रूपानी सरकार पर जमकर बरसा गुजरात हाईकोर्ट, कहा- कालकोठरी से भी बदतर है अहमदाबाद सिविल अस्पताल

नई दिल्ली। कोरोना मामले में आपराधिक लापरवाही को लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने रूपानी सरकार को जमकर लताड़ लगायी है। कोर्ट ने कहा कि सरकार कृत्रिम तरीक़े से महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही कोविड मामले में मुख्य अस्पताल के तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे अहमदाबाद सिविल अस्पताल को उसने कालकोठरी से भी ज्यादा बदतर करार दिया है।

अभी तक इस अस्पताल में 377 लोगों की मौत हो चुकी है जो सूबे में पूरी मौतों का 45 फ़ीसदी है। एक पीआईएल की सुनवाई करते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस इलेश वोरा ने कोरोना मरीज़ों के इलाज के सिलसिले में राज्य सरकार को कई निर्देश दिए। 

पूरी परिस्थिति का टाइटनिक के डूबते जहाज़ से तुलना करते हुए कोर्ट ने कहा कि “इस बात को देखना बेहद परेशान करने वाला और पीड़ादायी है कि सिविल अस्पताल की मौजूदा परिस्थिति बेहद दयनीय है…..हमें यह कहते हुए बेहद दुख हो रहा है कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल बेहद बुरी कंडीशन में है। जैसा कि हम लोगों ने पहले कहा था कि सिविल अस्पताल का मतलब मरीज़ों का इलाज करना है। हालाँकि मौजूदा समय में ऐसा लगता है कि यह किसी कालकोठरी सरीखा है। या फिर इसे कालकोठरी से भी ज़्यादा बुरा कहा जा सकता है।”

हाईकोर्ट ने एडिशनल चीफ़ सेक्रेटरी पंकज कुमार, सेक्रेटरी मिलिंद तोरवाने और सिविल अस्पताल की इंचार्ज बनायी गयीं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की प्रिंसिपल सेक्रेटरी जयंती रवि की जमकर खिंचाई की। इसके साथ ही कोर्ट ने पूछा कि स्वास्थ्य मंत्री (नितिन पटेल) और चीफ़ सेक्रेटरी (अनिल मुकीम) को क्या स्टाफ़ और मरीज़ों के सामने पेश आ रही परेशानियों का भान है? 

अस्पताल में होने वाली मौतों की उच्च दरों और वेंटिलेटर की कमी पर कोर्ट ने कहा कि “क्या राज्य सरकार को इस कड़वी सच्चाई की जानकारी है कि सिविल अस्पताल में मरीज़ इसलिए मर रहे हैं क्योंकि वहाँ पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर नहीं हैं?  वेंटिलेटर की इस समस्या को हल करने के लिए राज्य सरकार के पास क्या योजना है?”

कोर्ट ने राज्य सरकार को इस बात का नोटिफिकेशन जारी करने का निर्देश दिया कि अहमदाबाद के सभी मल्टीस्पेशियलटी, निजी और कॉरपोरेट अस्पताल अपने 50 फ़ीसदी बेड कोविड मरीज़ों के लिए रिज़र्व रखें।   

कोर्ट ने राज्य सराकर के टेस्टिंग प्रोटोकाल संबंधी रवैये की भी जमकर खिंचाई की। राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया था कि वह गेटकीपर का काम करेगी और इस बात का फ़ैसला करेगी कि कब निजी अस्पतालों को कोरोना वायरस के नमूनों की टेस्टिंग शुरू करनी है।

कोर्ट को सौंपी गयी एक रिपोर्ट में राज्य सरकार ने कहा था कि “….ऐसा देखा गया है कि बहुत सारे मामलों में प्राइवेट लेबोरेटरी द्वारा ग़ैर ज़रूरी टेस्टिंग की जाती है। इसलिए राज्य सरकार ने इन प्राइवेट लैबों का गेटकीपर बनने का फ़ैसला किया।” इसके साथ ही सरकार ने यह भी जोड़ा कि राज्य के पास लैब टेस्टिंग की पर्याप्त क्षमता है जिसे मुफ़्त मुहैया कराया जा रहा है।

“….राज्य ने सरकारी लैबों में टेस्ट संचालित करने का फ़ैसला किया है जिससे मरीज़ों को ग़ैरज़रूरी खर्चा न करना पड़े। प्राइवेट लैबों को उस समय टेस्टिंग की इजाज़त दी जाएगी जब सरकारी लैबों की क्षमता ख़त्म हो जाएगी।”

राज्य में कुल 19 सरकारी लेबोरेटरी हैं जहां कोविड की टेस्टिंग हो रही है। अभी तक सूबे में कुल 178068 नमूनों की टेस्टिंग हो चुकी है।

कोर्ट ने राज्य सरकार को तत्काल ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग किट जमा करने के साथ ही प्राइवेट लेबोरेटरी को भी टेस्टिंग की छूट का निर्देश दिया। और उनमें टेस्टिंग को सरकारी दर से संचालित किए जाने की बात कही है। कोर्ट ने सरकार की पूरी मंशा पर ही सवाल उठाया। उसने कहा कि गुजरात सरकार मामलों को कम दिखाकर नक़ली तरीक़े से डेटा को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है।

कोर्ट ने कहा कि यह तर्क कि ज़्यादा संख्या में टेस्टिंग से आबादी के 70 फ़ीसदी के कोविड पोजिटिव होने की आशंका है और अगर ऐसा हुआ तो यह लोगों के बीच भय पैदा कर सकता है, टेस्ट को रोकने के लिहाज़ से इसे आधार नहीं बनाया जा सकता है।

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