प्रशांत भूषण मामले में बीच का रास्ता तलाश रहा है सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय के अवमानना मामले में इतना तो साफ दिख रहा है कि प्रशांत भूषण अपने बयान से पीछे हटने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं और उच्चतम न्यायालय चाहता है कि प्रशांत भूषण अपने बयान पर पुनर्विचार करें और वापस ले लें ताकि सारा प्रकरण गुड़ी-गुड़ी ढंग से रफा-दफा हो जाए। पिछले 14 अगस्त को लग रहा था कि प्रशांत भूषण यदि माफ़ी नहीं मांगते तो उच्चतम न्यायालय उन्हें दंडित करके ही मानेगा लेकिन बाद में 2009 के अवमानना मामले और आज सजा सुनाये जाने के मामले में जिस तरह दोनों पक्षों ने व्यवहार किया है उससे तो यही प्रतीत होता है कि इस हाई प्रोफाइल मामले में बीच का रास्ता तलाशा जा रहा है।

इस बीच, प्रशांत भूषण ने बयान पर विचार करने लिए समय देने के उच्चतम न्यायालय के प्रस्ताव को यह कह कर कि मैंने सोच-समझकर बयान दिया है, ठुकरा दिया है। प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट के पक्ष में दिए गए बयान पर पुनर्विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। भूषण ने कहा कि उन्होंने अच्छी तरह सोच और समझ के अपना बयान दिया है। उन्होंने कहा कि वह अपने बयान पर पुनर्विचार नहीं करना चाहते और उन्हें विचार करने लिए समय देने का कोई उपयोगी उद्देश्य नहीं होगा। उन्होंने कहा कि मैं बयान पर पुनर्विचार नहीं करना चाहता। समय देने के संबंध में, मुझे नहीं लगता कि यह कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा करेगा।

उच्चतम न्यायालय के आपराधिक अवमानना के लिए दोषी ठहराए गये वकील प्रशांत भूषण के मामले में सजा को लेकर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह तुरंत कोई फ़ैसला नहीं देगी। उच्चतम न्यायालय ने 14 अगस्त को भूषण को आपराधिक अवमानना का दोषी पाया था और सजा के लिए 20 अगस्त की तारीख़ निश्चित की थी। गुरूवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस अरूण मिश्रा ने प्रशांत भूषण की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे से कहा कि हम आपको दो-तीन दिन का समय देते हैं। आप सोच लीजिए। हमें तुरंत फ़ैसला नहीं देना चाहिए।’

सुनवाई की शुरुआत के साथ ही प्रशान्त भूषण की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ से आग्रह किया कि आपराधिक अवमानना के मामले में फैसला सुनाने से पहले कोर्ट को 14 अगस्त के आदेश के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का मौका दिया जाए। दवे ने कहा कि दोषी करार दिए जाने के बाद पुनर्विचार याचिका दाखिल करना उनका संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि अगर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने तक सजा की सुनवाई आगे बढ़ा दी जाएगी तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।

इस पर जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि सजा सुना भी देंगे, तो रिव्यू तक फैसला लागू नहीं होगा। अगर हम आपकी बहस से संतुष्ट हो भी जाते हैं तो फिलहाल इतना किया जा सकता है कि सजा पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं होगी हालांकि सुनवाई टालने का हमारा कोई मकसद नहीं है। उन्होंने कहा कि हम सुनवाई करने के लिए दाखिल आपकी अर्जी को सुनने के इच्छुक नहीं हैं, जिसमें कहा गया है कि जब तक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं की जाती है तब तक सजा पर फैसला नहीं किया जाए।

वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि अगर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार होगा तो उसके खुलासे के लिए क्या कदम उठाये जाएंगे? मैं मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे के पहले के सीजेआई पर ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता, अपराध का तरीका और अपराध क्यों और कैसे किया गया, ये अदालत को ज़रूर देखना चाहिए।

धवन ने कहा कि अपराध की प्रकृति और अपराध करने वाले की प्रकृति दोनों देखने की आवश्यकता है और न्यायपालिका के कामकाज को लेकर आम जनता में पहले से चर्चाएं हैं। प्रशांत भूषण का बचाव करते हुए धवन ने कहा, ‘कोर्ट को प्रशांत भूषण के व्यक्तित्व पर भी नजर डालनी चाहिए जो कि उनके कामों को देखते हुए साफ-साफ है। इसी बीच, दुष्यंत दवे और राजीव धवन ने प्रशांत भूषण के द्वारा अदालत में दाखिल किए कई मामलों का उल्लेख किया।

उन्होंने कहा कि कोल स्कैम, उड़ीसा माइनिंग केस, एफसीआरए केस, सीवीसी की नियुक्ति, 2 जी केस, पुलिस में सुधार का मामला, ग्राम न्यायालय केस, बस्तियों के पुनर्वास के मामले, आरटीआई में बदलाव जैसे मामलों में बिना किसी मेहनताने के प्रशांत भूषण पेश होते रहे। धवन ने कोर्ट से कहा कि इन सब मामलों को देखते हुए कोर्ट विचार करे कि प्रशांत भूषण कोर्ट पर हमला कर रहे थे या न्यायिक व्यवस्था में हो रही त्रुटियों पर कोर्ट का ध्यान खींच रहे थे।

धवन ने कहा कि अब तक के महत्वपूर्ण मामलों 2जी, कोल ब्लॉक घोटाला, गोवा माइनिंग, सीवीसी नियुक्ति सभी मामलों में कोर्ट के सामने प्रशांत भूषण ही आए थे। सजा देते समय कोर्ट को प्रशांत भूषण के योगदान को देखना चाहिए।

जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि अच्छे काम करने का स्वागत है। हम आपके अच्छे मामलों को दाखिल करने के प्रयासों की सराहना करते हैं। हम ‘फेयर क्रिटिसिज्म’ के खिलाफ नहीं हैं। संतुलन और संयम बहुत जरूरी है। आप सिस्टम का हिस्सा हैं। बहुत कुछ करने के उत्साह में आपको लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना चाहिए। यदि आप अपनी टिप्पणियों को संतुलित नहीं करते हैं, तो आप संस्था को नष्ट कर देंगे। हम अवमानना के लिए इतनी आसानी से दंड नहीं देते। मैंने अपने पूरे करियर में एक भी व्यक्ति को कोर्ट की अवमानना का दोषी नहीं ठहराया है। हर बात के लिए लक्ष्मण रेखा है, आपको लक्ष्मण रेखा नहीं पार करनी चाहिए।

सुनवाई के बीच, प्रशांत भूषण ने वीडियो कॉफ्रेन्सिंग के माध्यम से कोर्ट से कहा कि मुझे ये जानकर दुख हुआ कि व्यक्तिगत और व्यावसायिक मूल्यों पर” अदालत की गरिमा को बरकरार रखने के प्रयासों के बावजूद, उन्हें अवमानना का दोषी ठहराया गया है और मुझे इस बात का दुख नहीं है कि अवमानना के लिए मुझे सजा दी जा रही है, मुझे दुख इस बात का है कि मेरी बात को सही अर्थों में नहीं समझा गया। प्रशांत भूषण ने कहा कि खुली आलोचना लोकतंत्र और उसकी महत्ता को बनाये रखने के लिए ज़रूरी है, मेरे द्वारा ट्वीट करना सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था को बेहतर बनाने का प्रयास मात्र था।

प्रशांत भूषण ने कहा कि मेरे ट्वीट कुछ भी नहीं थे, बल्‍कि हमारे गणतंत्र के इतिहास के इस मोड़ पर, जिसे मैं अपना सर्वोच्च कर्तव्य मानता हूं, उसे निभाने का एक छोटा सा प्रयास थे। मैंने बिना सोचे-समझे ट्वीट नहीं किया था। यह मेरी ओर से ‌निष्ठा रहित और अवमाननापूर्ण होगा कि मैं उन ट्वीट्स के लिए माफी की पेशकश करूं, जिन्होंने उन्हें व्यक्त किया जिन्हें, मैं अपने वास्तविक विचार मानता रहा हूं, और जो अब भी हैं।

गौरतलब है कि जस्टिस मिश्र दो सितंबर 2020 को रिटायर हो रहे हैं यानी सेवा में उनके पास सिर्फ़ 12 दिन शेष हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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