भारत में दुनिया के कोयले का चौथा सबसे बड़ा रिजर्व, फिर मोदी क्यों कर रहे कोयले का आयात?  

नई दिल्ली। 19 अक्टूबर 2023 को कोयला मंत्रालय ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए सूचित किया है कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान देश में बढ़ती उर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले के आयात बिल पर 3.85 लाख करोड़ रुपये से अधिक का व्यय करना पड़ा था। हालांकि मंत्रालय ने दावा किया है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान कोयले की कुल खपत में आयात का हिस्सा जहां 26% था, अब वह घटकर 21% हो चुका है।

मंत्रालय ने अपनी विज्ञप्ति में स्वीकार किया है कि विश्व में भारत के पास कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है। लेकिन बिजली की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि के मद्देनजर भारत को भारी विदेशी मुद्रा खर्च करके सालाना 200 मिलियन टन (एमटी) से अधिक मात्रा में कोयले का आयात करना पड़ रहा है। मंत्रालय के विचार में आयात पर निर्भरता को कम से कम करने हेतु घरेलू उत्पादन को बढ़ाना युक्तिसंगत है।

कोयला मंत्रालय का लक्ष्य कोयला उत्पादन में वृद्धि कर देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए कोयले की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना है। आयात बिल में सालाना 3.85 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का विवरण लेकिन इसमें नहीं मिलता।

कोयला मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में इस चुनौती से निपटने के लिए देश में मौजूद कोयले के विशाल भंडारों से अधिक से अधिक कोयला खनन का संकल्प अपेक्षित माना गया है। लेकिन साथ ही मंत्रालय वनों की रक्षा के प्रति अपनी वचनबद्धता को दोहराते हुए न्यूनतम वन क्षेत्र को ही डायवर्ट करने की बात कह रहा है और जिन वन क्षेत्र के स्थान पर कोयला खदान स्थापित की जायेगी, उसके बदले दोगुने क्षेत्र में वन रोपण करने का संकल्प दोहराया है।

विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि इसके लिए आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) हासिल करने, कोयला ब्लॉक यदि वन क्षेत्र में है, तो उसके प्रचालन से पहले वन संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अनुमोदन प्राप्त करने की जरूरत एवं पर्यावरण तथा वन मंत्रालय सहित राज्य सरकारों की अनुशंसाओं का पालन करना आवश्यक है।

लेकिन बड़ा सवाल उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर कोयले के आयात को बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? मोदी सरकार के 2014 में केंद्र की सरकार संभालने के बाद से ही अक्षय ऊर्जा, हरित ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सोलर एनर्जी को लेकर लंबे-चौड़े दावे किये गये थे।

हकीकत यह है कि 2018-19 के दौरान देश में बड़ी संख्या में कोयले पर आधारित थर्मल पॉवर प्लांट बनकर तैयार हो चुके थे, और ठीक उसी दौर में नोटबंदी और जीएसटी की शुरुआत के चलते बड़े पैमाने पर एमएसएमई उद्योग-धंधे ठप पड़ने की स्थिति में देश में जरूरत से अधिक बिजली का उत्पादन होना शुरू हो गया था। तब कई आर्थिक विशेषज्ञों ने अपने आकलन में कहा था कि 2021 तक भारत में और अधिक बिजली की जरूरत नहीं पड़ने वाली है।

2020 में वैश्विक कोविड-19 महामारी का शिकार भारत भी सबसे कड़े लॉकडाउन के बीच लगभग पूरी तरह से ठप हो चुका था। अगले दो वर्ष बिजली खपत कैसे हो इसकी चिंता बिजली घरों और वितरण नेटवर्क को करनी पड़ रही थी। लेकिन जैसे ही महामारी का प्रकोप खत्म हुआ और लॉकडाउन से उबरते भारत ने गति पकड़ी, 2022-23 एवं मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान देश में बिजली संकट, कोयला संकट छाया हुआ है।

पिछले वर्ष तो मंत्रालय ने यह दुहाई दी कि असमय बरसात एवं रेल मालगाड़ी सप्लाई चेन डिसरप्शन के चलते कोल इंडिया के पास पर्याप्त कोयला होने के बावजूद बिजली घरों तक आपूर्ति के लिए पर्याप्त प्रबंध नहीं हो सका। अगले वर्ष देश को ऐसी कोई शिकायत नहीं होने दी जायेगी, यह बात खुद कोयला मंत्री आरके सिंह ने अपने सार्वजनिक बयान में दावा करते हुए कही थी।

एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में तत्कालीन बिजली मंत्री आर के सिंह ने बिजली घरों में मात्र 4 दिन के कोयले का स्टॉक होने पर राशनिंग की आशंका पर जवाब देते हुए 5 अक्टूबर 2021 को कहा था, “बेशक एक समस्या यह थी कि हमारे कोयला वाले क्षेत्रों में बारिश हुई थी। कल भी झारखंड, छत्तीसगढ़ वगैरह के कुछ हिस्सों में बारिश हुई थी। कोयले की निकासी भी प्रभावित हुई है। लेकिन हम इसे संभाल रहे हैं और स्थिति काबू में है। हम जो भी मांग है उसे पूरा करने की स्थिति में हैं। कोयले के डिस्पैच में भी वृद्धि हुई है। कल डिस्पैच 268 रेक था। जो पिछले दिन से 16 रेक की वृद्धि है। अब जबकि बारिश कम हो गई है, अब डिस्पैच होगा और अधिक आपूर्ति होगी।”

लेकिन कोलमिंट नामक वेबसाइट की खबर को देखने पर स्पष्ट होता है कि वित्त वर्ष 2018 से लेकर 2023 के दौरान भारत में कोयले के उत्पादन में वर्ष 20-21 को छोड़ दें तो लगातार वृद्धि हुई है। 17-18 में देश में कोयला उत्पादन 67.5 करोड़ टन था, जो 22-23 में बढ़कर 89.2 करोड़ टन हो चुका है।

लेकिन देश में कोयले के आयात में तेजी से बढ़ोतरी बेहद चिंताजनक ट्रेंड को दर्शाती है। वर्ष 2021-22 के दौरान 20.2 करोड़ टन कोयले के आयात की तुलना में 2022-23 में 18% बढ़ोतरी के साथ 23.7 करोड़ टन कोयले का आयात देश में किया गया।

ये सब तब हो रहा था जब वित्त वर्ष 22-23 में देश में कोयले के उत्पादन में ऐतिहासिक वृद्धि देखने को मिली थी। वित्त वर्ष 21-22 में 77.7 करोड़ टन कोयले के उत्पादन की तुलना में 22-23 में 15% अधिक उत्पादन के साथ 89.22 करोड़ टन उत्पादन हुआ था।

कोलमिंट ने अपने विश्लेषण में लिखा है कि इस आयात में नॉन-कोकिंग कोल या थर्मल कोल का हिस्सा 16.6 करोड़ टन (70%) था। बिजली की मांग को पूरा करने हेतु सरकारी निर्देशों और बिजली घरों की मांग के चलते थर्मल कोल के आयात 23% कि वृद्धि हुई।

कोलमिंट के अनुसार, “देश में पर्याप्त बिजली की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए, सरकार द्वारा आयात का आदेश दिया गया। बिजली मंत्रालय (एमओपी) ने बिजली संयंत्रों को सितंबर 2023 तक ताप-विद्युत ग्रहों को आयातित कोयले के साथ ब्लेंडिंग करने के लिए कुल वजन में 6% आयातित कोयला मिक्स करने का निर्देश दिया था। पिछले साल भी इसी तरह का आदेश जारी किया गया था। तब आयातित कोयले के सम्मिश्रण का अनुपात 10% रखा गया था।

परिणामस्वरूप, भारत के राज्य के स्वामित्व वाले बिजली उत्पादकों के साथ-साथ प्रमुख आयातकों द्वारा जून-जुलाई 2022 तक कोयले का जमकर आयात किया गया, जिसमें सितंबर के बाद से शिपमेंट में गिरावट आई क्योंकि तबतक देश में बिजली की मांग घट गई थी।

इस साल भी सरकार ने आयातित कोयला आधारित (आईसीबी) बिजली संयंत्रों को पूरी क्षमता से परिचालन जारी रखने को कहा है। इसके अलावा, अप्रैल-मई के लिए आईसीबी संयंत्रों से बिजली खरीदने के लिए एक निविदा जारी की गई है, जब बिजली की उपलब्धता मांग से कम होने की उम्मीद है। भारत द्वारा सबसे अधिक कोयले का आयात इंडोनेशिया से किया जाता है। इंडोनेशिया से 11.2 करोड़ टन कोयले का आयात किया गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 55% अधिक था। इंडोनेशिया के अलावा भारत रूस और ऑस्ट्रेलिया से भी बड़ी मात्रा में कोयले का आयात करता है।

कोयले के आयात को लेकर वर्ल्ड कोल की 12 मई 2015 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारत में कोयले के आयात के लगातार बढ़ने के पीछे एक बड़ा तर्क यह दिया गया था कि कोल इंडिया से कोयला खरीदने की तुलना में उस दौरान देश के कई बिजली संयंत्रों को आयातित कोयला कहीं ज्यादा सस्ता पड़ रहा था।

इस बारे में रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि, कोयले की अंतर्राष्ट्रीय कीमत पिछले कई वर्षों के दौरान काफी कम हो गई है और शिपिंग का भाड़ा भी कम हो गया है। आयातित उच्च-ऊर्जा वाले कोयले को अब बड़ी संख्या में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिए कोल इंडिया की तुलना में कम लागत में उपलब्धता बनी हुई है। आयातित कोयले की लागत में जहां कमी आई है, वहीं घरेलू कोयले की कीमत में वृद्धि देखने को मिल रही है।

नतीजतन कई भारतीय बिजली कंपनियां आयातित कोयले की खरीद को बढ़ा रही हैं। इतना ही नहीं, एनटीपीसी जो कि भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन करने वाली सार्वजनिक निगम है, के द्वारा भी कथित तौर पर आयातित उच्च-ऊर्जा कोयले में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर विचार चल रहा है।

लेकिन जो बात वर्ष 2015 के लिए सही थी, 2020 तक आते-आते हालात पूरी तरह से उलट चुके थे। 12 दिसंबर 2022 के द इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2022-23 के सितंबर माह तक आयातित कोयले की औसत कीमत 19,324.79 रुपये प्रति टन थी, जबकि इसी अवधि में घरेलू कोयले की (एक्स-कोलरी) औसत अधिसूचित कीमत 2,662.97 रुपये प्रति टन थी।

आयातित कोयले के लिए 725% ज्यादा दाम?

जी, हां! यही हकीकत है, जिसे देखने के बावजूद देश का मीडिया, आर्थिक विशेषज्ञ और यहां तक कि विपक्षी पार्टियों ने चुप्पी साध रखी है। कोयले के आयात को 9 वर्ष पहले सस्ता समझकर बढ़ावा दिया जा रहा था, हालांकि तब भी देश में बड़ी मेहनत से अर्जित विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर की निकासी होती थी। लेकिन आज तो विदेश से कोयले की खरीद करने पर सस्ता मिलने के बजाय 7-8 गुना महंगा मिल रहा है। ऊपर से केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को हिदायत दी जाती है कि कोयला का आयात करो, इतना मिक्स करो।

कोविड-19 महामारी काल में जब देश के लोगों के लिए रेल परिवहन को ठप कर दिया गया था, तब मालगाड़ियों को अवरुद्ध करने की क्या जरूत थी? आखिर कोरोना कोयले से नहीं सिर्फ इंसान के संपर्क में आने से फ़ैल रहा था? इस लापरवाही या जानबूझकर की गई गलती का भुगतान देश की आम जनता को भुगतना पड़ा। लेकिन बात यहीं तक खत्म हो जाती तब भी गनीमत थी। वित्त वर्ष 2022-23 और 2023-24 में भी इसी कहानी को दोहराया गया है।

23 अप्रैल 2022 को कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने ट्वीट करते हुए दावा किया था कि “अभी तक 72.5 मिलियन टन कोयले का स्टॉक @CoalIndiaHQ, एससीसीएल, वाशरी इत्यादि विभिन्न स्रोतों पर उपलब्ध है, और थर्मल पॉवर प्लांट (टीपीपी) के पास भी 22.01 मिलयन टन कोयले की उपलब्धता बनी हुई है। देश में एक महीने से अधिक समय तक चलने के लिए कोयले की पर्याप्त उपलब्धता है, जिसकी रिकॉर्ड उत्पादन के साथ प्रतिदिन आपूर्ति पूरी की जा रही है।”

इस वर्ष 6 जून को एक बार फिर से केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री प्रहलाद जोशी ने खनन पर आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए दावा किया कि इस साल भारत को मानसून के दौरान किसी तरह के कोयला संकट से नहीं जूझना पड़ेगा। कोयले की मांग कैसी भी हो, सरकार उसको पूरा करने के लिए तैयार है।

उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था, “मैं कोल इंडिया और कोयला मंत्रालय की ओर से देश को भरोसा दिलाता हूं कि इस साल मानसून के समय भी किसी तरह का कोयला संकट पैदा नहीं होगा। तैयारियां अच्छी हैं और साल के दौरान मांग को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है”। एक न्यूज एजेंसी के साथ बातचीत में जोशी ने जानकारी दी थी कि सभी तापीय बिजली संयंत्रों के पास 3.5 करोड़ टन कोयला है, जबकि कोल इंडिया की खानों के पास 6.5 करोड़ टन कोयला पड़ा हुआ है। इसके अलावा निजी खनन कंपनियों के पास एक से 1.2 करोड़ टन कोयला है जो ढुलाई के चरणों में है।

वर्ष 2022 और 2023 में बिजली संकट, कोयला संकट और कोयले के आयात की कहानी ऊपर बताई जा चुकी है। यहां तक कि जुलाई 2022 में ताप विद्युत् संयंत्रों के कर्मचारियों द्वारा पीएम मोदी को पत्र लिखकर बिजली मंत्रालय के कोयले के आयात में तेजी लाने के निर्देश को वापस लेने का आग्रह करना पड़ा था।

मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान भारत में कोयले के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि जारी है। कोल इंडिया लिमिटेड की 2 अक्टूबर को जारी प्रेस विज्ञप्ति से पता चलता है कि पिछले वर्ष की तुलना में 11.3% की बढ़ोतरी के साथ कोल इंडिया लिमिटेड ने 33.3 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया है। 2022-23 की तुलना में इसी अवधि के दौरान यह तकरीबन 3.4 करोड़ टन अधिक उत्पादन है।

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि भारत में कोयले का भंडार इतना है कि घरेलू जरूरतों के साथ-साथ देश कोयले का निर्यात भी कर सकता है। लेकिन कोयले के उत्पादन की बजाय देश को तेजी से अक्षय उर्जा स्रोतों पर पूरा ध्यान देना चाहिए। लेकिन हर साल सप्लाई चेन में बाधा का हवाला देकर जमकर कोयले के आयात का रास्ता खोलकर देश को विश्वगुरु, आत्मनिर्भर बनाने की यह राह गुमराह करती नजर आती है।

(रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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