदाहरण वीआईपी रोड पर देखने का मिला। गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस देवलोक से जुड़ी होने के कारण इस सड़क को देवलोक वाली लेन भी कहा जाता है। इस रोड पर कई रेस्टोरेंट और होटल आदि मौजूद हैं। तीर्थयात्री अपनी गाड़ियों से होटल या रेस्टोरेंट तक पहुंच सकते थे। लेकिन अब इस रोड के आधा हिस्से को घेरकर नगर पंचायत ने 22 अस्थाई टीनशेड बनाये हैं।

टीनशेड वाली ये दुकानें मंदिर के पास तोड़ी गयी मायापुरी मार्केट के दुकानदारों को आवंटित की गई हैं। इसके बाद से यहां वाहनों का प्रवेश बंद कर दिया गया है। वाहनों को दूसरी तरफ माणा पार्किंग में पार्क करवाया जा रहा है। यात्री वहीं से नीचे उतरकर मंदिर में चले जाते हैं, वीआईपी रोड पूरी तरह सुनसान है। इस रोड पर रेस्टोरेंट चलाने वाले वीरेन्द्र दत्त राणाकोटी के अनुसार पिछले साल तक उनका रेस्टोरेंट ठीक-ठाक चलता था। लेकिन, इस बार पूरे दिन में गिने-चुने ग्राहक ही उनके रेस्टोरेंट में आ रहे हैं। सड़क पर टीनशेड बन गये हैं और वाहनों पर प्रतिबंध लग गया है। ऐसे में यह हिस्सा अलग-थलग पड़ गया है।

वीआईपी रोड पर नये बने टीनशेड में चाय नाश्ते की दुकान चलाने वाले कृष्णा कुमार यादव कहते हैं कि वे पिछले कई सालों से मायापुरी में दुकान चला रहे हैं। हर वर्ष कपाट खुलने पर बिहार से यहां आते हैं। इस बार मायापुरी की दुकान तोड़ दिये जाने के बाद उन्हें यहां दुकान आवंटित की गई, लेकिन हालात ये है कि खुद का खर्चा भी नहीं निकल पा रहा है। वे कहते हैं कि सुबह से अब तक यानी दोपहर बाद 3 बजे तक एक भी ग्राहक उनकी दुकान पर नहीं आया है।

बद्रीनाथ के तीर्थ पुरोहितों और व्यवसायियों को सबसे ज्यादा नाराजगी इस बात को लेकर है कि ऐसे समय में उनकी दुकानें और आवास तोड़े गये, जब धाम के कपाट बंद थे और वे यहां नहीं थे। ताज सिंह पोखरिया, दिनेश सिंह बिष्ट, केसर सिंह चौहान जैसे दर्जनों दुकानदारों का कहना है कि कपाट खुलने से पहले जब वे वापस लौटे तो उन्हें अपना सामान पूरा नहीं मिला। गैस सिलेंडर और बर्तन न मिलने की शिकायत कई दुकानदारों ने की। दुकानदारों का कहना है कि बद्रीनाथ उनके लिए अपना घर था। कई पीढ़ियों से यहां व्यवसाय कर रहे हैं। लेकिन इस बार लग रहा है कि वे किसी दूसरी जगह आ गये हैं और अब उन्हें यहां से भगाया जा रहा है।

बद्रीनाथ में मुआवजा भी एक मुद्दा बना हुआ है। बताया गया है कि मुआवजे की राशि हाईवे से दूरी के अनुसार तय की गई है। यानी कि माणा हाईवे के नजदीक जिनके निर्माण तोड़े गये हैं या तोड़े जाने हैं, उन्हें ज्यादा मुआवजा मिलेगा, जबकि मंदिर के आसपास वालों को कम मुआवजा मिलेगा। ऐसे में मंदिर के आसपास रहने वाले नाराज हैं। वे कहते हैं कि उन्हें ज्यादा नुकसान हुआ है, इसलिए उन्हें ज्यादा मुआवजा मिलना चाहिए।

मंदिर के पास लोगों के घर औऱ दुकानें

तीर्थ पुरोहित दिनकर बाबुलकर इसे प्रशासन की साजिश बताते हैं। वे कहते हैं ऐसा भ्रम व्यवसायियों की एकता तोड़ने के लिए फैलाया जा रहा है। श्रीश कोटियाल कहते हैं कि आपस में झगड़ा करवाने के कई षडयंत्र किये जा रहे हैं। लोगों के पुराने आपसी लिखित समझौतों को अवैध बताकर एक दूसरे के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवाये जा रहे हैं। इसके साथ ही बद्रीनाथ में रह रहे तीर्थ पुरोहितों से सीधे बात करने के बजाए देश-विदेश में रहने वाले उनके ऐसे भाई-बंधुओं से बात की जा रही है, जिनका अब बद्रीनाथ को कोई वास्ता नहीं है। उन्हें तरह-तरह के लालच दिये जा रहे हैं। इस तरह से भाइयों में भी झगड़ा करवाया जा रहा है।

क्या है बद्रीनाथ मास्टर प्लान

बद्रीनाथ मास्टर प्लान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जा रहा है। दरअसल वे सभी तीर्थ स्थलों को भव्य रूप देने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसी के तहत बद्रीनाथ को स्मार्ट धाम के रूप से विकसित किये जाने का दावा किया जा रहा है। 424 करोड़ रुपये की इस योजना के तहत बद्रीनाथ के सभी पुराने निर्माणों को हटाकर उनकी जगह नये निर्माण किये जाने हैं। 83 एकड़ क्षेत्र का सौन्दर्यीकरण किया जाना है। बद्रीनाथ पुरी के दो तालाबों का भी सौन्दर्यीकरण किया जाता है। तीर्थयात्रियों को ठंड से बचाने के लिए व्यवस्था की जानी है और मनोरंजन के साधनों के साथ ही म्यूजिक फाउंटेन आदि भी बनाये जाने हैं। यानी की बद्रीनाथ को धर्मनगरी की जगह पर्यटन नगरी बनाया जाना है।

(बद्रीनाथ से त्रिलोचन भट्ट की ग्राउंड रिपोर्ट।)

त्रिलोचन भट्ट

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त्रिलोचन भट्ट