महाराष्ट्र: जालना में मराठा आरक्षण समर्थकों पर लाठीचार्ज भाजपा को पड़ सकता है भारी

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में इस बार मराठा आरक्षण को लेकर शुरू हुआ आंदोलन पहले के आंदोलनों की तुलना में ज्यादा तीव्रता और आवेग लिए हुए है। जालना जिले के एक गांव में चल रहे शांतिपूर्ण अनशन को भाजपा सरकार ने जिस प्रकार से हैंडल किया, उसने देखते ही देखते पूरे महाराष्ट्र को अपनी आगोश में ले लिया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए अब अपनी सत्ता बचाना भी एक बड़ी चुनौती बन गई है।

जालना जिले के अंतरवाली सराती में मराठा समुदाय के प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज की घटना के बाद से पूरे राज्य में माहौल गरमा गया है। इसके चलते आज महाराष्ट्र में कई जिलों में बंद का आह्वान किया गया है। बता दें कि पिछले सप्ताह 1 सितंबर को जालना जिले में आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। इस घटना का वीडियो सारे देश ने देखा कि किस प्रकार पुलिस ने सभा स्थल पर जमकर लाठियां बरसाई थीं।

लेकिन सोशल मीडिया पर इस छोटी सी क्लिप के अलावा विस्तार से खबर नहीं आ सकी। मराठी अखबारों और न्यूज़ चैनल खंगालने पर जानकारी मिलती है कि सभा में महिलाओं, बूढों और बच्चों तक के साथ दुर्व्यहार किया गया। बड़ी संख्या में लोगों ने जब भागकर घरों में शरण ली, तो वहां से भी उन्हें निकालकर पीटा गया। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि लाठीचार्ज के साथ-साथ पुलिस ने गोलीबारी भी की थी।

आरक्षण आंदोलन और नेतृत्व

एक लाइव कारतूस को हाथ में लिए हुए इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की तस्वीर काफी वायरल हो रही है। एक युवा किसान मनोज जरांगे पाटिल शाहगढ़ (अंबाद) इस पूरे आंदोलन के केंद्र में हैं, जिनके बारे में जानकारी मिल रही है कि वे लंबे समय से मराठों के आरक्षण के लिए विभिन्न स्थानों पर घूम-घूमकर अलख जगा रहे थे। इसके लिए उन्होंने ‘शिवाबा’ नामक एक संस्था बनाकर, युवाओं को एकजुट करने का काम किया है।

इसी क्रम में यह आंदोलन फिलहाल जालना जिले के अंतरवाली सराती में चल रहा था। कहा तो यहां तक जा रहा है कि लाठीचार्ज से ठीक एक दिन पहले मनोज की फोन पर मुख्यमंत्री कार्यालय में बातचीत तक हुई थी। इसमें कहा गया था कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे 5 मिनट बाद आपसे बात करेंगे। लेकिन अगले ही दिन सभास्थल पर मराठी समुदाय पर बर्बर लाठीचार्ज हो जाता है, जिसके लिए राज्य के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे देवेंद्र फडनवीस को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश चारों ओर से हो रही हैं।

आलम यह है कि मराठा आरक्षण आंदोलन के केंद्र, अंतरवाली सराती (जिला जालना) का माहौल आज के दिन सामाजिक एकता के साथ दृढ़ संघर्ष का स्रोत बन चुका है। गोदावरी नदी के किनारे के सैकड़ों गांवों के युवाओं, महिलाओं, किसानों और नागरिकों की बेहद सहज एवं सक्रिय भागीदारी इस आंदोलन का मजबूत आधार बन गई है। विभिन्न राजनीतिक दलों एवं अलग-अलग विचारधारा वाली सभाएं इस आंदोलन में अब मराठा आरक्षण के समर्थन में काम करती नजर आ रही हैं।

यह इलाका गन्ना किसानों के गढ़ के तौर पर जाना जाता है। महाराष्ट्र के व्यापक क्षेत्रों में इस बार भी भारी सूखे की स्थिति है। ऊपर से मराठा आरक्षण को लेकर चल रहे उपवास कार्यक्रम को पुलिस प्रशासन गलत बताकर खत्म करने पर आमादा था। ऐसा माना जा रहा है कि पुलिस का खुफिया तंत्र परिस्थिति का आकलन करने में बुरी तरह फेल रहा। शुक्रवार को पुलिस के प्रदर्शन स्थल पर लाठीचार्ज से पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये हैं। इस घटना की गूंज पूरे राज्य में देखने को मिल रही है, और सरकार के सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।

जिला परिषद के पूर्व सदस्य जयमंगल जाधव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है, “लाठीचार्ज से पहले जारांगे के साथ स्थानीय प्रशासन और पुलिस की दो दिनों की बातचीत हो चुकी थी, लेकिन पुलिस बल का प्रयोग कर जारांगे को हिरासत में लेने की पुलिसिया कार्रवाई पर सवालिया निशान लग रहे हैं। इसका गंभीर असर हर जगह दिख रहा है।”

इस घटना के विरोध में 4 सितंबर को छत्रपति संभाजीनगर, सतारा, औरंगाबाद, ठाणे, जालना, कल्याण, बारामती और मुंबई में व्यापक पैमाने पर बंद और प्रदर्शन हुए हैं। मराठा क्रांति मोर्चा और सकल मराठा समाज ने इस बंद का आह्वान किया है। हालांकि जालना लाठीचार्ज कांड के बाद ही जालना पुलिस अधीक्षक को निलंबित कर कई पुलिस कर्मियों को जबरन अवकाश पर भेज दिया गया है।

आंदोलन को कई संगठनों का समर्थन

साथ ही मराठा आरक्षण के संबंध में सरकार की ओर से अपनी भूमिका पेश की जा रही है, लेकिन मामला अब उनके हाथ में नहीं रह गया है। वैसे भी राज्य सरकार के पास इसमें कुछ ख़ास करने को बचा नहीं है, क्योंकि मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। मराठा संगठन इस बंद में सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं और उसके द्वारा अन्य समुदायों से भी बंद में शामिल होने का अनुरोध किया गया है।

व्यापारी समाज से पत्राचार के माध्यम से बंद में सहयोग की अपील की गई है। स्कूल-कॉलेजों से भी सहयोग करने का अनुरोध किया गया है। इस अभियान को सोशल मीडिया के माध्यम से चलाया गया है। प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग जालना के पुलिस अधीक्षक को बर्खास्त करने की है। ट्रेड यूनियनों ने रविवार को हुई अपनी बैठक में साफ कर दिया था कि उन्हें बंद से कोई आपत्ति नहीं है।

इस बार के आंदोलन में विभिन्न अंबेडकरवादी संगठनों का भी समर्थन देखने को मिल रहा है। प्रकाश आंबेडकर सहित विभिन्न दलित संगठनों के पदाधिकारियों ने बयान जारी कर अपना समर्थन दिया है। स्कूल प्रशासन ने घोषणा की है कि सोमवार को स्कूल और कॉलेज भी बंद रहेंगे। इस संबंध में अभिभावकों को रविवार को संदेश भेजकर सूचित किया गया है कि स्कूल बंद हैं।

कृषि उत्पादन बाजार समिति का कारोबार भी सोमवार को बंद रहा। अध्यक्ष राधाकिशन पथाड़े ने अपील की है कि सब्जी विक्रेता सुबह 10 बजे तक बिक्री करें और फिर बंद में सहयोग दें। पांडुरंग तांगड़े ने कहा है कि जिला राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी मराठा क्रांति मोर्चा के बंद का समर्थन करती है। हालांकि इसी बीच तलाथी भर्ती परीक्षा चल रही है और सोमवार को भी परीक्षा है। मराठा संगठनों ने इस संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए स्पष्ट किया है कि उनके लिए बंद प्रभावी नहीं होगा।

एकनाथ शिंदे-अजित पवार की साख दांव पर

जैसा कि सभी जानते हैं कि महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में शिवसेना में भारी फूट डालकर अंततः भाजपा ने राज्य में फिर से सत्ता पर अपनी पकड़ स्थापित कर ली थी। इसके लिए शिवसेना से अलग हुए एकनाथ शिंदे को राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। लेकिन पिछले दिनों एक बार फिर इसी तरह एनसीपी में दो-फाड़ कर अजित पवार एवं अन्य को महाराष्ट्र सरकार में शामिल कर लिया गया। शिंदे और अजित पवार दोनों ही मराठा समाज का प्रतिनधित्व करते हैं, और उसके एकछत्र वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। भाजपा ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को अपनी जद में लाने के लिए ही इन दोनों नेताओं को समायोजित किया है।

लेकिन आज के दिन इन दोनों के लिए ही अपनी साख को बरकरार रख पाना मुश्किल हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक इस घटना से अजित पवार बेहद नाराज बताये जा रहे हैं। पिछले 3 दिनों से उनके सभी कार्यक्रम एक-एक कर रद्द किये जा चुके हैं। कल भी एक कार्यक्रम में उन्हें मुख्यमंत्री के साथ उपस्थित होना था, लेकिन अजित पवार ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से परहेज किया। उनके गृह जिले बारामती में भी पुलिसिया कार्रवाई पर भारी विरोध जताया जा रहा है, और यहां तक कि अजित पवार को सरकार से इस्तीफ़ा देकर बाहर आने तक को कहा जा रहा है।

इस घटना से मराठा समुदाय में सबसे दिग्गज शरद पवार एक बार फिर से केंद्र में आ गये हैं। शरद पवार ने इस घटना के लिए गृह मंत्रालय को दोषी करार दिया है, अर्थात देवेंद्र फडनवीस और पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। शरद पवार ने स्थिति का जायजा लेने के लिए जालना का दौरा किया और आन्दोलनकारियों के बीच उपस्थिति दर्ज कर अपना वक्तव्य भी जारी किया।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की है कि जालना लाठीचार्ज की जांच का जिम्मा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक संजय सक्सेना को दिया जायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो इस घटना की न्यायिक जांच भी करायी जायेगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री शिंदे ने लोगों को उन लोगों से सावधान रहने की अपील की जो इस स्थिति से राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं मराठा समुदाय से अपील कर रहा हूं। उन्होंने अब तक अपनी भावनाओं को बेहद संवेदनशील एवं शांति के साथ व्यक्त किया है। कृपया धैर्य रखें और कानून को अपने हाथ में न लें।”

शिवसेना के संजय राउत ने इस घटना पर कड़ा प्रहार करते हुए इसे जलियांवाला बाग़ नरसंहार से जोड़ दिया है। राउत का कहना है, “लेकिन यह जनरल डायर कौन है जिसने पूछताछ आदि से पहले ही गोली चलाने का आदेश दे दिया? यह हमला अंग्रेजों द्वारा जलियांवाला नरसंहार जैसी घटना की याद दिलाता है। पुलिस ने मराठा प्रदर्शनकारियों को चारों तरफ से इस तरह से घेर लिया कि जैसे उग्रवादियों या नक्सलियों पर हमला किया हो और मराठा प्रदर्शनकारियों पर अमानवीय हमला बोल दिया”।

संजय राउत ने कहा कि “पुलिस का लाठीचार्ज इतना अंधाधुंध था कि पुलिस को पता ही नहीं चला कि वे निर्दोष महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों का सिर फोड़ रहे हैं। यह भयानक हमला स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अमृतसर में अंग्रेजों द्वारा किए गए जलियांवाला बाग हत्याकांड की याद दिलाना था।”

लाठीचार्ज से पूर्व की पृष्ठभूमि

जालना में पिछले कुछ दिनों से मराठा आरक्षण की मांग को लेकर धरना चल रहा था। 30 अगस्त को मनोज जरांगे पाटिल द्वारा धरना स्थल से मुख्यमंत्री शिंदे के कार्यालय से संपर्क स्थापित कर समिति के फैसले के बारे में जानकारी मांगी गई थी। तब यह कहा गया था कि मुख्यमंत्री 5 मिनट बाद संपर्क करेंगे। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि गृहमंत्री देवेंद्र फडनवीस की पुलिस इस आंदोलन को किसी तरह खत्म करने पर आमादा थी।

पिछले 2 दिनों से पुलिस मनोज जरांगे पाटिल के खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर अनशनकारियों को हिरासत में लेने की कोशिश में थी। लेकिन जरांगे और उनके साथियों ने पुलिस को बताया, ‘मेरा स्वास्थ्य ठीक है, मैं कहीं नहीं आऊंगा और विरोध प्रदर्शन खत्म नहीं करूंगा।’ धरना स्थल पर मौजूद महिलाओं और ग्रामीणों के विरोध के चलते पुलिस अधिकारियों ने उस समय तो पीछे हटने का नाटक किया। लेकिन बाद में 150 पुलिसकर्मियों के एक दल ने विरोध स्थल पर आकर अंधाधुंध लाठीचार्ज शुरू कर दिया। 

प्रदर्शनकारियों के समर्थन में एक महिला भजन मंडली भी वहां मौजूद थी, लेकिन पुलिस ने उन्हें भी निशाना बनाया। कई लोगों ने आसपास के घरों में शरण ली, लेकिन पुलिस ने घरों में घुसकर ग्रामीणों को बेरहमी से पीटा। पुलिस के इस अमानवीय लाठीचार्ज के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप पथराव हुआ और करीब 45 पुलिसकर्मी भी घायल हो गये।

 शुक्रवार की रात हुई इस घटना के बाद उसी रात और शनिवार को भी कई जगहों पर आगजनी की घटनाएं हुईं। यह बात भी सामने आई है कि गुस्साए मराठा युवकों ने कुछ जगहों पर एसटी बसों में आग लगा दी और तोड़फोड़ की। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए जालना जिले के एसपी तुषार दोशी को अनिवार्य छुट्टी पर भेजने का फैसला किया।

इस बीच, आंदोलन के नेतृत्वकर्ता मनोज जारंगे ने राज्य सरकार से बातचीत में कोई समाधान नहीं निकलने पर ऐलान किया है कि आरक्षण मिलने तक वे आंदोलन को जारी रखेंगे। उन्होंने 2 दिनों के भीतर मामले को हल करने की मांग की है। इसी के मद्देनजर 4 सितंबर को राज्य कैबिनेट के उपसमिति की बैठक होगी। इस बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित उप-मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस और अजित पवार के शामिल होने की संभावना है।

इस बीच उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने भी मराठा आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल से चर्चा कर उन्हें बातचीत के लिए मुंबई आमंत्रित किया है। उधर छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज सांसद उदयनराजे भोसले ने भी मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर चर्चा करने का अनुरोध किया है।

इससे पहले शनिवार को एकनाथ शिंदे ने कहा था कि “राज्य सरकार मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। नवंबर 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने मराठा आरक्षण की घोषणा की थी। हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अलग फैसला सुनाया। सभी जानते हैं कि यह किसकी लापरवाही थी। मराठा आरक्षण का मामला फिलहाल कोर्ट में है। राज्य सरकार इस मामले को कोर्ट में लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है।”

फिलहाल मराठा आंदोलन का केंद्र अभी भी जालना का धरना स्थल बना हुआ है, जहां पर आंदोलनकारी अनशन को जारी रखे हुए हैं। सरकार, विपक्ष सहित तमाम नेता एक-एक कर वहां पर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इसी कड़ी में आज राज ठाकरे ने भी जालना का दौरा किया। रास्ते में जगह-जगह उन्हें नारेबाजी का शिकार होना पड़ा, लेकिन सभास्थल पर आकर उन्होंने भी देवेन्द्र फडनवीस पर ही निशाना बोला। उन्होंने अनशनकारियों से बातचीत कर घटना की जानकारी ली। इस मौके पर राज ठाकरे ने लोगों को संबोधित करते हुए सीधे तौर पर गृहमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस को निशाने पर लिया।

मराठा आरक्षण का इतिहास

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की आबादी 32% के आसपास है। मूलतः कृषक समाज से सम्बद्ध मराठा समाज को निजाम के दौरान भी आरक्षण हासिल था, जिसे समाज के अनुसार दोबारा से हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना आधार-स्तंभ मानने वाले मराठे महाराष्ट्र की राजनीति में बेहद प्रभावी स्थान रखते हैं। 2012 तक कुल 16 मुख्यमंत्रियों में 12 मराठा समुदाय से ही थे। भाजपा-शिवसेना गठबंधन की टूट के बाद से भाजपा के लिए महाराष्ट्र की राजनीति में अपने वर्चस्व को बनाये रखने की चुनौती थी। इसके लिए ही शिवसेना और एनसीपी के मराठा नेतृत्व को तोड़कर इसकी भरपाई करने की कोशिश की गई, लेकिन इस घटना के बाद इसका उल्टा असर पड़ सकता है।

2016 से लेकर 2018 तक महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा आरक्षण को लेकर भारी बवेला मचा था। 2016 के मराठा आंदोलन में लाखों की संख्या में लोगों की रैली ने एक खामोश तूफ़ान को देखा था, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों की भागीदारी हैरान करने वाली थी। हालांकि उस समय एक मराठी लड़की के साथ रेप और हत्या के चलते मराठी समाज में गहरा तनाव भी व्याप्त था, जिसके निशाने पर उस समय दलित समाज आ सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और खामोश भीड़ की यह गर्जना संभवतः किसी भी शोर से भारी थी। महाराष्ट्र में जिले-जिले में चले इस आंदोलन ने एक अलग ही छाप छोड़ी थी।

लेकिन उस दौरान एनसीपी सहित भाजपा और हिंदुत्व की शक्तियों की भी आंदोलन में घुसपैठ थी, जिसकी कोशिशें पिछले कुछ दशकों से जारी थीं। लेकिन आज जब पिछले 9 महीने से महाराष्ट्र में सकल हिंदू समाज के झंडे तले 50 से अधिक हिंदुत्व समर्थक रैलियां निकाली जा चुकी थीं, जिनमें लव जिहाद, औरंगजेब और मुस्लिम विरोधी भावनाओं को हवा देकर महाराष्ट्र को प्रयोगशाला बनाने का काम जारी था, ठीक उसी के बीच से सकल मराठा समाज के बैनर तले मराठी समुदाय के लिए आरक्षण की मांग का उठना हिन्दुत्ववादी शक्तियों के लिए बड़े झटके की स्थिति कही जा सकती है।

यही वह समुदाय है जो किसान है, जिसे 90 के दशक के बाद देश की प्रगति में हिस्सेदारी नहीं मिली, और बड़े पैमाने पर कर्ज के बोझ तले आत्महत्या का सहारा लेना पड़ा है। इसी समुदाय को हिन्दुत्ववादी शक्तियां अपनी पैदल सेना बनाना चाहती हैं, लेकिन यही समुदाय यदि दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ एकजुट हो जाये तो महाराष्ट्र की सूरत बदलकर रख सकता है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

रविंद्र पटवाल
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