कुरान को उद्धृत कर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा- महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं

यह कहते हुए कि पवित्र कुरान मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब या हेडगियर पहनना अनिवार्य नहीं करता है। 24 वें सूरा के 28-34,58-64.31,59 पारा में जो कुछ भी कहा गया है, हम कहते हैं, केवल निर्देशिका है, हिजाब न पहनने के लिए दंड या तपस्या के नुस्खे के अभाव के कारण, भाषाई आयतें इस दृष्टिकोण का समर्थन करती हैं। यह परिधान अधिक से अधिक सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच प्राप्त करने का एक साधन है न कि अपने आप में एक धार्मिक लक्ष्य। यह महिला सक्षमता का पैमाना था न कि लाक्षणिक बाधा।

एक प्रशंसनीय उद्देश्य है जिसे यूसुफ अली के फुटनोट्स 2984, 2985 और 2987 से सूरा xxiv (Nūr) और आयतों में निकाला जा सकता है।’ पवित्र कुरान: पाठ, अनुवाद’और कमेंट्री’ अब्दुल्ला यूसुफ अली द्वारा, (द्वारा प्रकाशित)गुडवर्ड बुक्स; 2019 पुनर्मुद्रण), कर्नाटक हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस खाजी जयबुन्नेसा मोहियुद्दीन की पूर्ण पीठ ने कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी को दिए गए आदेश को निरस्त करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्कूल यूनिफॉर्म को जरूरी बताया गया था। कर्नाटक में पिछले 74 दिन से जारी हिजाब विवाद पर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है।

हाईकोर्ट ने कहा है कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इसके साथ ही, मामले की सुनवाई करने वाली तीन मेंबर वाली बेंच ने स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने की इजाजत देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने हिजाब के समर्थन में मुस्लिम लड़कियों समेत दूसरे लोगों की तरफ से लगाई गईं सभी 8 याचिकाएं खारिज कर दीं। पूर्ण पीठ ने राज्य सरकार के 5 फरवरी को दिए गए आदेश को भी निरस्त करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्कूल यूनिफॉर्म को जरूरी बताया गया था।
मंगलवार को फैसला सुनाने से पहले हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने कहा कि इस मामले में दो सवालों पर गौर करना अहम है। पहला- क्या हिजाब पहनना आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक आजादी के अधिकार में आता है। दूसरा- क्या स्कूल यूनिफॉर्म पहनने को कहना इस आजादी का हनन है। इसके बाद हाईकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबन्ध को सही ठहराया।

कर्नाटक में हिजाब पर बवाल शुरू होने के बाद मामला सेशन कोर्ट पहुंचा था। सेशन कोर्ट के बाद केस हाईकोर्ट में गया, जहां इसे पूर्ण पीठ को ट्रांसफर कर दिया गया। हाईकोर्ट ने फैसले के साथ ही इससे जुड़ी 8 याचिकाओं का भी निपटारा कर दिया।पूर्ण पीठ ने कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध के मामले में कहा कि हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है।

दरअसल पूर्ण पीठ ने इन तीन आधारों पर कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ मुस्लिम लड़कियों की याचिका खारिज की; 1. क्या हिजाब पहनना इस्लामिक आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा है है जो अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है।2. क्या स्कूल यूनिफॉर्म का निर्देश अधिकारों का उल्लंघन है। 3. क्या 5 फरवरी का शासनादेश अक्षम और स्पष्ट रूप से मनमाना होने के अलावा अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है? कोर्ट के समक्ष यह भी सवाल था कि क्या महाविद्यालय प्राधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनिक जांच करने का कोई मामला बनता है।

चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जिन्होंने खुली अदालत में फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को पढ़ा, ने इस प्रकार कहा, “हमारे सवालों के जवाब है, मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है।”हमारा दूसरा जवाब है स्कूल यूनिफॉर्म अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। यह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते हैं। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, सरकार के पास 5 फरवरी का शासनादेश जारी करने का अधिकार है और इसके अमान्य होने का कोई मामला नहीं बनता है। प्रतिवादियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है और यथा वारंटो का रिट बनाए रखने योग्य नहीं है। योग्यता से रहित होने के कारण सभी रिट याचिकाएं खारिज की जाती हैं।”

पूर्ण पीठ ने कहा कि राज्य द्वारा स्कूल ड्रेस का निर्धारण अनुच्छेद 25 के तहत छात्रों के अधिकारों पर एक उचित प्रतिबंध है और इस प्रकार, कर्नाटक सरकार द्वारा 5 फरवरी को जारी सरकारी आदेश उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। तदनुसार, कोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिसमें हिजाब (हेडस्कार्फ़) पहनने के लिए एक सरकारी पीयू कॉलेजों के प्रवेश से इनकार करने की कार्रवाई को चुनौती दी गई है।
पूर्ण पीठ ने कहा कि राज्य द्वारा स्कूल ड्रेस का निर्धारण अनुच्छेद 25 के तहत छात्रों के अधिकारों पर एक उचित प्रतिबंध है और इस प्रकार, कर्नाटक सरकार द्वारा 5 फरवरी को जारी सरकारी आदेश उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। पीठ ने कहा, “उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, सरकार के पास 5 फरवरी का शासनादेश जारी करने का अधिकार है और इसके अमान्य होने का कोई मामला नहीं बनता है। प्रतिवादियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है और यथा वारंटो का रिट बनाए रखने योग्य नहीं है। योग्यता से रहित होने के कारण सभी रिट याचिकाएं खारिज की जाती हैं।”

याचिकाकर्ताओं ने 5 फरवरी के एक सरकारी आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने से अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं होगा और आदेश दिया कि छात्रों को संबंधित कॉलेज विकास समितियों द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड पहनना चाहिए। इस मामले को पहले न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित की एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिसने याचिकाओं को यह कहते हुए बड़ी पीठ के पास भेज दिया था कि “मौलिक महत्व के प्रश्न” शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं का यह मामला था कि हिजाब पहनना इस्लाम के तहत एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा है और स्कूल के दौरान कुछ घंटों के लिए भी इसका निलंबन, समुदाय के विश्वास को कमजोर करता है और संविधान के अनुच्छेद 19 और 25 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। वे क्वाज़ुलु-नटाल एंड अन्य बनाम पिल्ले में दक्षिण अफ्रीका के संवैधानिक न्यायालय के एक फैसले पर बहुत अधिक निर्भर थे, जिसने दक्षिण भारत की एक हिंदू लड़की के स्कूल में नाक की अंगूठी पहनने के अधिकार को बरकरार रखा।

गौरतलब है कि कर्नाटक के कुंडापुरा कॉलेज की 28 मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर क्लास अटेंड करने से रोका गया था। मामले को लेकर छात्राओं ने हाईकोर्ट में याचिका लगाते हुए कहा था कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य है, इसलिए उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। इन छात्राओं ने कॉलेज गेट के सामने बैठकर धरना देना भी शुरू कर दिया था।लड़कियों के हिजाब पहनने के जवाब में कुछ हिंदू संगठनों ने लड़कों को कॉलेज कैंपस में भगवा शॉल पहनने को कहा था। करीब 3 साल पहले भी हिजाब को लेकर स्कूल में विवाद हुआ था। तब फैसला लिया गया था कि कोई हिजाब पहनकर नहीं आएगा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से स्टूडेंट्स हिजाब पहनकर स्कूल आने लगीं। इसका विरोध करते हुए कुछ स्टूडेंट्स ने भगवा पहनने का फैसला किया था।

बीबीसी के अनुसार केरल विश्वविद्यालय के इस्लामी इतिहास के प्रोफेसर अशरफ कदक्कल के अनुसार , “इस्लामी विधिशास्त्र के सभी चार स्कूलों- शफ़ी, हनफ़ी, हनबली और मलिकी- में साफ तौर से बताया गया है कि महिला के बाल को, खासतौर से गै़र-महरम के सामने, ढका जाना चाहिए। इस नज़रिये से यह इस्लाम का अटूट हिस्सा है।”उन्होंने कहा, ”यहां तक कि इस्लामी कानून के आधार- कुरान ( पाक किताब), हदीस (पैगंबर मोहम्मद की रवायतें और अमल), इज्मा (सहमति) और क़यास (किसी जैसा)- में ज़िक्र है कि बालों को ढकना चाहिए।”

प्रो अशरफ कहते हैं, “हदीस इसे ज़रूरी बनाता है। कुरान में कई आयतें हैं जो महिलाओं के लिए इसे अनिवार्य बनाती हैं, खासतौर से पैगंबर की बीवियों और बेटियों के लिए कि वे अपनी निगाहें नीचे रखें और सिर को स्कार्फ़ से ढकें। स्कार्फ़ का कुरान में ज़िक्र आता है। क़ानूनी मामलों में इस्लामी ज़रिये (सोर्स) भी इसे मज़हब का अटूट हिस्सा बताते हैं।” प्रो. अशरफ का कहना है कि यह निर्देश यह साफ करता है कि “यह केवल स्कार्फ़ है। यह बुर्क़ा नहीं है, यह चादर नहीं है और यह नक़ाब नहीं है।चेहरे को ढकने की बात दावे से नहीं कही जा सकती है लेकिन बालों को ढकना मज़हब का अटूट हिस्सा है।”

जामिया मस्जिद, बेंगलुरु के इमाम-ओ-ख़तीब मौलाना डॉ. मक़सूद इमरान रश्दी ने कहा, “सिर्फ़ इतना ही ज़रूरी है कि पूरे बदन को ढकने वाली यूनिफॉर्म के साथ एक दुपट्टा, चाहे उसका रंग जो भी हो, पहना जाए। बुर्का पहनना जरूरी नहीं है। अगर दुपट्टा पहना जाता है, तो यह इस्लाम के निर्देश को पूरा करने के लिए काफी है।”मौलाना रश्दी का कहना है कि निर्देश के हिसाब से “एक दुपट्टा काफ़ी है। बालों पर कपड़ा बांधना ज़रूरी नहीं है। अगर स्कार्फ़ को सिर्फ स्कार्फ़ कहा जाता और हम इसे हिजाब नहीं कहते, तो इसमें कोई दिक्कत नहीं होती।”

वैसे दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहां हिजाब, बुरका पहनना और अपना चेहरा ढंककर रखना वर्जित है। खास बात तो ये है कि हिजाब बैन करने वाले देश कोई रूढ़िवादी सोच रखने वाले नहीं बल्कि खुशहाल और विकसित देशों में गिने जाते हैं। सीरिया में मुस्लिम आबादी की तादाद करीब 70 फीसदी है, वहीं इजिप्ट (मिस्र) में मुस्लिम आबादी करीब 90 फीसदी है। यहां की सरकारों ने विश्वविद्यालयों में क्रमश: 2010 और 2015 से पूरा चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लगा रखा है।

वर्तमान में स्विट्ज़रलैंड, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, बुल्गेरिया, इटली, फ़्रांस, रूस जैसे देशों में हिजाब और चेहरा ढकना वर्जित है। स्विट्ज़रलैंड में हिजाब बैन का कोई धार्मिक कारण नहीं है। बल्कि यहां की सरकार ने महिलाओं को आज़ादी से जीना का अधिकार देते हुए इस पर पाबन्दी लगाई है। स्विट्ज़रलैंड में एक परंपरा है जिसमें चेहरा दिखाया जाता है जो आज़ादी का प्रतीक है। जब स्विट्ज़रलैंड में बुरका पर बैन लगाया गया था तब वहां के पार्लियामेंट में यही कारण बताते हुए इसे बैन किया गया था। इसके अलावा नेशनल सिक्योरिटी और महिलाओं को स्वतंत्रता देने के लिए इस कानून को लागू किया गया था।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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