मोदी का सपना बदरीनाथ पर भारी: मलबे में बदला बैकुण्ठ धाम, पवित्र धाराएं गायब

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के नाम पर हिन्दुओं के पवित्र स्थल बदरीनाथ को पर्यटन स्थल में बदलने की सनक ने आज बदरीनाथ पुरी को मलबे के ढेरों और खंडहरों के जंगल में तब्दील कर दिया है। भारी मशीनों से अलकनन्दा तट समेत जहां तहां खुदायी के कारण इस उच्च हिमालयी क्षेत्र का पारितंत्र प्रभावित हो रहा है। सन् 1974 की विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट की अनदेखी कर किये जा रहे निर्माण कार्यों और बेतहासा खुदायी के कारण इस उच्च हिमालयी क्षेत्र का अति संवेदनशील पारितंत्र प्रभावित होने की आशंका प्रकट की जा रही है जिसका संकेत भगवान बदरीनाथ के अभिषेक के लिये पानी देने वाला क्रूम धारा बंद होने से मिल गया है। बदरीनाथ पुरी के निचले हिस्से में भू-धंसाव प्रकट होने के साथ ही कुछ स्थानों पर दरारें देखी जा सकती हैं।

इन दिनों बदरीनाथ यात्रा के चरम पर पहुंचने के साथ ही धाम को काशी विश्वनाथ की तरह सजा संवार कर दर्शनीय स्थल बनाने की सनक में बेतहासा तोड़फोड़ और भारी मशीनों से खुदाई भी चरम पर पहुंच गयी है। जिस कारण आत्मिक शांति देने वाली बदरीनाथ पुरी इन दिनों चारों ओर मलबे के ढेरों में बदली हुई नजर आ रही है। दानदाताओं द्वारा यात्रियों के आश्रय के लिये बनायी गयी धर्मशालाओं की जगह विशाल मलबे के ढेर नजर आ रहे हैं। मास्टर प्लान के नाम पर पंडे पुरोहितों, दुकानदारों तथा हक हकूकधारी समाज की सैकड़ों वर्ष पुरानी बसावट को नये निर्माण के लिये एक झटके में ध्वस्त कर दिया गया है।

रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट के नाम पर बदरीनाथ मंदिर के चरणों से गुजर रही अलकनन्दा के तट को भारी मशीनों से खोदा जा रहा है। तीर्थयात्री भी किसी तरह दर्शन कर वहां से लौटने को आतुर दिख रहे हैं। यही नहीं बदरीनाथ मंदिर के लिए स्थानीय ग्रामीणों द्वारा भी सैकडों नाली भूमि दान दी गई थी, जिस पर प्रशासन बिना मंदिर समिति को विश्वास में लिए कहीं दुकानें निर्मित करवा रहा है तो कहीं बाकायदा भूमि पूजन कर आवास बनवा रहा है।

ठीक कपाट खुलने से पूर्व श्री बदरीनाथ मंदिर के सामने गुजराती भवन नाम से एक वीआईपी गेस्ट हाउस था, जिस पर गत वर्ष ही प्रधानमंत्री के बदरीनाथ भ्रमण से पूर्व लाखों रुपए खर्च किए गए थे। उसे जेसीबी की मदद से धराशायी कर दिया गया। मंदिर समिति के पदाधिकारी जिला प्रशासन से उक्त गुजराती गेस्ट हाउस को यात्रा के पीक सीजन मई व जून माह के बाद ध्वस्त करने का आग्रह करते रह गए, लेकिन प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट के नाम पर प्रशासन के सामने किसी की नही चली, और अब बदरीनाथ मंदिर के सामने मलबे के ढेर को दबा के रखा गया है। जब यात्राकाल के दौरान मलबा भी नही हटाया जाना था तो दो महीने बाद भी ध्वस्त किया जा सकता था। लेकिन जब प्रशासन के अधिकारियों में मुख्य मंत्री, राज्यपाल व मुख्य सचिव के प्रशस्ति पत्र पाने की होड़ लगी हो तो जनता जर्नादन के सुझावों की क्या अहमियत!

बसावट के पास मौजूद मलबे का ढेर

पर्यावरणविदों की राय लिये बिना किये जा रहे बेतहासा और अवैज्ञानिक निर्माण के दुष्परिणाम का पहला संकेत क्रूम और प्रह्लाद जलधाराओं के बंद होने से सामने आने लगा है। जहां पर ये धारे थे वहां मलबे के बड़े ढेर नजर आ रहे हैं। ये दोनों ही जल श्रोत पौराणिक महत्व के थे। क्रूम धारा के जल से भगवान बदरीनाथ का अभिषेक होता है।

विशेषज्ञों के अनुसार मंदिर और बदरीनाथ पुरी के नीचे बहने वाली अलकनन्दा के तट पर जेसीबी मशीनों से की जा रही खुदाई के कारण ये जलधाराएं बन्द हुई हैं और अगर आगे भी इसी तरह काम होता रहा तो बदरीनाथ के गर्म पानी के तप्तकुण्ड भी एक दिन सूख जायेंगे। जल श्रोतों के नीचे खुदाई करने से अक्सर वे अपना भूमिगत मार्ग बदल देती है। अगर वहां शेषनेत्र झील के आसपास भी इसी तरह भारी मशीनों से खुदाई की गयी तो इस झील का सूखना भी अवश्यंभावी है। यही नहीं रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट के नाम पर अलकनन्दा तट पर बड़े पैमाने पर हो रही खुदाई से बदरीनाथ पुरी का समूचा भूमिगत जलतंत्र अस्तव्यस्त होने की आशंका जताई जा रही है। अगर ये प्राकृतिक गर्म पानी के श्रोत भटक गये तो मंदिर में दर्शन से पहले तीर्थयात्रियों के लिये स्नान की समस्या खड़ी हो जायेगी।

प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट का कहना है कि धाम को सजाना संवारना तो अच्छी बात है लेकिन इस अति संवेदनशील स्थल की मौलिकता से छेड़छाड़ ठीक नहीं है। उन्होंने भारी तोड़फोड़ और अलकनन्दा तट की बेतहासा खुदाई पर भी चिन्ता प्रकट की है।

अलकनन्दा तट पर भारी मशीनों से की जा रही खुदाई का असर बदरीनाथ पुरी में भू-धंसाव के रूप में दिखाई देने लगा है। बाजार के निचले हिस्से में भू-धंसाव साफ नजर आ रहा है। कुछ भवनों की बुनियाद खोद डालने से उनके गिरने का खतरा उत्पन्न हो गया है। भू-धंसाव के कारण पण्डे पुजारियों की कालोनी, पंचभैया मोहल्ला को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। बाजार गली में दरारें बढ़ गयी हैं। प्रशासन ने दरार वाले स्थान के दोनों ओर यात्रियों की सुरक्षा के लिये दीवार खड़ी कर दी हैं। रास्ता बंद होने से यात्रियों का आना-जाना अब कुबेर गली से किया जा रहा है। बाजार में बिहारीलाल शाह और सरदार जी की दुकान के नाम से पुकारे जाने वाले स्थल तक लगभग 50 मीटर लम्बी दरार प्रकट होने से लोगों को बदरीनाथ का जोशीमठ जैसा हस्र होने का अंदेशा सता रहा है। लेकिन भूविज्ञानियों का कहना है कि बदरीनाथ एक समतल स्थल होने के कारण वहां जोशीमठ जैसी नौबत नहीं आयेगी।

हद तो तब हो गयी जब बदरीनाथ नगर में बने मल-जल शोधन संयंत्र की गंदगी पवित्र अलकनन्दा में बहा दी गयी। बदरीनाथ मास्टर प्लान के नाम पर इस पौराणिक स्थल की मौलिकता से छेड़छाड़ तो हो ही रही थी लेकिन निर्माण कंपनी बदरीनाथ के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के मल-मूत्र भरे टैंक को अलकनन्दा में खाली कर गंगा की पवित्रता को भी दूषित कर रही है। एक तरफ सरकार गंगा की पवित्रता और निर्मलता के लिये नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर खरबों रुपये खर्च कर रही है और दूसरी तरफ गंगा के उद्गम पर ही उसे मैला कर हिन्दू धर्मावलम्बियों की भावनाओं को आहत किया जा रहा है। मल-जल शोधन संयंत्र से अलकनन्दा में प्रवाहित हो रही गंदगी का वीडिओ वायरल होने पर करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की भावनाएं भी आहत हो रही है।

इससे पहले 1974 में भी बसंत कुमार बिड़ला की पुत्री के नाम पर बने बिड़ला ग्रुप के जयश्री ट्रस्ट ने भी बदरीनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर उसे नया स्वरूप देने का प्रयास किया था। उस समय सीमेंट कंकरीट का प्लेटफार्म बनने के बाद 22 फुट ऊंची दीवार भी बन गयी थी और आगरा से मंदिर के लिये लाल बालू के पत्थर भी पहुंच गये थे। लेकिन चिपको नेता चण्डी प्रसाद भट्ट एवं गौरा देवी तथा ब्लाक प्रमुख गोविन्द सिंह रावत आदि के नेतृत्व में चले स्थानीय लोगों के आन्दोलन के कारण उत्तर प्रदेश की तत्कालीन हेमवती नन्दन बहुगुणा सरकार ने निर्माण कार्य रुकवा दिया था।

इस सम्बन्ध में 13 जुलाई, 1974 को उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री बहुगुणा ने अपने वरिष्ठ सहयोगी एवं वित्तमंत्री नारायण दत्त तिवारी की अध्यक्षता में हाईपावर कमेटी की घोषणा की थी। इस कमेटी में भू-गर्भ विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही भारतीय पुरातत्व विभाग के तत्कालीन महानिदेशक एम.एन. देशपांडे भी सदस्य थे। कमेटी की सिफारिश पर सरकार ने निर्माण कार्य पर पूर्णतः रोक लगवा दी थी। तिवारी कमेटी ने बदरीनाथ धाम की भूगर्भीय और भूभौतिकीय एवं जलवायु संबंधी तमाम परिस्थितियों का अध्ययन कर बदरीनाथ में अनावश्यक निर्माण से परहेज करने की सिफारिश की थी। लेकिन बदरीनाथ के इतिहास भूगोल से अनभिज्ञ उत्तराखण्ड की मौजूदा सरकार ने मास्टर प्लान बनाने में इस सरकारी विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिशों की तक अनदेखी कर दी। जिसका नतीजा सामने आने लगा है।

हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व सूचना आयुक्त राजेन्द्र कोटियाल बदरीनाथ के मौलिक स्वरूप् के साथ की जा रही छेड़छाड़ की शिकायत प्रधानमंत्री मोदी एवं मुख्यमंत्री धामी से भी की। लेकिन जब शिकायत का कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने राज्य मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटा दिया। इसी के साथ ही कोटियाल ने नैनीताल हाइकोर्ट में भी याचिका दायर कर दी है।

(उत्तराखंड से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत/प्रकाश कपरूवाण की रिपोर्ट।)

जयसिंह रावत
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