ग्राउंड रिपोर्ट: कस्तूरबा नगर नहीं, लोगों के ख्वाबों पर चल रहा बुलडोजर

नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली के कस्तूरबा नगर कॉलोनी की एक दलित लड़की के मन में डॉक्टर बनने के सपने पल रहे थे, एक दूसरी दलित लड़की के मन में वकील बनने के सपने पल रहे थे, एक दलित लड़का इंजीनियर बनकर अपने लोगों के लिये इमारतें बनाना चाहता था लेकिन बीच में बुलडोजर आ गया। आज़ादी और बंटवारे के बाद पाकिस्तान में अपना घर-बार छोड़कर आये मिलिट्री मैन के परिवारों को कस्तूरबा नगर में बसाया गया था। ये लोग अब दोबारा उजड़ने को अभिशप्त हैं। 

मानसरोवर पार्क मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर एक से निकलकर महज 500-700 मीटर की दूरी पर कस्तूरबानगर रेड लाइट से दायीं ओर का रास्ता कस्तूरबा नगर कॉलोनी जाता है। कॉलोनी की सड़क पर कदम रखते ही सबसे पहले ‘नगर निगम प्राथमिक आदर्श बाल/बालिका विद्यालय कस्तूरबा नगर’ स्वागत करता मिला। समाजसेवी संगीता बताती हैं कि इस स्कूल का पिछला हिस्सा भी तोड़ने के लिये चिन्हित किया गया है। इसी स्कूल में बुनियादी पढ़ाई करते हुये कस्तूरबा नगर के बच्चों ने डॉक्टर,इंजीनियर और वकील बनने के सपने देखे।

रोशनी

कस्तूरबा नगर कॉलोनी निवासी रोशनी की मां शिवम एन्कलेव में लोगों के घरों में झाड़ू पोछा लगाने व जूठे बर्तन धोने का काम करती हैं जबकि रोशनी के पिता के पास काम नहीं है साथ ही उन्हें कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हैं। रोशनी की कॉलोनी में बच्चे, बूढ़े, जवान स्त्री,पुरुष हर किसी को कुछ न कुछ बड़ी स्वास्थ्य समस्यायें हैं। रोशनी अपने समुदाय के लोगों का इलाज करने के लिये डॉक्टर बनना चाहती है अतः उसने बारहवीं पास करने के बाद राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी शुरु कर उसने अपने सपने का पीछा करना भी शुरु कर दिया था। अभी कुछ ही महीने हुये थे कि एक दिन डीडीए ने उनके घरों पर नोटिस चस्पा कर दिये, घरों पर बुलडोजर चलाये जाने का नोटिस। तब से रोशनी की पढ़ाई ठप्प पड़ी है।

जनचौक से बात करते हुये रोशनी की आंखें डबडबा जाती हैं। उन्हें अपने सपनों पर बुलडोजर खड़ा दिखाई देता है। रोशनी हर पल इस चिंता में घुलती रहती हैं कि उनका घर टूट गया तो वो अपना परिवार लेकर कहां जायेंगी, क्या करेंगी। कस्तूरबा नगर कॉलोनी के जिन जिन लोगों के यहां बुलडोजर चलाने का नोटिस चस्पा है उन सबका यही हाल है। इसी कॉलोनी की मीना अपने दिल का उद्गार कुछ यूं व्यक्त करती हैं कि एक विध्वंसक विचार की तरह बुलडोजर उनके जेहन में आता है और सब कुछ तोड़ फोड़कर ध्वस्त कर देता है। रोज़ ब रोज़, पल दर पल वे गुज़रते हैं इस क्रूर प्रक्रिया से। उन्हें तब तक इस यातना से गुज़रना है जब तक कि बुलडोजर सचमुच आकर उनका घर संसार सपनों को तोड़ नहीं देता। तब भी ये यातना खत्म नहीं होने वाली। यह त्रासदी स्मृतियों में रहकर ता-ज़िन्दग़ी उनके अस्तित्व को ध्वस्त करती रहेगी।

एक बार काबुल, फिर हिंदुस्तान में उजड़ने का दर्द 

एक भरपूर ज़िन्दगी में किसी व्यक्ति को, किसी समूह को या किसी समाज को दो बार उजड़ने की पीड़ा से गुज़रना पड़े तो उसका भी हाल वही होगा जो 92 वर्षीय गुरदयाल सिंह का है। मोतियाबिंद से भले आंखें पथरा गयी हों पर गुरदयाल सिंह के मन में उजड़ने के ज़ख्म अभी हरे हैं और बुलडोजर दोबारा उखाड़ने का फरमान लिये उनके सिर पर सवार हैं। गुरदयाल सिंह के लिये मानों अभी कल की ही बात हो। सब कुछ इतनी अच्छी तरह से उन्हें याद है। वो बताते हैं कि उनके पिता ने अंग्रेजों के लिये पहला विश्व युद्ध लड़ा था। और महज चालीस साल की उम्र में उनके पिता उस युद्ध में शहीद हो गये थे।

गुरुदयाल सिंह

गुरदयाल सिंह बताते हैं कि उनकी खुद की उम्र तब ग्यारह साल रही होगी। एक अंग्रेज मैम उन्हें अपना बच्चा बनाकर रखना चाहती थीं। वो उन पर जान छिड़कती थीं, प्यार से चूमती थीं, लेकिन वो नहीं गये। आज़ादी के समय उन्हें काबुल से उजड़कर दिल्ली आना पड़ा। गुरदयाल सिंह आगे बताते हैं कि मिलिट्री मैन के परिवार जब 1950 में आये तो तत्कालीन नेहरू सरकार ने उन्हें दिल्ली के अंदर चार जगहों कस्तूरबा नगर, मजनूटीला,माधोपुर,पश्चिम नगर,संतनगर करोलबाग में ज़मीन देकर बसाया था। गुरदयाल बताते हैं कि उनके पास ज़मीन से जुड़े सारे कागज़ हैं,सारे टैक्स,सारे बिल हैं। लेकिन डीडीए उन्हें अवैध बताकर बुलडोजर चलाने जा रही है। 

उजाड़ने की नोटिस लगने के बाद अवसाद, बीपी, हर्ट-अटैक के केस बढ़े

घरों को खाली करने और तोड़ने की नोटिस चस्पा होने के बाद कस्तूरबा नगर के निवासियों में तनाव,अवसाद,ब्लड प्रेशर,दिल व दिमाग का दौरा पड़ना आम बात हो गयी है। नोटिस लगने के बाद से सुरजीत कौर के पति व ससुर को दिल व दिमाग के दौरे पर चुके हैं। छत पर पोते को गोद में लिये इलेक्ट्रिक वायर के प्लास्टिक छीलकर कॉपर निकालती सुरजीत कौर इसी कॉलोनी में पैदा हुईं और मां बाप ने तीन गली छोड़कर इसी कॉलोनी में उनका ब्याह कर दिया।

सुरजीत कौर

दो सप्ताह पहले तक वो एक कबाड़ के कारखाने में काम करती थी लेकिन काम से हटा दिया गया। एक कमरे का मकान है जिसमें दो चारपाई पड़ी है। ऊपर छत पर कूलर का एक्जास्ट मोटर पंखे की जगह टंगा है जिसे वो रेलवे लाइन से कबाड़ में बीनकर लायी थीं। इस कमरे में सुरजीत के बेटा-बहू सोते हैं जबकि सुरजीत कौर पति संग किचेन में गुज़ारा करती आ रही हैं। लेकिन अब इस पर किसी की नज़र गड़ गई है। सुरजीत के एक बेटे की मौत लॉकडाउन के समय लीवर फटने से हो गई थी। वो कहती हैं – “सरकार हमारे ऊपर बुलडोजर चलाकर हमें यहीं दफ़्न कर दे,बाकी हम अब यह जगह छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे।” 

वहीं प्रीत कौर 13 साल पहले ब्याहकर इस कॉलोनी में आयी थीं। तब से वो यहीं रह रहीं हैं उनके दो बच्चे हैं। प्रीत कौर डायबिटीज की मरीज़ हैं। वो जनचौक से बात करते हुये कहती हैं कि नोटिस लगना सदमे वाली बात है। यदि एक ग़रीब व्यक्ति के सिर से छत छीनी जायेगी तो उसका पूरा परिवार टेंशन में तो आयेगा ही। घर की आर्थिक, सामाजिक मानसिक डायमेंशन को उद्धृत करते हुये प्रीत कौर कहती हैं कि एक घर बनाने में एक व्यक्ति का पूरा जीवन खप जाता है। जिसकी इतनी क्षमता न हो कि वो उजड़ने के बाद कहीं किराया देकर रह सके वो बीमार तो पड़ेगा ही। प्रीत कौर बताती हैं कि नोटिस लगने के बाद उनके दादा ससुर को सदमे से अटैक आया और उनकी हालत अब भी क्रिटिकल बनी हुई है। 

5-6 महीने पानी बंद करवा दिया 

धूप में बैठकर गठिया के दर्द सेंकती निरंजन कौर जीवन के पांच दशक व्यतीत कर चुकी हैं। वो बताती हैं कि डीडीए द्वारा 27 जुलाई 2022 में नोटिस चिपकाया गया उसके बाद 5-6 महीने कॉलोनी में पानी नहीं आया। बहुत दिक्कत हुई लोग बाहर से पानी भर-भरकर ले आये। उन लोगों ने सोचा कि पानी का कनेक्शन काट देंगे तो कस्तूरबा नगर छोड़कर चले जायेंगे लोग। लेकिन बिजली पानी न मिले तो कोई अपना घर नहीं छोड़ता भैय्या। निरंजन आगे बताती हैं कि जब वो ब्याहकर इस कॉलोनी में आयी थी तों यहां कुछ भी नहीं था,जंगल ही जंगल था। लोग साग-सब्जियां उगा लेते थे। लेकिन अब यहां अगल-बगल फ्लैट खड़ा कर लिया गया और दलित बस्ती को उजाड़ने की बात हो रही है। 

समाजसेवी संगीता कमलेश सरकार और डीडीए की सारी बदमाशी का विश्लेषण करती हैं। वो बताती हैं कि कस्तूरबा नगर में फिलहाल मकानों को ग्रीन आरेंज और रेड जोन में बांटा गया है। वो बताती हैं कि हल्द्वानी और तुगलकाबाद में हजारों मकानों को जब तोड़ने का नोटिस जारी किया गया तो हजारों लोग विरोध में सड़कों पर उतर आये थे। इसी से सबक लेते हुये कस्तूरबा नगर में दूसरा फॉर्मूला लागू किया गया है।

संगीता कमलेश

संगीता बताती हैं कि यहां डेढ़ दो साल पहले भी डेढ़ दो सौ झुग्गियों पर बुलडोजर चलाया गया था। और उनके बग़ल के मकानों को सेफ बताकर छोड़ दिया गया था। दो साल पहले जो सेफ थे। अब उनका नंबर लगा है। वो आगे कहती हैं कि और जिन्हें आज ग्रीन जोन में डालकर सेफ बताया गया है उनका नंबर दो साल बाद लगेगा। लेकिन इससे लोगों में एका नहीं बन पायेगी लोग एकजुट होकर विरोध नहीं कर पायेंगे। अंग्रेजी में नोटिस लगाया गया है खम्भों पर। जबकि यहां लोग बहुत पढ़े-लिखे नहीं हैं।

इस बात को समझने के लिये बहुत समाजशास्त्र की ज़रूरत नहीं है कि जब कोई व्यक्ति,परिवार या समुदाय अपनी ज़मीन से उजड़ता है तो उसके साथ अस्मिता का संकट तो होता ही है। साथ उसके पहचान का संकट भी जुड़ जाता है। क्योंकि पहचान के सारे कागजात ज़मीन व मकान से जुड़े होते हैं।

वहीं कस्तूरबानगर कॉलोनी के सामाजिक आर्थिक परिवेश की बात करें तो यहां 1950 में पाकिस्तान से आये मिलिट्री मैन के परिवारों के लोग रहते हैं जो मुख्यतः दलित हैं। हिंदू, पंजाबी दलित। इस कॉलोनी की स्त्रियां दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा करने व जूठे बर्तन साफ करने का काम करती हैं, जबकि आदमी दिहाड़ी पेशा हैं। यहां हर घर में बीमारी है। कॉलोनी में नालियां गंदगी से भरी पड़ी हैं जिसे ये लोग खुद ही साफ करते हैं क्योंकि इस कॉलोनी में सफाईकर्मी नहीं आते हैं। कूड़ा उठाने वाली दिल्ली नगर निगम की गाड़ियां भी पखवाड़े में एक बार आती हैं। वहीं इस कॉलोनी के आगे कुछ सालों पहले खड़े किये गये शिवम एन्कलेव में ऊंची-ऊंची इमारतें हैं जिसमें वकील जज, डॉक्टर, वकील, बिजनेस जैसे पेशे से जुड़े लोग रहते हैं। 

पुनर्वास के बाद आजीविका का संकट खड़ा होता है

2 साल पहले कस्तूरबानगर से ही डेढ़ दो सौ झुग्गियों को तोड़कर उन्हें द्वारका में बसाने का दावा किया गया। सामाजिक कार्यकर्ता संगीता कमलेश इस सरकारी दावे के पर्दे हटाते हुये जनचौक को बताती हैं कि वह उन लोगों से मिली हैं। लोगों से फ्लैट के बदले डेढ़,दो लाख रुपये लिये गये। लोगों की किश्त बांधी गयी। लेकिन उन लोगों की रोटी-रोजी यहां पर थी, कस्तूरबा नगर में। संगीता आगे इस बात को विशेष रूप से रेखांकित करती हैं कि जहां उन लोगों को बसाया गया वहां पर उनके लायक काम नहीं था क्योंकि वो पूरा पॉश इलाका है। वहां ये लोग ठेले नहीं लगा सकते,अतः वहां किराये पर उठाकर वो लोग ज्वालादेवी में आकर ठेले लगाकर गुज़र बसर कर रहे हैं। संगीता कमलेश ज़ोर देती हैं कि पुनर्वास ऐसी जगह पर नहीं होना चाहिये कि जहां रोटी-रोजी का साधन न हो,और व्यक्ति का अस्तित्व ही संकट में आ जाये। वो कहती हैं कि कस्तूरबा नगर के लोग इस हक़ीक़त से वाकिफ़ हैं इसीलिए वो कस्तूरबानगर से कहीं नहीं जाना चाहते हैं। 

मुख्यमंत्री व भाजपा के दफ्तर से धक्के देकर भगा दिया गया 

कस्तूरबा नगर के एक किनारे झुग्गियों के टूटे हुये मलवे पर टेंट लगा है। रमेश कौर के घर में शादी है। घर में खुशी,ग़म और गुस्से का मिला-जुला माहौल है। दरअसल डेढ़ साल पहले रमेश कौर के मकान के आस-पास की झुग्गियों को तोड़ दिया गया था। तब रमेश कौर के मकान को ‘सेफ’ में चिन्हित किया गया था। लेकिन डेढ़ साल बाद ही उनके मकान की बारी आ गई। रमेश कौर जनचौक से बताती हैं कि डेढ़ साल पहले उनसे कहा गया था कि उनका घर डीडीए के अंदर नहीं है तो नहीं तोड़ा जायेगा। तब से तीन बार बुलडोजर आये उनके आस पास की झुग्गियां व मकान तोड़े गये, लेकिन वो बच गये।

अब उनसे कहा जा रहा है कि मकान तो तोड़ा जायेगा पर मुआवज़ा नहीं दिया जायेगा। अपनी बेबसी और राजनीतिक बर्बरता को बयां करते हुये रमेश कौर जनचौक से कहती हैं कि अगस्त में नोटिस चस्पा होने के बाद कमेटी बनाकर लगभग 500 महिलायें मुख्यमंत्री कार्यालय गयी थीं लेकिन उन्हें धक्के देकर निकाल दिया गया। वो लोग भाजपा सांसद गौतम गंभीर, भाजपा विधायक ओमप्रकाश राठौर, गोपाल राय, कौशल कुमार सब से मिली। लेकिन हर जगह से उन्हें भगा दिया गया। 

कस्तूरबा नगर के निवासियों का आरोप है कि रास्ते भर की पर्याप्त जगह थी लेकिन शिवम एन्क्लेव के लोगों के लिये जगह घेरकर दीवार खड़ी करके कस्तूरबा नगर कॉलोनी को ढक दिया गया और अब वो लोग कहते हैं कि इन्हें हटाओ यहां से ये गंदे लोग हैं इनसे सोसाइटी पर फ़र्क़ पड़ता है। हाल ही में पाकिस्तान से लाकर मजनू टीला में बसाये गये तीन चार सौ लोगों का जिक्र करते हुए रमेश कौर कहती हैं “पाकिस्तान से लाकर लोगों को यहां बसाया जा रहा है उन्हें नागरिकता दी जा रही है और हमें उजाड़कर हमारी नागरिकता छीनी जा रही है। ” 

बुलडोजर के आतंक से बेटे की शादी टूटी

जसवंत कौर

जसवंत कौर बीपी और डायबिटीज की दवाइयां खाती हैं। 25 सालों तक उन्होंने डोर टू डोर सेल का काम किया है। उनकी बहू दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाने व जूठे बर्तन धोने के काम करती है। जबकि बेटा किराये का बैटरी रिक्शा चलाता है। जसवंत कौर आंखों में लाचारगी लिये जनचौक को बताती हैं कि उन्होंने जुलाई में छोटी बेटी की सगाई की थी, नवंबर महीने में शादी करके बहू लाने वाली थीं, लेकिन जुलाई में मकान तोड़ने का नोटिस लगने के बाद बेटे का रिश्ता टूट गया। लड़की वालों ने दो टूक कहा कि जब आप लोगों का ही ठिकाना नहीं तो उनकी बेटी ब्याहकर कहां रखोगे। जसवंत कौर आगे बताती हैं कि उनकी पोती 12वीं में पढ़ती है, कहती हैं डॉक्टर बनेगी लेकिन जब घर ही नहीं रहेगा तो कहां रहेंगे, कहां पढ़ेंगे। जसवंत कौर रुंधे गले से कहती हैं कमाई रोटी भर की अंट रही है, घर टूट गया तो कैसे जीएंगे। 

कोर्ट ने स्टे न लगाया होता तो खंडहर हो जाती कॉलोनी 

अगस्त महीने में एक ओर देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा था दूसरी ओर कस्तूरबा नगर के निवासी बुलडोजर से अपना अस्तित्त्व बचाने का संघर्ष कर रहे थे। सड़क पर गुनगुनी धूप में दोपहर की रोटी खाने बैठे चरत राम हमें देखते ही रोटी परे रखकर कहते हैं – “पहले मकान फिर रोटी”। चरत राम के पुरखे उनीचक क़स्बे मुल्तान ज़िला से किसी तरह बचते-बचाते,मरते-मिटते दिल्ली आये थे। और यहां उन्हें बीस क्वॉर्टर्स जो कि 1957 में बने और 1958 में अलॉट हुये में बसा दिया गया। तब बीस क्वॉर्टर्स के आगे जंगल ही जंगल था।

चरत राम जी ऑपरेशन ऑफ़िसर की पोस्ट से रिटायर हैं और कस्तूरबा नगर कॉलोनी को बचाने की क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। चरत राम जी जनचौक को बताते हैं कि कस्तूरबा नगर को ख़तरा था कि 18 अगस्त 2022 के बाद वो कभी भी बुलडोजर लेकर आ सकते थे तो उन लोगों ने मिलकर एक्टिव मेंबर की एक कमेटी गठित किया और दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर किया। उन लोगों की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने डीडीए के नोटिस पर चार बार स्टे दिया। फिर दिल्ली हाईकोर्ट ने उनसे कहा कि आपके डॉक्युमेंट तो सब सॉलिड हैं पर ‘एज पर पोलिसी’ वह मजबूर हैं। चार बार कोर्ट ने स्टे ऑर्डर भी दिया लेकिन अब आप लोग सुप्रीम कोर्ट जाइये।

चरतराम

चरत राम आगे बताते हैं कि फिर वे लोग सुप्रीम कोर्ट गये। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील नकारते हुये कहा कि आप लोग पहले दिल्ली हाईकोर्ट के डबल बेंच कोर्ट के पास जाइये। फिर वहां से सुप्रीम कोर्ट आने का रास्ता बनता है। अभी वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के मार्फ़त लोगों ने दोबारा दिल्ली हाईकोर्ट में डबल बेंच के सामने अपील किया है। चरत राम सत्ताधारी दलों की उदासीनता का ज़िक्र करके कहते हैं केजरीवाल सरकार ने नहीं सुनी,भाजपा ने भी नहीं सुनी। वो कहते हैं अगर दिल्ली हाईकोर्ट ने नहीं सुना होता तो कस्तूरबा नगर अब तक खंडहर बन चुका होता। 

भाजपा विधायक की साजिश 

92 वर्षीय गुरदयाल आरोप लगाते हैं कि भाजपा विधायक ओम प्रकाश बदमाशी कर रहा है। चुनाव के दौरान कुछ लोगों ने उसका पैसा खा लिया उसी का बदला ले रहा है। जबकि जो रोड ये लोग निकलना चाह रहे हैं वो मास्टर प्लान में नहीं है। 

वहीं राम चरत बताते हैं कि भाजपा विधायक ओम प्रकाश राठौर डीडीए मेंबर है। राम चरत आरोप लगाते हैं कि शिवम एन्क्लेव के बग़ल से रोड निकल रहा था। लेकिन फिर कहा गया कि उनकी कारें कहां खड़ी होंगी और बाउंड्री वॉल खड़ी कर दी गयी और अब सड़क के लिये कस्तूरबा नगर के लोगों के घर तोड़े जा रहे हैं। राम चरत आरोप लगाते हैं कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) व दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) ने इस जगह का सर्वे तक नहीं किया। डीडीए ने कोर्ट में कहा कि सर्वे ये जगह कहीं है ही नहीं। लेकिन जब कस्तूरबा नगर कमेटी के वकील ने हाईकोर्ट के अंदर डीडीए से पूछा कि कस्तूरबा नगर ‘स्लम’ में है कि नहीं। तब डीडीए ने स्लम के रिकॉर्ड खंगालकर कहा कि हां स्लम में है। दरअसल दिल्ली सरकार ने साल 1986 में कस्तूरबा नगर कॉलोनी को स्लम में वर्गीकृत कर दिया था। स्लम डीडीए के अंतर्गत ही है लेकिन डीडीए ने काम नहीं किया।

कस्तूरबा नगर निवासी महिलायें जो सत्यम एन्क्लेव में काम करने जाती हैं उनका कहना है कि सत्यम एन्कलेव में रहने वाले बड़े लोगों के इशारे पर ही उन्हें कस्तूरबा नगर से उजाड़ा जा रहा है। वो लोग दलित बस्ती को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। कहते हैं इससे उनकी सोसाइटी पर फर्क पड़ता है। 

(दिल्ली से जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

सुशील मानव
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