हर तरह के खतरे का सामना कर रहे हैं घाटी में पत्रकार

नई दिल्ली/श्रीनगर। कश्मीर लॉकडाउन को तकरीबन एक महीने होने जा रहे हैं। इस बीच जनता के अलावा जिस हिस्से को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा है वह पत्रकार हैं। सुरक्षबलों द्वारा उनके उत्पीड़न की अनगनित घटनाएं सामने आयी हैं। जिसमें बहुत जगहों पर शूट किए गए फूटेज को कैमरे से डिलीट करने के मामलों से लेकर रिपोर्टिंग में जबरन स्थितियों को सामान्य बताने तक का दबाव शामिल है।

अल जजीरा के हवाले से सामने आयी एक रिपोर्ट में पत्रकार मुजफ्फर रैना कहते हैं, “यह एक बिल्कुल विशिष्ट स्थिति है। हममें से कोई भी इसके पहले इन स्थितियों से नहीं गुजरा है। यहां तक कि कश्मीर की सबसे बुरी स्थितियों में भी हम लोगों ने स्टोरी फाइल की है।” रैना ने ये बातें उस समय बतायीं जब वह मीडिया फैसिलिटेशन सेंटर पर अपनी फीड भेजने के लिए कतार में खड़े थे।

गौरतलब है कि 4 अगस्त के बाद से पूरी घाटी में कर्फ्यू है। तकरबीन 70 लाख लोगों को एकाएक एक दूसरे से काट दिया गया है। न तो मोबाइल की सुविधा है और न ही इंटरनेट मयस्सर है। रैना ने कहा कि यह अभूतपूर्व स्थिति है।

हालांकि संचार के ठप होने का पूरी दुनिया में शोर होने के बाद प्रशासन ने श्रीनगर के एक प्राइवेट होटल में मीडिया सेंटर स्थापित कर दिया है। एक इंटरनेट कनेक्शन के साथ सेंटर पर पांच कंप्यूटर हैं। और सैकड़ों पत्रकारों के इस्तेमाल के लिए केवल एक लैंडलाइन फोन है। जिसमें कश्मीर के साथ-साथ बाहर के रिपोर्टर उसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

रैना का कहना था कि सरकार की पूरी कोशिश यही है कि सच बाहर न जाने पाए। उन्होंने बताया कि “शुरुआती कुछ दिनों तक मैं कुछ भी भेजने में अक्षम था।” उसके बाद उनके साथ काम करने वाले एक दोस्त ने उनकी मदद की। जो इलेक्ट्रानिक चैनल में काम करता है।

उन्होंने बताया कि “मैं अपने टेक्स्ट का एक वीडियो बना लेता था। मेरा मित्र अपनी ओबी (आउटडोर ब्राडकास्टिंग) के जरिये उसे अपनी आफिस भेज देता था। जहां से कोई दूसरा उसे मेरे दफ्तर (नई दिल्ली) भेज देता था। फिर वहां वह स्टोरी टाइप होती थी।”

हिंदू के लिए रिपोर्ट करने वाले पीरजादा आशिक ने बताया कि वह भी शुरुआती कुछ दिनों तक न रिपोर्ट भेज सके औऱ न ही अपने दफ्तर से संपर्क कर सके। उसके बाद उन्होंने फ्लैश ड्राइव के जरिये नई दिल्ली स्टोरी भेजनी शुरू की।

रैना की तरह से आशिक ने भी स्टोरी भेजने के लिए ओबी का ही सहारा लिया।

उन्होंने बताया कि “यह बेहद कठिन प्रक्रिया थी जो अपने आप में एक खबर है। जिसमें स्टोरी लिखने से ज्यादा उसे भेजने में समय लगता था।”

बहुत सारे पत्रकारों ने रोड पर तैनात सुरक्षा बलों द्वारा अपना उत्पीड़न किए जाने का आरोप लगाया।

एक इंटरनेशनल टीवी चैनल के लिए वीडियोग्राफर का काम करने वाले एस अहमद ने बताया कि श्रीनगर में एक विरोध-प्रदर्शन को कवर करने के बाद सुरक्षा बलों ने उन्हें फूटेज डिलीट कर देने के लिए बाध्य कर दिया।

उन्होंने बताया कि “मुझे जबरन तीन बार फूटेज डिलीट करने के लिए मजबूर किया गया। आप अपने संगठन में काम करने का प्रमाण देते हैं लेकिन सुरक्षा बल उसके बाद भी नहीं सुनते हैं।”

अहमद ने बताया कि पैरा मिलिट्री के एक जवान ने उनसे कहा कि विरोध नहीं बल्कि सामान्य स्थितियों को शूट करो। हम कैसे काम करें इसको वो निर्देशित कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि “हर स्टोरी बताने में हमें जोखिम उठाना पड़ता था। लोग हम पर हमारी स्टोरी से विश्वास करते हैं और इन स्थितियों में उनके साथ न खड़ा होना दिल तोड़ने वाली बात है।”

आशिक ने बताया कि अथारिटी द्वारा जारी “मूवमेंट पास” होने के बाद भी रिपोर्टरों को रोक दिया जाता है।

उन्होंने बताया कि “उन लोगों (पैरामिलिट्री जवान) ने हमें बताया कि उन्हें किसी को भी इजाजत नहीं देने का आदेश दिया गया है। यहां तक कि पास के साथ भी आप इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हो सकते हैं कि अगला पिकेट आपको जाने देगा।”

कश्मीर के पुलवामा में रहने वाले एक पत्रकार ने बताया कि पिछली 4 अगस्त से उसने कोई स्टोरी ही नहीं फाइल की है। अपनी पहचान छुपाने की शर्त पर उसने बताया कि “सुरक्षा बल हमें काम ही नहीं करने देते। लोग भी हम लोगों से बात करने से अब बचते हैं क्योंकि उनका आरोप है कि हम लोग सही स्टोरी नहीं दिखाते।”

“इसलिए हमने खुद को कमरे में ही बंद करने का फैसला ले लिया। इस स्थिति में कैमरे को लेकर बाहर जाना बहुत कठिन है”।

मौजूदा समय में एक प्रमुख समस्या जिसका घाटी के पत्रकार सामना कर रहे हैं वह सूचनाओं तक पहुंच का है। वे टेलीफोन द्वारा अधिकारियों से न तो संपर्क कर पा रहे हैं और न ही उनसे मिलने के लिए दफ्तरों तक जा पा रहे हैं।

ऐसी स्थिति में रिपोर्टरों का कहना है कि वे प्रशासन की प्रेस ब्रीफिंग के सहारे हैं जिनमें अधिकारी लिखी-लिखायी स्क्रिप्ट पढ़ देते हैं और सवालों का कोई जवाब नहीं देते।

पत्रकार नसीर गनाई ने बताया कि स्थानीय अथारिटीज ने स्थानीय अखबारों के संपादकीय प्रकाशन पर रोक लगा दी है।

उन्होंने अल जजीरा को बताया कि आप मौजूदा स्थितियों पर कोई भी स्तंभ नहीं देख सकते हैं।

उन्होंने बताया कि “जब दो पूर्व मुख्यंत्री और ढेर सारे विधायक हिरासत में हों तो क्या आप सोचते हैं कि हम नहीं भयभीत होंगे”?यह तूफान है और अपनी चमड़ी बचाना ही समझदारी होगी।

बुधवार को स्थानीय स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों के दो संगठनों कश्मीरी वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन और कश्मीर जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने प्रेस बयान जारी कर संचार के ब्लैकआउट की निंदा की थी।

बयान में कहा गया है कि लोगों और पत्रकारों से संचार के सभी साधनों को छीन लेना किसी मानवीय विध्वंस से कम नहीं है। सरकार से इसकी कभी उम्मीद नहीं की जाती है। यहां तक कि युद्ध के समय भी कश्मीर में ऐसा नहीं हुआ।

इसमें आगे कहा गया है कि मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट देने से स्थानीय मीडिया बच रहा है। स्थानीय विरोध प्रदर्शन, झगड़े, गिरफ्तारियों की भी कवरेज से अपने को दूर रखे हुए है। सरकारी प्रोपोगंडा पर सवाल उठाने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहा है।

बहुत सारे पत्रकारों का कहना है कि कश्मीर के बाहर के पत्रकारों के लिए ठीक यही बात नहीं है।

संगठन के एक सदस्य ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि “बहुत सारे राष्ट्रीय पत्रकारों को जिनमें से कुछ को भारत सरकार का समर्थन हासिल है, पूरी तरह से आने जाने की छूट है और वो किसी भी अधिकारी से मिल सकते हैं और कहीं भी जा सकते हैं।”

“लेकिन पाबंदी केवल हम लोगों पर है। वो यहां नरेटिव को बदलने के लिए लाए गए हैं और उसके लिए उन्हें हर सुविधा दी जा रही है।”

(अल जजीरा के लिए रिफद फरीद की रिपोर्ट को यहां साभार दिया जा रहा है।)

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