चिली: मेट्रो किराया बढ़ोत्तरी के खिलाफ संघर्ष बना संविधान परिवर्तन का रास्ता

पहले बोलिविया और अब चिली, दक्षिण अमेरिका में पूंजीवादी सुपर पॉवर संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थित दक्षिणपंथ का तंबू एक-एक करके उखड़ता जा रहा है। पिछले साल यानि अक्तूबर, 2019 में चिली की सड़कों पर उतरे आंदोलित जनसैलाब ने एक साल बाद यानि अक्तूबर, 2020 में हुए रेफरेंडम में पिछले 47 साल से चली आ रही संविधान तानाशाही मॉडल के खिलाफ़ मतदान करके टाटा बॉय बॉय कह दिया है।     

25 अक्तूबर, 2020 रविवार को चिली में हुए जनमत संग्रह (रेफ़रेंडम) में नया संविधान बनाने के पक्ष में 78 प्रतिशत मतदान किया गया है। बता दें साल, 2020 की शुरुआत में देश की दक्षिणपंथी सरकार ने नए संविधान को लेकर जनमत संग्रह कराने की मांग स्वीकार कर ली थी। लेकिन कोरोना वायरस महामारी आ जाने के कारण उसमें देर हुई। जनमत संग्रह दो मुद्दों पर हुआ। 

जनमत संग्रह का सवाल

जनमत संग्रह में पहला सवाल यह रखा गया कि “क्या देश को नया संविधान चाहिए?” 

दूसरा सवाल था कि – “क्या नया संविधान बनाने के लिए संपूर्ण या मिश्रित संविधान सभा गठित की जाए।” वामपंथी संगठन संपूर्ण संविधान सभा का गठन चाहते थे। इस योजना के तहत नई संविधान सभा के सभी 155 सदस्य आगे होने वाले स्थानीय चुनाव के दौरान सिविल सोसायटी से चुने जाएंगे। जबकि धनी समुदाय और नव-उदारवादी तबके के लोग 172 सदस्यों की मिश्रित संविधान सभा चाहते थे, जिसमें आधे सदस्य मौजूदा सांसद होते। इससे वर्तमान सत्ताधारी तबकों को एक निर्णायक स्थान मिल जाता।

लेकिन जनमत संग्रह का नतीजा वामपंथी ताकतों की मांग के मुताबिक आया। यानि जनता ने 78 प्रतिशत मतों के साथ कहा कि वो संपूर्ण संविधान सभा का गठन चाहते हैं।

1973 में खूनी तख्ता पलट करने वाले तानाशाह ऑगस्तो पिनोशे के समय में ही चिली का वर्तमान संविधान लागू किया गया था, जो पिछले एक दशक से चिली की जनता के आक्रोश का कारण बना हुआ था। जिसे 25 अक्टूबर को जनमत संग्रह में चिली की जनता ने नकार दिया है। आंदोलन मेट्रो किराये में बढ़ोतरी के विरोध में शुरू हुआ था, लेकिन बाद में बड़े बदलाव की मांग उससे जुड़ गई। ये आंदोलन पिछले नौ साल में हुए दो बड़े आंदोलनों की कड़ी में शामिल हो गया। ये आंदोलन मुफ्त शिक्षा और सरकारी कोष से पेंशन के भुगतान की मांग के समर्थन में हुए थे। यानी इन तीनों जन आंदोलनों ने देश में पिछले चार दशक के दौरान अपनाई गई नव-उदारवादी नीतियों को चुनौती दी। इन नीतियों का प्रावधान चूंकि पैंतालीस साल पहले लागू हुए संविधान में था, इसलिए संविधान बदलने की मांग आंदोलन का केंद्रीय मुद्दा बन गया।

मेट्रो किराये में बढ़ोत्तरी के खिलाफ शुरु हुआ विरोध-प्रदर्शन व्यवस्था परिवर्तन में तब्दील हो गया

पिछले साल अक्तूबर के आखिरी सप्ताह में लैटिन अमेरिका के सबसे धनी देश के लाखों लोग आर्थिक गैरबराबरी के खिलाफ़ सड़कों पर उतरकर इसे दूर करने की मांग कर रहे थे। 26 तारीख को राजधानी सैंटियागो में क़रीब 10 लाख लोगों ने शांतिपूर्ण मार्च निकालते हुए सरकार के खिलाफ़ जबर्दस्त विरोध दर्ज़ करवाया था। इससे एक दिन पहले यानि 25 अक्तूबर को नेताओं और अधिकारियों को संसद से कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला गया, क्योंकि सरकार विरोधी कार्यकर्ता उनका रास्ता रोकने की कोशिश कर रहे थे।

यह विरोध-प्रदर्शन अक्तूबर के तीसरे सप्ताह में मेट्रो किराया बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ शुरू हुआ था। और सरकार ने मेट्रो किराये में बढ़ोत्तरी के फ़ैसले को वापस भी ले लिया, बावजूद इसके सरकार के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन नहीं रुका। और मुद्दा मेट्रो किराया से आर्थिक गैरबराबरी पर शिफ्ट हो गया। जो लोग ‘मेट्रो किराया वृद्धि वापस लो’ की तख्ती लेकर विरोध कर रहे थे उन लोगों ने अब अपनी तख्तियां बदलीं और देश में बढ़ती ग़ैर-बराबरी और रहन-सहन के खर्च में बढ़ोत्तरी वाली तख्तियां लेकर विरोध-प्रदर्शन करने लगे।

2019 में प्रदर्शन का दृश्य।

बता दें कि चिली लैटिन अमेरिका के सबसे अमीर देशों में से एक है, और जो अमीर देशों की विद्रूपता होती है वो चिली में भी उजागर हुई। यानि चुनिंदा लोगों के एक धड़े के पास तो बहुत ज़्यादा धन है वहीं दूसरे धड़े के ज़्यादातर लोग आर्थिक तौर पर संघर्ष कर रहे हैं।

विरोध-प्रदर्शन का दायरा बढ़ा और प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा के इस्तीफे की मांग की। उसके बाद जैसा कि होता है हर दमनकारी सत्ता खुद को बचाने के लिए दमन का रास्ता अख्तियार करती है। प्रदर्शनों के दौरान लूटपाट और हिंसा की घटनाएं होने लगीं। इस व्यापक जनआंदोलन में 34 लोगों की मौत हो गई, हजारों लोग घायल हुए, 400 से ज़्यादा लोग स्थायी तक पर विकलांग हो गए। सात हज़ार से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया। 

राष्ट्रपति ने व्यापक विरोध-प्रदर्शनों को खत्म करने के लिए 23 अक्तूबर बुधवार को कई सुधारों की घोषणाएं भी कीं जिनमें बेसिक पेंशन और न्यूनतम आय को बढ़ाना मुख्य तौर पर शामिल था लेकिन प्रदर्शनकारियों को संविधान परिवर्तन, सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन से कम कुछ भी मंजूर नहीं था। अक्तूबर, 2019 से शुरू होकर मार्च 2020 तक चले जोरदार जन आंदोलन से पूरा देश अस्त-व्यस्त हो गया था। तब कहीं जाकर राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा की सरकार ने नए संविधान के लिए जनमत संग्रह कराने की हामी भरी थी।

चिली का राजनीतिक इतिहास 

1971 में सोशलिस्ट नेता सल्वादोर अलेन्दे चिली के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने चिली में समाजवादी नीतियों पर तेजी से अमल किया। इसके चलते धनी-और सत्तावादी वर्ग समूह नाराज़ हो गया। अगस्त, 1973 में ऑगस्तो पिनोशे चिली का सेनाध्यक्ष बना। और उसकी अगुवाई में चिली की सेना ने 11 सितंबर, 1973 को एक ख़ूनी फौजी अभियान के तहत राष्ट्रपति भवन ‘ला मोनेदा’ पर फैजी धावा बोल दिया जिसमें सल्वादोर अलेन्दे और उनके सैकड़ों सहयोगियों का कत्ल कर दिया गया। और सैनिक तानाशाह ऑगस्तो खुद चिली की सत्ता में काबिज हो गया। जाहिर है इसमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की प्रमुख भूमिका थी। 

ऑगस्तो पिनोशे का दौर मानवाधिकारों के हनन और संयुक्त राज्य अमेरिका परस्त नव-उदारवादी नीतियों को थोपने के दौर के तौर पर याद किया जाता है। इस ख़ूनी तख़्तापलट के बाद सत्ता सम्हालते ही जहां एक ओर पिनोशे ने भीषण दमन चक्र की शुरुआत की वहीं उसने चिली के पूँजीपतियों, पूँजीवादी भूस्वामियों और अमेरिकी बहुराष्‍ट्रीय निगमों को मालामाल करने वाली आर्थिक नीतियाँ लागू करनी शुरू कीं। नतीजतन आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी बदतर बनती गयी। उसने सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया और कीमतों पर से नियन्त्रण हटाकर बाज़ार की शक्तियों के खुले खेल के लिये रास्ता साफ़ कर दिया। 

1973 से 1989 तक चिली में ऑगस्तो पिनोशे की ख़ूनी तानाशाही लागू रही। 1989 में एक जनमत संग्रह के बाद एक तथाकथित नागरिक सरकार अस्तित्व में आयी जिसकी बागडोर भी अन्तत: अमेरिकी साम्राज्यवादियों के ही हाथों में थी। सत्ता छोड़ने से पहले पिनोशे ने क़ानून बनाकर अपने ऊपर किसी अपराध के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने से संरक्षित कर लिया। इस क़ानून के तहत 1998 तक वह संरक्षित रहा और बाद के दिनों में वह बीमारी का इलाज कराने के नाम पर ब्रिटेन में वक़्त गुज़ारता रहा। 

देश के भीतर राजनीतिक फिज़ा में आये बदलाव के बाद, जब चिली के नये पूँजीवादी शासकों के ऊपर जनभावनाओं का दबाव बढ़ा तो साल 2000 में पिनोशे ब्रिटेन से वापस चिली आया और फिर उस पर मुक़दमे की कार्रवाई शुरू हुई। लेकिन साल 2006 में उसकी मौत हो गई। 

साल 2009 में चिली में कोर्ट ने 120 पूर्व सैनिक और पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। इन सब पर 1973 से 1990 के बीच जनरल ऑगस्तो पिनोशे के सैन्य शासन के दौरान मानवाधिकार हनन के आरोप थे।

ये गिरफ्तारी वारंट ऑगस्तो पिनोशे के सैन्य शासन के दौरान हुए मानवाधिकार हनन के तमाम मामलों की जांच के बाद जारी किए गए थे। वारंट जारी करने वाले जज विक्टर मांटिग्लियो 70 और 80 के दशक में सैन्य शासन के दौरान सरकार का विरोध करने वाले सैकड़ों लोगों की गुमशुदगी और अपहरण से संबंधित मामलों की जांच कर रहे थे। इस दौरान चिली में क़रीब तीन हज़ार सरकार विरोधी लोग मारे गए थे। जिन लोगों के खिलाफ़ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं उनमें मैन्युअल कॉन्ट्रेरास का नाम भी शामिल है जो कि तमाम दूसरे आपराधिक मामलों में पहले से ही आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे हैं।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

सुशील मानव
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