किसान महापड़ाव: कई राज्यों के राजभवनों पर किसानों का बड़ा जमावड़ा

नई दिल्ली। देश के किसान एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं। तीन दिनों से राज्यों की राजधानियों में स्थित राजभवनों के सामने वह विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन का मकसद केंद्र सरकार को किसानों के साथ किए वादे को याद दिलाना है, जो 3 साल बाद भी पूरा नहीं किया गया है। देश के किसानों को अभी तक उम्मीद थी कि पीएम मोदी किसानों से किए वादे को पूरा करेंगे। लेकिन तीन साल के इंतजार के बाद भी वादे पूरे नहीं हुए। अब किसान देश के हर राज्य में राजभवनों पर धरना देकर केंद्र सरकार के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं।

किसान और मजदूर संगठनों ने किसानों और मजदूरों से 26, 27, 28 नवंबर को राजभवनों पर विरोध-प्रदर्शन कर मोदी सरकार को वादों को याद दिलाने का आह्वान किया था। उसी कड़ी में शनिवार से ही देश के अधिकांश राज्यों के राजभवनों पर किसानों-मजदूरों का धरना-प्रदर्शन शुरू हो गया।

किसानों का कहना है कि 3 साल पहले केंद्र सरकार ने एसएसपी कानून लागू करने का वादा किया था। उसको अभी तक पूरा नहीं किया गया। इसके अलावा फसलों के डायवार्सिफिकेशन, कर्ज मुक्ति, सभी फसलों के लिए एमएसपी गारंटी कानून, 60 साल के किसानों के लिए पेंशन, फसल बीमा योजना, लखीमपुर खीरी के किसानों के लिए न्याय और बिजली संशोधन विधेयक 2022 को रद्द करना शामिल हैं। 

पंजाब के किसानों का चंडीगढ़ राजभवन मार्च

पंजाब के किसानों ने रविवार से ही मोहाली-चंडीगढ़ सीमा पर पड़ाव डाल दिया था। आज यानि सोमवार को वे राजभवन जाने के लिए मार्च किया। लेकिन पुलिस-प्रशासन ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया। एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी समेत अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले ये किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।

चंडीगढ़ में किसानों के प्रदर्शन को देखते हुए चंडीगढ़ पुलिस ने पंजाब और हरियाणा से लगते बॉर्डर पर भारी बैरिकेटिंग की है और सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। जहां पंजाब के किसान मोहाली-चंडीगढ़ सीमा पर बैठे हैं।

दिल्ली में हुए ‘किसान आंदोलन’ की तर्ज पर ही राशन-पानी और ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ धरने में 33 किसान संगठन हिस्सा ले रहे हैं। उन्होंने तंबू डाल दिए हैं और लगातार सरकार से अपनी मांगों को मनवाने का दबाव डाल रहे हैं। 

दरअसल, किसान आज ही के दिन ठीक 3 साल पहले केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 में हुए किसान आंदोलन के दौरान अपने खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने, उस दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा और एक सदस्य को नौकरी देने, कर्ज माफी तथा पेंशन की मांग कर रहे हैं।

किसानों ने घोषणा की है कि वे अपनी मांगों से जुड़ा एक ज्ञापन पंजाब के राज्यपाल को सौंपने के लिए चंडीगढ़ में राजभवन तक मार्च करेंगे। किसानों का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकार वादाखिलाफी कर रही हैं। बैठकों में मांगें मानने के बावजूद वादे पूरे नहीं किए जा रहे।

पंचकुला में हरियाणा के किसानों का धरना

संयुक्त किसान मोर्चा हरियाणा और ट्रेड यूनियन पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठक रतन मान की अध्यक्षता में पंचकुला में यवनीका पार्क में हुई। वे सब चंडीगढ़ राजभवन जाना चाहते हैं। लेकिन प्रशासन ने रास्ते को रोककर बैरिकेडिंग कर दी है।

केंद्र सरकार ने दिल्ली में आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए एफआईआर अभी तक रद्द नहीं किए हैं। किसान नेताओं ने कहा कि 11 महीने से किसान वाईपीएस चौक पर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन उनकी मांगें पूरी नहीं की जा रहीं। इस कारण अब चंडीगढ़ से एयरपोर्ट को जाने वाले रोड को बाधित कर दिया है।

हरियाणा की 17 किसान यूनियनों और 10 ट्रेड यूनियनों ने विभिन्न मांगों को लेकर पंचकुला के सेक्टर-5 में स्थित धरना स्थल पर 3 दिन के लिए महापड़ाव डाला है। यहां भी भारी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।

लखनऊ में किसानों का महापड़ाव

उत्तर प्रदेश के किसान लखनऊ के इको गार्डन में 26 नवंबर से ही धरना दे रहे हैं। एसकेएम के आह्वान पर हजारों लोग इको गार्डन लखनऊ में इकट्ठा हुए। उत्तर प्रदेश के किसानों की सबसे बड़ी मांग किसान आंदोलन के समय केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र ‘टेनी’ के बेटे के कार से कुचलकर मारे गए किसानों के परिजनों को मुआवजा के साथ मंत्री के बेटे को सजा दिलाने की है।

शिमला में हिमाचल प्रदेश राज्य सचिवालय भवन पर किसानों का धरना

हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित राज्य सचिवालय पर किसानों और श्रमिकों का महापड़ाव तीन दिन से जारी है। धरने को संबोधित करते हुए किसानों ने प्रधानमंत्री मोदी को किसानों से किए गए वादे को पूरा करने की मांग की।

देहरादून उत्तराखंड में तीन दिवसीय महापड़ाव शुरू हुआ

उत्तराखंड के किसानों और मजदूरों ने संयुक्त किसान मोर्चा और किसान-मजदूर संगठनों के आह्वान पर देहरादून में तीन दिवसीय महापड़ाव में एकट्ठा हुए हैं। किसानों ने कहा कि 3 साल पहले पीएम मोदी ने किसानों से आंदोलन को वापस लेने की अपील की थी, और उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया था। लेकिन आज तक एमएसपी घोषित नहीं किया गया। किसान आंदोलन के समय लगभग सात सौ किसानों की मौत हुई थी। सरकार ने उनके परिजनों को मुआवजा देने का वादा किया था, कर्ज मुक्ति का भी आश्वासन दिया गया था, लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ।

केरल में रविवार को किसानों ने दिया धरना

संयुक्त किसान समन्वय समिति के आह्वान पर केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी, किसान विरोधी नीतियों के ख़ि‍लाफ़ संयुक्‍त किसान मोर्चा (SKM) और केंद्रीय ट्रेड यूनियन (CTUs) हजारों किसान और कार्यकर्ता रविवार को केरल राजभवन पर दिया। तीन दिवसीय महापड़ाव के पहले दिन 32 विभिन्न किसानों और ट्रेड यूनियनों ने भाग लिया। महापड़ाव का उद्घाटन करते हुए, अखिल भारतीय कृषि श्रमिक संघ (AIAWU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ए विजयराघवन ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर COVID-19 महामारी के दौरान किसानों और श्रमिकों के हित के खिलाफ कानूनों को लागू करने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, “दिल्ली में ऐतिहासिक किसान संघर्ष के बाद, भाजपा सरकार को हार माननी पड़ी। उन्हें यह बात समझ में आ गई है कि कॉरपोरेट के सहारे किसानों को हराया नहीं जा सकता। लेकिन उन्होंने SKM के साथ हुई बातचीत में किये गये वादे पूरे नहीं किये हैं। 26 नवंबर से देश भर के राजभवनों के सामने तीन दिनों का विशाल महाधरना, उसी दिन शुरू किया जब किसानों ने अपना ऐतिहासिक संघर्ष शुरू किया था। यह भाजपा सरकार को उसके असफल वादों की याद दिलाने के लिए है।”

2014 के बाद से श्रमिकों और किसानों पर लगातार हो रहे हमलों पर विजयराघवन ने निरंतर संघर्षों के माध्यम से बनी एकता को मजबूत करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा “इस सरकार के 2024 से आगे बने रहने से देश का कोई भला नहीं होगा। संघ परिवार के संगठन आम नागरिकों के बीच सांप्रदायिक नफरत फैलाने में कामयाब रहे हैं। सत्ता पर काबिज भाजपा समाज के बीच इस विभाजन का इस्तेमाल अपने कॉर्पोरेट दोस्तों के लिए मुनाफा कमाने के लिए कर रही है।”

महाधरना की अध्यक्षता करते हुए, इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) के राष्ट्रीय महासचिव केवी जॉर्ज ने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर आबादी के विभिन्न वर्गों की चिंताओं को दूर करने में विफल रहने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “श्रम कानूनों को संहिताबद्ध करने से लेकर संसद में तीन कृषि कानूनों को खत्म करने तक भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने संसद और लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान किया है।”

पूर्व मंत्री और अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के प्रदेश अध्यक्ष एम विजयकुमार ने संविधान और संघीय व्यवस्था को कमजोर करने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा “26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन भाजपा सरकार राज्य के अधीन विषयों पर कानून बनाकर संविधान का ही बड़ा अपमान कर रही है। वे देश में मौजूद बहुलता का सम्मान नहीं करते हैं और न ही संघीय सिद्धांतों को महत्व देते हैं।”

रांची राजभवन पर किसानों का महापड़ाव

केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में रविवार को रांची राजभवन पर किसान संगठनों एवं मजदूर संगठनों ने धरना शुरु किया है। विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व झारखंड सीपीआई के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद भुवनेश्वर मेहता कर रहे हैं।

पूर्व सांसद मेहता ने कहा कि 26 नवंबर के दिन ही देश को संविधान पर चलने की शपथ ली गई थी। लेकिन आजादी के बाद भाजपा की सरकार कुछ उद्योगपतियों की सरकार हो गई है। अंबानी अडाणी जैसे उद्योगपतियों को सिर्फ सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा है। देश को खिलाने वाले किसानों और मजदूरों का शोषण हो रहा है। 11 महीने तक जब किसानों ने दिल्ली में संघर्ष किया और करीब 700 किसानों की मौत हो गई तब जाकर केंद्र में बैठी सरकार ने तीनों काला कानून वापस लिया।  

प्रदीप सिंह
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