पत्रकार तरुण सिसोदिया की “संदिग्ध मौत” ने खड़े किए एम्स की साख पर सवाल

तरुण के कोरोना संक्रमित होने के कारण अवसाद में आकर एम्स में चौथी मंजिल से छलांग लगा कर आत्महत्या करने की बात लोगों के गले नहीं उतर रही है। तरुण को जानने वाले इस आत्महत्या को संदिग्ध बता रहे हैं। तरुण का एक व्हाट्सएप चैट सोशल मीडिया पर चल रहा है, जिसमें उन्होंने अपनी हत्या की आशंका जतायी थी।

दैनिक भास्कर के प्रमुख संवाददाता तरुण कुमार सिसोदिया का कल अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह कोरोना से संक्रमित थे और एम्स के आईसीयू में भर्ती थे। इस समय देश-दुनिया में रोज कोरोना संक्रमितों के मरने की खबरें आ रही हैं। जिसमें जवान-बूढ़े और बच्चे सब शामिल हैं। लेकिन तरुण की मौत से दिल्ली का पत्रकार समाज अंदर से हिल गया है। सोशल मीडिया पर तरुण के दिवंगत होने के बाद से इसको “संदिग्ध मौत” बताते हुए जांच की मांग की जा रही है। एम्स के आईसीयू में शिफ्ट होने के बाद तरुण भी अपने मित्रों से अपनी हत्या की आशंका जता रहे थे।

तरुण की दैनिक भास्कर में हेल्थ वीट कवर करते थे। कोरोना के किसी पहलू से वो अनजान नहीं थे। कोविड-19 पर उन्होंने कई खबरें की थी। उस खबर में वे अपने पाठकों को सलाह दे रहे थे कि कोरोना संक्रमितों को डरने की जरूरत नहीं है। तरुण की मौत का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। कहा जा रहा है कि वे कोरोना संक्रमित होने के बाद अवसाद में आकर एम्स की चौथी मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश किए थे। लेकिन घायल होने के बाद इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी। ऐसे में सवाल उठता है कि उनकी मौत कोरोना संक्रमण से हुई या आत्महत्या के प्रयास में लगी चोट के कारण?

दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि वे तेजी से रिकवर कर रहे थे। एम्स में भर्ती रहते हुए वे दैनिक भास्कर के लिए खबर भी लिख रहे थे। आईसीयू में शिफ्ट होने के बाद अपने एक मित्र से व्हाट्सएप चैट में तरुण ने अपने हत्या की आशंकी जताई थी। तब मित्रों से सब कुछ ठीक हो जाने का दिलासा दिया था। लेकिन तरुण की आशंका सच साबित हुई। एम्स प्रशासन यहीं से सवालों के घेरे में आता है। मित्रों का कहना है कि यदि वह कोरोना से रिकवर हो रहा था तो आईसीयू में शिफ्ट करने की क्या जरुरत थी? आईसीयू में तो गंभीर मरीजों को भर्ती किया जाता है।

वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं- सवाल कई उठ रहे हैं, मसलन उसे सांस लेने में कठिनाई नहीं थी तो उसे आईसीयू में क्यों भेजा गया? उससे उसका मोबाइल छीनने के प्रयास क्यों हुए। उससे उसके परिवार से बात कराने का प्रबंध क्यों नहीं किया गया। वह 5 दिन से बाहरी लोगों से संपर्क साधने का प्रयास करता रहा, पर वह विफल रहा। वह ग्राउंड फ्लोर के आईसीयू में भर्ती था तो चौथी मंजिल तक कैसे पहुंचा या किसने पहुंचाया। क्या कोरोना पॉजिटिव मरीज आईसीयू से कहीं भी जाने लायक रहता है या उसे जाने दिया जाता है?

तरुण की संदिग्ध मौत एम्स प्रशासन पर सवाल खड़े करता है जिसका जवाब उसको देना होगा। लेकिन इसके साथ ही दैनिक भास्कर भी सवालों के घेरे में है। तरुण के कोरोना संक्रमित होने के बावजूद उससे अस्पताल से ही काम करने को कहा गया था। काम से मना करने पर नौकरी छूट जाने के डर और परिवार के भविष्य की चिंता ने उन्हें हम सबके बीच से छीन लिया। कुछ दिन पहले तरुण ने अपने एक मित्र को फोन कर बताया था कि जिस भास्कर में वह नौकरी करता था, वहां से उसे कहीं और भेजा जा रहा था, ताकि जिनकी सैलरी ठीक है वे या तो काम छोड़ दें या कम सैलरी पर छत्तीसगढ़ चले जाएं। शायद वह यह दबाव नहीं सहन कर सका। मात्र 37 साल में यह प्रतिभावान पत्रकार दुनिया छोड़ गया। इस होनहार साथी के खोने का दर्द जीवन भर सालता रहेगा। उसकी मौत ने मीडिया जगत में चल रही अंदरूनी घुटन को सामने लाने का काम किया है। यह घुटन बहुत दुखद है।

तरुण दैनिक भास्कर के दिल्ली ब्यूरो में प्रिंसिपल कॉरेस्पॉन्डेंट थे और हेल्थ बीट कवर करते थे। तरुण सिसोदिया (उम्र 37), पुत्र- नाथी सिंह, मूल रूप से बुलंदशहर के रहने वाले थे। लेकिन वर्तमान में उनका परिवार गली नंबर -7, संजय मोहल्ला, भजनपुरा में रहता है। तरुण के परिवार में पत्नी, ढाई साल का बेटा और दो महीने की एक बेटी है। बताया जा रहा है कि कुछ दिनों पहले उनकी ब्रेन सर्जरी हुई थी।

तरूण की मौत में कुछ और तथ्य सामने आ रहे हैं। पता चला है कि उसने एम्स में चल रही कुछ संदिग्ध गतिविधियों को सामने लाने की कोशिश की। एक वीडियो बनाया। इसके बाद उसे बिना आवश्यकता के आईसीयू में भेज दिया गया, ताकि वह अपने पास मोबाइल न रख सके। उससे पहले ही उसने व्हाट्सअप चैट में अपने मर्डर की आशंका व्यक्त की थी। वह इलाज को लेकर कई बार फोन करके शिकायत भी कर चुका था। मीडिया के साथी बता रहे हैं कि उसके इलाज में कोताही बरती जा रही थी। उसने आवाज उठाई। मामला स्वास्थ्य मंत्रालय पहुंचा। और फिर वहां से ट्रॉमा सेंटर को रिपोर्ट गयी।

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव लिखते हैं- तरुण की आत्महत्या पूरी व्यवस्था के गाल पर एक तगड़ा तमाचा है। एम्स से कोराना इलाज के दौरान एक युवा पत्रकार की हुई यह दुखद मौत कई सवाल खड़ें करती है। वह भी उस पत्रकार की आत्महत्या जो कोरोना बीमारी को कवर कर रहा था,बीमारी के बारे में जानता था। पीएम फंड में इकट्ठे रुपए के बाद जब एम्स में व्यवस्था का यह हाल है तो बाकी जगह क्या होगा, यह समझ में आने लगा है।

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