“होशियार मत बनिए, सवालों के जवाब दीजिए..” मोरबी हादसे को लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने पूछे सख्त सवाल

हाईकोर्ट ने मोरबी नगरपालिका को फटकार लगाते हुए ओरेवा ग्रुप की कंपनी अजंता मैन्युफैक्चरिंग को ब्रिज की मरम्मत का ठेका दिए जाने पर सवाल उठाया।  चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य के शीर्ष नौकरशाह और मुख्य सचिव से पूछा कि सार्वजनिक पुल के मरम्मत कार्य का टेंडर क्यों नहीं निकाला गया? बोलियां क्यों नहीं आमंत्रित की गईं? इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए एक समझौता मात्र डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो गया? क्या बिना किसी टेंडर के अजंता कंपनी को राज्य की उदारता दी गई थी?

गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बना पुल टूट गया था। मोरबी जिले में 30 अक्टूबर की शाम को हुए हादसे में कम से कम 140 लोगों की मौत हो गई थी और 150 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इसके बाद गुजरात हाईकोर्ट ने मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए गुजरात सरकार, मोरबी नगर पालिका समेत तमाम विभागों से जवाब मांगा था।

हाईकोर्ट ने इस मामले में मंगलवार को सुनवाई की। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि मोरबी नगर पालिका होशियार बनने की कोशिश कर रही है। हाईकोर्ट ने पूछा कि 2016 में टेंडर खत्म होने के बाद भी ब्रिज का टेंडर क्यों जारी नहीं किया गया?

हाईकोर्ट ने पूछा कि इस हादसे से पहले क्या कदम उठाए गए थे।ब्रिज की मरम्मत को लेकर प्राइवेट ठेकेदार और नगर पालिका में क्या समझौता हुआ था। हाईकोर्ट ने कहा कि कॉन्ट्रैक्टर का कार्यकाल 2016 में खत्म हो गया था। इसके बावजूद नगर पालिका ने कोई टेंडर नहीं उठाया। हाईकोर्ट ने कहा कि नगर पालिका होशियार बनने की कोशिश कर रही है।

हाईकोर्ट ने मोरबी के जिला जज को यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी किया कि नगर पालिका को नोटिस भेजा जाए कि कल फिर से सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि बिना टेंडर कंपनी को राज्य की उदारता दी गई।

इससे पहले उच्च न्यायालय ने सात नवंबर को कहा था कि उसने पुल गिरने की घटना पर एक समाचार रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया है और इसे एक जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि प्रतिवादी एक और दो (मुख्य सचिव और गृह सचिव) अगले सोमवार तक एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेंगे। राज्य मानवाधिकार आयोग इस संबंध में सुनवाई की अगली तारीख तक रिपोर्ट दाखिल करेगा। मोरबी हादसे को लेकर सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने मंगलवार को कई सवाल पूछे हैं।

हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार बताए कि उसने इस हादसे को लेकर क्या-क्या कार्रवाई की है। राज्य सरकार ने इस मामले में शुक्रवार को मोरबी नगरपालिका के चीफ अफसर (सीओ) संदीप सिंह जाला को निलंबित कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि नोटिस के बावजूद भी मोरबी नगर पालिका की ओर से कोई भी अफसर अदालत के सामने नहीं आया। अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि वह ज्यादा चतुराई कर रही है। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को यह बताना होगा कि नगरपालिका के मुख्य अफसर के खिलाफ अब तक अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की गई है।

अदालत ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि साल 2008 में राजकोट के कलेक्टर और अजंता कंपनी के बीच किए गए एमओयू की मियाद साल 2017 में खत्म होने के बाद भी अजंता कंपनी के द्वारा ही इस सस्पेंशन ब्रिज की मरम्मत का काम किया जा रहा था। अदालत ने सवाल उठाया कि साल 2020 में जो नया एमओयू साइन किया गया था उसमें इस बात को नहीं लिखा गया है कि यह प्रमाणित करने की जिम्मेदारी किसकी है कि यह पुल इस्तेमाल किए जाने के लिए ठीक है।

पुराना एमओयू साल 2017 में समाप्त हो गया था तो नया टेंडर जारी करने के लिए क्या कदम उठाए गए थे? जून 2017 के बाद भी किस आधार पर यह सस्पेंशन ब्रिज अजंता कंपनी द्वारा ऑपरेट किया जा रहा था जबकि साल 2008 के एमओयू को 2017 में भी रिन्यू नहीं किया गया था?

राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि इस मामले में अब तक 9 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और अगर कोई अन्य भी दोषी पाया जाता है तो हम उसके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करेंगे। सरकार ने कहा कि पीड़ितों को आर्थिक मदद भी दी गई है।

खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा, 1. समझौता ज्ञापन के तहत, यह नहीं बताया गया है कि किसके पास यह प्रमाणित करने की जिम्मेदारी थी कि पुल उपयोग के लिए उपयुक्त है। 2. जब समझौता ज्ञापन 2017 में समाप्त हो गया, तो आगे की अवधि के लिए निविदा जारी करने के लिए क्या कदम उठाए गए थे। 3. जून 2017 के बाद भी किस आधार पर पुल को अजंता द्वारा संचालित करने की अनुमति दी जा रही थी, जबकि एमओयू (2008 में हस्ताक्षरित), 2017 के बाद रिन्यू नहीं किया गया था (नए एमओयू पर 2020 में हस्ताक्षर किए गए थे)? 4. क्या गुजरात नगरपालिका अधिनियम की धारा 65 का अनुपालन हुआ था? 5. इसने गुजरात नगर पालिका अधिनियम की धारा 263 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग क्यों नहीं किया क्योंकि प्रथम दृष्ट्या नगर पालिका ने चूक की है, जिसके कारण एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई जिसके परिणामस्वरूप 135 निर्दोष व्यक्तियों की जान चली गई। गुजरात उच्च न्यायालय ने मोरबी पुल हादसे का स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य को मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा था।

मच्छू नदी पर लटके 141 साल पुराने सस्पेंशन ब्रिज को ओरेवा कंपनी द्वारा मरम्मत और रखरखाव के बाद दो हफ्ते पहले फिर से खोल दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका में मामले की न्यायिक जांच की मांग की गई है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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