भारती इंटरप्राइजेज से बीजेपी को चंदा मिलने के बाद मोदी सरकार ने बदल दी टेलीकॉम पालिसी!

नई दिल्ली। 2012 में जब सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा आवंटित किए गए 122 टेलीकॉम लाइसेंसेज को रद्द किए जाने के साथ ही उसकी नीलामी का आदेश दिया था तो पूरी मीडिया में उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक कदम बताया गया था। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के तौर पर जाने जाने वाले इस आदेश से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को काफी मदद मिली थी और यह घटनाक्रम पीएम मोदी को सत्ता में लाने में भी मददगार साबित हुआ था।

तकरीबन एक दशक बाद मोदी सरकार ने भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में एक क्रांतिकारी कदम उठाया और उसने सैटेलाइट सेवा को ब्राडबैंड सेवाओं में इस्तेमाल करने का फैसला किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 2012 के फैसले कि स्पेक्ट्रम की किसी भी हालत में नीलामी की जानी चाहिए को दरकिनार कर उसने कांग्रेस के पुराने रास्ते को अपनाया जिसमें विवेक के आधार पर स्पेक्ट्रम के आवंटन की बात शामिल थी।

दिसंबर, 2023 में इसने बेहद जल्दबाजी में संसद के जरिये एक टेलीकॉम कानून बनाया जो सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को प्रशासनिक आदेश के जरिये आवंटित करने का अधिकार देता है। इसमें प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी को खारिज कर दिया गया है। इसके साथ ही इसने नीलामी से अलग दूसरे रास्ते पर जाने के लिए न्यायिक इजाजत हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एक आवेदन भी दिया है। 

नये कानून के तहत हुए पहले आवंटन में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम हासिल करने की कड़ी में केवल एक कंपनी पहली दो बाधाओं को पार कर सकी। वनवेब इंडिया ने लाइसेंस और स्पेक्ट्रम को लागू करने के लिए जरूरी स्पेश दोनों के अधिकार को हासिल कर लिया।

वनवेब इंडिया लंदन आधारित इंटरनेशनल सैटेलाइट कंपनी यूटेलसैट वनवेब की भारतीय इकाई है। यूटेलसैट वनवेब की टेलीकॉम सेवा देने वाली एयरटेल की मातृ कंपनी भारतीय एंटरप्राइजेज सबसे बड़ी शेयरधारक है, जिसका हेडक्वार्टर दिल्ली में है। और यह टेलीकॉम, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, स्पेश कम्यूनिकेशन, फाइनेंशियल सर्विसेज और रीयल स्टेट में अपनी सेवाएं देती है।

4 अगस्त, 2021 को टेलीकम्यूनिकेशन विभाग की तरफ से वनवेब पहली ऐसी कंपनी बन गयी जिसको सैटेलाइट के जरिये पहला ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनिकेशन का अधिकार मिल गया।

21 नवंबर, 2023 को इसने सैटेलाइट क्षमता के इस्तेमाल के लिए इंडियन नेशनल स्पेश प्रोमोशन एंड अथराइजेशन सेंटर इन-स्पेस से इसको अथराइजेशन मिल गया। यह अकेली कंपनी है जिसको यह अधिकार मिला।

सैटेलाइट आधारित ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए जरूरी स्पेक्ट्रम के आवेदन के लिए ये दोनों कदम पहली शर्त हैं।

अपनी प्रेस रिलीज में फर्म कहती है कि यूटेलसैट वनवेब जैसे ही कामर्शियल सेवा को लांच करने का आखिरी स्पेक्ट्रम अथराइजेशन हासिल करती है वह उसको आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।

जबकि सरकार द्वारा सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को भी आवंटित किया जाना बाकी है। हाल में इलेक्टोरल बॉन्ड पर जारी किए गए डाटा कई परेशानी खड़े करने वाले सवाल उठाते हैं। यह दिखाता है कि भारती समूह ने सरकार द्वारा नया कानून जो सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी की व्यवस्था को खत्म कर देता है, बनाए जाने से पहले और बाद में दो किश्तों में 150 करोड़ रुपये का दान भारतीय जनता पार्टी को दिया है। और यह काम वनवेब को स्पेक्ट्रम हासिल करने के लिए जरूरी स्पेश अथराइजेशन को सरकार द्वारा हरी झंडी दिए जाने के एक महीने बाद होता है।

भारती इंटरप्राइजेज के अलावा यूटेलसैट वनवेब के शेयरधारकों में इंग्लैंड की सरकार, फ्रांस में सैटेलाइट सेवा देने वाली यूटेलसैट और जापानी निवेशक बैंक सॉफ्टबैंक शामिल हैं। इन देशों में भ्रष्टाचार विरोधी कड़े कानूनों को देखते हुए ट्रांसपैरेंसी विशेषज्ञों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉ़न्ड संबंधी खुलासे दूसरे देशों में भी बड़ा प्रभाव छोड़ सकते हैं।

ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल में लीगल स्पेशलिस्ट कुश अमीन ने कहा कि यह कहना सही होगा कि अगर वनवेब को भारती द्वारा इलेक्टोरल बॉन्डों की खरीदारी और बीजेपी को दिए गए डोनेशन के बारे में मालूम था तो यह यूके ब्राइबरी एक्ट के तहत उनके संभावित आपराधिक जवाबदेहियों पर गंभीर सवाल उठाती है।

2023 टेलीक़ॉम विधेयक

घरेलू भीमकाय टेलीकॉम कंपनियों रिलायंस जियो से लेकर एलन मस्क की स्टारलिंक जैसे विदेशी खिलाड़ी समेत तमाम कंपनियां भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम खरीदने के इंतजार में हैं।

मोदी सरकार ने इस स्पेक्ट्रम को कैसे आवंटित किया जा सकता है अप्रैल 2023 में इसकी सार्वजनिक तौर पर पूछताछ शुरू कर दी थी। दो कंपनियां- रिलायंस जियो और वोडाफोन इंडिया- ने नीलामी की वकालत की थी। जबकि भारती समेत एमेजन और स्टारलिंक जैसी दूसरी कंपनियों ने इसका विरोध किया था।

अपने पक्ष में भारती ने कहा कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी न तो तार्किक है और न ही बेहतर है क्योंकि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एक साझा संसाधन है। भारती ने इसके पक्ष में तर्क दिया कि नीलामी स्पेक्ट्रम को एक विशिष्ट संसाधन में तब्दील कर देगी और प्रतियोगी ताकतों को स्पेक्ट्रम को ब्लॉक करने या फिर जमा करने की इजाजत दे देगी।

रिलायंस ने अपने सबमिशन में कहा था कि इस बात को सुनिश्चित करना जरूरी है कि नेटवर्क देने वाली प्रतियोगी सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम संबंधी आवंटन के नियमों में एकरूपता हो और वो बिल्कुल साफ-सुथरे हों और यह सब कुछ स्टेकहोल्डर को बगैर कोई प्राथमिकता दिए किया जाए। इसमें तर्क दिया गया है कि स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए प्रतियोगी कंपनियों के बीच एक संतुलित प्रतियोगी जमीन तैयार किया जाए।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस सिलसिले में रिलायंस ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज जस्टिस केएस राधाकृष्णन के जरिये अपना एक कानूनी पक्ष भी पेश किया। आपको बता दें कि यह उन जजों में से एक हैं जिन्होंने 2 जी स्पेक्ट्रम मामले की सुनवाई की थी। राधाकृष्णन ने कहा कि नीलामी सैटेलाइट आधारित संचारों के लिए स्पेक्ट्रम का आवंटन अकेला उचित माध्यम है। उन्होंने इस बात को चिन्हित किया कि सैटेलाइट और स्थलीय स्पेक्ट्रम के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है। इसलिए दोनों में एक ही प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

मोदी सरकार पर न ही रिटायर जज की राय और न ही स्पेक्ट्रम नीलामी को बाध्यकारी बनाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई असर पड़ा।

18 दिसंबर, 2023 को लोकसभा में एक नया टेलीकम्यूनिकेशन विधेयक पेश किया गया। विधेयक न केवल इंटरनेट सस्पेंशन और सर्विलांस की राक्षसी ताकत रखता था बल्कि स्पेक्ट्रम मैनेजमेंट में भारत के रवैये को बदलने की भी उसमें क्षमता थी। और इसके साथ ही उसने कुछ सैटेलाइट आधारित सेवाओं के प्रशासनिक आवंटन के रास्ते को साफ कर दिया। जो उस व्यवस्था के बिल्कुल खिलाफ था जिसमें कंपनियों को नीलामी के जरिये आपस में प्रतियोगिता करनी थी।

विधेयक का बचाव करते हुए संसद में टेलीकॉम मिनिस्टर अश्वनी वैष्णव ने कहा कि “पूरी दुनिया में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम प्रशासनिक स्तर पर आवंटित किया जाता है। हमारे यहां ही इसकी नीलामी होती है।”

143 विपक्षी सांसदों के निलंबन के बाद यह विधेयक 20 दिसंबर को लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। एक दिन बाद राज्य सभा ने भी विधेयक पारित कर दिया। क्रिसमस के मौके पर बिल पर राष्ट्रपति की भी मुहर लग गयी। 

जैसा कि सरकार नये बिल के साथ आगे बढ़ गयी लेकिन इसके साथ ही वह सुप्रीम कोर्ट भी चली गयी और उससे उचित स्पष्टीकरण की मांग कर डाली जिससे सरकार स्पेक्ट्रम को एक प्रशासनिक प्रक्रिया के जरिये आवंटित करने पर विचार कर सके। 

150 करोड़ का बॉन्ड

कानून की इस भागाभागी में सार्वजनिक दायरे से दूर एक दूसरी घटना मोड़ ले रही थी। 

9 नवंबर को भारती एयरटेल लिमिटेड ने 100 करोड़ रुपये की कीमत का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा। और उस पूरे पैसे को बीजेपी को दान कर दिया। चार दिन बाद 13 नवंबर को बीजेपी ने उन सभी बॉन्ड को भुना लिया।

आठ दिन बाद 21 नवंबर को जैसा कि पहले ही जिक्र किया जा चुका है भारत के स्पेश रेगुलेटर की ओर से वनवेब सैटेलाइट सेवा हासिल करने वाली पहली कंपनी बना दी गयी। इसके साथ ही यह अकेली कंपनी बन गयी जो सरकार से सैटेलाइट स्पेक्ट्रम हासिल करने की क्षमता रखती है।

जैसे ही नये साल की शुरुआत हुई भारती एयरटेल लिमिटेड ने 50 करोड़ रुपये का एक दूसरा इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा जिसे बीजेपी ने 12 जनवरी को भुना लिया।

लाभार्थी

वनवेब- जो अब यूटेसैट वनवेब है- एक सैटेलाइट कंपनी है जिसकी स्थापना 2012 में एक अमेरिकी उद्यमी ने किया था। 2020 में इसके दिवालिया घोषित हो जाने के बाद इसको भारती इंटरप्राइजेज और यूके सरकार ने 1 बिलियन डॉलर में खरीद लिया।

नवंबर 2020 में भारती ग्लोबल के पास इसकी 42 फीसदी हिस्सेदारी थी जबकि इंग्लैंड सरकार के पास भी 42 फीसदी शेयर था। जून, 2021 में फ्रांस में सैटेलाइट सेवा मुहैया कराने वाली यूटेलसैट और जापानी बहुराष्ट्रीय कंपनी सॉफ्टबैंक के बोर्ड में आने के बाद शेयरहोल्डिंग का रूप बदल गया। सितंबर, 2023 में यूटेलसैट और वनवेब आपस में मिल गयीं। एक प्रेस विज्ञप्ति में यूटेलसैट ने कहा कि वनवेब अब कामर्शियल तौर पर यूटेलसैट वनवेब के तौर पर ऑपरेट करेगी और इसका संचालन अभी भी लंदन से ही होगा।

जैसा कि 18 मार्च, 2024 को भारती 23.8 फीसदी हिस्सेदारी के साथ यूटेलसैट वनवेब का सबसे बड़ा हिस्सेदार है। जबकि ब्रिटेन सरकार के पास इसकी 10.9 फीसदी हिस्सेदारी है। और बीपीआईफ्रांस के पास 13.6 और सॉफ्टबैंक के पास 10.8 फीसदी हिस्सेदारी है।

ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल से जुड़े लीगल स्पेशलिस्ट कुश अमीन ने फ्रांसीसी इकाई की तरफ इशारा करते हुए कहा कि मालिकाने की प्रकिया पैरेंट कंपनी यूटेलसैट के लिए एक बड़ा बोझ साबित हो सकती है अगर यह दिखाया जा सके कि भारती द्वारा बीजेपी को दिए गए दान से वे सब अवगत थे।

बॉन्ड, ट्रस्ट और भारतीय एयरटेल

भारती इंटरप्राइज ने भारतीय राजनीतिक दलों को औपचारिक तौर पर फंड देने के लिए दो माध्यमों का इस्तेमाल किया है: इलेक्टोरल बॉन्ड्स और इलेक्टोरल ट्रस्ट्स। एक इलेक्टोरल ट्रस्ट नॉन प्राफिट इकाई होती है जिसके जरिये कारपोरेशन और कोई व्यक्ति अपने डोनेशन को राजनीतिक दलों को दे सकता है। और ऐसा करते हुए वह टैक्स में छूट भी हासिल कर सकता है और तकरीबन आधी चीजें गोपनीय भी रह सकती हैं।

देश में सबसे बड़े इलेक्टोरल ट्रस्ट के तौर पर प्रुडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट का नाम आता है। इसकी शुरुआत 2013 में भारतीय समूह ने की थी जो लगातार दान देने वाला सबसे बड़ा समूह बना हुआ है।

प्रुडेंट ने लगातार बीजेपी को डोनेशन दिया है। 2019 में जब पूरे बहुमत के साथ बीजेपी सत्ता में आयी तो प्रुडेंट ने 218 करोड़ रुपये पार्टी को दिए। उस साल भारती ने 27.25 करोड़ रुपये प्रुडेंट को दान दिए।

उसी साल भारती ने बीजेपी को 51.4 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दिए। जबकि कांग्रेस को 8 करोड़ रुपये और एक करोड़ रुपये जेडीयू और शिरोमणि अकाली दल को दिए। इसके साथ ही कंपनी ने 50 लाख रुपये नेशनल कांफ्रेंस और 10 लाख रुपये राष्ट्रीय जनता दल को दिए। 

अगले साल भारती ने प्रुडेंट को 10 करोड़ रुपये दिए लेकिन उसने एक भी इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं खरीदा। समूह ने 2021 और 2022 दोनों सालों में बीजेपी को बॉन्ड के जरिये 35 करोड़ रुपये दिए।

यह नंबर एकाएक 2023 में 100 करोड़ रुपये तक चला गया- जो यूटेलसैट वनवेब के ब्राडबैंड डील हासिल करने के ठीक पहले खरीदा गया था।

वास्तव में यूटेलसैट वनवेब के सबसे बड़े शेयरहोल्डर भारती इंटरप्राइजेज इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है।

2019 और 2024 के बीच भारती एयरटेल लिमिटेड, भारती इंफ्राटेल लिमिटेड और भारती टेलीमीडिया लिमिटेड ग्रुप समूह की कंपनियों ने 247 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे और इसमें 236.4 करोड़ रुपये यानि तकरीबन 95 फीसदी बीजेपी को दान में दी। इलेक्शन कमीशन द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड संबंधी मुहैया कराए गए डाटा के विश्लेषण से यही बात सामने आती है।

प्रोजेक्ट इलेक्टोरल बॉन्ड ने भारती इंटरप्राइजेज, यूटेलसैट वनवेब, सॉफ्टबैंक और केंद्रीय टेलीकॉम मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव तथा यूके सरकार से जवाब के लिए संपर्क किया था लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया। जवाब आते ही रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा।

(रिपोर्ट स्क्रोल से साभार ली गयी है।)

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