क्या कांग्रेस की राजस्थान की गुत्थी इस बार सुलझने जा रही है?

नई दिल्ली। खबर आ रही है कि कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व ने अब राजस्थान में लंबे समय से चल रहे अंतर्कलह को खत्म करने का मन बना लिया है। इस संदर्भ में कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में बैठक चल रही है। इस बैठक में पूर्व पार्टी अध्यक्ष और पार्टी के नेता राहुल गांधी सहित लंबे अर्से से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज चल रहे प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट भी हिस्सा ले रहे हैं।

बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पांव में चोट आने के कारण पहले यह बैठक कैंसिल होने की स्थिति बन गई थी, लेकिन राहुल गांधी इस मामले को अब पूरी तरह से निपटाने के मूड में हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि सशरीर उपस्थिति की स्थिति न होने पर वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये अशोक गहलोत उपस्थित हों। इस प्रकार आज यह बैठक हो रही है।

यह भी खबर है कि बैठक के बाद राहुल गांधी दोपहर बाद करीब 3:30 बजे प्रेस कांफ्रेंस कर राजस्थान पर पार्टी की नवीनतम स्थिति के बारे में घोषणा कर सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि सचिन पायलट के सामने केंद्रीय नेतृत्व/प्रदेश अध्यक्ष/उप-मुख्यमंत्री पद जैसे प्रस्ताव पेश किये जा सकते हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ में भी उप-मुख्यमंत्री पद की पेशकश के साथ वहां भूपेश बघेल और वरिष्ठ नेता टीएस सिंह देव के बीच के झगड़े को सुलझा लिया गया था।

आज कांग्रेस पार्टी खुद को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बेहद आरामदेह स्थिति में पा रही है। कर्नाटक में मिली भारी जीत के पीछे भी सिद्धारमैया और डी. के. शिवकुमार के बीच के विवाद को सुलझाने और एकजुट होकर चुनाव लड़ने को श्रेय दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश में पहले ही यह टंटा ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के साथ खत्म हो गया था। दो बार के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह कई महीनों से घूम-घूमकर कमलनाथ के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं।

इससे पहले पंजाब में कांग्रेस मुख्यालय ने अनिर्णय और असंतोष को पनपने देने का भारी खामियाजा भुगतकर अपने हाथ जला लिए हैं। अब पार्टी किसी भी कीमत पर इसे दुहराने के पक्ष में नहीं दिखती। सचिन पायलट के लिए भी यह फैसला लेने का वक्त है। उनकी छवि एक साफ़-सुथरे युवा नेता की थी, जिसके पास बड़ा राजनैतिक सफर बाकी है। हड़बड़ी में सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए मुख्यमंत्री पद की जिद और सिंधिया की तरह बगावती तेवर दिखाने का कोई फायदा मिलने के बजाय वे पहले ही नुकसान की स्थिति में हैं। वैसे भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की आज जो हालत है, वह न घर के न घाट के रह गये हैं। एक बार पाला बदलने का अर्थ है अपने समूचे वैचारिक, राजनीतिक समझ और समर्थकों के आधार को बदलकर रख देना। सिंधिया के बाद अब महाराष्ट्र में शिवसेना को तोड़कर एकनाथ शिंदे का राजनीतिक भविष्य किस गड्ढे में जा चुका है, सचिन पायलट के सामने मुंह बाए खड़ा है।

राजनीतिक समीक्षक भी आज इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि कांग्रेस एक बार फिर से उठ खड़ी हो रही है। इस पर दांव लगाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहां तक कि कांग्रेस के नाम से बिदकने वाले क्षेत्रीय दल आज विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस से बैठकों में अपने लिए बेहतर मोलभाव की आस लगा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत के बाद अब कांग्रेस के मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ही नहीं तेलंगाना में भी बड़ी चुनौती के रूप में उभरने के कयास लगाये जा रहे हैं।

ऐसे में राजस्थान में यदि सचिन पायलट व्यक्तिगत आकांक्षा के लिए पार्टी के भीतर सवाल उठाने के बजाय सार्वजनिक रूप से धरना और रैली निकालने की कवायद करते हैं, तो इसे राजनीतिक गलियारे में विपक्षी पार्टी के एजेंट और आम लोगों की निगाह में बचकानी हरकत से अधिक नहीं समझा जा रहा है। फैसला सचिन पायलट के हाथ में है, कि वे देश के बदलते मूड के साथ खड़े होते हैं और भविष्य में इसके जरिये अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को भी साध लेते हैं, या सिंधिया, शिंदे की तरह चारे के रूप में इस्तेमाल होने के लिए अभिशप्त हैं।

आज गुरुवार दोपहर बाद राजस्थान का सियासी संकट काफी कुछ स्पष्ट हो जाने की उम्मीद है। भाजपा के लिए भी एक बार स्थिति स्पष्ट हो जाने के बाद तय करने में समय नहीं लगेगा कि इस बार भी मुख्यमंत्री का चेहरा वसुंधरा राजे ही रहने वाली हैं या इस बार मोदी-शाह के पास अपने मोहरे को आगे करने का मौका मिलने जा रहा है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।) 

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