गांधी के रास्ते पर गिलानी! हुर्रियत नेता ने की घाटी के बाशिंदों से शांतिपूर्ण प्रदर्शनों की अपील

नई दिल्ली। आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस (एपीएचसी) के मुखिया सैय्यद अली शाह गिलानी ने एक बयान जारी कर जम्मू-कश्मीर के भारतीय कब्जे के खिलाफ उठ खड़े होने की अपील की है। और इस कड़ी में अपने-अपने इलाकों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन आयोजित करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार चाहे जितना लोगों की आवाजों को घाटी में दबाने की कोशिश करे लेकिन सच्चाई यह है कि वह पूरी दुनिया में गूंज रही है।

बयान में उन्होंने कहा है कि पूरे इलाके को जेल में तब्दील कर दिया गया है। सच्चाई यह है कि घाटी के हर कोने से रोजाना उत्पीड़न और दमन की गंभीर खबरें आ रही हैं लेकिन सरकार उन्हें किसी भी कीमत पर बाहर से जाने से रोक रही है। उनका कहना है कि सरकार ने न केवल आम आदमियों द्वारा इस्तेमाल में आने वाले औपचारिक संचार के साधनों पर रोक लगा दिया है बल्कि स्थानीय रिपोर्टिंग और मीडिया पर भी अघोषित पाबंदी लगा दी गयी है। जिसके चलते सेना के उत्पीड़न, उसके बहशीपन और युवाओं की हत्याओं से जुड़ी कोई भी खबर प्रकाशित नहीं हो पा रही है। यहां तक कि लोग अपने परिजनों से बात तक नहीं कर पा रहे हैं। उत्पीड़क भले ही सच्चाई को छुपाने में कामयाब हो जाएं लेकिन इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। खाली पन्ने बुलंद आवाज में बोलेंगे।

उन्होंने कहा कि भारतीय राज्य बहुत समय से कश्मीर के मसले को झूठ बोलकर उसे अतंरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने से रोकता रहा है। लेकिन सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी यह मसला पहले किसी समय से ज्यादा दुनिया के स्तर पर चर्चित हो गया है। इस सिलसिले में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हुई बातचीत का हवाला दिया। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया कवरेज को भी उसी का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि यह उम्मीद की जा सकती है कि लोगों तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया के जरिये बात पहुंच रही होगी। अली शाह गिलानी को कट्टरपंथी अलगाववादी नेताओं में माना जाता है।

उन्होंने भारत सरकार के मंसूबों पर भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि वह घाटी के जनसांख्यकीय संतुलन को बदलने की फिराक में है। इसके लिए वह कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन करते हुए कालोनी स्थापित करना चाहती है। उन्होंने दिल्ली के शासकों पर सत्ता के नशे में अहंकारी होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से एकतरफा फैसला लेकर पूरे कश्मीर को बंधक बना लिया गया है उसने भारतीय राज्य के कथित लोकतांत्रिक चेहरे का पर्दाफाश कर दिया है। उन्होंने कहा दुर्भाग्य से इसका शोक मनाने के बजाय भारत के लोग सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि फैसले की घोषणा से पहले कश्मीर में युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर दी गयी और पूरा एक अफवाहों का दौर चला। और इस तरह से एक तरह का मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ दिया गया। इस मौके पर वह कश्मीर में मुख्यधारा के राजनीतिक नेतृत्व पर भी हमला करने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि फौज की संख्या में बढ़ोत्तरी का न केवल स्वतंत्रता में विश्वास रखने वाले नेताओं को गिरफ्तार करने में इस्तेमाल किया गया बल्कि बहुत सालों से भारत के एजेंट बनकर काम करने वालों और कश्मीरी जनता के बलिदान के सौदागरों को भी उनकी सही जगह दिखा दी गयी। और उन्हें कस्टडी के हवाले कर दिया गया। उन्होंने कहा कि यह हमारी बड़ी जीत है और अब कश्मीरी राजनीतिक डिसकोर्स में आत्मनिर्णय और न्याय के लिए संघर्ष के अलावा कोई दूसरा नरेटिव नहीं बचा है। यहां तक कि वो लोग जो भारत का गुणगान करते नहीं थकते थे अब उन्हें भी पता चल गया है कि भारत को कश्मीरियों के जीवन से नहीं बल्कि हमारी जमीन पर कब्जे में रूचि है। और जो भी कीमत चुकानी पड़े उसके लिए वो तैयार हैं।

उन्होंने प्रोग्राम और एक्शन के लिहाज से कहा कि लोगों को एकताबद्ध होकर अपने इलाकों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन आयोजित करने चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा करते हुए हमें पूरी तरह से अनुशासित रहना होगा और सुरक्षा बलों को उसके हिंसक होने का कोई मौका नहीं देना होगा। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में जितनी भी हमारी संपत्ति और जीवन को चोट पहुंचे। उसे बर्दाश्त करना होगा। उन्होंने बार-बार जोर देकर कहा कि हमारे प्रदर्शनों को पूरी तरह से शांतिपूर्ण होना चाहिए। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग उसमें हिस्सेदारी कर सकें। उसके बावजूद भी अगर भारतीय सुरक्षा बल भीड़ पर हमला करता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर होगी। और फिर पूरी दुनिया उसका गवाह बनेगी।

पत्र के जरिये उन्होंने घाटी और सूबे के दूसरे हिस्सों में काम करने वाले कश्मीरी नौकरशाहों और पुलिसकर्मियों से भी अपील की। उन्होंने कहा कि वो सभी अपने ही लोगों के उत्पीड़न में भारत के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हैं बावजूद इसके भारत सरकार उन पर भरोसा नहीं कर रही है। कई जगहों पर पुलिसकर्मियों से हथियार छीनकर उनकी जगह केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के फैसले ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह का अपमान भी उन्हें खड़ा होकर विरोध करने के लिए बाध्य नहीं करता है तो उन्होंने भारत के पक्षधर नेताओं की नियति तक पहुंचने का इंतजार करना चाहिए।

गिलानी ने एक बार फिर पाकिस्तान से कश्मीरियों के साथ खड़े होने की अपील की है। जिसमें उन्होंने आमतौर पर पाकिस्तानियों और खासतौर पर उनके नेताओं से आगे आने के लिए कहा है। उन्होंने उनको संबोधित करते हुए कहा कि आप कश्मीर के मामले में एक महत्वपूर्ण पक्ष हैं। और एकताबद्ध होकर कार्रवाई में जाने का यही सबसे माकूल मौका है।

इसके साथ ही उन्होंने जम्मू के डोगरा और लद्दाख के बौद्धों से भी अपील की। उन्होंने कहा कि भारतीय राज्य के कब्जे का प्रभाव न केवल घाटी पर पड़ेगा बल्कि जम्मू के डोगरा समुदाय के लोगों के हितों के भी खिलाफ जाएगा। यह जितना ही पीर पंजाल और कारगिल के मुस्लिमों के खिलाफ होगा उतना ही लद्दाख के बौद्धों के खिलाफ जाएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय राज्य न केवल हमारी जमीन पर कब्जा करना चाहता है बल्कि वह हमारी सामूहिक पहचान और भाईचारे को भी ध्वस्त कर देना चाहता है। हमें उन्हें उनके इन घृणित मंसूबों में सफल नहीं होने देना चाहिए।

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