हिंडनबर्ग रिपोर्ट से सरकार की बोलती बंद? एलआईसी, एसबीआई के होश फाख्ता

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी पर लगे आरोपों और शेयरों में गिरावट के बाद भी अभी तक सरकार ने चुप्पी ओढ़ रखी है। हो सकता है कि उसे किसी जादू की छड़ी का इंतज़ार हो। विपक्ष ने भी बीते शनिवार को भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अडानी समूह से संपर्क को लेकर चिंता जताई और इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया है।

पिछले सप्ताह या गुजरे सप्ताह अडानी समूह की कंपनियों के शेयर धड़ाम हो गए। इनकी कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई। निवेशकों ने अमेरिका की निवेश फर्म हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट के आधार पर शेयरों में बिकवाली की। इस रिपोर्ट में अडानी समूह की कार्यप्रणाली पर बहुत ही गहन अध्ययन के बाद कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।

हिंडनबर्ग ने अडानी के शेयरों पर बिकवाली की यानी शेयर बाजार की भाषा में कहें तो उसने शॉर्ट पोजीशन ली। इसका अर्थ है कि अगर अडानी समूह के शेयरों की कीमत गिरती है तो उसे फायदा होगा। इस तरह कहा जा सकता है, जैसा कि अडानी ग्रुप ने संकेत भी दिया है कि इस रिपोर्ट और उसके कारण शेयरों में गिरावट के पीछे हिंडनबर्ग के निहित स्वार्थ हैं।

एम्नेस्टी इंडिया के प्रमुख आकार पटेल के अनुसार एक बात काबिलेगौर है कि भारतीय म्यूचुअल फंड्स ने अडानी समूह में निवेश नहीं किया है। लेकिन सरकारी नियंत्रण वाली लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन (एलआईसी) ने टैक्सपेयर्स के करीब 75,000 करोड़ रुपए अडानी में निवेश किए।

सबसे पहली बात तो यह है कि विदेशी (ऑफशोर) कंपनियां, जोकि पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाली कंपनियों का एक समूह है, उनके पास अडानी समूह की कंपनियों के अधिकांश नॉन-प्रोमोटर शेयर (ऐसे शेयर जो कंपनी के प्रोमोटर या मालिकों के अलावा होते हैं) हैं। अगर ऐसा होना साबित होता है, तो इसका अर्थ होगा कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, या सेबी द्वारा इन कंपनियों को डीलिस्ट यानी शेयर बाजार से बाहर कर दिया जाएगा। अगर प्रोमोटर्स के पास अपनी कंपनी के अधिकांश शेयर होते हैं, तो वे सप्लाई को सख्ती से नियंत्रित करके शेयरों की कीमत में हेरफेर कर सकते हैं। क्या ऐसा हो रहा है, और क्या इसके कोई प्रमाण हैं?

पिछले साल ब्लूमबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अडानी समूह की कंपनियों का साझा मूल्य 255 अरब डॉलर है, जबकि “इन सभी कंपनियों (शेयर बाजार में मौजूद सात कंपनियां) की कुल साझा कमाई 2 अरब डॉलर से भी कम है। यह भी बताया था कि “अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के शेयरों में बीते तीन साल के दौरान 4500 फीसदी का उछाल देखने को मिला।” इस तरह अडानी जोकि हाल तक दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति थे, की कुल संपत्ति या दौलत इन कंपनियों के बाजार मूल्य के आधार पर आंकी गई न कि इन कंपनियों की असली कमाई के आधार पर।

अडानी समूह का कुल रेवेन्यू यानी राजस्व 2019 में 15,500 करोड़ रुपए, 2020 में 16,200 करोड़ रुपए, 2021 में 13,358 करोड़ रुपए और फिर 2022 में 26,800 करोड़ रुपए रहा। इनका कुल मुनाफा 2020 में 698 करोड़, 2021 में गिरकर 368 करोड़ और 2022 में बढ़कर 720 करोड़ रुपए रहा। बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, “यह वह मुनाफा नहीं है जो इससे 300 या 600 गुना अधिक बाजार मूल्य वाली कंपनियों से अपेक्षित होता है, ये ऐसे आंकड़े हैं जो किसी ग्रोथ की संभावना वाले छोटे स्टार्टअप के तो हो सकते हैं, न कि ऐसी कंपनियों के जो पूंजी वाली बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के।”

हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में जिन कंपनियों का जिक्र किया है, ऐसा लगता है कि उनकी स्थापना सिर्फ और सिर्फ अडानी समूह के शेयर ही खरीदने के लिए की गई है। रिपोर्ट में एक कंपनी इलारा का नाम है, जिसके पास अडानी समूह के कुल 3 अरब डॉलर के शेयर हैं, इसके पास एक फंड भी जिसके कुल निवेश का 99 फीसदी अडानी में हैं।

संसद को बताया गया है कि अडानी की कंपनियों या इस फंड की प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी द्वारा कोई जांच नहीं की जा रही है। ईडी ही मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच करती है। सरकार ने 2021 में कहा कि सरकार अडानी समूह में कुछ प्रक्रिया संबंधी मामलों को देख रही है और डीआरआई (डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस) अडानी समूह की कुछ कंपनियों की जांच कर रहा है। लेकिन इस जांच में अभी तक कुछ निकलकर नहीं आया है।

यहां तक कि जब ब्लूमबर्ग न्यूज ने खबर दी कि संसद में सरकार ने इस फंड को चलाने वालों के जो नाम दिए उनके पते उसे नहीं मिल सके। ये नाम थे मार्कस बीट डेंजेल, एना लूजिया वॉन सेंजर बर्गर और एलेस्टर गगेनबूशी ईवन और योंका ईवन गूगेनबूशी आदि।

इसी तरह कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मामले में भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कुछ गंभीर बातें सामने रखी गई हैं। मसलन अडानी एंटरप्राइज एक लिस्टेड कंपनी है और हाल ही में इसने बाजार से फिर 20,000 करोड़ जुटाने के लिए एफपीओ पेश किया है। इस कंपनी का एक स्वतंत्र ऑडिटर है जिसका नाम है शाह धंधारिया, जिसके चार साझीदार यानी पार्टनर हैं, लेकिन इस ऑडिट कंपनी में सिर्फ 11 कर्मचारी हैं। हिंडनबर्ग का कहना है कि यही फर्म अडानी टोटल गैस का भी ऑडिट करती है।

फाइनेंशियल टाइम्स ने नवंबर 2020 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसका शीर्षक था, ‘मोदीज रॉकफेलर’-गौतम अडानी और भारत में सत्ता का केंद्रीकरण…इस रिपोर्ट में बताया गया था कि “अडानी समूह को एयरपोर्ट प्रबंधन के क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था फिर भी इस कंपनी को 2018 में जिन 6 एयरपोर्ट का निजीकरण किया गया वह सभी अडानी समूह को देने के लिए नियमों मे बदलाव किया गया।

और इसके बाद देखते-देखते अडानी देश के सबसे प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर बन गए। इसी तरह अडानी देश के सबसे बड़े पोर्ट (बंदरगाह) ऑपरेटर और ताप बिजली कोयला उत्पादक भी बन गए। इसके अलावा अडानी समूह की हिस्सेदारी बिजली प्रसारण (पॉवर ट्रांसमिशन) गैस वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) बाजार में भी बढ़ती जा रही है।

अडानी समूह की कंपनियों पर लगे आरोपों पर इस समूह की कंपनियों के शेयरों में गिरावट के बाद भी अभी तक सरकार एकदम खामोश है। लेकिन हिंडनबर्ग रिपोर्ट में सरकार, उसकी आर्थिक योजनाओं, खासकर अडानी जैसे समूहों पर केंद्रित आर्थिक नीतियों, क्रोनी कैपिटलिज्म और कानून के शासन को लेकर कुछ महत्वपूर्ण और अहम सवाल उठाए गए हैं। इन सबका कोई जवाब अभी तक नहीं है।

बीते 25 जनवरी को न्यूयॉर्क स्थित निवेशक अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ का आरोप लगाया था। इस आरोप के बाद विविध कारोबार से जुड़े समूह की सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों में बड़ी गिरावट आई है। आरोप को खारिज करते हुए समूह ने कहा था कि आरोप ‘दुर्भावनापूर्ण, निराधार, एकतरफा’ हैं। अडानी समूह ने दावा किया था कि रिपोर्ट पूंजी बाजार में उसके शेयरों की सार्वजनिक लिस्टिंग को खराब करने के लिए की गई थी।

एक के बाद एक कई ट्वीट कर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य रणदीप सुरजेवाला ने अडानी शेयरों के गिरते मूल्य के कारण सरकार-नियंत्रित वित्तीय संस्थानों (एलआईसी और एसबीआई) के बाजार पूंजीकरण में गिरावट दिखाने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा का उपयोग किया है।

यह देखते हुए कि एलआईसी को ‘जनता के धन’ द्वारा वित्तपोषित किया गया था सुरजेवाला ने कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह के शेयरों में एलआईसी के निवेश का मूल्य 77,000 करोड़ रुपये से गिरकर 53,000 करोड़ रुपये हो गया, जिसके परिणामस्वरूप 23,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यही नहीं एलआईसी के शेयरों को 22,442 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उन्होंने पूछा कि एलआईसी अभी भी अडानी समूह में 300 करोड़ रुपये का निवेश क्यों कर रही है?

एसबीआई के संबंध में सुरजेवाला ने कहा कि इसके बाजार पूंजीकरण में 54,618 करोड़ रुपये की भारी गिरावट आई है। अडानी समूह के लिए बैंकिंग क्षेत्र का ऋण जोखिम 81,200 करोड़ रुपये था, इस स्थिति को देखते हुए उन्होंने सवाल किया कि एसबीआई कर्मचारी पेंशन फंड और एसबीआई लाइफ अभी भी अडानी समूह में 225 करोड़ रुपये का निवेश क्यों कर रहे हैं?

उन्होंने कहा, ‘24 और 27 जनवरी के बीच यानी 3 दिनों में एसबीआई और एलआईसी ने अकेले अपने शेयरों के मूल्य में 78,118 करोड़ रुपये की ‘बाजार पूंजी’ खो दी है! अडानी समूह में एसबीआई का ऋण जोखिम और एलआईसी के निवेश मूल्य में गिरावट इसके अतिरिक्त है।

कांग्रेस नेता ने यह भी पूछा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के साथ-साथ केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण क्यों इस मामले पर ‘चुप्पी’ साधे हुए हैं?

राज्यसभा में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट की उप-नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी समान चिंताओं को दोहराया। उन्होंने कहा, ‘एलआईसी ने पिछले दो दिनों में अपनी होल्डिंग में 22 प्रतिशत की गिरावट देखी। इसके शेयर की कीमत दिन के दौरान 3.5 प्रतिशत और दो दिनों में 5.3 प्रतिशत गिर गई। यह भारतीय लोगों की गाढ़ी कमाई है, जिसे चूसा जा रहा है। उम्मीद है कि सेबी और आरबीआई देख रहे हैं और कार्रवाई कर रहे हैं।

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जवाहर सरकार ने भी ट्वीट किया, ‘सरकार में 40 साल तक रहने के बाद मैं जानता हूं कि एलआईसी के बड़े निवेशों को वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री से मंजूरी की जरूरत होती है। पता नहीं क्यों वे मध्यम वर्ग की जरूरतों को पूरा करने वाले एक उत्कृष्ट संस्थान को नष्ट करने पर उतारू हैं!’

उन्होंने कहा, ‘स्विस क्रेडिट साइट्स ने बहुत पहले चेतावनी दी थी। मोदी सरकार ने नहीं सुनी। हमारे बैंक अब डूब जाएंगे। आपका पैसा, मेरा पैसा डूब जाएगा, जबकि अडानी बिना किसी दंड के मुक्त हो जाएगा!

रविवार को किए गए एक ट्वीट में उन्होंने कहा, अडानी के घोटाले से पता चलता है कि कैसे सभी नियामक निकाय–आरबीआई, वित्त मंत्रालय, सेबी, ईडी सीबीआई, एनएसई आदि–विफल हो गए थे या उन्हें विफल कर दिया गया था। ये सभी मोदी के अपने आदमियों से भरे हुए हैं। न जाने भारत इस मोदी मित्र के कारण कितना कुछ खोएगा!

कृष्णन अय्यर ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि, हिंडनबर्ग की अडानी पर रिपोर्ट में अडानी ग्रुप की चरमराती वित्तीय हालत पर एक “सीरियस नोट” है। अडानी ग्रुप की 5 कम्पनियों के लिए “शॉर्ट टर्म देनदारी” चुकाना किसी भी वक़्त एक चुनौती बन सकता है, क्योंकि इन 5 कंपनियों के पास “ज़रूरत के मुताबिक़ कैश” नहीं है। शॉर्ट टर्म देनदारी” का मतलब 1 साल के अंदर की देनदारी है। इन 5 कंपनियों के नाम है-1. अडानी ग्रीन 2. अडानी पॉवर 3. अडानी टोटल गैस 4. अडानी ट्रांसमिशन और 5. अडानी इंटरप्राइजेस ।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट से सरकार की बोलती बंद?

कृष्णन अय्यर लिखते हैं, कि तो फिर आजतक इन कंपनियों का काम कैसे चल रहा है? सीधी सी बात है, जब तक दुकान चल रही है सब ठीक है..जिस दिन “चेन” टूटी उसदिन बैंकों के लोन तो दूर की बात है “चाय पानी का बिल” भी पेमेंट नहीं होगा। ये बात अडानी की बैलेंसशीट के आंकड़ों से पता चलती है। कोई कहानी नहीं बनाई गई है। कोई भी शख़्स ख़ुद इन कंपनियों की बैलेंसशीट चेक कर सकता है। जिन बैंकों ने अडानी को क़र्ज़ दिया है उन्हें ये सब मालूम है क्योंकि क़र्ज़ लेने वालों को ये आकंड़े हर महीने बैंकों में जमा करने का क़ानून है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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