मणिपुर के दर्द भरे सवालों को अनदेखा कर मोदी ने चुटकुले सुनाए और ठहाके लगवाए

लोकसभा में सरकार के खिलाफ विपक्ष की ओर अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए कांग्रेस के गौरव गोगोई ने मणिपुर में पिछले तीन महीने से जारी भीषण सांप्रदायिक और जातीय हिंसा में सैकड़ों लोगों के मारे जाने, हजारों लोगों के घर जला दिए जाने, लाखों लोगों के बेघर होकर जंगल में पलायन कर जाने, महिलाओं का बलात्कार किए जाने और उन्हें नंगा कर सड़कों पर घुमाए जाने जैसी अमानुषिक घटनाओं का विस्तार से जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री से तीन सवाल पूछे थे।

गोगोई के अलावा राहुल गांधी ने भी अपने भाषण में अपनी मणिपुर यात्रा का जिक्र किया था और वहां के अपने दर्दनाक अनुभव सुनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला किया था। राहुल ने कहा था, “मणिपुर में लोगों को मार कर भारत माता की हत्या की है.. आपने भारत माता की हत्या की है.. आपने मेरी मां की हत्या की है.. आप देशभक्त नहीं, देशद्रोही हो।”

गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव हिंदी में पेश किया था और उन्होंने अपना पूरा भाषण भी हिंदी में ही दिया था। उन्होंने प्रधानमंत्री से जानना चाहा था कि वे अभी तक मणिपुर क्यों नहीं गए, वहां की घटनाओं पर बोलने से क्यों बच रहे हैं और मणिपुर के मुख्यमंत्री को अभी तक बर्खास्त क्यों नहीं किया गया? राहुल गांधी ने भी हिंदी में ही अपना भाषण दिया था।

मोदी को संबोधित राहुल का बयान भाजपा और उसकी मातृसंस्था आरएसएस पर किया गया अब तक का सबसे तीखा हमला है। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करने और महात्मा गांधी की हत्या के बावजूद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने आरएसएस को कभी देशद्रोही नहीं कहा था लेकिन राहुल गांधी ने मोदी की और उनकी सरकार व उनकी पार्टी की देशभक्ति पर सीधे-सीधे सवाल खड़ा कर दिया।

गोगोई और राहुल दोनों की हिंदी आम हिंदी भाषी के लिए आसानी से समझ में आने वाली हिंदी है। मोदी भी हिंदी अच्छी तरह समझते और बोलते हैं, लेकिन उन्होंने अपने भाषण में न तो गोगोई के पूछे तीन सवालों का कोई जवाब दिया और न राहुल गांधी के आरोप पर वे उखड़े। उन्होंने देश के संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव पर अब तक का सबसे लंबा भाषण दिया। वे दो घंटे और 13 मिनट के भाषण में लगभग पूरे समय हंसते-मुस्कुराते हुए इधर-उधर की तमाम असंगत बातें करते रहे।

इस रिकॉर्ड तोड़ लंबे भाषण में वे मणिपुर पर महज दो मिनट बोले और वह भी तब, जब पूरे डेढ़ घंटे तक उनके भाषण में मणिपुर का जिक्र नहीं होने पर समूचा विपक्ष सदन से वॉकआउट कर चुका था। प्रधानमंत्री ने मणिपुर को समर्पित दो मिनट के दौरान भी वर्तमान के बजाय वहां के अतीत की घटनाओं की तोड़-मरोड़ कर चर्चा की।

मणिपुर के हालात को लेकर उनकी निष्ठुरता और बेपरवाही का आलम देखिए! उन्होंने गोगोई और अन्य विपक्षी सदस्यों के सवालों का जवाब देने के बजाय उनके सवालों की खिल्ली उड़ाने के अंदाज में हंसते हुए कहा कि विपक्ष के प्रस्ताव में कोई इनोवेशन (नयापन और क्रिएटिविटी (रचनात्मकता) नहीं है। इसे बेशर्मी और अमानवीयता का चरम ही कहेंगे कि तीन महीने से जल रहे, लुट रहे, पिट रहे और मर रहे मणिपुर पर लाए गए प्रस्ताव में देश का प्रधानमंत्री नवीनता और रचनात्मकता तलाश रहा है।

अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री का यह निष्ठुरताभरा रवैया देख कर देश के आम लोगों और खास कर मणिपुर के लुटे-पिटे और हर तरह से तबाह हो चुके लोगों के दिल पर क्या गुजरी होगी। मणिपुर के बाशिंदों को उम्मीद रही होगी कि देश की सबसे बड़ी पंचायत में उनके सवालों पर चर्चा होगी तो प्रधानमंत्री कुछ ठोस आश्वासन देंगे, उनके जख्मों पर मरहम लगाएंगे, लेकिन उन्होंने देखा कि देश का प्रधानमंत्री न तो खुद मणिपुर के बारे में कुछ सार्थक बोल रहे है और जो बोल रहे हैं उनकी खिल्ली उड़ाते हुए पूरी बेशर्मी के साथ तीसरी बार सत्ता में आने का दावा कर रहे है।

दरअसल मोदी से जब किसी मुद्दे को लेकर वर्तमान के सवालों के जवाब देते नहीं बनता है तो वे अतीत में चले जाते हैं और इधर-उधर की बात करते हुए लोगों को भविष्य के सब्जबाग दिखाने लगते हैं। मणिपुर को लेकर भी उन्होंने यही किया। विपक्ष उनसे सवाल पूछ रहा था मणिपुर पर, हरियाणा की हिंसा पर और महंगाई व बेरोजगारी पर, लेकिन उन्होंने बात की असम की, मिजोरम की, भारत के विभाजन की, स्वर्ण मंदिर परिसर में ऑपरेशन ब्लू स्टार की, वंदेमातरम की, कांग्रेस की चुनावी असफलताओं की और विपक्षी गठबंधन की।

उन्होंने मणिपुर सहित पूर्वोत्तर की सभी मौजूदा समस्याओं के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया और अपनी पीठ थपथपाते हुए बताया कि पिछले नौ साल में उनकी सरकार के मंत्री 400 बार और वे स्वयं 50 से ज्यादा बार मणिपुर गए हैं।

सवाल है कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों के इतनी बार जाने के बाद भी जब मणिपुर तीन महीने से जल रहा है तो फिर आपके और दूसरे मंत्रियों के वहां जाने का क्या मतलब? उन्होंने कहा कि हम जल्दी ही मणिपुर की चुनौती का समाधान निकालेंगे, वहां फिर से शांति की स्थापना होगी और वहां के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि मणिपुर के मौजूदा हालात कैसे बने और वहां सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए उनकी सरकार क्या कर रही है? मणिपुर के हालात को काबू करने में नाकाम रहे वहां के मुख्यमंत्री का निर्लज्जतापूर्वक बचाव तो गृहमंत्री अमित शाह एक दिन पहले ही कर चुके थे।

मणिपुर की राज्यपाल अनुसूया उइके केंद्र सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में साफ कर चुकी हैं कि मणिपुर में कानून व्यवस्था और प्रशासनिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। यही बात केंद्र सरकार के मंत्री और मणिपुर के कई भाजपा विधायक कह चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हालात की गंभीरता समझते हुए मामले की जांच के लिए एसआईटी यानी विशेष जांच दल और जांच की निगरानी के लिए तीन जजों की कमेटी गठित की है।

यह सारी बातें साबित करती हैं कि राज्य सरकार हालात से निबटने में पूरी तरह अक्षम साबित हुई है। इसके बावजूद गृहमंत्री शाह ने संविधान के अनुच्छेद 356 की गलत और मनमानी व्याख्या करते हुए बताया कि किसी मुख्यमंत्री को तभी बर्खास्त किया जाता है जब वह हालात से निबटने में असहयोग कर रहा हो। उन्होंने कहा कि चूंकि मणिपुर के मुख्यमंत्री केंद्र के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं, इसलिए उन्हें बर्खास्त करने का सवाल ही नहीं उठता।

प्रधानमंत्री के लिए शर्मिंदगी वाली दिलचस्प बात यह भी रही कि जब वे अपने भाषण में दावा कर रहे थे कि उन्होंने देश को पहली बार घोटाला और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दी है, उसी समय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और ग्रामीण विकास मंत्रालय के नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम के तहत वृद्धावस्था पेंशन योजना में भारी घोटाला हुआ है। सवाल यही है कि शर्मनिरपेक्षता में गहरी आस्था रखने वाले प्रधानमंत्री या उनकी सरकार को इस पर शर्म कैसे आ सकती है?

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण का पूरा फोकस कांग्रेस, नेहरू, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और विपक्षी गठबंधन पर रखा, जिससे जाहिर हुआ कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती दिखने लगी है। उन्होंने अपने पूरे भाषण में 50 से ज्यादा बार कांग्रेस का, 4 बार नेहरू का और 6 बार इंदिरा गांधी का जिक्र किया। हालांकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी का उन्होंने नाम नहीं लिया लेकिन परोक्ष रूप से दोनों पर खूब निशाना साधा।

नए विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ इन दिनों मोदी के राजनीतिक विमर्श का सबसे प्रिय मुद्दा बना हुआ है। जब से यह गठबंधन अस्तित्व में आया है तब से अब वे इसे कई तरह की हास्यास्पद और आपत्तिजनक उपमाओं से नवाज चुके हैं। वे इंडिया की तुलना भारत को गुलाम बनाने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी और आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन से भी कर चुके हैं। अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह इंडिया नहीं घमंडिया है। विपक्षी गठबंधन को लेकर मोदी की इस तरह की टिप्पणियां बताती हैं कि इस गठबंधन ने उनकी नींद उड़ा दी है।

अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री के पूरे भाषण पर विपक्षी गठबंधन को लेकर उनकी बेचैनी, घबराहट और बौखलाहट हावी रही। उन्होंने अपने लंबे भाषण में विपक्षी दलों और अपने आलोचकों के बनाए इस नैरेटिव को झुठला दिया कि वे संसद में बोलने से डरते हैं। हकीकत भी यही है कि प्रधानमंत्री संसद तो क्या कहीं भी बोलने से नहीं डरते हैं, बल्कि बोलने के मौके ढूंढते हैं। वे डरते हैं तो सिर्फ सच बोलने से।

बोलना उनकी आदतों में शुमार है और संसद तो उनके लिए खेल का पसंदीदा मैदान है। संसद के मंच का उपयोग भी वे अपनी चुनावी रैली के मंच की तरह करते हैं और वहां भी वे मुद्दों से हट कर चुनावी भाषण देते हैं। हां, यह जरूर है कि वे अपनी सरकार की जवाबदेही वाले मुद्दों पर बोलने से बचने में पूरी सावधानी बरतते हैं। ऐसा करना उनकी रणनीति का हिस्सा होता है। रणनीति के तहत ही वे मणिपुर पर बोलने से बचते रहे हैं और बाकी फालतू मुद्दों पर खूब बोले।

प्रधानमंत्री के अलावा उनके मंत्रियों और उनकी पार्टी के सांसदों के भाषणों पर भी पूरी तरह मोदी-प्रभाव छाया हुआ था। सबमें होड़ लगी थी कि कौन कितनी ज्यादा स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल कर सकता है। कुल मिला कर अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री सहित उनके किसी भी मंत्री या सांसद के भाषण में मणिपुर के हालात को लेकर रत्तीभर भी अफसोस या गंभीरता नहीं दिखी। अहंकार में डूबा पूरा सत्तापक्ष अपने नेता के सड़क छाप चुटकुलों, सरकार की उपलब्धियों के झूठे दावों और तीसरी बार सत्ता में लौटने के मुगालते पर मुग्ध नजर आया।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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