मोदी को इस बार की अमेरिका यात्रा कड़वे अनुभवों के लिए याद रहेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस बार की अमेरिका यात्रा बेहद कटु अनुभव वाली रही है। तीन दिन की इस यात्रा के दौरान विभिन्न मौकों पर अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ जिस तरह का रुखा व्यवहार किया, उससे यही जाहिर हुआ है कि मोदी ने दो साल पहले अमेरिका जाकर वहां तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंम्प के समर्थन में जो चुनाव प्रचार किया था उसे बाइडेन के नेतृत्व वाला अमेरिकी प्रशासन अभी तक नहीं भूला है।
गौरतलब है कि दो साल पहले मोदी ने अमेरिका में वहां बसे भारतीयों के बीच एक कार्यक्रम में ट्रम्प के समर्थन ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ के नारे लोगों से लगवाए थे। यही नहीं, उन्होंने बाद में अमेरिका में रह रहे भारतीयों का ट्रम्प को समर्थन सुनिश्चित करने के लिए अपने गृह राज्य गुजरात में भी ‘नमस्ते ट्रम्प’ के नाम से एक रंगारंग जलसा आयोजित किया था, जिसमें हजारों प्रवासी भारतीयों के अलावा खुद ट्रम्प भी शामिल हुए थे। जिस समय यह जलसा हुआ था, उस समय भारत में और भारत से ज्यादा अमेरिका में कोरोना महामारी फैलना शुरू हो चुकी थी। लेकिन महामारी की गंभीरता को नजरअंदाज करते हुए जलसे का आयोजन किया गया था। यह जलसा भारत में कोरोना का संक्रमण बढ़ाने का एक बड़ा कारण भी बना था।

अमेरिकी राष्ट्रपति के समर्थन में भारत के प्रधानमंत्री का चुनाव प्रचार करना न सिर्फ अमेरिका की घरेलू राजनीति में अनावश्यक दखलंदाजी थी, बल्कि यह कूटनीति के मान्य और स्थापित मानदंडों तथा सामान्य शिष्टाचार के भी खिलाफ था। अमेरिकी राष्ट्रपति के उस चुनाव में ट्रम्प के खिलाफ जो बाइडेन ही उम्मीदवार थे, जो जीते और राष्ट्रपति बने।

बाइडेन प्रशासन ने तीन दिन की यात्रा में मोदी को उनकी इस गलती का कदम-कदम पर अहसास कराया। उसने न सिर्फ मोदी की अगवानी में रुखापन दिखाया बल्कि अन्य मौकों पर भी उनके सम्मान में वह गर्मजोशी नहीं दिखाई जो पूर्व में भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान उसकी ओर से दिखाई जाती रही है। सबसे पहले तो प्रधानमंत्री मोदी जब अमेरिकी धरती पर उतरे तो उनकी आगवानी करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति तो दूर कोई मंत्री या अमेरिकी प्रशासन का उच्च अधिकारी तक हवाई अड्डे पर नहीं आया। सिर्फ वहां के अंडर सेक्रेटरी स्तर के एक अधिकारी, भारतीय राजदूत और दूतावास के अन्य अधिकारियों ने मोदी की अगवानी की। यह पहला अवसर रहा जब अमेरिकी धरती पर भारतीय नेतृत्व की सरकारी अगवानी इतनी रुखी रही।

प्रधानमंत्री मोदी की इस तीन दिवसीय यात्रा के दौरान उनकी अमेरिकी नेताओं से बातचीत में लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण, लोकतांत्रिक संस्थाओं के पतन और बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता का मुद्दा भी छाया रहा, जो कि निश्चित ही मोदी को असहज करने वाला रहा। पहले उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने बाद में राष्ट्रपति बाइडेन ने भारतीय प्रधानमंत्री को लोकतांत्रिक मूल्यों का पाठ पढ़ाया।
उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में सार्वजनिक तौर पर कैमरे के सामने कहा, ”चूंकि दुनिया भर में इस समय लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है, लिहाजा यह बहुत जरूरी हो जाता है कि हम अपने-अपने देश में और दुनियाभर में लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थाओं का बचाव करें। यह हमारा फर्ज है कि हम अपने घर में लोकतंत्र को मजबूत करें और अपने देश के लोगों के हित में लोकतंत्र की रक्षा करें।’’

प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय बातचीत में राष्ट्रपति बाइडेन ने महात्मा गांधी को याद करते हुए अहिंसा, सहिष्णुता और धार्मिक सद्भाव की चर्चा की। बाइडेन ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा साफ था। उन्होंने गांधी और उनके सिद्धांतों का हवाला देकर मोदी को संकेत दिया कि वे भारत में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा को लेकर चिंतित हैं और मोदी सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।

अमेरिकी राष्ट्रपति का महात्मा गांधी के हवाले से मोदी को नसीहत देना भी निहितार्थों से भरा है, क्योंकि भारत में प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी के कई नेता अक्सर गांधी को लेकर अपमानजनक टिप्पणी और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करते रहते हैं। पार्टी के कुछ सहमना संगठन तो गांधी के हत्यारों का भाजपा शासित राज्यों में यहां-वहां मंदिर भी बनाते रहते और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

द्विपक्षीय बातचीत से अलग एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती चुनौती का मुकाबला करने के लिए ऑकस ग्रुप में भारत को शामिल करने से इनकार भी अपने देश में भारतीय प्रधानमंत्री की मौजूदगी में ही किया। यह स्थिति तब है जब सामरिक मामलों में चीन की चुनौती का सबसे ज्यादा मुकाबला भारत को करना पड़ रहा है। चीन की लंबी सीमा भारत से मिलती है और चीनी सेना जब-तब कभी लद्दाख तो कभी अरुणाचल प्रदेश में घुस कर अपनी चौकी कायम कर लेती है। फिर जब यह मामला जोर पकड़ता है तो भारत सरकार अगर-मगर के साथ इसका खंडन करती हैं और प्रधानमंत्री चीन का नाम लिए बगैर कहते हैं कि हमारी सीमा में न तो कोई घुसा था और न ही कोई घुसा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी के लिए संतोषजनक बात यही रही कि आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों अमेरिकी नेताओं ने उनकी चिंताओं से सहमति जताई और माना कि पाकिस्तान में कई आतंकवादी संगठन हैं। अमेरिकी उप राष्ट्रपति ने पाकिस्तान से इस संबंध में कार्रवाई करने को कहा ताकि इससे भारत और अमेरिका की सुरक्षा पर असर नहीं पड़े ।
मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर बेरुखी सिर्फ अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान ने ही नहीं दिखाई, बल्कि अमेरिकी मीडिया ने भी उनकी यात्रा को कोई महत्व नहीं दिया। कुल मिलाकर इस बार की अमेरिका यात्रा में मोदी को ऐसा कोई अनुभव नहीं मिला जिसे वे सुखद मान कर याद रखना चाहेंगे।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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