गुजरात कोर्ट ने मुकदमे से मोदी का नाम हटाने के लिए कहा

नई दिल्ली। गुजरात की एक स्थानीय कोर्ट ने 2002 के दंगे के दौरान चार ब्रिटिश नागरिकों की बर्बर हत्या के मामले में दायर याचिका से पीएम मोदी का नाम हटा देने का निर्देश दिया है। चार ब्रिटिश नागरिकों की उत्तरी गुजरात के साबरकांठा जिले में एक दंगाई भीड़ ने हत्या कर दी थी।

स्थानीय कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि घटना से निजी या फिर सरकारी तौर पर नरेंद्र मोदी के जुड़ने का कोई भी तथ्यात्मक सुबूत नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने मुकदमे में लगाए गए आरोपों को ‘सामान्य और अस्पष्ट’ करार दिया है।

प्रांतिज टाउन के मुख्य वरिष्ठ सिविल जज सुरेश गढ़वी ने नरेंद्र मोदी के नाम को हटाने के आदेश की घोषणा की। मोदी उस समय सूबे के मुख्यमंत्री थे उनके साथ पूर्व आईपीएस अफसर के चक्रवर्ती, अमिताभ पाठक और अशोक नारायन का भी नाम मुकदमे में शामिल किया गया है। यह मुकदमा मृतक ब्रिटिश नागरिकों के रिश्तेदारों की ओर से दायर किया गया है।

मुकदमा 2004 में ब्रिटिश नागरिक समीना दाऊद और दूसरों द्वारा मोदी, तब के गृहराज्य मंत्री गोर्धन झड़पिया और 12 दूसरे लोगों के खिलाफ दायर किया गया था जिसमें नुकसान के एवज में 20 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की गयी है। सूबे की भयावह हिंसा में वादी पक्ष के रिश्तेदारों की कथित तौर पर हत्या कर दी गयी थी। यह राशि उसके मुआवजे के तौर पर मांगी गयी है।

28 फरवरी, 2002 को ब्रिटिश नागरिक इमरान दाऊद तब उसकी उम्र 18 बरस थी, ब्रिटेन में रहने वाले अपने चाचा सईद दाऊद, शकील दाऊद और मोहम्मद असवत के साथ पहली बार भारत के दौरे पर आया था। चारों ने आगरा और जयपुर का दौरा किया। और उसके बाद ये सभी अपने पैतृक गांव साबरकांठा जिले में प्रांतिज के पास स्थित लाजपुर गांव के लिए लौट रहे थे। लेकिन रास्ते में ही नेशनल हाईवे 8 पर एक भीड़ ने उनके ऊपर हमला बोल दिया और उनकी टाटा सूमो गाड़ी को जला दिया।

गुजराती ड्राइवर यूसुफ पीराघर के साथ सईद और असवत की मौके पर ही मौत हो गयी। जबकि शकील लापता हो गए और उनका शव नहीं मिला। घटना के सात साल बाद उनकी भी मौत मान ली गयी। प्रांतिज ब्रिटिश नागरिक का केस इसलिए भी अलग किस्म का है क्योंकि शायद यह अकेला मामला है जिसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये विदेशी राजनयिकों को भी गवाह बनाया गया था। 

शनिवार को कोर्ट ने मोदी के वकील एसएस शाह के एक आवेदन पर आदेश पारित किया। अपने आवेदन में शाह ने कहा था कि केस में मोदी के नाम का कानूनी रूप से बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। 5 सितंबर को जारी अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि “यहां एक भी तथ्य नहीं है जिससे प्रतिवादी नंबर 1 (मोदी) की प्रासंगिक समय पर घटनास्थल पर मौजूदगी हो या फिर कथित कार्रवाई में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल होना हो, या फिर इस तरह के द्वेष या इरादतन कृत्य या चूक के लिए कोई ऐसी विशिष्ट भूमिका और उसका कोई तार्किक आधार हो जिसे पाया जा सके और जो वादी को कानूनी अधिकार या सहायता के दावे का हक देता है… “ 

आर्डर में इस बात को भी चिन्हित किया गया है कि पीड़ितों के रिश्तेदारों ने किसी भी तरीके से इस बात को नहीं कहा है कि कैसे मोदी निजी तौर पर उस कथित कार्रवाई या फिर तब की सरकार के अधिकारियों की चूक के लिए जिम्मेदार हैं।

वादी ने तथ्यों को बेहद चालाकी के साथ पेश कर प्रतिवादी नंबर 1 (मोदी) के साथ गोधरा से पहले और बाद की सभी घटनाओं से जोड़ने की कोशिश की है। और इस तरह से अपराध के दोषी के तौर पर वादी नंबर 1 की घेरेबंदी की गयी है जिससे उसे जिम्मेदार ठहराकर मुआवजा हासिल किया जा सके…..मेरे विचार में बगैर किसी आधार या प्रमाण के इस तरह के लापरवाही भरे आरोप कार्रवाई के पीछे के कारणों को जानने में मुश्किल से कोई मदद या फिर गठजोड़ स्थापित कर सकते हैं।

इस बीच, अपने वकील एसएस शाह के जरिये मोदी द्वारा दाखिल किए गए आवेदन का अपने तीन वादी की ओर से मृतक ब्रिटिश नागरिक के पुत्र सालिम ने पूरी मजबूती के साथ विरोध किया। सालिम ने यह भी कहा कि उनके वकील अनवर मालेक ने उन्हें बताया है कि वह दाऊद का प्रतिनिधित्व कर पाने में अब अक्षम हैं। क्योंकि उन्हें चिन्हित कर लगातार निशाना बनाया जा रहा है।

2015 में एक स्पेशल ट्रायल कोर्ट ने अपराध संबंधी कोई प्रमाण न पाए जाने पर सभी छह आरोपियों को छोड़ दिया था। दंगे का यह सनसनीखेज मामला उन नौ केसों में शामिल था जिनकी सु्प्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गयी एसआईटी टीम जांच कर रही थी। और इसका ट्रायल भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्पेशल कोर्ट में संपन्न हुआ था।

(‘द हिंदू’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट पर आधारित।)

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