ट्रेन हादसों की बढ़ती संख्या की वजह लापरवाही या निजीकरण?

नई दिल्ली। पिछले दो दिनों में एक के बाद एक ट्रेन में आग लगने की घटनाएं हुई हैं। ये दोनों ही ट्रेनें दिल्ली से बिहार जा रही थीं। 15 नवम्बर, 2023 को नई दिल्ली-दरभंगा सुपरफास्ट एक्सप्रेस में उत्तर-प्रदेश के इटावा के पास एक बोगी में आग लग गई। जब यह ट्रेन सराय भूपत स्टेशन से गुजर रही थी तब वहां के स्टेशन मास्टर ने एक स्लीपर कोच में धुंआ उठते हुए देखा। स्टेशन मास्टर ने तुरंत ही गाड़ी रोककर इसकी सूचना ट्रेन ड्राइवर और गार्ड को दी। स्लीपर कोच खाली करा लिया गया। एक बड़ा हादसा टल गया।

लेकिन ट्रेन के उस कोच के साथ तीन अन्य कोच आग से प्रभावित हुए। ऐसा वैशाली एक्सप्रेस के मामले में नहीं हो पाया। रात के ढाई बजे स्लीपर-6 में आग लग गई। उस समय यह ट्रेन इटावा से गुजर रही थी। दिल्ली-सहरसा-वैशाली ट्रेन में सवार कम से कम 19 यात्री इस आग से घायल हुए। महज दस घंटे में इस तरह को दो घटनाएं हुईं। एक बेहद चिंता में डालने वाली बात है।

महज दो हफ्ते पहले आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में दो ट्रेनें आपस में टकरा गईं। इस दुर्घटना में पालसा पैसेंजर ट्रेन ने पीछे से रायगड़ा पैसेंजर ट्रेन को टक्कर मारी। कंटकपल्ली में हुई इस घटना में तीन बोगियां पटरी से उतर गईं। इस दुर्घटना में कम से कम 13 लोग मारे गये जबकि 50 लोग घायल हो गये। इस दुर्घटना के पीछे ‘मानवीय गलती’ को कारण बताया गया।

महीने भर पहले, 11 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली से कामाख्या जा रही नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस ट्रेन के छह कोच बिहार के रघुनाथपुर में पटरी से उतर गए। इस दुर्घटना में 4 लोगों के मरने और 70 लोगों के घायल होने की खबर आई। इसके ठीक पहले 2 जून, 2023 को ओडिशा में कोरोमंडल एक्सप्रेस, शालीमार एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी के आपस में टकरा जाने का भयावह हादसा हुआ था। जिसमें लगभग 300 लोग मारे गये जबकि 176 लोग गंभीर चोट के शिकार हुए थे। घायलों की संख्या 500 से ऊपर थी।

2023 को पूरा होने में अभी डेढ़ महीने बाकी हैं। इस साल कम से कम दस बड़ी ट्रेन दुर्घटनाएं हुई हैं। इसमें से दो तो ट्रेनों के आपस में टकरा जाने की वजह से हुई हैं। 30 अक्टूबर, 2023 को टाइम्स नाउ के लिए शिवानी की रिपोर्ट में चार ट्रेनों- लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस, फलकनुमा एक्सप्रेस, लखनऊ-रामेश्वरम भारत गौरव एक्सप्रेस, त्रिचुनापल्ली-श्रीगंगानगर हमसफर सुफा एक्सप्रेस में आग लगने के हादसे का उल्लेख किया है। यदि बिहार जा रही इन दो ट्रेनों को जोड़ दिया जाये, तो यह संख्या 6 होती है। अन्य पटरी से उतरने से जुड़े कारण की वजह से हादसा ग्रस्त हुए।

आग लगना, पटरी से उतरना और सिग्नल की समस्या यह बताती है कि ट्रेनों, पटरियों और स्टेशन की देखभाल के लिए जितने कर्मचारियों और मजदूरों की जरूरत है, उसमें कमी की वजह ही हादसों का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। रेलवे भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का विभाग है। यह सार्वजनिक संस्था सिर्फ पूंजी के मामले में ही नहीं, संरचनागत विकास और रोजगार के साथ साथ लोगों और मालों के संचार की भी सबसे बड़ी संस्था है।

इसके साथ उद्योग और सेवा का विशाल क्षेत्र जुड़ा हुआ है जो सिर्फ पूंजीगत उत्पादन की धुरी ही नहीं बनता है, यह उसे आगे ले जाने में एक उत्प्रेरक की तरह काम भी करता है। इस बड़े संस्थान को निजी क्षेत्र के पूंजीपतिओं और कॉरपोरेट समूहों ने पिछले 30 सालों में इसे चूहों की तरह कुतरते हुए खोखला बनाने में लगे हुए हैं और इसे लूटकर अपने बिलों को मुनाफे से भरते जा रहे हैं।

रेलवे को मुनाफा कमाने की संस्था बना देने के नाम पर सरकारों ने इसे धीरे-धीरे निजी पूंजीपतियों के हाथों में बेचने का क्रम शुरू किया। कबाड़ बेचने से शुरू कर जमीनों को लीज पर देने, टिकटों की निजी हाथों से बिक्री से होते हुए सफाई और भोजन परोसने का निजीकरण हुआ और फिर स्टेशन और ट्रेनें बिकने लगीं।

रेलवे के नियमित कर्मचारियों और मजदूरों की भर्ती पर रोक बढ़ते हुए ठेकेदारी सिस्टम ने काम करना शुरू कर दिया। सेवाओं और संचालन को बेहतर करने के नाम पर निजी कंपनियों को सीधे उतार दिया गया और रेलवे कोच और वर्कशॉपों की जगह निजी कंपनियों को ही यह काम सौंपा जाने लगा।

निजीकरण के इस काम को तब और बड़ा उछाल मिला जब ऐसी ही कपंनियों के प्रबंधन में रहे और खुद ही इस क्षेत्र में काम कर रहे उद्योग के मालिक अश्विनी वैष्णव को रेल मंत्री बना दिया गया। वह एक समय में जीई ट्रांसपोर्टेशन के प्रबंध निदेशक थे। यह अमेरीका की जनरल इलेक्ट्रिकल कंपनी का हिस्सा थी जो बाद में वेबटेक का हिस्सा बन गई। यह रेलवे का इंजन और लोकोमेटिव से जुड़े कामों, उत्पादों में सक्रिय है। वह सीमैन कंपनी के उपाध्यक्ष थे, जिसका काम लोकोमोटिव और शहरी संरचनागत विकास को देखना था। उन्होंने 2012 में थ्री टी ऑटो लॉजिस्टिक प्राइवेट लिमिटेड और वीजी ऑटो प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना किया।

मोदी नेतृत्व की सरकार में जुलाई, 2021 में उन्हें एक साथ कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी मिली। इसमें रेलवे के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक और सूचना और संचार मंत्रालय शामिल है। वह जिस तरह की कंपनियों के प्रबंधन में थे, और खुद उन्होंने जिस तरह की औद्योगिक गतिविधियां शुरू की थी, उन्हें उसी तरह का मंत्रालय भी सौंपा गया।

जाहिर है, ऐसी स्थिति, जिम्मेदारी में आये मंत्रालयों में न सिर्फ तरफदारी और भेदभाव वाले माहौल को जन्म देती है, बल्कि व्यक्तिगत हितों को बढ़ावा दे सकती है। बहरहाल, ऐसे आरोप सामने तो नहीं आये हैं, लेकिन सीमैन और जीई ट्रांसपोर्टेशन के रेलवे मंत्रालय के साथ बढ़े जुड़ाव को साफ तौर पर देखा जा सकता है।

21 जुलाई, 2023 को रेलवे मंत्रालय के बयान में चार्ट के साथ दिखाया गया है कि 2000-01 से 2022-23 के बीच रेलवे दुर्घटना में काफी कमी आई है। उन्होंने आंकड़े देकर बताया है कि इसी अवधि में कांग्रेस के दौरान दुर्घटनाओं का औसत 86.7 प्रति वर्ष है जबकि चल रहे मोदी काल में यह 47.3 प्रति वर्ष रह गया है। इन आंकड़ों से यह पता नहीं चलता है कि दुर्घटनाओं के घटने के पीछे कौन से कारण हैं। क्या ये निजीकरण की उपलब्धियां हैं? संचार के उपकरणों के प्रयोग है?

बहरहाल, 2023 में हो रही दुर्घटनाओं में एक बड़ा कारण कथित ‘मानवीय त्रुटियां’ चिन्हित हो रही हैं या देखभाल के अभाव के रूप में सामने आ रहा है। रेलवे में दुर्घटनाग्रस्त हो रही ट्रेनों में से एक हमसफर एक्सप्रेस को छोड़कर अधिकांश ट्रेनें दूसरे और तीसरी वर्ग की आने वाली ट्रेनें हैं। इसमें प्रिमियम ट्रेनें ना के बराबर हैं। निजीकरण और मुनाफा कमाने की होड़ में आज सबसे ज्यादा जोर प्रीमियम ट्रेनों पर ही है जहां उन्नत किस्म की बोगियां और तेज रफ्तार वाले इंजन का प्रयोग किया जाता है।

उन्नत संचार व्यवस्था के आधार पर चलने वाली ये ट्रेनें सार्वजनिक व्यवस्था पर रफ्तार बढ़ा रही हैं। जैसे-जैसे ये रफ्तार बढ़ेगी, हादसों की संख्या बढ़ने से बच सकना आसान नहीं होगा। कोविड के बाद के दौर में इस बढ़ती रफ्तार को रेलवे मंत्रालय का आंकड़ा खुद ही दिखा रहा है।

ऐसा कोई भी क्षेत्र जिसमें पूंजी सघन रूप में लगी हो और उस अनुपात में मानव श्रम की मात्रा भी बड़ी हो और उसका कार्यक्षेत्र व्यापक हो वहां नीजीकरण एक घातक परिणाम लाता है। यह सिर्फ आर्थिक तौर पर ही नहीं, सामाजिक और आर्थिक तौर पर भी। भारत का क्रोनी कैपिटलिज्म रेलवे को एक केंद्र बना चुका है। इसके घातक परिणाम सामने आने लगे हैं।

इसके मुनाफे में ऐसे लोग शिकार बन रहे हैं, जो खुद इसके उत्पादक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हैं बल्कि इसके उपभोक्ता हैं। यह भयावह है। इसीलिए रेलवे को निजीकरण से बचाने की लड़ाई सिर्फ रेलवे के बचे खुचे कार्यकर्ताओं की ही नहीं है, यह देश के सभी नागरिकों की भी लड़ाई है। रेलवे को हादसों से बचाने के लिए जरूरी है कि यह कहा जाए- रेलवे का निजीकरण नहीं चलेगा।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

अंजनी कुमार
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