‘बदलना है तो हालात बदलो, नाम बदलने से क्या होगा’: राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे का पूरा भाषण पढ़िए

संसद के विशेष सत्र के पहले दिन सोमवार को राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। इंडिया और भारत नाम की चर्चा पर भी खड़गे ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि आप कुछ भी कहते रहो लेकिन हम इंडिया हैं। इसके बाद खड़गे ने पीएम नरेंद्र मोदी पर भी हमला किया। उन्होंने आरोप लगाया कि पीएम मोदी सदन में नहीं आते हैं। खड़गे ने तंज कसते हुए कहा कि नाम बदलने से कुछ नहीं होता है, बदलना है तो हालात बदलो।

खड़गे ने कहा कि हमसे बार-बार पूछा जाता है कि 70 साल में आपने क्या किया। हमने 70 साल में इस देश के लोकतंत्र को मजबूत किया। नेहरू काल में देश की नींव पड़ी..नींव के पत्थर दिखते नहीं हैं। खड़गे ने कहा कि अटल जी ने अपने 6 साल के कार्यकाल में 21 बार संसद में बयान दिया। डॉ. मनमोहन सिंह ने 30 बार बयान दिया। लेकिन मौजूदा पीएम मोदी ही ऐसे हैं, जिन्होंने सदन में 9 सालों में कस्टमरी बयानों को छोड़कर केवल दो बार बोले। वो संसद में कभी-कभार आते हैं, जब आते हैं तो इवेंट बनाकर चले जाते हैं।

मल्लिकार्जुन खड़गे का राज्य सभा में दिया पूरा भाषण पढ़िए..

सर, आपका मैं आभारी हूं, क्‍योंकि मुझे आपने जल्‍द बुलाया और अपनी बात रखने के लिए मुझे मौका मिला, इसलिए मैं आपका आभारी हूं। मैं इस शब्‍द से शुरू करूंगा ताकि कोई ये न समझे कि हमारे लिए ही ये बोल रहे हैं। आम जनता जो बोलती है, वही बात मैं यहां रख रहा हूं और आगे ये भी बोलूंगा कि संविधान कैसे बना और संविधान के तहत हम कहां तक चल पाए और संविधान ने कितनी हमको आजादी दी है, उसका हम कहां तक, किस ढंग से, अच्‍छी तरह से देश को बनाने में हम इस्‍तेमाल कर रहे हैं, ये बहुत बड़ी बात है। ठीक है आपके भाषण में तो आपका अचीवमेंट भी आया, आपके अनुभव भी आए और आप जो चाहते थे उसको यहां पर रखने की कोशिश की है, लेकिन मैं इससे शुरू करता हूं कि–

बदलना है तो अब हालात बदलो

ऐसे नाम बदलने से क्या होता है?

देना है तो युवाओं को रोजगार दो

सबको बेरोजगार करके क्या होता है?

दिल को थोड़ा बड़ा करके देखो

लोगों को मारने से क्या होता है?

कुछ कर नहीं सकते तो कुर्सी छोड़ दो

बात-बात पर डराने से क्या होता है?

अपनी हुक्मरानी पर तुम्हें गुरूर है

लोगों को डराने-धमकाने से क्या होता है?

बदलना है तो अब हालात बदलो

ऐसे नाम बदलने से क्या होता है?

और यहां से वहां जाने से और क्‍या होता है?

सर, तो सबको गर्व है इस देश पर और इसीलिए मैं ये कहूंगा कि जो संविधान आजादी के बाद बना और इस संविधान के तहत हम सभी को चलना है और देश के लिए हमें कुछ करना है और इसमें मैं एक ही बात कहूंगा कि इस पार्लियामेंट्री जर्नी में 75 साल जो संविधान सभा का, ये जो संविधान बना हुआ और उसके अचीवमेंट, एक्‍सपीरियंस, मेमोरीज़, लर्निंग इस पर ही हमको बात करनी थी। तो मैं इसी पर थोड़े शब्‍दों में बोलूंगा कि एक मेरी भी है, असेंबली और पर्लियामेंट मिलाकर 52 साल हिस्‍सा है मेरा भी, लेकिन मुझे यहां ज्‍यादा समय नहीं मिला, मुझे वहीं पर रहना पड़ा, बैंगलोर में ही था, यहां बहुत से नेताओं के भाषण सुनने का मुझे कम मौका मिला, सिर्फ 14 साल मिले।

सर, ये संविधान सभा, ये भवन आजाद भारत के सारे बड़े फैसलों का गवाह है और इसी भवन में हमारी संविधान सभा 11 सत्रों में 165 दिन बैठी। उसने 90,000 शब्‍दों वाला जो संविधान बनाया वो 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। जब 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने इसकी मंजूरी दी, वहां की बहस सुनने के लिए करीब 53,000 लोग आए थे, विजिटर्स यानी इस मौके पर।

सभापति जी, आपने अपने जयपुर के पीठासीन अधिकारी सम्‍मेलन में संविधान सभा के 11 सत्रों के व्‍यवधान रहित संचालन को एक आदर्श स्थिति कहा था। यानी किस ढंग से वो चला और कितनी अच्‍छी थी ये आपने जयपुर के अपने वक्‍तव्‍य में कहा। तो ऐसा वो एक वक्‍त था जो सबको लेकर लोग चलते थे और लोकतंत्र को ठीक ढंग से, ठीक रास्‍ते पर ले जाने के लिए कितनी कोशिशें होती थीं, इससे ये अंदाजा लगता है।

बिल्‍कुल ऐसा ही था, क्‍यों‍कि तब राष्‍ट्र की बुनियाद रखने का काम हो रहा था और बुनियाद के अंदर जो पत्‍थर जाते हैं, वो दिखते नहीं और जब वॉल पर आप नाम लगाते हो, वही दिखते हैं।

सर, संविधान सभा में चुने गए विभिन्‍न धाराओं के लोग महान नायक थे उस वक्‍त, अपने दौर के महार‍थी थे, उनका बड़ा जमीनी अनुभव भी था। स्‍वतंत्रता, समानता, न्‍याय, मानवीय गरिमा और लोकतंत्र उनकी नसों में समाया था, क्‍योंकि उसके लिए ही वो लड़ रहे थे, इसीलिए संविधान निर्माताओं ने हमें जो संविधान दिया है, वही हमें आज भी एक बनाए हुए है और उसी ने राष्‍ट्र के लिए सशक्‍त ढांचा तैयार किया है। इसी कारण लोकतंत्र के सिद्धांत और व्‍यवहार आज जनता के स्‍वभाव का अभिन्‍न अंग है।

भारतीय संविधान हमारा सबसे बड़ा मार्गदर्शक है, इसी के आधार पर संसदीय प्रणाली के हक में फैसला हुआ और एडल्‍ट फ्रेंचाइज जो हमको मिला, वो सबसे बड़ी बात है, क्‍यों‍कि आपको तो मालूम है पहले जब वोटिंग पावर थी 1935 के एक्‍ट के तहत जो टैक्‍स देते हैं, जिनके पास जमीन है, जो पढ़े-लिखे हैं, जो इनकम टैक्‍स पे करते हैं, ऐसे ही लोगों के लिए वोटिंग का एक अधिकार था, लेकिन हमने जो संविधान बनाया, पंडित जवाहर लाल नेहरू जी और डॉ० बाबा साहेब आंबेडकर, वल्‍लभ भाई पटेल, जितने भी महान नेता उस वक्‍त संविधान सभा में थे उन्‍होंने एडल्‍ट फ्रेंचाइज दिया। आप पढ़े-लिखे हो, अनपढ़ हो, गरीब हो या अमीर हो सबको एक ही वोट और उसकी वैल्‍यू भी एक ही।

जो एक बड़े अमीर आदमी… सपोज करो अडानी के जैसे उसको भी एक ही वोट, उसकी वैल्‍यू भी एक ही वोट, लेकिन आज हमारे जो कर्मचारी हैं, छोटे लोग हैं, काम करते हैं, उनको भी एक ही वोट, ये किसने दिया– ये संविधान जो बनाने वाले कांग्रेस के लोग, जो आजादी के लिए लड़े और ये दिलाए और ये ढांचा बना इसीलिए आज भी एडल्‍ट फ्रेंचाइज से ये देश जिंदा है, एक है और इंक्‍लूसिव है और ये इंक्‍लूसिव बोलो तो थोड़ा सा डर होता है उनको, इंक्‍लूसिव बोले तो फिर इंडिया.. उसको क्‍या करते छोटा करने के लिए हमारे नड्डा साहब इंडी-इंडी बोलते हैं। ठीक है, इसीलिए तो बोला नाम बदलने से कुछ नहीं होता, इंडी बोलो और कुछ भी बोलो, हम हैं इंडिया।

हमारे नायकों ने बहुत मंथन करके जो संविधान दिया, वो जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरा है। बाबा साहेब ने संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में ये कहा था.. मैं ये कोट करना चाहता हूं अगर आपकी इजाजत है तो?

 “मसौदा समिति का कार्य बहुत ही कठिन हो जाता यदि यह संविधान सभा विभ‍िन्‍न विचार वाले व्‍यक्तिओं का एक समुदाय मात्र होती, विभिन्‍न विचार-धाराओं के लोगों का एक समुदाय होता, एक उखड़े हुए फर्श के समान होती, जिसमें कहीं एक काला पत्थर होता तो कहीं सफेद पत्थर और जिसमें प्रत्येक व्‍यक्ति या प्रत्येक समुदाय स्‍वयं अपने को विधिवेत्ता समझता, सिवाय उपद्रव के और कुछ नहीं होता.. सभा में कांग्रेस पक्ष की उपस्थिति ने इस उपद्रव की संभावना को पूर्णत: मिटा दिया और इसी के कारण कार्रवाईयों में व्‍यवस्‍था और अनुशासन दोनों बने। कांग्रेस पक्ष के अनुशासन के कारण ही मसौदा समिति ये निश्चित रूप में जानकर कि प्रत्‍येक अनुच्‍छेद और प्रत्‍येक संशोधन का क्‍या भाग्‍य होगा, इस संविधान का संचालन करने बैठे।”

तो ये कांग्रेस के लिए बाबा साहेब आंबेडकर ने कहा है, कैसा संव‍िधान बना है, क्‍योंकि उस वक्‍त इतने डिफरेंट लोग थे, इंटेलीजेंट लोग थे और एक-दूसरे से वो अगर लड़ते भी तो बाहर आकर एक होते थे, वो कभी किसी के ऊपर कुछ नुक्‍ताचीनी करके बैठते नहीं थे।

सर, मैं आपको एक और बात बताना चाहता हूं कि ये बाबा साहेब आंबेडकर ने ड्राफ्टिंग, यानि संविधान बनाने के लिए कितनी कोशिश की है बहुत लोगों को मालूम नहीं हैं, चूंकि ये कहते हैं ड्राफ्टिंग कमेटी चेयरमैन थे, वो क्‍या, ये क्‍या.. ऐसा बोलने वाले बहुत हैं, क्‍योंकि कोई व्‍यक्ति को हम नहीं चाहते, ये खासकर हमेशा ये दलितों की हालत होती है। तो जब उन्‍होंने इतना कष्‍ट करके, रात-दिन बैठकर जो संविधान बनाया है, इसीलिए उसमें एक टी. टी. कृष्णमाचारी का एक स्‍टेटमेंट है, मैं आपके सामने पढ़कर सुनाता हूं।

“संविधान का निर्माण करने वाली चुनिंदा सात सदस्‍यों की ड्राफ्टिंग कमेटी में सबसे बड़ी भूमिका डॉ आंबेडकर ने निभाई.. सात लोगों में, इसमें क्‍या होता, क्‍योंकि 7 में से 1 सदस्‍य ने त्‍यागपत्र दिया, 1 सदस्‍य का निधन हो गया, जबकि एक अमेरिका चला गया, 1 सदस्‍य रियासत के कार्यों में व्‍यस्‍त रहे और 2 सदस्‍य दिल्‍ली से दूर थे, उनकी सेहत खराब होने के कारण कम मौजूदगी होती थी, तो सारा दारोमदार बाबा साहेब आंबेडकर पर था।”

ये इतिहास है, हम इसको कभी नहीं कहते हैं। ये बार-बार यही बोलते हैं ड्राफ्टिंग कमेटी के ये थे, सब मेंबर्स ने मिलकर.. अब ये टी. टी. कृष्णमाचारी जो मेंबर थे संविधान सभा के और खासकर इस ड्राफ्टिंग कमेटी के भी मेंबर थे, उन्‍होंने ये बात कही है। तो एक व्‍यक्ति देश बदलने के लिए, संविधान को मजबूत करने के लिए, लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए और संविधान को जीवित रखने के लिए, सबसे कंसल्‍ट करके, जो बनाते हैं, वो किसके जमाने में हुआ– वो कांग्रेस ने किया।

उसकी रक्षा के लिए हम लड़ रहे हैं, उसी के लिए हम तैयार हो गए हैं, सब कुछ, हम ये नहीं समझते, हम जो कहेंगे वो हमको मिलेगा। हमारा एक सभी का ये इरादा है कि जो चीज इतने कष्‍ट से, इतनी मेहनत से कमाई है उसको हम गंवाना नहीं चाहते।

सर, आपको और एक यही बात कहूं‍गा कि इसके बाद 1950 में भारत ने जब लोकतंत्र अपनाया तो बहुत से विदेशी विद्वानों को लगता था कि यहां लोकतंत्र विफल हो जाएगा, क्‍योंकि ये करोड़ों अंगूठे छाप लोग हैं, तब ब्रिटिश प्रधानमंत्री.. आपको तो मालूम है, मुझे बोलने की आवश्‍यकता नहीं है, चर्चिल ने यहां तक कहा था, अंग्रेज चले गए तो उनके द्वारा स्‍थापित न्‍यायपालिका, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं, रेलवे और लोक निर्माण का पूरा तंत्र खत्‍म हो जाएगा, ये चर्चिल ने कहा।

यानी इतना अंडरमाइन किया हमको कि ये लोग अनपढ़ हैं, अंगूठा छाप हैं, ये लोग क्‍या करेंगे, डेमोक्रसी को कैसे टिकाएंगे? लेकिन हमने टिकाकर दिखाया, हमने इसको मजबूत किया, इसका संरक्षण किया और बार-बार हमको टोका जाता है कि 70 साल में आपने क्‍या किया– अरे 70 साल में तो यही किया हमने, इसको मजबूती दी हमने, लोकतंत्र को बचाया हमने और संविधान को लेकर हम आगे बढ़े और बार-बार आपके पास कुछ नहीं बोलने के लिए, ये बोलते जाओ।

सर, वर्ल्‍ड वार-2 में, उसके बाद साथ आजाद हुए देशों में सैनिक, तानाशाही थी, फिर भी हमारे लोग मजबूती के साथ इस देश में इस संविधान को टिकाए, डेमोक्रसी को टिकाए, लेकिन हमारे यहां सत्ता का हस्‍तांतरण गोली या बंदूक से नहीं हुआ। महात्‍मा गांधी जी ने हमें जो आजादी दिलाई, वो सिर्फ नॉन वाइलेंट तरीके से, नॉन कॉर्पोरेशन से और इसीलिए हमारे संविधान में जो आदर्श हमारे सामने हैं उनकी वजह से आज सभी लोग इसका पालन करते हैं और इसको आगे ले जाते हैं।

दूसरी बात मैं ये कहूंगा कि इस भवन में 75 सालों के दौरान देश की किस्‍मत बदली है और देश की सूरत बदलने वाले तमाम कानून यहां बने हैं। जमींदारी रेवोल्‍यूशन, छुआछूत मिटाने का, ओबीसी के आरक्षण के लिए कानून यहां बने हैं, यहां तक कि ईडब्‍लूएस के भी कानून बने हैं।

सभापति जी, मैं पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी का खासतौर पर जिक्र करना चाहता हूं। उनका मानना था कि संसद तभी तक प्रासंगिक है जब एक समय की बदलती जरूरतों के मुताबिक निरंतर विकसित, गतिशील संस्‍था बनी रहती है, तेजी से बदलाव के दौर में संसद को तेजी से काम करना होगा, ये नेहरू जी का कहना है। तो हम तो कॉपरेट कर रहे तेजी से काम करने के लिए, लेकिन कभी-कभी झगड़ें की बातें ज्‍यादा होती हैं।

सर, मैं ये बता रहा हूं कि पहले कैसे डेमोक्रेटिक तरीके से पहले चलती थीं। नेहरू जी के कैबिनेट में वो सबको अपने साथ लेकर चलते थे, उन्‍होंने जो पहली कैबिनेट बनाई, उसमें सबसे योग्‍य लोगों को शामिल किया, जो कांग्रेस में नहीं थे वैसे 5 लोगों को शामिल किया। साहब उन्‍होंने तो 5 अपोजीशन के लोगों को शामिल किया, उनसे सहमति नहीं होती थी उनको किया, आप तो हमारी छाया भी नहीं देखना चाहते हैं।

उन्‍होंने पहली कैबिनेट बनाई थी उसमें बाबा साहेब और श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी साहब समेत 5 दूसरी विचारधारा के लोग थे।

सर, नेहरू जी के बारे में बहुत बातें बोलते हैं अपोजीशन के लोग, खासकर बीजेपी के लोग.. ये छोड़ दीजिए। जो आदमी 14 साल जेल में रहकर, सबकुछ सहन करके, देश की बुनियाद डालकर, बड़े-बड़े कारखाने बनाकर, पब्लिक सेक्‍टर बनाकर, नौकरियां देकर इतना बनाए हैं, वो बुनियाद डालने के बाद देश बढ़ा और 5 ही साल में हम आगे बढ़े। तो मैं आपको आगे थोड़ा सा दिखाऊंगा कि किस ढंग से..

देखिए बोलते हैं नेहरू जी में कितना बड़प्‍पन था कि अपने राजनीतिक विरोधी विचारधारा के नेता श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी को केन्‍द्र में इंडस्‍ट्री और सप्‍लाइज मिनिस्‍टर बनाए, नेहरू जी संसद का बहुत सम्‍मान करते थे और अक्‍सर अपने सहयोगियों को और युवा सांसदों के लिए एक उदाहरण के रूप में डिबेट्स के दौरान उन्‍हें धैर्यपूर्वक बैठकर सुनते थे, अब अंदर भी नहीं आते हैं। वो तो धैर्य के अनुसार सुनते थे, लेकिन यहां अंदर भी नहीं आते प्राईम मिनिस्‍टर। यहां कम से कम डेमोक्रटिक तरीके से आने के लिए बोलो, थोड़ा गोयल जी को भी रिलीफ मिलेगा, वर्ना हर बात को डिफेंड करने के लिए गोयल जी को उठना पड़ता है। तो ये इसलिए कह रहा हूं कि संसद की जानकारी..

नेहरू जी महत्‍वपूर्ण मुद्दों पर लगातार विपक्षी नेताओं से मिलते रहते थे, प्रमुख मुद्दों पर बहस के दौरान सांसदों की बातें ध्‍यान से सुना करते थे। नेहरू जी ने तो यहां तक कहा था, मुझे इस सदन की शक्तियों से ईर्ष्‍या है और मैं नहीं चाहूंगा कि कोई उन शक्तियों को सीमित कर दे। यानी इतना बड़प्‍पन.. मैं किसी को सीमित करना नहीं चाहता, सुनना चाहता हूं, सबकी ओपिनियन लेना चाहता हूं। तो ये बात उन्‍होंने कही थी। आज क्‍या होता है, हमारी बात सुनने के लिए कोई नहीं आता।

नेहरू जी का विचार था मजबूत विपक्ष न होने का अर्थ है व्‍यवस्‍था में महत्‍वपूर्ण खामियां हैं, अगर मजबूत विपक्ष नहीं है तो वो ठीक नहीं है, नेहरू जी का कहना था। अब तो मजबूत विपक्ष है तो उसको ईडी, सीबीआई से उसको कमजोर कैसे करना। अगर कोई है भी तो इमिडिएटली उसको लेना, कमजोर करना, फिर वॉशिंग मशीन में डालना, क्‍लीन होकर बाहर आना, वहीं पर परमानेंट होना, लेकिन आज क्‍या हो रहा है ये सब देख रहे हैं। संसद में पीएम साहब कभी-कभार आते हैं, जब आते हैं तो इवेंट बनाकर चले जाते हैं।

मणिपुर सर, आपको तो मालूम है 3 मई से आज तक दंगे चल रहे हैं, आज तक लोगों को मार रहे हैं, घर जला रहे हैं, आज एक मर गया, तो कितने हैं। इसके बारे में एक स्‍टेटमेंट दो हमने इतनी कोशिश की, इतनी कोशिश की।

साहब डेमोक्रेसी में, वो रात गई, बात गई, लेकिन आज क्या हो रहा है ये सब देख रहे हैं। सर, वो देश के कोने-कोने में जाते हैं, लेकिन मणिपुर में क्यों नहीं जाते? नहीं साहब, वो, आने दो मेरी कॉन्स्टिट्यूंसी में, कुछ काम करके दिखाते, कुछ तो करते नहीं, लेकिन डेमोक्रेसी में हार-जीत तो अलग है, लेकिन आते हैं, तो इवेंट बनाकर चले जाते हैं। मैं चाहता था गुलबर्गा में एक डिवीजन बने, मैं चाहता था एक फैक्ट्री मैंने बनाया था, उसको शुरू करें,  मैं चाहता था, वहां पर सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, वो कुछ इम्प्रूव करें और कहां हमारे यादव साहब, लेबर मिनिस्टर, उनसे तो मैं आते-जाते नमस्ते करता हूं।

साहब मेरा क्या हुआ, एक एम्स बनाकर दो, एक बहुत बड़ा अस्पताल बनाया, वो उनके कंट्रोल में है, वो क्यों नहीं इंटरेस्ट ले रहे हैं। जब तक मोदी साहब की इजाजत नहीं मिलती, तब तक वो नहीं देंगे। मेरी मुश्किल ये है कि आप सरकार को क्यों नहीं रिक्वेस्ट करते। रिक्वेस्ट नहीं, दबाव डाले तब भी नहीं कर रहे और आते-जाते मैं समझता हूं कि 50 सलाम तो हो गए होंगे मेरे यादव जी से। मेरे बाजू में है, तो ये ऐसा और अच्छी बिल्डिंग हैं, उन्होंने खुद देखी है। खैर जाने दो, मेरी किस्मत अच्छी नहीं, मेरे लोगों की किस्मत अच्छी नहीं, वहां के लोग पहले ही बैकवर्ड हैं, उनको और भी दूर रखा। तो उनको मणिपुर में जाना था, वहां पर उनके दुख-दर्द को देखना था, लेकिन किसी वजह से वो जा नहीं सके, ये अच्छा नहीं हुआ।

सभापति जी अटल जी ने अपने कार्यकाल में 21 बार बयान दिया 6 साल में। डॉ. मनमोहन सिंह जी ने 30 बार बयान दिया। केवल हमारे मौजूदा पीएम साहब ही ऐसे हैं, जिन्होंने सदन में 9 सालों में कस्टमरी बयानों को छोड़कर केवल दो बार बोले, ये डेमोक्रेसी है साहब। अब इसको कैसे सुधारते हैं, ये मैं आप पर छोड़ता हूं। कस्टमरी बोले तो ये अपने राष्ट्रपति जी का, ये जो ऐसे इशू रहते हैं, बोलना ही चाहिए।

नहीं साहब, अपने स्टाफ को पूछिए, अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 21 बार बयान दिया। बयान देना अलग है, लेकिन कस्टमरी जो उत्तर देना, हर चीज पर जो राष्ट्रपति का भाषण देना, वो अलग है। तो ये 21 बार बयान जो वाजपेयी साहब ने दिए, वो अलग-अलग अवसर पर दिए, वैसे ही मनमोहन सिंह जी ने 30 बार दिए। ये अलग-अलग अवसर में दिए, ये बात मैं बोल रहा हूं। वो भाषण देते नहीं, बोलते नहीं, बाहर बहुत बोलते हैं, इतना बोलते हैं कि वो हज्म ही नहीं होता हमें, इतनी बार बोलते हैं। साहब आपने बोला कि मैंने चांस दिया, तो भी आप नहीं बोलते हैं, चर्चा नहीं करते हैं।

सर, पहले इस सदन में 267 में 7 बार चर्चा हुई है, क्वेश्चन ऑवर सस्पेंड करके 10 बार चर्चा हुई है। कितने सालों में नहीं, देखो, मैं कह रहा हूं ये सदन में जो हुआ है, लेकिन आप एक बार भी करें। ठीक है, मैं डेट वाइज वो फीगर दे दूंगा। सुन लीजिए, आपको, चेयरमैन साहब को ऐसे नहीं सताना चाहिए। सर, संसद और विधानसभा जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्थाएं हैं, जिनके माध्यम से जन आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिलती है और बदलते समय में जनता की अपेक्षाएं बढ़ रही हैं। लिहाजा सदनों में स्तरीय चर्चा होनी चाहिए, इन चर्चाओं को पूरे देश को लाइव देखना चाहिए। इसको जरा ठीक करिए, मेरा दिख रहा है, बाकी के वक्त तो किसी अपोजीशन का आता ही नहीं, वो जरा क्या कंट्रोल हमारे गोयल साहब करते हैं, कौन करते हैं, हमें मालूम नहीं, वो बोल दीजिए।

बाहर तो हमें चांस नहीं मिलता, यहां तो चांस मिलता है, जरा दिखा तो दीजिए। जनता के सवाल उठा सकते हैं। जब ये हमारे अब तेलंगाना के नेता उठा रहे थे, ऐसे उठाते रहते हैं, आप डांटते रहते हैं। वो जो कहते हैं, कम से कम यहां रजिस्टर हुआ तो बाहर भी मालूम होता है कि भाई हमारी बात किसी ने रखी। इसलिए तो ऐसी चीजें संवैधानिक हैं और संवैधानिक तरीके से हम जो काम करते हैं, उसको प्रोत्साहन मिलना चाहिए और सरकार की भी ये देने की कोशिश होनी चाहिए और ये संसद लोगों के हितों और अधिकारों का संरक्षक है और आप हमारे गार्डियन हैं और अगर हमारे ऊपर कुछ अन्याय हो रहा है, तो फौरन हमें संरक्षण देने वाले आप ही हैं। नहीं तो हम इतने कम लोग हैं, इतने सारे लोग हमें मारते-पीटते रहेंगे, तो फिर बाद में आपके पास कौन रोएगा, हमें ही रोना पड़ता है, तो इसलिए आपका संरक्षण जरूरी है।

मैं ये कहूंगा कि कोरोना महामारी में बहुत कुछ कमियां थी, फिर भी हमारे देश में उसको भी ठीक ढंग से निभाने की कोशिश हो गई, लेकिन चंद जगह, जैसे यूपी है, दूसरे स्टेट हैं, उसमें जो भी कमियां थीं, वो भी हम यहां पहले चर्चा में लाए थे और उसका पूरा जिक्र यहां हुआ, पहले 33 दिन का था 20 में, फिर 21 में 58 दिन का था फिर 22 में 56 दिन था। कोरोना में जो बड़े-बड़े, इन्होंने कहा था, वो तो खत्म। सभापति तो दुनिया भर में वैसे तो 19 वीं सदी में निर्मित दो दर्जन संसद भवन उपयोग में लाए जा रहे हैं। भारत में लोगों के दिल, दिमाग में 144 खंभों वाली एक गोल इमारत छाई हुई है, यहीं देश की आजादी के बाद से 75 सालों में सारे महत्वपूर्ण फैसले यहां पर हुए हैं।

इस इमारत की वास्तुकला पर भारत की परंपरा की छाप है, लेकिन इसको नफरत से नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इस सदन में नेहरू जी बैठे थे, आंबेडकर जी बैठे थे, बहुत से बड़े-बड़े नेता, वल्लभ भाई पटेल, ये सब बैठे हैं, इसलिए भूल ही जाना, उधर ही जाना, ऐसा शुरू हुआ, कल शायद लेकर जा रहे हैं हमें, मुझे मालूम नहीं।

सभापति जी, संसद का सबसे बेहतरीन कामकाज पहली लोकसभा में, मैं बता रहा हूं, 1952 से 1957 के बीच सिर्फ 5 साल में, माना जाता है कि जिसमें 677 बैठकें हैं, 319 विधेयक पारित हुए 5 साल में और उस दौरान कानूनों पर हुई बहसें जिरह का केंद्र बनी हुई हैं। संसद का मुख्य काम कानून बनाना है, लोगों को सशक्त बनाना है, इसलिए ये नीतियां यहां पर तय होती थीं और सभी लोग एकमत से ऐसी नीतियों को सपोर्ट करते थे।

सर, राज्यसभा और लोकसभा में एक से एक अनुभवी सांसद आज भी हैं, पहले भी थे, उसके लिए सबको बोलने की आजादी भी मिलनी चाहिए, क्योंकि अगर बोलने की आजादी नहीं मिली, सिर्फ हम लोग, हो सकता है मेरी भी गलती हो सकती है, लेकिन मेरी एक छोटी गलती को आप बहुत बड़ी सजा देते हैं और वो इतनी बड़ी गलतियां करते हैं, सारा देश देखता है, सब उधर माफ कर देते हैं। तो इसलिए कृपा करके दोनों बैलेंस करके चलिए। दोनों बैलेंस करके अगर चलेंगे, तो हमें भी मौका मिलेगा, बार-बार आपको कहने का, विनती करने का कि ये सब चीजें होती हैं।

और एक कानून बनाते समय बिलों की स्टैंडिंग कमेटी में छानबीन के लिए नहीं भेजा जाता, तो कम से कम ये तो करना चाहिए। ये तो आपको हक है, नहीं, नहीं इस बिल में खामियां हैं, इसलिए इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजना चाहिए और इसके लिए सभी लोग, मैं आपको उदाहरण के तौर पर चंद चीजें बताऊंगा। कमेटियों को भेजे जाने वाले बिल का प्रतिशत 2009 और 14 के दौरान 71 प्रतिशत था। वहीं, 16 वीं लोकसभा में 2014 से 2019 के बीच घटकर 27 प्रतिशत रह गया और 2019 के बाद इसमें इतनी गिरावट आ गई, 13 प्रतिशत रह गया। साहब, कहां 71 प्रतिशत और फिर पूछते हैं क्या किया हमने, क्या किया हमने, यही किया।

71 प्रतिशत स्टैंडिंग कमेटी को भेजा, छानबीन करके और आपने क्या किया 13 प्रतिशत, 27 प्रतिशत। तो ये है, कैसे बिल स्क्रुटनाइज होगा। तो जैसा बिल में आया, वैसा हो जाएगा, बाद में हम पछताएंगे। फिर सुप्रीम कोर्ट बोलेगा कि छानबीन करके नहीं लाए और वहां के सभी एमपी और राज्यसभा, लोकसभा के मेंबर शायद अनपढ़ होंगे, समझते नहीं होगे, ऐसे ही भेज दिया। तो वैसी टिप्पणी हमें सुप्रीम कोर्ट से। बाकी की जनता के लोग ये कहते हैं कि हमारे बारे में ये सोचते नहीं, सोच कर कानून नहीं बनाते, लेकिन आप हड़बड़ी में इतने कानून भेज देते हैं, कि वो बुलेट ट्रेन से भी फास्ट आता है। बुलेट ट्रेन से भी फास्ट बिल पास होते हैं। तो इसलिए सर, मैं अभी 5 मिनट लूंगा, फिर आपको बोर नहीं करूंगा।

आज आलम ये है कि सरकार विधेयकों को सीमित समय में पारित कराने से लेकर सदनों की बैठक कम से कम कराने की कोशिश हो चली है। इस कारण कानून की गुणवत्ता वैसी नहीं रहती, जो व्यापक विचार मंथन या छानबीन से गुजरे कानूनों की होती है। आज आलम ये भी है 2021 में भारत के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बिना व्यापक बहस के जल्दबाजी में संसद में कानून बनाने से गंभीर खामियां रह जाती हैं। कई पहलू अस्पष्ट रह जाते हैं, वही बात मैंने कही और इसकी हालत ये नहीं होती थी कि लोग यहां पर बॉर्डर पर किसान हमारे बैठ नहीं सकते थे। 3 कृषि कानून ऐसी जल्दबाजी में किए कि वो तीन कानून बाद में एजिटेशन होने के बाद वापस लेने पड़े। तो ये ऐसा करने से किसान भी आज हमारे ऊपर नाराज हैं कि पार्लियामेंट ऐसा क्यों करती है।

और एक सर, 30 जनवरी, 2011 को तत्कालीन विपक्ष के नेता अरुण जेटली जी ने ये बात की थी, क्योंकि वो हमें बार-बार बोलते हैं, आप गए, आप भाग गए, नहीं सुना, ये बोलते हैं। लेकिन जब हम अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं, हम ये नहीं कि किसी से झगड़ा करना, डिस्टर्ब करना, शांति के साथ जब अपनी बात को नहीं रख सकते, तब लोग हमारे इरिटेट होते हैं कि हम इतनी कोशिश करके लोगों के मुद्दों को आपके सामने रखना चाहते हैं, मौका नहीं मिल रहा, ये होता है। किसी से दुश्मनी नहीं, सभी एक ही हैं और सभी मिलकर देश की भलाई का सोचते हैं, तरीके अलग-अलग होंगे।

सर, राज्यसभा में इस जगह बैठते थे तत्कालीन विपक्ष नेता अरुण जेटली जी ने 30 जनवरी 2011 को कहा था संसद का काम है चर्चा करना, लेकिन कई मौकों पर जब मुद्दों की अनदेखी होती है, तो अवरोध पैदा करना लोकतंत्र के हित में होता है। लिहाजा संसदीय अवरोध को अलोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। तो ये उन्होंने जो सिखाया, वही काम जब हमारी तरफ से होता है, हमारे को टोकते जाते हैं।

तो सर, ये जो अवरोध पैदा करना लोकतंत्र के हित में होता है, लिहाजा संसदीय अवरोध को अलोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। ये उनकी बातें हैं और मैं ये भी आपको कहूंगा कि उस हाउस में सुषमा स्वराज जी ने भी यही बात कही थी, संसद को ना चलने देना भी अन्य तरीकों की तरह लोकतंत्र का तरह एक रूप है। तो ये सारी चीजें वहीं से आईं और मैं आपसे ये विनती करूंगा कि खास करके दिग्गज नेताओं को यहां पर जो उनके बारे में, उनको जो समय देना चाहिए और मैं और एक और छोटी सी दो-चार बात रखकर मेरे भाषण को खत्म करूंगा।

विपक्षी नेताओं के कई प्रमुख तथ्यों को सत्ता पक्ष की मांग पर कार्यवाही से बाहर निकाला जाता है और उसके लिए ही मैंने आपको पहले आते ही विनती की, छोटी-मोटी चीजें जब होती हैं, आप तो हम सबसे ऊपर हैं, हम तो नीचे हैं, तो हमारे ऊपर पहले हाथ आपका ही आता है, क्योंकि हम नीचे रहते हैं।         

तो सर, हम बहुत दिन से ये कोशिश कर रहे हैं, सभी की ये इच्छा है कि महिला रिजर्वेशन का बिल आना चाहिए और महिलाओं को देना चाहिए जो ड्यू है, आज तक हमने कोशिश की, लेकिन मैं समझता हूं, जब आप ये मुद्दा उठाएंगे, तो जरूर आपकी बात को मान्यता दे देंगे। मैं आंकड़े थोड़े से इसलिए देता हूं, सर, सभापति जी दुनिया बदल गई है। इस समय राज्यसभा में 10 प्रतिशत और लोकसभा में 14 प्रतिशत महिला सांसद हैं। विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 प्रतिशत है। 1952 में नेहरू जी के प्रधानमंत्री काल में पहली लोकसभा में केवल वो भी 5 प्रतिशत महिला सांसद थी, लेकिन 70 साल के बाद भी आज 14, 15, 10 के अंदर ही हैं।

मैं और भी आंकडे देता हूं कि महिलाओं के साथ दूसरी जगह भी ऐसा ही हो रहा है। अमेरिकी संसद में 2 प्रतिशत, ब्रिटेन में 3 प्रतिशत महिला सांसद थीं, आज अमेरिका की संसद में 28 प्रतिशत और ब्रिटेन में 33 प्रतिशत महिला सांसद हैं। तो इसलिए मैं आपसे गुजारिश करूंगा कि महिलाओं का जो बिल है, इसको आप कर दीजिए और दूसरी चीज अनएम्लोयमेंट की बात चल रही है, क्योंकि इस 75 साल में हम जब बात करते हैं, इधर-उधर बेरोजगारी इतनी बढ़ रही है, 8 करोड़ लोग एजुकेटेड आज रास्ते पर हैं और महंगाई तो साहब बढ़ रही है, आपको मालूम है, कोई टमाटर डाल कर आए, तो आपने उसको बहुत डांटा, वो हकीकत थी, 400 रुपये, 500 रुपये।

शायद, आपने घर में नहीं पूछा कि आजकल टमाटर की, प्याज की, तेल की, दाल की क्या कीमत है। वो हिसाब नहीं पूछ रहे क्योंकि पूरी जिम्मेदारी आपने वहां छोड़ी और बाकी की जिम्मेदारी आपने यहां ली, इसलिए जरा मुश्किल होगा, लेकिन यह जरूरी होगा, महंगाई कंट्रोल करना आवश्यक है, नहीं तो डिस्ट्रोय हो जाएगी डेमोक्रेसी। बेरोजगारी अगर बढ़ती गई तो डेमोक्रेसी नहीं रहेगी। इसलिए मैं आपसे विनती करता हूं इन चीजों का कुछ उत्तर दें। सिर्फ हमने ये किया, वो किया, ये ठीक है। जी-2 ठीक है? (सदन से पूछा)। (सदन से उत्तर मिला- जी-20), जी-20 ठीक है, क्योंकि जीरो में कमल का फूल ही दिखता था। आप कभी भी वो विज्ञापन देखिए, साहब।

ये देखो मैं ईमानदारी के साथ कहता हूं, देश की जब बात आती है, उसमें हम सब लोग एक हैं, उसमें कोई फर्क नहीं, लेकिन तुम बार-बार वो गुत्ता मत लो, तुम भी पैट्रियोट हो। पैट्रियोट हमारे लोग हैं, जान हमारे लोगों ने दी, मर गए हमारे लोग, मजा आप उठा रहे हैं और हमें सिखाते हैं। सर, आखिर में एक बात कहकर मैं खत्म करता हूं, सर, हमारी वतन परस्ती के अनगिनत तारीखें हैं, बेशुमार किस्से हैं। हो भी क्यों ना वतन से मोहब्बत, ये तो हमारे ईमान का हिस्सा है।    

धन्यवाद, आपने इतना समय दिया। 

Janchowk
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