किसानों के प्रदर्शन के दिन भी हरियाणा सरकार के लिए उनके जलते सवाल नहीं लव जिहाद है प्राथमिक

यूपी, एमपी के बाद अब हरियाणा ने भी लव जिहाद पर कानून बनाने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है। किसानों पर लाठियों और ठंडे पानी की बौछार कराने वाले हरियाणा प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने आज गुरुवार को सुबह उठकर जो पहली घोषणा की वो लव जिहाद पर कानून बनाने की थी। उन्होंने कहा कि राज्य के गृह सचिव टी.एल. सत्य प्रकाश, एडीजीपी नवदीप विर्क और अतिरिक्त महाधिवक्ता दीपक मनचंदा की कमेटी अन्य राज्यों में लव जिहाद पर बने कानूनों का अध्ययन कर हरियाणा के लिए बनने वाले लव जिहाद कानून को ड्राफ्ट करेगी। यूपी ने कल ही लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की घोषणा की, जिसमें दस साल की सजा का प्रावधान है। पहले यूपी और अब हरियाणा में बनाये जा रहे इस कानून से सिर्फ हिन्दू कट्टरपंथी ही नहीं, बल्कि मुस्लिम कट्टरपंथी भी बहुत खुश हैं। …चौंक गये न। मैं आपको बताता हूं।

आप कल्पना कीजिए कि आप किन सत्ताधीशों के युग में रह रहे हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान 25 और 26 नवम्बर को दिल्ली कूच करने के लिए जैसे ही रवाना हुए, उन्हें हरियाणा में जगह-जगह रोककर गिरफ्तार किया गया, पीटा गया। हरियाणा के कर्मचारियों के संगठन सर्वकर्मचारी संघ और राज्य की ट्रेड यूनियनों ने आज हड़ताल का आह्वान किया है, उन पर अंकुश के लिए हर जिले में धारा 144 लागू कर दी गई है। इन विपरीत हालात के बावजूद अगर हरियाणा का गृह मंत्री और मुख्यमंत्री सिर्फ लव जिहाद पर बात कर रहा है तो सोचकर देखिए कि बतौर राजनीतिक दल और बतौर सरकार चलाने वाली पार्टी भाजपा की प्राथमिकताएं क्या हैं। उसमें आपकी प्राथमिकताएं कहां मायने रखती हैं।

जब मैं अनिल विज का लव जिहाद पर ट्वीट पढ़ रहा था तो उसके नीचे कुछ लोगों की प्रतिक्रिया देखीं। अधिकांश लोग हरियाणा में प्राइवेट स्कूलों की फीस, मेडिकल कॉलेजों में बेतहाशा फीस बढ़ोतरी और अपनी स्थानीय समस्याओं पर अनिल विज से सवाल करते दिखे। लेकिन किसी के भी सवाल या समस्या पर अनिल विज ने जवाब नहीं दिया। यूपी या हरियाणा या अनिल विज का यह बर्ताव एक सोची समझी साजिश की ओर इशारा करता है। इस पार्टी ने ऐसे ही उलू-जुलूल मकसदों को पूरा करने के लिए सत्ता हथियाई है, जिसमें आम लोगों के सरोकारों से उसे कोई मतलब नहीं है। उसे आरएसएस ने जो लक्ष्य दिए हैं, उसे उसकी तरफ बढ़ते जाना है। जिन लोगों ने किसानों पर पड़ती लाठियों और ठंडे पानी के बौछारों के फोटो या वीडियो देखे होंगे, वो जरा यथार्थवादी बनकर सत्ताधीशों के इस कुकृत्य या साजिश पर विचार करें कि जब बच्चे को भूख लगी हो तो आप उसे खाना देंगे या खिलौने देंगे।

दोनों तरफ के कट्टरपंथी खुश

बहरहाल, असल मुद्दे पर आते हैं। अदालतें बार-बार इस तथ्य को रेखांकित कर रही हैं कि अगर कोई लड़का-लड़की बालिग हैं तो वे आपसी रजामंदी से विवाह कर सकते हैं। इसमें कोई कानून कैसे आ सकता है। लेकिन भाजपा और उसे संचालित करने वाले आरएसएस को लगता है कि लव जिहाद पर कानून बनाने से भारत के उन अल्पसंख्यकों और खासकर मुसलमानों पर अंकुश लगाया जा सकेगा, जो हिन्दू लड़कियों से शादी करके उनका धर्म परिवर्तन कर देते हैं। लव जिहाद पर कानून बनने से हिन्दू धर्म से खतरा टल जाएगा। दूसरी तरफ कट्टरपंथी मौलवी क्या सोच रहा है…वह भी बहुत खुश है। वह मौलवी इस बात से परेशान था कि हमारे लड़के गैर कौम, नास्तिकों, काफिरों, मुनाफिकों की लड़कियों से शादी कर रहे हैं, इससे इस्लाम खतरे में आ गया है।

इस कानून के बाद वो हिन्दू लड़कियों से शादी नहीं करेंगे और हमारी नस्ल में गैर कौम का खून आना बंद हो जाएगा और इस्लाम पर से खतरा टल जाएगा। वैसे ही अकबर और कई अन्य मुगल बादशाह राजपूत महिलाओं से शादी कर अपनी नस्लें बिगाड़कर चले गये हैं। पठानी खून में राजपूतों के खून का मिक्स वैसे ही बहुत सारे मामले खराब कर गया है। कम से कम अब कोई मुख्तार अब्बास नकवी या शाहनवाज हुसैन या आडवाणी का खानदान ऐसी गुस्ताखी नहीं कर पायेगा।  …तो दरअसल लव जिहाद से आरएसएस और भाजपा न सिर्फ हिन्दू धर्म को बचा रहे हैं, बल्कि इस्लाम को भी बचा रहे हैं। हालांकि यह एक तन्ज है, लेकिन आप गहराई से सोचकर देखें तो इस कानून से दोनों तरफ के कट्टरपंथी अपने-अपने मकसद को पूरा करने के लिए खुश हैं।   

निजी बातचीत में मुझसे कई मुस्लिम उलेमा ने कहा कि लव जिहाद हिन्दुओं के काम का हो न हो, हमारे काम का जरूर है। हमारे मुआशिरे (समाज) में हो रही गन्दगी इससे रुक जाएगी। हमारे बच्चों को हिन्दू लड़कियों या गैर मुस्लिम लड़कियों से शादी करने की जरूरत ही क्या है। वो अपने धर्म में रहें, हम अपने धर्म में रहें। हमारे यहां लड़कियों की कमी है जो हम गैर इस्लामी लड़कियों की तरफ देखें।

लेकिन आरएसएस और भाजपा ऐसा नहीं सोच रहे हैं। वे जानते हैं कि दो प्यार करने वाले सारी सरहदों, बेड़ियों को पार करके विवाह करते हैं। कोई कानून या कोई सत्ता उनका रास्ता कभी नहीं रोक पाई है। पता नहीं लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद, सोनी-महिवाल, वीर-जारा की कहानियां कितनी सच्ची हैं लेकिन ये कहानियां बताती हैं कि प्यार का मुकाम किसी समाज, धर्म और देश से ऊपर उठकर है। 

कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना

आज संविधान दिवस भी है। हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज की घोषणा अगर संविधान के दायरे में रखकर देखें तो समझ में आ जायेगा कि संविधान को लगातार तार-तार कर रही भाजपा ने आज खास संविधान दिवस पर ऐसी घोषणा करके संविधान का मुंह चिढ़ाया है। दरअसल, देश की सोच को लकवा मार गया है। देश के लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि ऐसे कानूनों की आड़ में संविधान को रौंदा जा रहा है। संविधान ने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने की बात कही। दलित लड़की से विवाह पर राज्य आर्थिक मदद करता है। होना तो यह चाहिए था कि भाजपा और आरएसएस ऐसे विवाहों को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाते, आर्थिक सहायता बढ़ाते लेकिन वे ऐसे ही विवाहों को रोकने के लिए लव जिहाद ले आये। भाजपा-आरएसएस दरअसल इस कानून के जरिए एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं।

एक तरफ तो वो अपने उन कट्टर हिन्दू मतदाताओं की भूख को शांत करने की कोशिश कर रहे जो तीस करोड़ मुसलमानों पर हर तरह का अंकुश देखना चाहते हैं। ये तीस करोड़ मुसलमान पाकिस्तान तो जाने से रहे, इसलिए उन पर अंकुश लगाकर सिर्फ भाजपा ही उन्हें रख सकती है। दूसरी तरफ आरएसएस-भाजपा की नजर उन हिन्दुओं पर भी है जो दलित लड़कियों से विवाह कर रहे हैं या दलित लड़कियां कथित उच्च जातियों से विवाह करके मनु महाराज का फलसफा या सिस्टम बिगाड़ रही हैं। संस्कारी पार्टी के रूप में कुख्यात भाजपा-आरएसएस दरअसल पूरे भारत को सनातनी सिस्टम से चलाना चाहते हैं, जिसमें दो युवकों के प्यार-मोहब्बत के लिए कोई जगह नहीं है।

भाजपा-आरएसएस इस बात को भूल रहे हैं कि पेट की भूख से बढ़कर ये लव जिहाद कानून, गोरक्षा कानून, तीन तलाक कानून नहीं हैं। हरियाणा और यूपी में जिन अभिभावकों के सामने आनलाइन क्लास के दौरान भी महंगी फीस का मसला है, बेरोजगारी का मसला है, वे एक दिन ऐसे कानून को कूड़ेदान में फेंककर सड़क पर आ जायेंगे। किसान आ ही चुके हैं। कट्टरपंथियों के चरमोत्कर्ष के दौर में भी जनता ने उन खुदाओं (Gods) के खिलाफ भी विद्रोह किया है जिन्हें अपने खुदा (God) होने का भ्रम था। देर-सवेर वह जागेगी।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

यूसुफ किरमानी
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