सीएजी खुलासा पार्ट-2: मोदी सरकार के खातों में भारी अनियमितताएं, जनता से बेहिसाब वसूली का जरिया बन गया सेस

नई दिल्ली। केंद्र सरकार के आय-व्यय एवं वित्तीय खातों की ऑडिटिंग को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पर सोमवार को जनचौक ने सरसरी नजर डालते हुए सीएजी के विहंगावलोकन को अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया था। इस लेख में कुछ विशिष्ट खातों के बारे में सीएजी के निष्कर्षों और इशारे को समझने का प्रयास किया जायेगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकार द्वारा संसद से अनुमोदित राशि के आवंटन के बावजूद या तो खर्च नहीं की गई, या ऋण की राशि को कम करके दिखाया गया अथवा आंकड़ों में अनियमितता पाई गई हैं।

सीएजी की महत्वपूर्ण भूमिका

संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर के शब्दों में, “भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG-कैग) संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी है। वह ऐसा व्यक्ति है जिसका काम यह देखना है कि संसद द्वारा अनुमोदित खर्च की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में जिन मदों पर खर्च को निर्धारित किया गया था, उन्हीं मदों पर उस धन को खर्च किया जाए।”

चूंकि सीएजी भारतीय संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है, और भारतीय ऑडिट एवं लेखा विभाग का प्रमुख और सार्वजनिक क्षेत्र के मुख्य संरक्षक की भूमिका के निर्वहन की जिम्मेदारी उसके पास है, और इस प्रकार संसद और देश के राज्यों की विधान सभाओं के लिए सीएजी के द्वारा केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा सार्वजनिक धन खर्च किये जाने की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है। ऐसे में सीएजी की भूमिका संभवतः सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसे भले ही केंद्र सरकार के द्वारा नियुक्त किया जाता है, लेकिन इसके बाद उसकी जवाबदेही केंद्रीय मंत्रिमंडल के बजाय संसद के प्रति होती है, जिसे समूचे भारत का प्रतिनिधित्व हासिल है।

इसे सामान्य भाषा में समझना चाहें तो हम इसे किसी भी कंपनी या पार्टनरशिप अकाउंट की ऑडिट और बैलेंस शीट को चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा ऑडिट करने और आयकर, जीएसटी एवं कर्मचारी भविष्य निधि सहित सभी देय राशि के भुगतान को प्रमाणित कर एक तरह से अपने सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट) को आगे किसी भी जवाबदेही के लिए जिम्मेदार बना देते हैं, और इसमें कोई चूक न हो जाये इसके लिए सरकारी ऑडिट भी किया जाता है, उसी प्रकार से सरकार के आय-व्यय का ब्यौरा रखने और उसके खातों में कोई त्रुटि, घपले की जांच लोकसभा में रखने और संसदीय लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के मार्गदर्शक, मित्र और सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान करना है।

केंद्र सरकार यदि देश में आयकर, ईडी, सीवीओ इत्यादि संस्थाओं के माध्यम से व्यक्तियों, कंपनियों और राज्य सरकारों की भूमिका और आय-व्यय की पड़ताल करती है, एक तरह से सीमित अर्थों में सरकार के वित्तीय काम-काज की पड़ताल के लिए संविधान के तहत सीएजी कार्यालय के पास इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। सीएजी चाहे तो वह सरकार के कार्यों में पाई जाने वाली गड़बड़ियों को सीमित करके या उसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सकती है, लेकिन इस बात की संभावना बेहद कम होती है कि वह केंद्र सरकार की गड़बड़ियां बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए।

इसका सिर्फ एक अपवाद यूपीए शासनकाल के दौरान तब दिखा था, जब तत्कालीन सीएजी विनोद राय ने 2 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी को लेकर केंद्र सरकार को होने वाले लाखों करोड़ की अनुमानित हानि का आकलन कर मनमोहन सिंह सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। इस मामले पर सरकार के कुछ मंत्रियों की बर्खास्तगी और जेल तक हुई, लेकिन अदालत में कुछ भी साबित नहीं हुआ और बाद में तो विनोद राय ने सार्वजनिक रूप से माफ़ी भी मांगी थी।

वर्तमान में भारत के सीएजी प्रमुख गिरीश चंद्र मुर्मू हैं, जो 1985 गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी हैं, और सूत्रों के मुताबिक 2002 गुजरात दंगों के मामलों को निपटाने से लेकर अमित शाह की गिरफ्तारी के दौरान उनके कागजात तैयार करने में उनकी भूमिका बताई जाती है। सीएजी के रूप में उनकी नियुक्ति के समय सोशल मीडिया पर इस बात पर गर्मागर्म चर्चा हुई थी, लेकिन 2023 में उनके कार्यकाल में केंद्र सरकार और उसके तहत विभिन्न मंत्रालयों के आय-व्यय की 22 रिपोर्टों में से अधिकांश में कई खामियों को उजागर किया गया है।

लेकिन देश का दुर्भाग्य यह है कि मोदी सरकार चाहे भले ही देश के समक्ष सही आंकड़े पेश न करना चाहे और खातों में हेर-फेर कर अपने शासनकाल की सुनहरी तस्वीर पेश कर लगातार चुनावों में जीत की चिंता में जुटी हो, भारतीय मीडिया और समाचार पत्रों की यह पहली जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे महत्वपूर्ण रिपोर्टों की गहरी पड़ताल कर अपने कर्तव्य को पूरा करे। अफ़सोस है कि टेलीविजन न्यूज़ मीडिया ही नहीं हिंदी, अंग्रेजी के दैनिक समाचार पत्र और पत्रिकाओं तक के पास इसके लिए समय नहीं है।

गांधी खादी आश्रम पर सीएजी की रिपोर्ट

‘जनचौक’ ने पिछले माह एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट सीएजी की गांधी खादी आश्रम उद्योग पर केंद्र कर दी थी, जिसमें हमने देखा कि किस प्रकार पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने गांवों में हर प्रकार के काम-धंधों को ग्रामोद्योग नाम देकर खादी ग्रामोद्योग से जोड़कर लगभग 2,000 करोड़ रुपये के कारोबार को 1,15,000 करोड़ से भी बड़ा कारोबार दिखाने की कलाबाजी की है।

सीएजी की उस रिपोर्ट से पता चलता है कि खादी उद्योग के तहत आने वाले अधिकांश प्लांट्स और विक्रय केंद्र असहाय हालत में हैं अथवा बंद हो चुके हैं। कुछ चुनिंदा केंद्रों पर ही अधिकांश बिक्री हो रही है। विदेशों में बेहतर स्कोप दिखने के बावजूद उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है और खादी की जगह पापड़ और अचार की बिक्री बढ़ी है। लेकिन शायद ही कथित मीडिया के किसी भी संस्थान ने इस बारे में चिंता करने की कोई जहमत उठाई हो।

इसी प्रकार विपक्षी पार्टियों के पास भी पहले से ही इतने ढेर सारे मुद्दे अपने आप आते रहते हैं कि उनके पास देश-दुनिया के अखबारों से देश की दुर्दशा से जुड़ी इतनी खबरें आती हैं कि उनके पास दैनिक प्रेस-ब्रीफिंग कर भारतीय मीडिया को बुलाकर उनका ज्ञान-वर्धन करने से ज्यादा फुर्सत ही नहीं मिलती। उनके सोशल-मीडिया और आईटी सेल के पास भी हमेशा पहले से स्थापित भाजपा के आईटी सेल से उछाले जाने वाले रोज-रोज के इतिहास के प्रश्नों और फेक खबरों और फर्जी वीडियो की फैक्ट चेक और अपनी पार्टी की रेटिंग बढ़ाने के उपायों को ढूंढने से आगे जाने की फुर्सत ही नहीं होती है।

यही वजह है कि जब 1 अगस्त को सीएजी द्वारा अपनी वेबसाइट पर केंद्र सरकार के आय-व्यय की पड़ताल की रिपोर्ट पर द टेलीग्राफ अख़बार ने संज्ञान लेकर इसे अपनी प्रमुख खबर के रूप में प्रकाशित किया तो सोशल मीडिया सहित विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से इस पर दिन-भर तीखी प्रतिक्रिया आने लगीं। लेकिन 24 घंटे भी नहीं बीते हैं, सीएजी की रिपोर्ट हवा में विलीन हो चुकी है।

सीएजी के कुछ प्रमुख निष्कर्ष

सीएजी द्वारा जारी फिगर 2.3 में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए वित्त के स्रोतों की जानकारी प्रदान की गई है, जो आम भारतीय को हैरान-परेशान कर सकती है। जैसे नीचे दिय गये आंकड़ों में वर्ष 2021-22 के दौरान राजस्व प्राप्ति को करोड़ रुपये में दर्शाया गया है।

क्रम संख्या 2 में ऋण प्राप्ति की रकम 82 लाख 49 हजार 152 करोड़ रुपये बताई गई है। जो कुल प्राप्ति 1,48,95,450 करोड़ रुपये के 55.38% के बराबर की रकम बनती है। इसकी तुलना में केंद्र सरकार को गैर-कर्ज प्राप्ति (आयकर, जीएसटी, कॉर्पोरेट टैक्स इत्यादि) से 33 लाख 34 हजार 813 करोड़ रुपये एवं अन्य प्राप्तियां हासिल होती हैं।

यहां पर समझने वाली बात यह है कि सरकार द्वारा कर्ज भुगतान की राशि को 2021-22 में 66 लाख 35 हजार 468 करोड़ रुपये पाया गया है। सीएजी के अनुसार वित्त-वर्ष 2021-22 के दौरान सरकार द्वारा 16 लाख 3 हजार, 683 करोड़ रुपये का शुद्ध कर्ज लिया गया है। इतने बड़े पैमाने पर हर वर्ष भारत सरकार कर्ज लेकर घी खा रही है, और बता रही है कि देश में भारी विकास हो रहा है।

लेकिन राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण, जगह-जगह मंदिरों के निर्माण पर होने वाले विशालकाय खर्च, नई संसद, भारत मंडपम, एशिया का सबसे बड़ा कन्वेंशन सेंटर कम एक्सपो सेंटर सहित बुलेट ट्रेन लाने से देश का विकास नहीं होता है, बल्कि देश कर्ज के ऐसे भंवर जाल में फंसता जा रहा है जिससे बाहर निकलने की आगे कोई राह सुझाई नहीं देने वाली है। हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका की भयावह हालत से हम कुछ भी नहीं सीख रहे हैं।

भारतीय राजनेता इस पर अक्सर पश्चिमी देशों के बैंकों के बारे में चलने वाले प्रसिद्ध जुमले, “They are too big, to be fail” को हाल तक दोहराते नजर आते थे। लेकिन हाल ही में अमेरिका के दो बड़े बैंकों और स्विट्ज़रलैंड के नामी बैंक के दिवालिया होने के बाद कुछ समय के लिए इस जुमलेबाजी को बंद कर दिया गया है। लेकिन सीएजी की रिपोर्ट को देखने से सबसे अधिक आश्चर्य इस बात पर होता है कि 16 लाख करोड़ रुपये एक वर्ष में कर्ज तो केंद्र सरकार ले लेती है, लेकिन राज्यों को देने के लिए उसके पास मात्र 8 लाख, 98 हजार, 392 करोड़ रुपये का ही प्रावधान है।

देश भले ही कानून और कायदे से चलता है, लेकिन हर नागरिक के लिए आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, पार्क, सड़क, सफाई से लेकर लगभग हर सार्वजिनक क्षेत्र में राज्य या केंद्र शासित राज्यों की ही भूमिका होती है। आपकी कमाई पर आयकर और पेट्रोल डीजल पर एक्साइज केंद्र सरकार वसूलती है।

जीएसटी में भी एक हिस्सा उसके पास स्वतः चला जाता है। इसके अलावा, देश चाहे निर्यात करे अथवा आयात, यह सब केंद्र सरकार के जिम्मे है। ऐसे में विचारणीय है कि राज्यों को दी जाने वाली रकम से दुगुना कर्ज केंद्र सरकार लेगी और हर तरफ बुनियादी जरूरतों और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार पर जोर देने के बजाय देश के मध्य वर्ग को सिर्फ शेष दुनिया के मुकाबले इन्फ्रास्ट्रक्चर में चमत्कारिक बदलाव लाकर उनकी हीन भावना को तुष्ट कर अपने लिए वोट बैंक का ही निर्माण करती रहेगी, तो वह देश का भला न कर एक बड़े गड्ढे में डाल रही है।

जाहिर सी बात है, सीएजी सिर्फ आंकड़ों में से जरूरी चीजें निकालकर समझदार को इशारा भर कर सकती है, बाकी सरकार, विपक्ष, देश की संसद और प्रबुद्ध नागरिकों को सोचना है।    

आम लोगों पर Cess (उपकर) का भारी बोझ 

केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर देश के नागरिकों को व्यापक देशहित और जनहित के आधार पर कुछ खास उपभोक्ता वस्तुओं पर Cess (उपकर संग्रह) लगाने का चलन रहा है। Cess का बड़ा हिस्सा पेट्रोल, डीजल, सिगरेट, शराब, वाहन या आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है।  

  • 2021-22 के आंकड़ों से पता चलता है कि कुल टैक्स संग्रह जहां 27 लाख 9 हजार, 315 करोड़ रुपये था, उसमें अकेले सेस से आम लोगों से 4,78,680 करोड़ रुपये की वसूली की गई थी, अर्थात कुल टैक्स कलेक्शन में अकेले 17.67% सेस वसूली से आया था।

लेकिन इसमें भी एक्साइज और जीएसटी पर जितने बड़े पैमाने पर सेस वसूला गया है, वह बताता है कि किस प्रकार लोकतंत्र में सजग नागरिकों और विपक्ष के अभाव में सरकार निरंकुश हो जाया करती हैं, और आजादी के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा बहाए गये खून को पूंजीवादी लोकतंत्र पूरी तरह से बेमानी बना देता है।

  • वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान मोदी सरकार ने एक्साइज टैक्स के मद में 3,90,808 करोड़ रुपये की वसूली की थी। लेकिन जानते हैं, इसमें सेस कितना था? पूरे 67.41% अर्थात 3.90 लाख करोड़ में से 2 लाख 63 हजार 432 करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने सेस लगाकर ही वसूला है।
  • इसी प्रकार जीएसटी में भी कुल टैक्स वसूली 7,02,105 करोड़ रुपये थी, लेकिन सेस के खाते में यहां पर भी 1,04,769 करोड़ रुपये उपभोक्ताओं से वसूले गये।
  • सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि जब जीएसटी के भीतर एक्साइज, सर्विस टैक्स, वैट, एंट्री टैक्स और चुंगी जैसे विभिन्न टैक्स को समाहित किया गया था, तो उसके साथ पूर्व से लागू सेस जैसे कृषि कल्याण सेस, स्वच्छ भारत सेस, स्वच्छ उर्जा सेस ही नहीं बल्कि चाय, चीनी और जूट इत्यादि को भी इसमें समाहित कर दिया गया। इसका अर्थ है आज भी आप देश में कृषि, स्वच्छता, स्वच्छ ऊर्जा सहित विभिन्न चीजों के लिए उपकर दिए जा रहे हैं, और आपको इसका अहसास तक नहीं है और सरकार इसके लिए देश के नागरिकों के सहयोग के लिए आभार तक जताने से बच गई।
  • सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-18 से प्राथमिक एवं उच्चतर शिक्षा पर सेस के स्थान पर स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेस लगाने की शुरुआत की गई। बाकी विभिन्न चीजों पर सेस बदस्तूर जारी रहा।

यहां पर यह जानना बेहद दिलचस्प होगा कि सेस संग्रह (4,78,680 करोड़ रुपये) को राज्यों के साथ बांटने की मजबूरी नहीं है। अर्थात सेस के नाम पर केंद्र सरकार जितनी अधिक वसूली करे, उसे उस विशिष्ट मद पर ही खर्च किया जा सकता है। कई बार राष्ट्रीय आपदा की सूरत में सेस अधिभार लगा दिया जाता है, लेकिन उसकी वसूली की भी एक मियाद होती है। यहां पर सवाल खड़ा होता है कि क्या केंद्र सरकार द्वारा जिन मदों के तहत सेस की वसूली की गई है, उन्हीं मदों पर इसे खर्च किया गया है?

यदि ऐसा नहीं है, तो यह सरासर देश के करदाताओं के साथ धोखाधड़ी है। अभी पिछले माह की खबर है कि देश में आयकर रिटर्न में शुद्ध टैक्स जमा करने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट को देखते हुए सरकार को शक है कि लोग टैक्स जमा नहीं कर रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए करीब 12 लाख लोगों के नाम नोटिस तो नहीं लेकिन रिमाइंडर आया है। अर्थात, देश में नागरिक जिसे आधार, पैन कार्ड को बैंक खाते से नत्थी कर सरकार ने लगभग पूरी तरह से नग्न कर दिया है, फिर भी उसे संदेह है कि लोग टैक्स नहीं जमा कर रहे हैं।

जबकि उसे विचार करना चाहिए कि बहुत संभव है, दसियों लाख लोग बेरोजगार, वीआरएस, छंटनी के शिकार हो सकते हैं, और उनकी मदद के बारे में सोचना चाहिए। इसके उलट यहां पर सरकार लाखों करोड़ सेस के नाम वसूलकर कहां खर्च कर रही है, इसका खुलासा नहीं कर रही है।

देश की जनता जनार्दन है, जिसने संविधान सभा को देश का संविधान निर्मित करने की इजाजत दी थी। उसी संविधान सभा ने जनता जनार्दन की सुविधा के लिए देश का संविधान और विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए नियम और कायदे बनाये। आज विधायिका उसी जनता जनार्दन से शक्ति पाकर लोकतंत्र के शेष पायों और स्वयं जनता को ही अवशोषित करने की स्थिति में खड़ी होती जा रही है। सीएजी की यह रिपोर्ट अपने आप में बहुत कुछ बताती है।

केंद्र सरकार के खातों की वित्तीय ऑडिट की सीएजी की रिपोर्ट अभी जारी है.. शेष अगले अंक में

(रवींद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

सीएजी का खुलासा: मोदी सरकार का बड़ा घपला, आवंटित पैसों को अज्ञात मदों में किया खर्च

रविंद्र पटवाल
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