क्या हिंदुत्व ने जातिगत अस्मिता केन्द्रित राजनीतिक गोलबंदी को निगल लिया है?

मैं पिछले लगभग एक माह से मध्य प्रदेश में आम जनता के बीच घूमकर लगातार संवाद कर रहा हूँ। मेरे संवाद का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि आखिर 2024 के आम चुनाव को लेकर वे क्या सोचते हैं? हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता में वापसी उनकी अपनी समझ में क्या ‘स्वाभाविक’ रही है या नहीं?

आखिर भाजपा को इस चुनाव में किन-किन जातियों का समर्थन मिला और क्यों मिला? मैं यह जानना चाहता हूँ कि आखिर जब मध्य प्रदेश में सरकार विरोधी लहर चरम पर दिखाई दे रही थी, फिर भाजपा सत्ता में वापस कैसे लौटी? यहाँ के समाज में अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा आयोजन का आगामी लोकसभा चुनाव पर कितना असर पड़ेगा? क्या इससे भाजपा को कोई लाभ होगा? 

इन्हीं सब सवालों के जवाब में, ग्वालियर से गुना के लिए चली एक लोकल ट्रेन में सफ़र कर रहे एक युवा छात्र (नाम नहीं देना चाहते थे) ने, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता था, मुझसे कहा कि, “अगर शिवराज सिंह चौहान ‘लाडली बहना योजना’ लेकर नहीं आये होते तो भाजपा की वापसी संभव नहीं थी”।

उसने एक बात और साफ की कि, “उसके लिए भाजपा इसलिए प्राथमिकता में है क्योंकि देश में पहली बार ‘हिन्दू’ अस्मिता को पूरी दुनिया में स्थापित करने का काम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रहा है। चूँकि चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर केन्द्रित था, इसलिए सरकार के खिलाफ बनी सत्ता विरोधी लहर वोट के रूप में नहीं बदल सकी”।

उस युवक ने मुझसे कहा कि हिन्दू गौरव की स्थापना के लिए नरेंद्र मोदी एक विशेष अभियान में लगे हैं और उनके सफल होने तक हिन्दू समुदाय उन्हें अपना समर्थन जारी रखेगा। युवक का मानना था कि कांग्रेस ने अयोध्या में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ का आयोजन ठुकरा कर अपनी हिन्दू विरोधी छवि को मजबूत किया है। इसका नुकसान उसे उठाना पड़ेगा।

हिन्दू गौरव की स्थापना में लगे नरेंद्र मोदी को यह समर्थन जातियों में बंटे हिन्दू समाज के किस-किस तबके से होगा? इसके जवाब में युवक ने मुझसे कहा कि, “मध्य प्रदेश में जाति की राजनीति अब नहीं होती है। अब यहाँ हिन्दू और गैर हिन्दू की राजनीति होती है। हिन्दू समाज फिर से एकजुट हुआ है और उसके बीच जातिगत विभाजन की रेखा बहुत कमजोर हो गई है”।

उसने मुझसे कहा कि, “जातियों के जितने भी बड़े नेता थे सब मोदी जी के साथ हैं। यह आगे भी मजबूती से जुड़े रहेंगे और मोदी जी अगर पांच साल और काम कर गए तो पूरी दुनिया में हिन्दू सबसे मजबूत कौम होगी”। इस युवक के मुताबिक, “भाजपा ने सभी जातियों को पर्याप्त राजनैतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व दिया है। इसलिए अब मध्य प्रदेश में जाति राजनीति बहस का मुद्दा ही नहीं है। यहाँ सब हिन्दू हैं”।

हालाँकि, उसने बातचीत में यह स्वीकार किया कि नरेंद्र मोदी सरकार रोजगार देने के सवाल पर असफल है। लेकिन, उसने आगे कहा कि, “हमारे पास कोई ऐसा विकल्प नहीं है जो हिन्दू गौरव को भी मजबूत करे और रोजगार देने को भी अपनी प्राथमिक राजनैतिक नीतियों में शामिल करे। इसलिए हम मोदी जी के साथ खड़े रहेंगे”।

इन्हीं सवालों पर मेरी बात राजगढ़ शहर में अशोक ओझा (जाति से नाई) से हुई। उनकी उम्र बासठ साल थी। मध्य प्रदेश में भाजपा की वापसी के सवाल पर उनका कहना था कि, “सब खेल ईवीएम मशीन का है”। उनके मुताबिक, “अब समय है कि इसे हटा दिया जाये अन्यथा मोदी कभी चुनाव नहीं हारेंगे”।

आगामी लोकसभा चुनाव के मुद्दे क्या होंगे, के सवाल पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “मोदी जी जिस हिन्दू अस्मिता के उभार को आज अपनी मजबूत नाव समझ रहे हैं, उसमे बहुत दम नहीं है”। अशोक ओझा के मुताबिक, “मोदी जी हिन्दू समुदाय की धार्मिक भावनाओं का मजाक उड़ा रहे हैं”।

उन्होंने कई वैदिक रिचाओं का उद्धरण देकर मुझसे कहा कि प्राण प्रतिष्ठा की उनकी यह ‘जिद’ देश को भयंकर संकट में डालेगी। हालाँकि, वह भी इस बात पर सहमत थे कि मोदी जी हिन्दुओं के नेता हैं और उनके नेतृत्व में जाति की राजनीति पूरे प्रदेश में बहुत कमजोर हुई है। अशोक ओझा के मुताबिक, “वह एकलौते ऐसे नेता हैं जिन्हें समाज की सभी जातियों से वोट और समर्थन मिलता है”।

गुना शहर में नरेश कुशवाह, मूंगफली बिक्री का ठेला लगाते हैं। बातचीत में उन्होंने कहा कि, “मोदी जी की राजनीति को वह इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वह पहली बार ‘हिन्दुओं’ के लिए काम कर रहे हैं। भारत में पहली बार हिन्दुओं के हित में बात करने वाला कोई नेता पैदा हुआ है। मोदी जी सभी जातियों में लोकप्रिय हैं और भारत ने विकास की नई कहानी लिखी है”।

उनके मुताबिक, “मोदी जी जाति की राजनीति ख़त्म करके हिन्दू समाज को ताकतवर बना रहे हैं”। आगामी लोकसभा चुनाव में हम मोदी जी को इसलिए वोट देंगे क्योंकि वह गरीबों के लिए काम कर रहे हैं”।

कल्लू जाटव पचपन साल के हैं और पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं। वह गुना शहर में ही रहते हैं। उनका मानना है कि, “मोदी जी अयोध्या में राम मंदिर बनवा कर देश को मजबूत कर रहे हैं। यह काम बहुत पहले होना चाहिए था लेकिन, मोदी जी को अब मौका मिला है। इससे देश को फायदा होगा”। वह नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं क्योंकि उन्हें एक प्रधानमंत्री आवास दिया गया है। उनके मुताबिक यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि मोदी जी जाति की राजनीति नहीं करते हैं।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पिछले बीस साल से भाजपा मध्य प्रदेश में सत्ता में है और इस दौरान उसने आम जनता के बीच ‘हिंदुत्व’ की पहचान वाली चेतना के प्रसार से जातिगत अस्मिता की राजनीति को ढक लिया है। यहाँ जाति अब भी मौजूद है, उसका उत्पीड़क चरित्र मौजूद है, लेकिन अब वह हिंदुत्व राजनीति के भीतर अपने लिए प्रतिनिधित्व की न केवल मांग करती है, बल्कि उसमें समाहित हो चुकी है।

अब यह राजनीति उससे निकलने या फिर उसे नकारने का साहस नहीं कर सकती है। अब यह चेतना हिंदुत्व को मजबूत करने के संघ के अभियान का हिस्सा बनती है।

यह बात इस तथ्य से भी साबित होती है कि जातिगत अस्मिता के जितने भी ‘महासभा’, कमिटी या फिर ‘मोर्चा’ टाइप जातिगत अस्मिता के संगठन थे, खुलकर मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में अपनी क्षमता के मुताबिक ना केवल शामिल हैं, बल्कि हिंदुत्व राजनीति की इस लंगड़ी आंधी में हिंदुत्व में समाहित होकर अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने का मैच भी सफलतापूर्वक खेल रहे हैं। 

दरअसल, मध्य प्रदेश में पिछले बीस साल में एक ऐसी पीढ़ी तैयार हुई है जिसकी सियासी चेतना हिंदुत्व, हिन्दू अस्मिता और उस अस्मिता के प्रतीकों के इर्दगिर्द ही घूमती है। इसके लिए वह झूठ, विकृत इतिहास और सोशल मीडिया द्वारा फैलाये गए गॉसिप का सहारा लेती है। आज यहाँ जाति से परे लोग मंदिर आन्दोलन को अपनी सांस्कृतिक ‘पहिचान’ से जोड़ रहे हैं। लोगों की चेतना में इस परिवर्तन का श्रेय संघ परिवार और भाजपा की कैडर पॉलिटिक्स को जाता है।

यहाँ जातिगत अस्मिता की राजनीति को हिन्दू चेतना में समाहित कर लिया गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हिंदुत्व के पास एक लम्बी अवधि का सत्ता पर काबिज रहने का दर्शन था, वहीँ जातिगत अस्मितावादी चेतना के पास तात्कालिक सियासी लाभ लेने की सतही चेतना भर थी। वह इस लम्बे खेल में टिक ही नहीं सकती थी। इसीलिए मध्य प्रदेश में जातिगत अस्मिता की राजनीति हिंदुत्व में विलीन हो चुकी है।

हालाँकि, मध्य प्रदेश दलित उत्पीडन की घटनाओं की एक उर्वर भूमि आज भी है। लेकिन, हिंदुत्व के प्रसार के आगे जातिगत अस्मिता के सियासी लंद-फंद को एक दिन घुटने टेककर हिंदुत्व में समाहित ही होना था। यह स्वाभाविक सियासी घटनाक्रम है जिसे हिंदुत्व के समुद्र में डूबना ही था। बस सवाल यह है कि दलित उत्पीडन की घटनाओं को सियासी आवाज कैसे मिलेगी और इस हिंसा से पीड़ित लोग इससे कैसे संघर्ष करेंगे?

(हरे राम मिश्र का लेख।) 

Janchowk
Published by
Janchowk