जी-20 में राष्ट्रपति डिनर तक सिमट गया मोदी कैबिनेट, ठेंगे पर रहा विपक्ष

नई दिल्ली। जी-20 शिखर सम्मेलन के सफलतापूर्वक संपन्न होने के परिणाम को सत्तापक्ष भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत बता रहा है…यूक्रेन के मुद्दे पर जिस तरह अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को झुकना पड़ा उससे भारत, रूस और चीन की नजरों में सम्मान का पात्र बना, यह अलग बात है कि इस समूचे घटनाक्रम के विरोध में यूक्रेन अपना आक्रोश व्यक्त कर रहा है। लेकिन घरेलू स्तर पर विपक्ष तो दूर सत्तापक्ष के नेताओं, विशेषज्ञों और विदेश मामलों के जानकारों को जिस तरह से समूचे कार्यक्रम से दूर रखा गया, उसकी अब निंदा शुरू हो गयी है। पूरे कार्यक्रम के केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी रहे। जिसे किसी भी लोकतांत्रिक देश में सही नहीं ठहराया जा सकता है।

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस वैश्विक कार्यक्रम को मोदी ने व्यक्तिगत प्रचार और भाजपा सरकार के लिए विज्ञापन बना दिया। केंद्रीय कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और अविश्वास के कारण दूर रखा गया। लोकसभा और राज्यसभा में नेता विपक्ष को भी दोनों दिन किसी कार्यक्रम के लिए आमंत्रित नहीं किया गया।

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि पीएम मोदी ने इस अध्यक्षता का घरेलू राजनीति में लाभ उठाने के लिए इस्तेमाल किया। आलम यह था कि विपक्ष के नेता और विदेशी मामलों की समितियों के सदस्यों सहित हर दूसरा विपक्षी सांसद कार्यक्रम में अनुपस्थित था। क्योंकि सरकार ने उनमें से किसी को भी किसी भी कार्यक्रम-स्वागत समारोह या रात्रिभोज में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया था। सिर्फ कैबिनेट मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को राष्ट्रपति डिनर में बुलाकर उनकी भागीदारी मान ली गई।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर पूर्व विदेश राज्य मंत्री रहे हैं। साथ ही साथ उनका करियर विदेश सेवा और वैश्विक संस्थानों में कार्य करते ही बीता है। वह विदेश मामलों की संसदीय समिति के पूर्व अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अवर महासचिव रह चुके हैं। उनका नाम विदेश नीति और कूटनीति पर विपक्षी दल के अग्रणी विशेषज्ञों में से एक है। लेकिन उन्हें भी इस सम्मेलन से दूर रखा गया।

शशि थरूर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि जी-20 शिखर सम्मेलन के घटनाक्रमों में दो चीजों ने उन्हें बहुत परेशान किया। एक तो दिल्ली को पूर्ण बंद रखा गया, जिससे आम नागरिकों को गंभीर असुविधा और कठिनाई हुई और विशेष रूप से दिहाड़ी मजदूरों और गरीबों की आजीविका प्रभावित हुई। दूसरा, कुछ मुख्यमंत्रियों के अलावा वरिष्ठ विपक्षी नेताओं को सम्मेलन से दूर रखा गया।

उन्होंने कहा कि दुख की बात यह है कि यह उस देश में हो रहा है जो खुद को लोकतंत्र की जननी के रूप में विज्ञापित करता है। किसी भी अन्य लोकतंत्र ने विपक्ष के नेता और अन्य विपक्षी नेताओं को इस तरह से बाहर नहीं किया होगा।

ऐसा नहीं है कि भारत को जी-20 की मेजबानी पहली बार मिली थी। इससे पहले भी भारत में जी-20 का सफल आयोजन हो चुका है। लेकिन उस दौरान सत्तापक्ष ने इतनी बेशर्मी से इस सम्मेलन को सरकार का विज्ञापन नहीं बनाया था। थरूर कहते हैं कि यह कोई अचानक हुई दुर्घटना नहीं है। मोदी सरकार ने जान-बूझकर इसे सरकार का विज्ञापन बना दिया और समूचे कार्यक्रम की सफलता को घरेलू राजनीति से जोड़ दिया। इस पूरे कार्यक्रम में उन्होंने खुद को केंद्र में रखा और सरकार, विपक्ष, विदेश और विभिन्न मामलों के विशेषज्ञ, सांसद और मंत्रियों तक को दूर रखा गया।

दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन संपन्न हो गया। इसके लिए पूरी लुटियन की दिल्ली को सजाने-संवारने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया। दिल्ली के कई स्थानों को रंगीन टेंट लगाकर ढक दिया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जी-20 का बजट 990 करोड़ था लेकिन आवंटित बजट से बहुत ज्यादा लगभग 4100 करोड़ रुपये सम्मेलन की तैयारी पर खर्च हुए।

58 शहरों में 200 से अधिक बैठकों का आयोजन किया गया। जिसमें नागरिक समाज, कुछ थिंक टैंक और अन्य लोगों को शामिल करके इसे लोगों का जी-20 बनाने का प्रयास किया गया। सरकार ने जी-20 की अध्यक्षता भारत को मिलने को कूटनीतिक उपलब्धि बताया जबकि इसकी अध्यक्षता चक्रीय रूप से सारे सदस्य देशों को मिलती रहती है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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