चीन की लगातार चुनौती पर भारत सरकार की शर्मनाक चुप्पी

लद्दाख में घुसपैठ कर कई चोटियों पर कब्जा कर लेने के बाद चीन के हौसले बुलंदी पर हैं। अब वह अरुणाचल प्रदेश में अपनी कारस्तानी से भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है। वह पहले से कहता रहा है कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत है, जिसका चीनी नाम जंगनान है, लेकिन अब उसने एक कदम आगे बढ़ कर इस प्रदेश में कई जगहों के नाम बदलने शुरू कर दिए हैं। हाल ही में उसने जिन 15 जगहों के नाम बदले हैं उनमें आठ रिहायशी इलाके, चार पहाड़, दो नदियां हैं और एक पहाड़ी दर्रा है। उसने इन स्थानों की अक्षांश और देशांतर रेखाओं के आधार पर पहचान बताते हुए तिब्बती और रोमन वर्णमाला के हिसाब से नए नाम दिए हैं।

भारत में शहरों, जिलों, सड़कों, गलियों, चौक-चौराहों, स्टेडियमों और रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने को ही विकास मानने वाली सरकार चीन की इस कारगुजारी पर शर्मनाक चुप्पी साधे बैठी है। उसकी ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आया है, जिसमें चीन को उसकी इस हरकत के लिए सबक सिखा देने की चेतावनी दी गई हो। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने सिर्फ इतना कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा, गढ़े गए नामों से कुछ नहीं होगा।

भारत सरकार का यह दोहराना तो वाजिब है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और आगे भी रहेगा, लेकिन इतना कहने भर से बात खत्म नहीं हो जाती। क्योंकि चीन ने भारतीय भू भाग को अपना बताने संबंधी कोई बयान नहीं दिया है, जिसके जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान दे देने से काम चल जाएगा।

यह चीन का एक निर्णायक कदम है, जिसका भारत सरकार के शीर्ष स्तर से प्रतिकार किया जाना चाहिए। भारत ने 2017 में भी ऐसा नहीं किया था, इसलिए चीन की हिम्मत बढ़ी। अगर अब भी कुछ नहीं किया गया तो चीन ने जिन जगहों के नाम बदले हैं, उन पर वह अपना दावा मजबूत करेगा। भारत को तत्काल चीन के राजदूत को बुला कर सख्त शब्दों में चेतावनी देना चाहिए। कायदे से तो कूटनीतिक और कारोबारी संबंध खत्म होने चाहिए लेकिन भारत कारोबारी संबंध खत्म नहीं कर सकता है, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक चीन पर निर्भर है।

चीन की ताजा हरकत पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान इसलिए भी नाकाफी है, क्योंकि इस बयान के तुरंत बाद चीन के सरकार समर्थक अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने चीनी विदेश मंत्रालय के एक पुराने दस्तावेज को प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया था कि चीन ने कभी ‘तथाकथित’ अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी। बहरहाल, इस गरमाए माहौल के बीच यह खबर भी आई कि नए साल के मौके पर लद्दाख क्षेत्र में दस जगहों पर भारतीय और चीनी सैनिकों ने मिठाइयों का आदान-प्रदान किया। जिन दस जगहों के नाम आए, उनमें बोटलनेक भी है। सुरक्षा विशेषज्ञों को इस नाम ने चौंकाया है। उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या यह भारत सरकार की पहली स्वीकृति है कि देपसांग इलाके में इस जगह तक चीनी घुस आए हैं?

वैसे लद्दाख के बारे में भारत सरकार का आधिकारिक रुख अब तक यही है कि ”न कोई घुसा था, न कोई घुसा हुआ है और न ही किसी ने किसी भारतीय चौकी पर कब्जा जमा रखा है।’’ यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल जून महीने में सर्वदलीय बैठक में तब कही थी, जब गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। हालांकि अनेक भारतीय विशेषज्ञ प्रधानमंत्री मोदी की इस बात से आज भी सहमत नहीं हैं।

कई रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि लद्दाख क्षेत्र मे अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद अब चीन पूरब में अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर दबाव बढ़ा रहा है। ऐसा करने के पीछे उसकी मंशा क्या है, यह उसने नहीं बताया है, लेकिन जो संकेत हैं, वे भारत के लिए अच्छे नहीं हैं। इसी सिलसिले में चीन ने अरुणाचल प्रदेश में 15 और जगहों के चीनी भाषी नाम रखने का ऐलान किया। गौरतलब है कि चीन का पुराना दावा है कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत का एक हिस्सा है और इस तरह उसका अंग है।

सवाल यह है कि क्या अब चीन अपने इस दावे को जमीनी हकीकत में बदलने की मंशा रख रहा है? भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह पहली बार नहीं हुआ है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों के नाम बदलने की कोशिश की है। लेकिन इससे ये बात हलकी नहीं हो जाती। बल्कि उसके ताजा प्रयास को पिछले कुछ सालों के घटनाक्रमों से जोड़ कर देखा जाना चाहिए, जो कि भारत सरकार नहीं देख रही है।

चीन की हिमाकत इस कदर बढ़ती जा रही है कि पिछले दिनों भारतीय सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बती नेताओं से मुलाकात की तो चीनी दूतावास के एक अधिकारी ने सीधे सांसदों को पत्र लिख कर इस पर ऐतराज जताया। गौरतलब है कि तिब्बत की निर्वासित सरकार के एक पदाधिकारी की ओर से पिछले दिनों रात्रि भोज का आयोजन हुआ था, जिसमें केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर सहित कई दलों के सांसद शामिल हुए थे।

सवाल है कि भारत के सांसद किससे मिलते हैं और किसके साथ खाना खाते हैं, इससे किसी देश के दूतावास का कोई लेना-देना क्यों होना चाहिए? भोज में शामिल कई सांसदों ने तो चीनी दूतावास के पोलिटिकल काउंसलर के पत्र पर ऐतराज जताया है लेकिन केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर इस मामले में अभी तक चुप्पी साधे हुए हैं। कायदे से तो भारत सरकार को तत्काल इस पर सख्त विरोध जताते हुए चीनी राजदूत को तलब कर उसे सख्त हिदायत देनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। भारत सरकार के इसी ठंडे रवैये का फायदा उठाते हुए चीन लगातार नई-नई हिमाकत करता जा रहा है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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