उठने लगे हैदरबाद पुलिस एनकाउंटर पर सवाल, लोगों ने कहा- ये कानून की हार और बंदूक की जीत है

नई दिल्ली। हैदराबाद पुलिस एनकाउंटर पर सवाल उठने लगे हैं। और कई संगठनों की तरफ से इस पर बेहद तीखी प्रतिक्रियाएं आयी हैं। ज्यादातर संगठनों ने इसे देश की न्यायिक प्रणाली की विफलता करार देते हुए घटना के प्रति समर्थन को उसी का नतीजा बताया है।

वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने हैदराबाद पुलिस के खिलाफ जांच की मांग की है। उन्होंने कहा है कि “सभी आरोपी थे, न कि दोषी। एक ऐसी ही घटना छत्तीसगढ़ भी हुई थी, जहां 36 लोगों को नक्सली बताकर मार दिया गया था जबकि वे नक्सली नहीं थे। प्रकाश आंबेडकर ने इसके लिए नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि राजनीतिक प्रमुख गलत आदेश दे रहे हैं।” दूसरी तरफ बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने तेलंगाना पुलिस की तारीफ की है।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हालांकि एनकाउंटर पर सवाल नहीं उठाया है। लेकिन उन्होंने दूसरे तरीके से मामले की जांच की मांग की है। आज तक वेब पोर्टल के मुताबिक उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया और कहा कि प्रत्येक एनकाउंटर की जांच होनी चाहिए।

महिला संगठन एपवा ने कहा है कि यह एनकाउंटर कस्टडी में की गयी हत्या है। जिसे एनकाउंटर की तरह पेश किया गया है। पुलिस उस समय झूठ बोल रही है जब वह कह रही है कि उनकी उस समय हत्या की गयी है जब उन्होंने पुलिस पर हमला किया। अब हमें बताया जाएगा कि न्याय हो गया और पीड़िता का बदला ले लिया गया। और अब हमें अपने काम में लग जाना चाहिए।

एपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि न्याय एक व्यवस्था है जो महिलाओं को यह बता रही है कि हम सड़कों को महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रख सकते हैं। आरोपी को दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण होने के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराध की जांच नहीं कर सकते हैं। बलात्कार पीड़ितों की सुरक्षा नहीं कर सकते हैं। पीड़िता अदालत में सम्मान के साथ खड़ी हो सके इस बात को सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। वे केवल लिंच मॉब की तरह व्यवहार कर सकते हैं। और हमसे पूछते हैं कि लोगों को न्याय के लिए केवल लिंचिंग को स्वीकार कर लेना चाहिए।

संगठन ने इस कथित एनकाउंटर की गहराई से जांच की मांग की है। उसका कहना है कि इसमें शामिल पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करके उन्हें सजा दी जानी चाहिए।

एक्टिविस्ट और पत्रकार जितेंद्र कुमार ने कहा कि टीवी चैनलों पर हैदराबाद में बलात्कार के आरोपियों की हत्या का जैसा जश्न मन रहा है यह प्रमाण है कि भारतीय समाज के अपराधीकरण की प्रक्रिया पूरी हो गयी है, न्याय प्रणाली ध्वस्त हो गयी है। अब अपराधी न होना आपकी समस्या है! मैं फिर से शर्मिन्दा महसूस कर रहा हूं।

कवि, लेखक और एक्टिविस्ट अशोक कुमार पांडेय ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा कि आप ख़ुश हो लीजिए एनकाउंटर से। मैं निराश हूं। यह क़ानून की हार और बंदूक़ की जीत है। जनभावनाओं के दबाव में लिए गए फ़ैसले क़ानून की पूरी प्रक्रिया को संदिग्ध बनाते हैं।

मैं ख़ुश होता अगर फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में इन्हें जघन्य बलात्कार और हत्या की सज़ा मिलती महीने दो महीने के भीतर। न्याय की यही मांग थी।

एक अनाम शख्स की टिप्पणी भी देना यहां बेहद मौजूं होगा जिसमें उसने कहा कि हैदराबाद रेपकांड के चारों अभियुक्तों को पुलिस ने मार गिराया। कुछ लोग इसे त्वरित न्याय बता रहे हैं। अगर यही न्याय है, तो अदालत की जरूरत ही क्या है?

देश की न्याय प्रणाली विफल होने के कारण ऐसी पुलिस कार्रवाई को समर्थन मिल रहा है। जबकि यह न्याय नहीं, भीड़तंत्र है। मॉब लिंचिंग है। तालिबानी वहशीपन है।

अदालत के न्याय और इस पुलिस कार्रवाई का फर्क एक चर्चित उदाहरण से समझें :

महात्मा गांधी की हत्या के कुल नौ आरोपी गिरफ्तार किए गए। इनमें ‘सावरकर’ भी थे। एप्रूवर ने इनके खिलाफ भी गवाही दी थी।

अदालत में सुनवाई के बाद सभी अभियुक्तों को फांसी नहीं दी। सिर्फ नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी दी। छह को आजीवन कारावास दिया। सावरकर को सबूत के अभाव में जेल से रिहा कर दिया।

यानी अदालत जब न्याय करती है, तो सबको एक समान दंड नहीं देती। किसी को फांसी, किसी को उम्रकैद, किसी को रिहाई।

अगर अदालती सुनवाई के बदले पुलिस ने कार्रवाई की होती, तो सभी नौ लोग मार दिए गए होते। सावरकर भी। तब ‘भारत रत्न’ देने की बात तो दूर, इतिहास के पन्नों पर सावरकर का नाम भी बापू के हत्यारों में दर्ज होता।

आशय यह है, कि पुलिस का काम सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना और अपराधियों को पकड़कर जेल भेजना है। देश का न्यायतंत्र मजबूत हो। हर मामले की स्पीडी ट्रायल हो। सबको न्याय मिले। कोई अपराधी छूटे नहीं, किसी निर्दोष को सजा न मिले।

गिरीश मालवीय की टिप्पणी:

जब खुले सदन में सांसद अभियुक्तों के लिए लिंचिंग की मांग करते हैं तो यह तो होना ही था, वैसे छोटे लोगों का एनकाउंटर होता है बड़े लोगों का हनी ट्रैप!

हैदराबाद के आरोपियों का ट्रायल आप फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाते तो महीने भर में भी फैसला बाहर आ जाता ( इंदौर में पिछले साल मात्र 23 दिन में छोटी बच्ची से बलात्कार के मामले में फाँसी की सजा सुनाई गई हैं )। इसलिए यह कहना बन्द कर दीजिए कि इंसाफ जल्दी नहीं दिया जा सकता। इच्छा शक्ति हो तो सब सम्भव है। लेकिन अब न्यायतंत्र की अपेक्षा हमें भीड़तंत्र पर ज्यादा भरोसा होने लगा है यह खतरनाक संकेत है।

यह कोई समाधान नहीं है हम सभ्यता की दौड़ में आगे नहीं बढ़ रहे हैं बल्कि पीछे की ओर जा रहे हैं। हम आधुनिक बन रहे हैं लेकिन हमारी सोच बर्बर हो रही है।

वैसे आपको यदि लग रहा है कि अब से सब बदल जाएगा तो ऐसा कुछ नहीं हैं। रसूखदार कुलदीप सेंगर माननीय बने रहेंगे और चिन्मयानंद संत, कोई आराम से भाग कर ‘कैलासा’ ही बसा लेगा, बलात्कार पीड़िता को कभी ट्रक कुचलेगा कभी चलते रास्ते उसे आग के हवाले कर दिया जाएगा।

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