कोरोना संकट: भारत के विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों की मोदी को सलाह

नई दिल्ली। एनडीटीवी के प्रणय रॉय के साथ 1 घंटे से अधिक समय की बातचीत में भारत के विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों एवं नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी, अमर्त्य सेन, पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन और कौशिक बसु आदि ने कोरोना संकट के चलते देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को रेखांकित किया और उनके समाधान के ठोस उपाय बताए।

तात्कालिक चुनौतियाँ-   

1.  लॉक डॉउन के चलते गंभीर आर्थिक संकट के शिकार करीब 80 करोड़ लोगों की सहायता करना।

2.  कोरोना से पहली पंक्ति में खड़े होकर लड़ रहे चिकित्सा कर्मियों को आवश्यक सुरक्षा उपकरण एवं साधन उपलब्ध कराना और चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत एवं विस्तारित करना।

3. अधिक से अधिक लोगों की  पूरी तरह से नि:शुल्क कोरोना टेस्ट कराना।

इसके लिए इन्होंने निम्न सुझाव दिए –

असंगठित क्षेत्र के कामगारों और किसानों की मदद के लिए सुझाव

1. राशन कार्ड है या नहीं, बिना इसकी परवाह किए, सबके लिए नि:शुल्क राशन उपलब्ध कराना। इन अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि भारत के खाद्य निगम के पास इसके लिए पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध है। इस समय कुल 60 लाख टन यानी 60 करोड़ कुंतल खाद्यान्न उपलब्ध है। जो आवश्यक भंडार से भी 20 करोड़ कुंतल अधिक है। इसका इस्तेमाल तुरंत सबको राशन देने के लिए किया जाना चाहिए। इन लोगों ने यह भी कहा कि इस समय इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए कि किसी तुलनात्मक तौर पर बेहतर आर्थिक स्थिति वाले परिवार को राशन मिल गया।

2. इन अर्थशास्त्रियों ने एक स्वर में कहा कि असंगठित क्षेत्र के सभी कामगारों के खाते में तुरंत पैसा डालना जरूरी है। यहां याद रखना जरूरी है कि भारत के 80 प्रतिशत से अधिक कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इसमें स्वरोजगार करने वाले भी शामिल हैं। इन सभी लोगों का एक स्वर में कहना था कि जिस तरह से भी हो सके, इन सभी लोगों को नगदी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। भले ही इस समय ये किसी कल्याणकारी योजना का फायदा उठा रहे हों या नहीं।

3. किसानों की रबी की फसल तैयार हो गई है और कटने भी लगी है, सरकार द्वारा इसकी तुरंत खरीदारी शुरू करनी चाहिए।

 चिकित्सा कर्मियों और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सुझाव

इन सभी अर्थशास्त्रियों और पैनल में शामिल विश्व प्रसिद्ध डॉक्टरों ने एक स्वर से कहा कि चिकित्सा कर्मियों के लिए सुरक्षा किट्स और अन्य साधन तुरंत मुहैया कराना जरूरी है, क्योंकि इनके बड़ी संख्या में कोरोना का शिकार होने पर पूरी चिकित्सा व्यवस्था भरभरा कर गिर जाएगी।

चिकित्सा सुविधाओं में तत्काल विस्तार के लिए इन अर्थशास्त्रियों ने जोर दिया। अमर्त्य सेन ने कहा कि वर्षों से भारत की सरकारों ने स्वास्थ्य और शिक्षा की उपेक्षा की है। समय आ गया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा पर खर्चा बढ़ाया जाए।

कोरोना के टेस्ट के लिए सुझाव-

सभी अर्थाशास्त्रियों और डॉक्टरों का एक स्वर से कहना था कि अधिक से अधिक लोगों की कोरोना-जांच की व्यवस्था होनी चाहिए। यही इस महामारी से निपटने का स्थायी समाधान है, जब तक वैक्सीन विकसित नहीं हो जाता और सबके लिए उपलब्ध नहीं हो जाता।

 कोराना से पैदा हुए संकट से निपटने के लिए तत्काल कितने धन की जरूरत है-

करीब-करीब सभी अर्थशास्त्री इस बात से सहमत थे कि अभी केंद्र सरकार ने जो 1 लाख 70 हजार करोड़ का राहत पैकेज घोषित किया है, वह बहुत ही कम है। इन सभी लोगों ने कहा कि कम से कम 7 लाख करोड़ की कोरोना संकट से निपटने के लिए लिए आवश्यकता है।

इन अर्थशास्त्रियों ने कहा कि ये 7 लाख करोड़ रुपया भारत की जीडीपी का करीब 4 प्रतिशत होगा। अमेरिका ने अपनी जीडीपी का 10 प्रतिशत (2.2 ट्रिलियन डालर) खर्च करने की घोषणा की है। कई सारे देश 5 से 10 प्रतिशत के बीच खर्च कर रहे हैं।

भारत सरकार ने जो 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है, वह भारत की सकल जीडीपी का सिर्फ 1 प्रतिशत है। कम से कम 4-5 प्रतिशत तो खर्च करना ही चाहिए।

इन सभी अर्थशास्त्रियों ने एक स्वर से यह भी कहा कि इस समय वित्तीय घाटा की चिंता करने की जरूरत नहीं है।

सभी का जोर था कि हमें एक साथ दो मोर्चों पर संघर्ष करना है। एक तरफ कोरोना महामारी से संघर्ष करना है, तो दूसरी तरफ आर्थिक गतिविधियों के ठप्प पड़ने से सर्वाधिक शिकार मजदूरों-किसानों और छोटे-मोटे स्वरोजगार पर जिंदा रहने वाले लोगों को बचाना भी है। इसके लिए भारत की जीडीपी का कम से कम 4-5 प्रतिशत तुरंत खर्च करने की सरकार को घोषणा करनी चाहिए।

इन सभी अर्थशास्त्रियों ने यह भी कहा कि इस केंद्र सरकार को राज्यों की आर्थिक मदद करने के साथ उनके उधार लेने की सीमा को भी बढ़ाना चाहिए। अधिकांश राज्य संसाधनों की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं और उनके पास संसाधन बढ़ाने का कोई उपाय और अधिकार भी नहीं है। यह कार्य केवल केंद्र सरकार कर सकती है।

प्रश्न यह उठता है कि आखिर भारत सरकार भारत के 80 करोड़ लोगों को राहत पहुंचाने, चिकित्सा कर्मियों को सुरक्षा किट्स उपलब्ध कराने और अधिकतम लोगों का कोरोना टेस्ट कराने जैसे कामों के लिए जीडीपी का 4 से 5 प्रतिशत खर्च करने की घोषणा क्यों नहीं कर रही है?

(लेखक डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

                                                                                                   ( संपादन- इमामुद्दीन)

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