आईआईटी खड़गपुर: ज्ञान-विज्ञान नहीं, अब संघ के पोंगापंथ का होगा पाठ

देश की तमाम वैज्ञानिक, तकनीकी संस्थाओं का क्षरण ज़ारी है। IIT खड़गपुर भारतीय इतिहास संबंधी आरएसएस की कपोल कल्पनाओं और हिंदुत्ववादी आकांक्षाओं को पूरा करने का माध्यम बन गया है।

हाल ही में, IIT खड़गपुर ने वर्ष 2022 का कैलेंडर जारी किया है, जिसका शीर्षक है ‘Recovery Of The Foundation of Indian Knowledge Systems (भारतीय ज्ञान प्रणालियों के आधार की प्राप्ति)। यह कैलेंडर आईआईटी के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम्स द्वारा लाया गया। 18 दिसंबर को संस्थान के 67वें दीक्षांत समारोह के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसका अनावरण किया था। लांचिंग के बाद से ही इस कैलेंडर की चौतरफा आलोचना हो रही है।

वहीं कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर आश्चर्य जताया है और कहा कि वे अब भी इस कॉन्टेंट का अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर यह कहां से आया है। होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन के प्रोफेसर अनिकेत सुले ने कहा, ‘क्या जिन लोगों ने कैलेंडर को तैयार किया है, उन्होंने पिछले 50 सालों में भारतीयता पर हुए अध्ययनों को पढ़ा है? आर्यों के आक्रमण का सिद्धांत लंबे समय से मृत है।’

आईआईटी-खड़गपुर में वास्तुकला और क्षेत्रीय योजना विभाग के प्रोफेसर सेन ने सोशल मीडिया पर कैलेंडर की आलोचना को “पुराने तरीकों से वातानुकूलित” लोगों द्वारा किया जा रहा विरोध बताया है। साथ ही उन्होंने कहा है कि कैलेंडर का उद्देश्य “सच्चाई को सामने लाना” था।

क्या है कैलेंडर में

आईआईटी की ओर से 2022 के लिए जारी किए गए कैलेंडर में कुल 12 तथ्यों के साथ इस थ्योरी को गलत साबित किया गया है। इसके कैलेंडर निमाताओं ने कहा कि “कैलेंडर ने ‘वेदों के रहस्य की मान्यता’, ‘सिंधु घाटी सभ्यता की पुनर्व्याख्या’ और ‘आर्यन आक्रमण मिथक का खंडन’ के लिए बारह महीनों के माध्यम से ‘बारह साक्ष्य’ प्रदान किए।”

कैलेंडर में भारतीय सभ्यता के कई पहलुओं के बारे में बताते हुए कहा गया कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो गलत है। यही नहीं आईआईटी के इस कैलेंडर में बताया गया है कि कौटिल्य से पहले भी भारत में अर्थव्यवस्था, कम्युनिटी प्लानिंग, कृषि उत्पादन, खनन और धातुओं, पशुपालन, चिकित्सा, वानिकी आदि पर बात की गई है। कैलेंडर में कहा गया कि ऐसा बताया जाता है कि 300 ईसा पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भारत में इन चीजों का जिक्र किया गया था। लेकिन इससे भी कहीं प्राचीन मनुस्मृति में पहले ही ऐसे तमाम पहलुओं पर बात की गई थी।

कैलेंडर में दावा किया गया है कि आर्य आक्रमण सिद्धांत ने दावा किया कि ये ‘आक्रमणकारी’ आधुनिक भारतीय सभ्यता की जड़ थे ना की हड़प्पा या फिर किसी वैदिक सभ्यता के। इस सिद्धान्त का उपयोग ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन आदि उपनिवेशवादियों द्वारा भारत में अपने शासन को वैध बनाने के लिए किया जाता था। परंतु, राखीगढ़ी परियोजना में मिले 5000 साल पुराने हड़प्पा अवशेषों के डीएनए नमूने जब आधुनिक भारतीयों के डीएनए से ‘मैच’ हो गए तब पश्चिमी इतिहासकारों के झूठ का पर्दाफाश हुआ और उनके कपोलकल्पित आर्य आक्रमण के सिद्धांत को खारिज़ कर दिया गया।

पश्चिम के विद्वानों का जिक्र कर भारत की परंपरा को बताया महान

कैलेंडर में जनवरी से दिसंबर तक के महीनों के साथ ही 12 तथ्य दिए गए हैं। इनके जरिए यह साबित किया गया है कि भारतीय सभ्यता की जड़ें यूरोप से संबंधित नहीं रही हैं। इससे पहले भी कई विद्वानों की ओर से इस थ्योरी पर सवाल खड़े किए जा चुके हैं। अमेरिकी लेखक डॉ. डेविड फ्रॉली ने भी अपनी पुस्तक ‘द मिथ ऑफ आर्यन इन्वेजन इन इंडिया’ में इस थ्योरी को गलत बताया था। यही नहीं बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर भी सभी जातियों को भारतीय मूल का बताते हुए इस थ्योरी को खारिज़ किया था।

इस कैलेंडर में एक तरफ भारतीय ज्ञान परंपरा की ऐतिहासिकता का जिक्र किया गया है तो वहीं ए. एल बाशम, वॉल्टेयर, जेम्स ग्रांट डफ जैसे कई पश्चिमी विद्वानों का भी जिक्र किया गया है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, चिकित्सा पद्धति एवं अन्य चीजों की सराहना की थी। स्कॉटिश मूल के इतिहासकार जेम्स ग्रांट डफ के भी एक उद्धरण को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें वह कहते हैं, ‘आज की दुनिय़ा में विज्ञान की ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिनके बारे में हम मानते हैं कि वे यूरोप में ही बनी हैं, लेकिन ऐसी तमाम चीजों का सदियों पहले ही भारत में आविष्कार हुआ है।’

कैलेंडर में स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद जैसे भारतीय चिंतकों का भी जिक्र किया गया है। विवेकानंद की उस टिप्पणी को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें वह कहते हैं, ‘आप किस वेद और सूक्त में पाते हैं कि आर्यन किसी दूसरे देश से भारत में आए थे? यूरोप में कहा जाता है कि ताक़तवर की जीत होगी और कमज़ोर मारा जाएगा। लेकिन भारत की धमरी पर हर सामाजिक नियम कमज़ोर के संरक्षण की बात करता है।’

कैलेंडर सलाहकार दल के नाम

कैलेंडर के निर्माण लिए अवधारणा और शोध IIT खड़गपुर के ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम्स’ के अध्यक्ष प्रोफेसर जॉय सेन द्वारा किया गया है। सेन IIT खड़गपुर के ‘नेहरू म्यूजियम ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ के चेयरपर्सन भी हैं।

कैलेंडर में सलाहकार टीम के नाम होते हैं जिसने इसके निर्माण का मार्गदर्शन किया। इसमें आईआईटी-के निदेशक वीरेंद्र कुमार तिवारी, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अध्यक्ष अनिल डी सहस्रबुद्धे और वित्त मंत्रालय में प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल शामिल हैं।

गौरतलब है कि तत्कालीन शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 6 नवंबर, 2020 को IIT-K में भारतीय ज्ञान प्रणालियों के लिए केंद्र स्थापित करने की घोषणा की थी। केंद्र की वेबसाइट का कहना है कि यह भारतीय इतिहास पर अंतर-अनुशासनात्मक अनुसंधान के लिए स्थापित किया गया था; उन्नत पुरातात्विक अन्वेषण; भारतीय भाषा प्रणाली, सौंदर्यशास्त्र प्रणाली और ज्यामिति और गणित की प्रणाली; और कल्याणकारी अर्थशास्त्र और योजना की भारतीय प्रणाली, दूसरों के बीच में। प्रोफेसर जॉय सेन वेबसाइट पर एकमात्र संकाय सदस्य के रूप में सूचीबद्ध हैं।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

सुशील मानव
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