मुझे आपको प्रधानमंत्री कहने में शर्म आती है जनाब!

‘रोम जल रहा था और नीरो वंशी बजा रहा था’ उक्त लोकोक्ति आज हमारे देश के मुश्किल हालात पर चरितार्थ हो रही है। आज पूरे देश में कोरोना महामारी और सरकारी मशीनरी की अव्यवस्था से हाहाकार मचा हुआ है। सभी लोग डर के साये में जीने को विवश हैं। देश 21 दिन के चल रहे लाॅक डाउन से पस्त हो गया है। गरीब मजदूर अपने घर पहुंचने के लिए निकले हैं, लेकिन घर के बदले सड़कों पर रात बिताने के लिए मजबूर हैं। पुलिस की लाठियों से मजदूरों के शरीर व मन पर कभी ना धुलने वाला दाग चिपकाया जा रहा है।

अवाम धीरे-धीरे भूख से मरने की ओर अग्रसर हो रही है। पूरा देश लाॅक डाउन है। आपातकालीन सुविधाओं से जुड़ी फर्मों को छोड़कर सभी सरकारी व निजी फर्म बंद हैं और उनके कर्मचारियों के मन में अपनी नौकरी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अभी तक देश में जितने लोग कोरोना से नहीं मरे हैं, उससे ज्यादा लाॅक डाउन से हुई अव्यवस्था के कारण मर चुके हैं। 

आज भी कोरोना महामारी से लड़ने के लिए हमारे डाॅक्टरों के पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। कोरोना को लेकर पूरे देश में अफवाहों का बाजार गर्म है। इस महामारी के दौर में भी कुछ लोग अपनी सांप्रदायिक राजनीति को हवा देने में लगे हुए हैं और भारत में कोरोना को फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कोरोना से मुक्ति के लिए कहीं गोमूत्र पीया जा रहा है, तो कहीं यज्ञ करवाया जा रहा है, तो कहीं दुर्गा के बाल को पानी में डालकर पीया जा रहा है यानी कि धार्मिक अंधविश्वासों को कोरोना के बहाने हवा दी जा रही है।

ऐसी विषम परिस्थितियों में एक प्रधानमंत्री का क्या फर्ज बनता है? क्या देश ने उसे सिर्फ व सिर्फ गपबाजी के लिए सत्ता सौंपी थी? पूरी दुनिया में कोरोना महामारी की व्यापकता व भयंकरता को जानने के बावजूद भी ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे कार्यक्रम का क्या औचित्य था? आखिर क्यों हमारे देश के हुक्मरान कोरोना से बचाव के लिए इतने दिन के बाद सक्रिय हुए? 

कोरोना पर प्रधानमंत्री अब तक चार बार देश के सामने प्रकट हुए हैं। एक बार प्रकट हुए तो जनता कर्फ्यू की अपील करते हुए शाम 5 बजे ताली, थाली, शंख और घंटी बजाने के लिए बोले, लेकिन भक्तों ने उत्साह में कोरोना का जनाजा निकाला और खुशी में दम भर आतिशबाजी की। 

दूसरी बार प्रकट हुए तो अचानक बिना किसी तैयारी के मात्र 4 घंटे बाद से 21 दिन का लाॅक डाउन घोषित कर दिये, जिसके बाद पूरे देश में हुई अव्यवस्था किसी से छुपी नहीं है। तीसरी बार महानुभाव ‘मन की बात’ के बहाने प्रकट हुए, तो लगे जनता से माफी मांगने, लेकिन देश में हो रही व्यापक अव्यवस्था पर इन्होंने मुंह नहीं खोला।

आज जब पूरे देश में प्रतिदिन कोरोना पाॅजिटिव की संख्या तेज रफ्तार से बढ़ रही है और लाॅक डाउन के कारण अव्यवस्था चरम पर है, तब हमारे प्रधानमंत्री चौथी बार वीडियो संदेश के जरिये प्रकट हुए। आज लोगों को उम्मीद थी कि ये महाशय लाॅक डाउन के बारे में कुछ बोलेंगे, मुसलमानों को कोरोना के लिए जिम्मेदार ठहराये जाने वाले अपने ‘गुरु भाइयों’ को लताड़ेंगे, कोरोना के बारे में फैल रहे अफवाह के बारे में कोरोना की असलियत को बताएंगे, डाॅक्टरों को इस महामारी से लड़ने के लिए पर्याप्त सुविधा देने की घोषणा करेंगे, आदि-आदि। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने जनता की उम्मीदों को धता बताते हुए ‘कोरोना से फैले अंधकार में प्रकाश लाने के लिए मोमबत्ती, दीया, टाॅर्च या फिर मोबाइल का फ्लैशलाइट’ जलाने की अपील कर डाली। 

5 अप्रैल को रात के 9 बजे पहले बिजली का स्विच ऑफ कर फिर मोमबत्ती, दीया, टाॅर्च या मोबाइल का फ्लैश लाइट जलाना कहाँ की बुद्धिमानी है साहब? प्रधानमंत्री जी नौटंकी करना बंद कीजिए और कोरोना महामारी से लड़ने के लिए हमारे डाॅक्टरों को पर्याप्त सुविधाएं दीजिए। सभी निजी अस्पतालों को कोरोना से पीड़ित लोगों का मुफ्त इलाज के लिए आदेश दीजिए। यह मसखरी बंद कीजिए महाशय, नहीं तो इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा। मुझे तो आपको प्रधानमंत्री कहने में भी शर्म आ रही है मिस्टर पीएम, क्या आपको कभी खुद पर शर्म नहीं आती?

(रूपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल राँची में रहते हैं।)

रूपेश कुमार सिंह
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