दंगा नहीं, संघ-बीजेपी की अगुआई में रचा गया यह सुनियोजित हमला है

नई दिल्ली। दिल्ली के नॉर्थ-ईस्ट इलाके में जो हो रहा है वह मुसलमानों को निशाना बनाकर किया गया एकतरफा हमला है। जिसमें पुलिस संघ-बीजेपी से जुड़े दंगाइयों का खुलेआम साथ दे रही है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस एक शख्स कपिल मिश्रा ने इस हिंसक हमले की अगुआई की वह अभी भी खुलेआम घूम रहा है।

उसके नेतृत्व में निकला जुलूस और सीएए विरोधियों को दी गयी उसकी धमकी का वीडियो पूरे देश में वायरल हो चुका है। लेकिन दिल्ली पुलिस अभी भी उससे अनजान है। ट्रैक्टरों के जरिये ईंट-पत्थर ढोकर लाने का मसला हो या फिर लोनी से बसों में भरकर दंगाइयों को ढोने की बात सारी घटनाएं इस बात को साफ कर देती हैं कि हिंसा के पीछे कौन है। 

सब कुछ बेहद सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। यह बात अब किसी से छुपी नहीं है। दर्जनों ऐसे वीडियो वायरल हो चुके हैं जिनको देखकर पूरे हमले की कहानी समझी जा सकती है। कहीं पुलिस दंगाइयों के साथ मिलकर मुस्लिम घरों पर पथराव कर रही है।

तो कहीं तमंचाधारी युवक पुलिस की मौजूदगी में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमले कर रहा है। पार्क में खड़ी गाड़ियों की एक पूरी लॉरी को आग के हवाले कर दिया गया। साझी आबादी वाले मुहल्ले में हिंदुओं को बचाने के लिए बाकायदा उनके घरों पर भगवा झंडे लगा दिए गए हैं। जिससे उनकी पहचान कर उन्हें हमलों से बचाया जा सके। और बाकी घरों को दंगाइयों के हवाले कर दिया जाए।

कुछ ऐसी परेशान कर देने वाली तस्वीरें सामने आयी हैं जिनको देखकर किसी का भी कलेजा मुंह को आ जाए। इसी तरह की एक तस्वीर है जिसमें एक मुस्लिम शख्स को पच्चीसियों की संख्या में दंगाई लाठी-डंडों और पत्थरों से पीट रहे हैं और वह सिर झुकाए सब कुछ सहन  कर रहा है। लिहाजा यह न तो दंगा है और न ही झड़प। शुद्ध रूप से यह मुसलमानों पर संघ-बीजेपी की अगुवाई में किया गया संगठित हमला है। दिल्ली में बिल्कुल वही चीज दोहरायी जा रही है जो 1984 में हुआ था। अंतर बस केवल इतना है कि इस बार निशाने पर सिख की जगह मुस्लिम हैं। सब कुछ पुलिस और प्रशासन के संरक्षण में हो रहा है।

जिस गृहमंत्रालय को इसको नियंत्रित करना था उसने पहले तो दंगाइयों को खुली छूट दी और अब वह एक ऐसी लाइन ले रहा है जिससे अपने दामन पर लगे दाग से भी बचा जा सके। बीजेपी नेताओं, गृहमंत्रालय और उसके सूत्रों के साथ ही गृहराज्य मंत्री ने एक लाइन ले ली है वह यह कि यह सब कुछ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के मद्देनजर देश को बदनाम करने की साजिश के तहत किया जा रहा है।

इसे निर्ल्लजई की हद कहते हैं। दंगा भी कराएंगे और उसका दोष भी पीड़ितों के सिर मढ़ देंगे। फासीवाद का यह बेजोड़ नमूना है। यूपी में 22 मुसलमानों की हत्याएं हुईं और सभी के लिए मुस्लिम समुदाय को ही जिम्मेदार ठहरा दिया गया। यही जेएनयू में हुआ। विद्यार्थी परिषद और संघ से जुड़े बाहरी गुंडों ने परिसर के भीतर घुस कर हमला किया और एफआईआर हुई जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष के खिलाफ। ठीक यही मॉडस आपरेंडी यहां भी अपनायी गयी है।

नहीं तो बीजेपी को जरूर इस बात का जवाब देना चाहिए कि आखिर उसके नेता कपिल मिश्रा दंगाइयों की भीड़ को अपने साथ ले जाकर क्या कर रहे थे? दंगाई जब तमंचे लेकर घूम रहे थे तो वहां तैनात पुलिस क्या कर रही थी?

हिंसा को रोकने की बजाय जगह-जगह पुलिस दंगाइयों के साथ मिलकर मुस्लिम घरों पर क्यों पत्थरबाजी कर रही थी? इलाके में जब ट्रैक्टर से पत्थर ढोया जा रहा था तो क्या पुलिस के जवान अंधे हो गए थे? बसों से लोगों को लोनी से जाफराबाद ले आया जा रहा था तब क्या वह सो गयी थी? ये तमाम सवाल हैं जिनके उत्तर आने अभी बाकी हैं।

इस पूरे प्रकरण में दिल्ली सरकार का रवैया बेहद अपराधपूर्ण रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री समेत तमाम नेता ट्विटर के जरिये शांति की अपील कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने गृहमंत्रालय और सूबे के एलजी से कार्रवाई की अपील कर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली है। जिस समुदाय ने अपना एक-एक वोट इस पार्टी को दिया आज जब वह संकट में है तो उसके नेता नदारद हैं। और इस कड़ी में हुई हेड कांस्टेबल रतन लाल तथा एक और शख्स की मौत बेहद पीड़ादायी है। संघ और बीजेपी ने अगर अपना रवैया नहीं बदला तो हमें इस तरह की और कीमती जानें देने के लिए तैयार रहना चाहिए। बर्बादी का यह तूफान आगे बढ़े उससे पहले ही इसे रोक लेने की जरूरत है।

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