एएमयू में कुलपति चयन प्रक्रिया पर सवाल, वीसी की पत्नी को शॉर्टलिस्ट करने पर विवाद

नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने कुलपति पद के लिए अपने प्रतिष्ठित महिला कॉलेज की प्रिंसिपल को शॉर्टलिस्ट किया है, वह विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति बन सकती हैं। लेकिन वीसी की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि उनके पति ने ही उस बैठक की अध्यक्षता की जिसमें उन्हें सूची में शामिल किया गया।

30 अक्टूबर को, विश्वविद्यालय की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था, 27-सदस्यीय कार्यकारी परिषद (ईसी) ने 20 योग्य लोगों में से पांच के नाम चुने जबकि कुलपति पद के लिए कुल 36 आवेदक थे।

पांच चुने गए नामों में से कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज़ की पत्नी नईमा खातून गुलरेज़ का भी नाम है। एएमयू से मनोविज्ञान में पीएचडी, 2006 में प्रोफेसर के रूप में पदोन्नत होने से पहले, उन्हें 1988 में उसी विभाग में व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था। 2014 में महिला कॉलेज के प्रिंसिपल बनने से पहले वह वहीं रहीं।

खातून के अलावा कार्यकारी परिषद की ओर से कानूनी विद्वान और नलसर, हैदराबाद के पूर्व वीसी फैजान मुस्तफा, बायोकेमिस्ट और श्रीनगर के क्लस्टर विश्वविद्यालय के कुलपति कय्यूम हुसैन, प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ और एएमयू प्रोफेसर एम यू रब्बानी, और जामिया प्रबंधन के प्रोफेसर फुरकान क़मर का नाम चुना गया है।

30 अक्टूबर की बैठक में ईसी के 27 सदस्यों में से 20 उपस्थित हुए और सूत्रों के मुताबिक कार्यवाहक कुलपति समेत 19 ने मतदान किया। जिसमें मुस्तफा को नौ वोट मिले, खातून और हुसैन को आठ-आठ वोट मिले जबकि रब्बानी और कमर को सात-सात वोट मिले।

पांच लोगों की यह सूची एएमयू कोर्ट को भेजी गई थी, जो 193 सदस्यीय निकाय है, इसमें 94 रिक्तियां हैं। जिसमें 10 सांसद और पांच विजटर के नामांकित व्यक्ति शामिल हैं। इसके बाद एएमयू कोर्ट ईसी की शॉर्टलिस्ट को तीन के सेट में विभाजित कर इसे भारत के राष्ट्रपति को भेज देगा, जो विश्वविद्यालय के विजिटर के रूप में अंतिम को चुनेंगी।

द इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल में ईसी बैठक के मिनटों से पता चलता है कि ईसी सदस्यों में से एक ने कार्यवाहक कुलपति गुलरेज़ को मतदान से दूर रहने का सुझाव दिया था क्योंकि उनकी पत्नी एक उम्मीदवार हैं। वहीं एक अन्य सदस्य इस सुझाव से सहमत थे।

मिनट्स में कहा गया है कि “अध्यक्ष (कार्यवाहक वीसी) ने जवाब दिया कि हितों का कोई टकराव नहीं था।”

इंडियन एक्सप्रेस ने जब प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज़ से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि क्योंकि वह उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए कोई समस्या नहीं थी। उन्होंने उच्च शिक्षा विभाग के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि “यदि कुलपति या कार्यकारी परिषद का कोई अन्य सदस्य, जो कुलपति पद के लिए उम्मीदवार बनने के इच्छुक हैं, तो कार्यकारी परिषद की ऐसी बैठक में भाग लेंते हैं तो उन्हें कुलपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में अयोग्य माना जाएगा।

उन्होंने कहा कि इसलिए उन्हें खुद को अलग करने की कोई जरूरत नहीं है और हितों का कोई टकराव नहीं है। उन्होंने कहा कि “निर्वाचित ईसी सदस्यों में से एक ने कैमरे पर मीडिया को एक बयान भी दिया है जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि इसमें हितों का कोई टकराव नहीं था। इससे भी अधिक, कानून की नजर में यह एक स्थापित सिद्धांत है कि पति और पत्नी कानूनी रूप से स्वतंत्र हैं।

वहीं नईमा खातून गुलरेज़ से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि “इसमें कुछ भी गलत नहीं है। शिक्षा विभाग के परिपत्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि कुलपति स्वयं नामांकित व्यक्ति है, तो उसे खुद को अलग करना होगा, लेकिन उन परिपत्रों में कुलपति के पति या पत्नी या किसी अन्य रिश्तेदार के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। निर्णय लेने से पहले इन सभी परिपत्रों को कार्यकारी परिषद के सामने पढ़ा गया था।

दरअसल, एएमयू अध्यादेश (कार्यकारी) के अध्याय-V का खंड-6 एक चयन समिति के सदस्य को मतदान प्रक्रिया में भाग लेने से रोकता है यदि उनके 15 सूचीबद्ध रिश्तेदार विवाद में हैं, लेकिन इनमें जीवनसाथी (पत्नी या पति) का उल्लेख नहीं है। नईमा, जो ईसी की पदेन सदस्य हैं, ने कहा कि “मैं बैठक में शामिल नहीं हुई।”

वहीं इस बात की शिकायत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक पहुंच गई है। 36 आवेदकों में से एक प्रोफेसर मुजाहिद बेग, जिनका नाम कार्यकारी परिषद ने नहीं चुना था ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने पैनल को अलग करने और “प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू करने” की मांग की है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि “आश्चर्य की बात है कि कुलपति ने न केवल कार्यकारी परिषद की बैठक की अध्यक्षता की, बल्कि अपनी पत्नी के लिए मतदान भी किया। ये स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को एक और झटका है। कुलपति ने उम्मीदवारों के संबंध में अपनी निष्पक्षता की घोषणा नहीं की, ताकि उनकी स्वतंत्रता और कार्यवाही की निष्पक्षता के बारे में किसी भी उचित संदेह को दूर किया जा सके, क्योंकि उनकी पत्नी कुलपति पद के लिए अपना दावा पेश करने वाले उम्मीदवारों में से एक हैं।

संपर्क करने पर बेग ने पुष्टि की कि उन्होंने विजिटर, शिक्षा विभाग और यूजीसी को लिखा है लेकिन उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

गुलरेज़ के करीबी एक विश्वविद्यालय अधिकारी ने बताया कि “एक महिला कुलपति ऐतिहासिक होगी। भले ही उसके पति ने उसे वोट नहीं दिया होता, वह शीर्ष पांच में होती।”

हालांकि, एएमयू कोर्ट को लिखे एक पत्र में एक पूर्व सदस्य, अनवरुद्दीन खान ने कहा कि निकाय को “इस पैनल को खारिज कर देना चाहिए और कार्यकारी परिषद को पारदर्शिता के साथ और एएमयू अधिनियम और पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट के अनुसार पांच उम्मीदवारों का एक और पैनल बनाने का आदेश देना चाहिए।”

(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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