जमीन की लूट के खिलाफ जंग-4: रामनयन यादव क्यों हैं खिरियाबाग आंदोलन के चेहरे?

खिरियाबाग, आज़मगढ़। हर जनांदोलन की तरह खिरिया बाग (आज़मगढ़) जनांदोलन भी सामूहिक पहलकदमी पर टिका हुआ है, लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसी महिलाएं और पुरूष हैं, जो इस आंदोलन का चेहरा बन गए हैं। इनमें से एक 71 वर्षीय रामनयन यादव हैं, जो पूरे क्षेत्र में नेता जी के नाम से जाने जाते हैं। खिरिया बाग (आजमगढ़) आंदोलन को संचालित करने वाले संगठन ‘ मकान-जमीन बचाओ संयुक्त मोर्चा’ के अध्यक्ष हैं, इन्हीं के नेतृत्व में यह आंदोलन संचालित हो रहा है। भगत सिंह इनके आदर्श हैं।

इनके घर पर तीन तस्वीरें टंगी हुई हैं, जिसमें दो तस्वीरें भगत सिंह की हैं, तीसरी तस्वीर इनकी मां (दिवंगत) मुराती देवी की है। भगत सिंह की एक तस्वीर 15 वर्ष पुरानी है और एक नई-नई है। ये एक एकड़ ( 35 बिस्वा) जमीन के मालिक हैं। जिसमें गेंहू, धान, चना, मटर, अरहर, गन्ना, आलू, मक्का और सरसों आदि फसलें पैदा करते हैं। ये अपने खेत में खुद काम करते हैं, लेकिन कटनी और रोपनी के समय मजदूर लगाते हैं। इनके पास 1987 में बना पांच-छ: कमरे का मकान है, जिसमें नियमित तौर पर इनके अलावा दो भाइयों का परिवार रहता है। पक्का मकान है, लेकिन पलस्तर नहीं हुआ है।

इनके दो बच्चे हैं। लड़की की शादी हो चुकी है और लड़का बी. टेक करके नौकरी की तलाश में में। इनका भी घर-दुआर और खेती की जमीन भी आज़मगढ़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रनवे के लिए जाने वाली जमीन ( 670 एकड़) के लिए अधिग्रहीत होने वाला है यानी इनको और उनके परिवार को भी उजाड़ा जाएगा। उजाड़े जाने की बात पर बहुत ही बेचैन होकर 71 वर्षीय रामनयन यादव कहते हैं, ‘इस उम्र में हम दोनों बुजुर्ग ( पति-पत्नी) कहां जाएंगे, कैसे और कहां नया बसेरा बनाएंगे। यह सोच कर ही घबराहट होने लगती है। जहां हम बचपन में खेले हैं,पले-बढे हैं, जहां सारे रिश्ते-नाते हैं और जहां की हर चीज से अपनी लगती है, उस जगह से यदि हमें खदेड़ दिया जाएगा, यह सोचने की भी हिम्मत नहीं पड़ती है।” ऐसा कहते हुए वे गहरी निराश में थोड़ी देर के लिए डूब जाते हैं। फिर अपने भीतर की ताकत जुटाकर कहते हैं, “ जीते-जी हम अपना घर उजाड़ने नहीं देंगे, अपनी जमीन पर कब्जा नहीं करने देंगे।”

गांवों के सभी लोगों ने एक स्वर से उन्हें अपने आंदोलन का अगुवा चुना है। लोगों के दिलों में उनके लिए बहुत सम्मान है, लोग उनकी ईमानदारी और न्याय के पक्ष में खड़े होने के उनके जज्बे की तारीफ करते हैं। 

रामनयन यादव को जनसंघर्षों का लंबा अनुभव है। वे सिर्फ 12 वीं पास हैं, लेकिन देश-दुनिया की राजनीति का उन्हें गहरा ज्ञान है। वे 21-22 वर्ष की उम्र में काम की तलाश में दिल्ली चले गए थे और वहां करीब 10 वर्ष तक रहे। उसी दौरान वे ट्रेड यूनियन (एटक) से जुड़ गए। वे इस यूनियन के सक्रिय सदस्य बने रहे और संघर्षों में हिस्सेदारी करते रहे। पारिवारिक कारणों के चलते 1982 के आस-पास वे दिल्ली से वापस आ गए। दिल्ली से लौटने के बाद वे बहुत जल्दी ही सीपीआई ( कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) से जुड़ गए।

आज़मगढ़ के मुबारकपुर में चलने वाली कम्युनिस्ट पार्टी के राजनीतिक स्टड़ी सर्किल में शामिल होने लगे। इस दौरान उनका गहरा लगाव भगत सिंह और उनके विचारों से बना। आज भी वे उन्हें उतने से सम्मान और प्यार के साथ करते हुए कहते है, ‘भगत सिंह हमारे हीरों हैं, मैं उनके विचारों का अनुयायी हूं। उनका रास्ता हर तरह के अन्याय और शोषण-उत्पीड़न से मुक्ति दिला सकता है।” 1983 में ही रामनयन यादव सीपीआई के होटलटाइमर बन गए थे। 2011 तक वे पार्टी को होलटाइमर बन रहे। बाद में उन्होंने विभिन्न कारणों से पार्टी छोड़ दिया।

आज रामनयन यादव जी के तेवर और भाषा में भगतसिंह के व्यक्तित्व और विचारों की अनुगूंज सुनाई देती है। रामनयन यादव को ही लोगों ने क्यों अध्यक्ष चुना इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आंदोलन के लोकप्रिय अगुवा राजेश आजाद कहते हैं, “सबसे बड़ी बात है, उनका खुलकर मजदूरों-किसानों ( मेहनतकशों) के पक्ष में खड़ा होना। वे खुद भी मेहनतकश हैं, इस उम्र ( 71 वर्ष) में भी खेतों में खटते हैं, कोंडिया तक करते हैं, अपने पशुओं के लिए चारा तैयार करते हैं। वे आजीवन मेहनतकशों के पक्ष में खड़े रहे हैं। वे खुलकर जनता का पक्ष लेते हैं, नेता बनने के चक्कर में नहीं रहते हैं, लालची तो बिल्कुल नहीं हैं।

बिना डरे शासन-प्रशासन से भिड़ जाते हैं।” राजेश आजाद की बात का समर्थन करते हुए बाहर की दुनिया में आंदोलन के सबसे चर्चित चेहरे राजीव यादव कहते हैं, “ वे जनता से जनता की भाषा में बात करते हैं, उनकी बात गांव के सभी लोग आसानी से समझ जाते हैं, उनकी बातों में स्पष्टता होती है, उन्हें शासन-प्रशासन से उनकी भाषा में बात करने आता है, उन्हें कानून और राजनीति की भी अच्छी समझ है। वे झुकने वाले आदमी नहीं हैं। वे जीवन भर मेहनतकश जनता के लिए संघर्ष करते रहे हैं, जेल भी गए हैं। वे भले ही देखने में एकदम गंवई किसान-मजदूर लगते हैं, लेकिन अच्छे-अच्छों को अपनी समझ और बातों से पानी पिला देते हैं। वे बहुत साहसी आदमी हैं।”

यह पूछने पर कि आप का संघर्ष किससे है? रामनयन यादव जवाब देते हैं, “हमारा असली संघर्ष आजमगढ़ जिला प्रशासन और पुलिस से नहीं है, बल्कि अंबानी-अडानी और मोदी-योगी से है, पुलिस-पीएसी तो उनके लिए ही लाठी भांज रही है।” जब मैंने यह पूछा कि आठ गांवों के लोगों को लेकर कैसे मोदी-योगी और अंबानी-अडानी से लड़ पाएंगे, तो इसका जवाब वे इस भाषा में देते हैं, “ अंबानी-अडानी और मोदी-युग खुद लड़ने नहीं आएंगे, उनके भाड़े के सिपाही आएंगे, दूसरी तरफ हम अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई खुद लड़ रहे हैं। यह हमारी जिंदगी और मौत का सवाल है।

हमारा संघर्ष न्यायपूर्ण है, हम सच के साथ खड़े हैं, हम आस-पास और देश के सभी किसानों-मजदूरों को एकजुट करेंगे। अलग-अलग चल रही लड़ाईयों को एक साथ लाएंगे।” वे महाभारत का उदाहरण देते हुए कहते हैं, पांडव पांच भाई थे और कौरव सौ भाई थे, लेकिन जीत पांडवों की हुई, क्योंकि न्याय के लिए लड़ रहे थे।” इस संदर्भ में अपनी बात के अंत में वे कहते हैं, हमारे पास लड़ने के अलावा कोई चारा नहीं है, हमें हर हालात में लड़ना है। जैसे घिर जाने पर कमजोर से कमजोर जानवर पर अपनी जान बचाने के लिए हमलावर हो जाता है और कई बार बाजी पलट देता है, उसी तरह यदि संविधान और लोकतंत्र के दायरे में हमें न्याय नहीं मिला तो, हम कोई अन्य रास्ता भी अपना सकते हैं। हमें हर हालात में लड़ना है और अपना घर-दुवार और जमीन बचानी है। हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है।” 

(आजमगढ़ से शेखर आजाद के साथ डॉ. सिद्धार्थ की रिपोर्ट।)

डॉ. सिद्धार्थ
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