ग्राउंड रिपोर्ट:  सिरसा में किसान आंदोलन का नए सिरे से उभार

सिरसा ( हरियाणा)। ऐतिहासिक किसान आंदोलन की जीत  के बाद से देश के किसानों में अपने हितों के लिए संघर्ष करने का एक नया जज्बा पैदा हुआ है, और किसान अपने हितों के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं। ऐसा ही एक संघर्ष सिरसा में हरियाणा किसान मंच की ओर से देखने को मिला है। इस प्रदर्शन की खासियत यह है कि किसानों ने एक बार फिर से अपने ट्रैक्टर-ट्राली लेकर उपायुक्त ऑफिस के सामने पक्का मोर्चा लगा दिया है। सिरसा में एक बार फिर से दिल्ली बॉर्डर जैसा नजारा देखने को मिल रहा है। सड़क किनारे  किसान अपनी ट्रालियों में रहने के लिए अस्थाई ठिकाना बना कर जम चुके हैं। वो वहीं पर रहकर खाना बना रहे हैं, और नहा-धो रहे हैं।

उपायुक्त कार्यालय के सामने ट्रैक्टर-ट्राली की कतार

जनचौक की टीम जब वहां पहुंची तो सभी ने अपने-अपने अस्थाई तम्बू दिखाए। बड़े चाव से हमें भोजन परोसा गया। 30 से 40 ट्रालियों के साथ  लगभग 40 गांवों के किसानों ने डेरा लगाया हुआ है। वे अलग-अलग गाँवों से 2019, 2020, 2021 में हुई फसल की बर्बादी का मुआवजा सरकार से लेने के लिए आए हैं। इस इलाके में सबसे अधिक पैदावार नरमे की होती है। गुलाबी सुंडी (एक कीड़ा जो फसलों को खा जाता है) के चलते नरमे की 95 प्रतिशत फसल खराब हो गयी। इस तरह से फसल का खराब हो जाना प्राकृतिक आपदा थी, लेकिन सरकार ने लंबा समय बीत जाने के बाद भी मुआवजे की कोई घोषणा नहीं की, जिससे किसान निराश और हताश थे। इसी मुआवजे एवं अन्य मांगो के लिए किसान कड़ाके की सर्दी में उपायुक्त सिरसा के सामने डेरा लगाए हुए हैं।

उपायुक्त कार्यलय के सामने देर रात की छवि

गांव झोहड़, कालांवाली से आए किसानों में से मलकीत सिंह, गुरदेव सिंह व बलबीर सिंह ने  बताया “वे छोटे किसान हैं, 5-5 एकड़ की खेती करते हैं। नरमा की बिजाई की थी। नरमा की फसल में बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। खाद डालना, लगातार स्प्रे करना बहुत ज्यादा खर्च बढ़ा देता है। उम्मीद थी कि अबकी बार अच्छी फसल हो जाएगी, लेकिन लाल सुंडी से सारी फ़सल बर्बाद हो गयी। सब बर्बाद हो गया। सरकार ने जो फसल बीमा किया था, उसका मुआवजा भी नहीं दिया। पानी एक महीने में सिर्फ सात दिन मिलता है। जो नाकाफी है। बड़े किसान को सरकार से कर्ज जल्दी मिल जाता है, लेकिन हम जैसे छोटे किसान को कर्ज लेने में भी दिक्कतें आती हैं।”

65 वर्षीय किसान ओमप्रकाश डिंग कहना था “उनके पिता आजाद हिंद फौज में थे। उनके पिता देश के बाहर की जेल में भी कैद रहे। लेकिन क्या इसी दिन के लिए हमारे बुजुर्गों ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी कि हम किसानों को मूलभूत जरूरतों, बिजली, पानी, खाद या मुआवजे के लिए सर्द रात में खुले आसमान के नीचे बैठने के लीये मजबूर होना पड़े।” उनके पास 7 एकड़ जमीन है। लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण, वो कर्जे से दबे हुए हैं। नेताओं के बारे में जब मैंने उनसे सवाल किया तो, वे गुस्से में बोल पड़े, “एक तरफ तो सुभाष चंद्र बोस जैसे महान नेता थे, जिन्होंने देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया। एक आज के नेता हैं जो कुर्सी के लिए अपने देश के बच्चों का भविष्य  बेच देते हैं।” डींग के ही किसान राकेश का कहना था कि “ताऊ देवीलाल ने वृद्धावस्था पेंशन की शुरुआत 100 रुपये से की थी। साइकिल, ट्रैक्टर, रेडियो पर लगने वाला टैक्स खत्म किया था। किसान का कर्जा माफी भी उन्होंने किया था। लेकिन आज उनका पड़पोता उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला वृद्धावस्था पेंशन में कटौती कर रहा है। दोबारा किसान के सामानों पर टैक्स लगाना चाहता है।” किसान होशियार सिंह ने बताया कि “उन्होंने 25 एकड़ में नरमा की बिजाई की थी। 25 एकड़ में सिर्फ 300 किलो कपास हुई। अगर सुंडी फसल बर्बाद नहीं करती तो 400 क्विंटल कपास होनी थी, लेकिन हुई सिर्फ 3 क्विंटल।”

चामल गांव से आए एक किसान ने बताया “कर्जा उठा कर खेत ठेके पर लिया। महंगे बीज डाल कर फसल की बिजाई की, सरकार न समय पर पानी देती है और न ही खाद देती है। खाद के लिए लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ता है। नरमा की फसल तो खराब हुई ही, साथ ही गेहूं की बिजाई के लिए भी समय पर खाद नहीं मिली। डीएपी (DAP) खाद के लिए रोजाना मारामारी करनी पड़ी, उसके बाद फिर से यूरिया के लिए लाइनों में लगना पड़ रहा है। ब्लैक में खाद झट से मिल जाती है।” किसान रमेश ने बताया “दिन में खाद के लिए लाइनों में लगना पड़ता है तो रात को आवारा पशुओं से फसल की पूरी रात रखवाली करनी पड़ती है। ये सरकार किसान विरोधी है।”

फग्गू गांव के किसान काका सिंह, बच्चन सिंह और  हरनाम सिंह  खाना बना रहे थे। जब मैंने उनसे बातचीत की तो, उन्होंने बताया कि “कंपकपाती सर्दी में हम खुले आसमान के नीचे कोई शौक में नही बैठे हैं, ये निर्दयी सरकार है जो अन्नदाता से बात तक करना पसंद नही करती है।” उनका कहना था “हमने फसल बीमा भी करवाया था। 1500 रुपये के आस-पास हमने एक एकड़ के हिसाब से किश्त भी जमा की थी, लेकिन जब हमारी फसल गुलाबी सुंडी से खराब हो गई, तो सरकार सहित कम्पनी दोनों ने मुआवजा राशि देने से मना कर दिया। किसानों ने कर्ज उठा कर जमीन ठेके पर ली हुई थी। किसान को न समय पर पानी मिलता है न खाद मिलता है। हम सब रात को आवारा पशुओं से खेत की रखवाली करते हैं और सुबह-सुबह उठ कर बाजार में खाद के लिए लाइन में लगना पड़ता है। सरकार खाद को ब्लैक में बिकवा रही है।”

          हरियाणा किसान मंच के राज्य अध्यक्ष प्रल्हाद सिंह भारूखेड़ा ने बताया कि “जब गुलाबी सुंडी से नरमे की फसल खराब हुई, तो हमने अपने संगठन की तरफ से किसानों को साथ लेकर जिला उपायुक्त को ज्ञापन के माध्यम से अवगत करवाया था। उसके बाद कमिश्नरी स्तर पर भी किसानों ने अलग-अलग संगठनों के साथ मिलकर कमिश्नर को ज्ञापन दिया था। लेकिन इसके बाद भी किसानों की समस्याओं पर ध्यान नही दिया गया। पिछले दिनों भी हम सिरसा उपायुक्त को अल्टीमेटम देकर गए थे कि किसानों की समस्याओं पर विचार किया जाए। जब इन्होंने किसानों की किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया, तो हमने ये पक्का मोर्चा यहां लगाया है।”

मोर्चे को आज 10 दिन हो गए हैं। 10 दिन के किसान संघर्ष के बाद सरकार ने मुआवजा देने की घोषणा की है। सिरसा, फतेहाबाद और हिसार  इलाके में सबसे ज्यादा नरमा होता है। इसलिए इस इलाके का किसान बेमौसमी बारिश व गुलाबी सुंडी के कारण बर्बाद हो गया है। किसानों ने बैंकों से कर्ज लिया हुआ है। किसान आज सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है सरकार किसान की मदद करने की बजाय कारपोरेट की मदद कर रही है।

सरकार ने मुआवजे की घोषणा कर दी है तो अब क्यों बैठे है इस सवाल के जवाब में प्रल्हाद सिंह ने कहा  “हमारी कुल 9 मांगे हैं उनमें से एक मुआवजे की मांग भी है। मुआवजे की घोषणा भी सरकार ने सही तरीके से नहीं की है। इसके साथ ही 2019-20 का मुआवजा भी अभी बकाया है। दूसरी मांगों पर सरकार अभी भी खामोश है। जैसे नहर में पानी महीने में 15 दिन दिया जाए, किसान को डीजल टैक्स से मुक्त दिया जाए, बिजली ट्यूबवेल कनेक्शन बिना शर्त जारी किए जाए, समय पर किसान को खाद दिया जाए। इस तरह हमारी 9 मांगे हैं, जिन पर सरकार व प्रशासन चुप है। जब तक सरकार हमारी मांग पूरी नही करती, तब हम उठ कर नहीं जायेंगे।”

मोर्चे पर लंगर का प्रबंध  

इस सवाल पर उन्होंने कहा कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने किसान को लड़ना व लड़ने के तरीके सिखा दिए हैं। उसी किसान आंदोलन का नतीजा है जो किसान ट्रैक्टर-ट्रालियों के साथ यहां पहुंचे हैं। वो अपने साथ लंबे समय का राशन लेकर आये हैं। इसके  साथ ही गुरुद्वारा चिल्ला साहिब, जिसने किसान आंदोलन में भी किसानों के लिए लंगर का प्रबंध किया था, वो अब भी किसानो की मदद कर रहा है।”

रिपोर्ट लिखे जाने तक किसान सिरसा उपायुक्त कार्यालय के बाहर खुले में मोर्चा लगाए बैठे हैं। 9 फरवरी को बड़ा प्रदर्शन करने का किसानों ने फैसला किया है। उस दिन दूसरी किसान जत्थेबंदियों के द्वारा भी प्रदर्शन में शामिल होने की बात की जा रही है। इसी प्रकार हिसार में भी 6 महीने से किसान सभा के बैनर के नीचे किसान धरना लगाए हुए हैं, तो वहीं  दूसरी ओर 6 से 7 फरवरी से किसानों की विभिन्न जत्थेबंदियां करनाल में मुख्यमंत्री के शहर में बड़ा प्रदर्शन करने जा रही हैं।

हरियाणा का किसान धीरे-धीरे संगठित हो कर लड़ना सिख रहा है। किसान अपनी समस्याओं व जरूरतों पर खुल कर बोलने लगा है। आने वाले समय में देखना ये होगा कि यह आंदोलन किस ओर करवट लेता है।

(उदय चे पत्रकार हैं। और आजकल हिसार में रहते हैं।) 

उदय चे
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