नई दिल्ली। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अर्थव्यवस्था के मामले में देश के राजनीतिक और सामाजिक हालातों का प्रमुखता से जिक्र किया है। एजेंसी ने कहा है कि नागरिक समाज की आज़ादी और राजनीतिक असहमतियों को कुचलना अर्थव्यवस्था के विकास के रास्ते में बाधक साबित हो सकता है। इस कड़ी में एजेंसी ने देश के कई हिस्सों में समय-समय पर होने वाली जातीय और सांप्रदायिक हिंसा को भी चिन्हित किया है। इसके तहत उसने मणिपुर में जारी जातीय हिंसा का बाकायदा उदाहरण देकर विस्तार से उसकी चर्चा की है।
मूडीज ने भारत की क्रेडिट रेटिंग्स को अपग्रेड न करने के पीछे गंभीर वजहें बताई हैं। मूडीज की रेटिंग को लेकर कल से ही देश के अंग्रेजी दां लोगों और समाचारपत्रों में सुर्खियां छाई हुई हैं। मोदी सरकार को जीडीपी ग्रोथ के मामले में दुनिया की सबसे तेज विकास वाली अर्थव्यवस्था के दावे के आधार पर मूडीज से सकारात्मक रेटिंग हासिल करने की उम्मीद थी। बताया जा रहा है कि इसके लिए जून में ही भारत की ओर से मूडीज के सामने प्रबल दावेदारी पेश की गई थी।
लेकिन मामला सिफर रहा और 3 वर्ष पहले भारत में निवेश को लेकर मूडीज ने रेटिंग गिराकर Baa3 में डाला था, उसे ही बरकरार रखा है। आज से 25 साल पहले भी भारत की रेटिंग डाउनग्रेड कर Ba2 की श्रेणी में तब डाला गया था, जब वाजपेयी सरकार के परमाणु परीक्षण पर पश्चिमी देशों ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की थी। हालांकि फरवरी, 2003 में Ba1, जनवरी 2004 में Baa3 और नवंबर 2017 में Baa2 के साथ भारत की रेटिंग्स में लगातार सुधार का क्रम बना हुआ था। लेकिन जून, 2020 में मूडीज ने रेटिंग को डाउन ग्रेड कर Baa3 की सबसे बदतर श्रेणी से एक पायदान ऊपर की जगह दी थी। इसके पीछे की वजह कोविड-19 महामारी के चलते देशव्यापी कठोरतम लॉक डाउन को लागू करने से देश की समूची अर्थव्यवस्था के ही ठप पड़ जाने को बताया गया था। लेकिन तब भी मूडीज ने अपने विश्लेषण में स्पष्ट किया था कि भले ही डाउनग्रेडिंग कोविड-19 के समय हो रही हो, लेकिन भारत में वृद्धि दर पिछले वर्षों की तुलना में लगातार धीमी हो रही है (मार्च, 2017 के 83% की तुलना में 2020 में 4% की वृद्धि दर), जिसके पीछे निजी क्षेत्र में निवेश के सुस्त पड़ने, नए रोजगार सृजन में भारी कमी और खराब वित्तीय प्रबंधन का हाथ है।
देश 2020 और 2021 तक आर्थिक दुश्चक्र से घिरा हुआ था, लेकिन 2022-23 की जीडीपी विकास दर को आधार बनाकर मोदी सरकार लगातार अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों पर दबाव बना रही थी कि रेटिंग में सुधार होना चाहिए लेकिन मूडीज ने एक बार फिर से Baa3 की ग्रेडिंग के पीछे जो तर्क दिए हैं, वे सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या मूडीज जैसी रेटिंग एजेंसी जो बात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए देख रही है, उसे हमारा वित्त मंत्रालय, आर्थिक विशेषज्ञ, नीति आयोग और प्रधानमंत्री के मुख्य आर्थिक सलाहकार नहीं देख पा रहे हैं, या झूठी तस्वीर पेश कर देश को दलदल में धकेल रहे हैं? या रेटिंग एजेंसियां पश्चिमी साम्राज्यवादी हितों में ऐसा जानबूझकर कर रही हैं?
आइये देखते हैं कि मूडीज ने वे कौन से कारण इस डाउनग्रेड रेटिंग को बरकरार रखने के पक्ष में दिए हैं। मूडीज के सिंगापुर स्थित कार्यालय से वरिष्ठ उपाध्यक्ष, क्रिश्चियन डी गुज़मैन द्वारा हस्ताक्षरित रेटिंग की रिपोर्ट अपने आप में बेहद व्यापक स्वरूप लिए हुए है, जिसमें भारतीय आर्थिक विकास को ही नहीं बल्कि देश के राजनीतिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों का भी बेहद बारीक मूल्यांकन किया गया है। यह मूडीज के द्वारा पश्चिमी देशों की सरकारों और संस्थागत निवेशकों को भारत में निवेश या ऋण प्रदान करने से पहले रिटर्न से जुड़े जोखिमों का सटीक मूल्यांकन करने का आधार ही है, जो इनकी विश्वसनीयता को बढ़ाने या घटाने के काम करता है। मूडीज ने अपने विश्लेषण में भारत के संदर्भ में उसकी संभावनाओं और संभावित हादसे दोनों का आकलन किया है, और यही वजह है कि मूडीज की रेटिंग पर आज देशभर में चर्चा का बाजार गर्म है।
लेकिन विषय पर जाने से पहले मूडीज एवं अन्य रेटिंग एजेंसियों के बारे में जानना भी बेहतर होगा। 1909 में जॉन मूडी द्वारा स्थापित, मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस या मूडीज़ को स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (S&P) और फिच ग्रुप के साथ विश्व की तीन सबसे बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से एक माना जाता है। मूडीज एक ऐसी संस्था है जो एक प्रकार से कर्जदारों की साख की रैंकिंग करती है। उधारकर्ताओं को रैंक करने के लिए, एक मानकीकृत रेटिंग पैमाने का उपयोग किया जाता है जो डिफ़ॉल्ट की स्थिति में अपेक्षित निवेशक नुकसान को मापता है। इस प्रकार, यह मूडीज़ कॉरपोरेशन का एक बॉन्ड क्रेडिट रेटिंग बिजनेस है जो वाणिज्यिक एवं सरकारी संस्थाओं द्वारा जारी किए गए बॉन्ड पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय शोध को मुहैया कराता है।
मूडीज की सेवाएं और रेटिंग निवेशकों के लिए उपयोगी होती हैं और वैश्विक पूंजी बाजारों में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है जहां वे बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए क्रेडिट विश्लेषण प्रदाता के बतौर काम करते हैं और विशेष प्रतिभूतियों के जोखिम का आकलन करने में मदद करते हैं।
मूडीज की Baa3 रेटिंग अल्पावधि वाले कर्ज को चुकाने की किसी देश की स्वीकार्य क्षमता को प्रदर्शित करती है। ऐसे में संबंधित देशों में विदेशी निवेशकर्ताओं के लिए ये रेटिंग्स मार्गदर्शक का काम करती हैं, और जितनी अच्छी रेटिंग होगी देश को उतनी बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश या कर्ज मिलना आसान होगा।
मूडीज ने इस रेटिंग के पीछे जो तर्क पेश किये हैं, वे इस प्रकार हैं:
भारत के भविष्य को लेकर मूडीज का आकलन
मूडीज ने भारत की संभावनाओं के बारे में टीका करते हुए लिखा है कि मजबूत विकास भारत के राजकोषीय घाटे को कम कर सकती है, लेकिन यदि मुद्रास्फीति की दर ऊंची बनी रहती है तो नतीजे में उच्च ब्याज दरें सरकार के खर्च पर लगाम लगाने में नाकाम साबित होंगी और पहले से कमजोर ऋण सामर्थ्य की स्थिति बिगड़ सकती है डिजिटलीकरण के आर्थिक और सामाजिक लाभ भविष्य में बेहतर हो सकते हैं।
मूडीज की रेटिंग में पर्यावरणीय, सामाजिक एवं शासन को भी शामिल किया जाता है भारत का क्रेडिट इम्पैक्ट स्कोर (CIS-4 ESG) पर्यावरणीय एवं सामाजिक जोखिमों से ताल्लुक रखता है मूडीज के मुताबिक, कमजोर सरकारी बैलेंस शीट और कम आय के चलते इन जोखिमों को कम करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं।
मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत सरकार की रेटिंग पर चर्चा के लिए 15 अगस्त 2023 को रेटिंग कमेटी आहूत की गई थी। चर्चा के मुख्य बिंदु थे: इसमें आर्थिक शक्ति आर्थिक बुनियादी सिद्धांत में भौतिक रूप से बदलाव देखने को नहीं मिला। संस्थाओं और शासन की शक्ति में भौतिक रूप से वृद्धि तो देखने को मिली है लेकिन राजकोषीय ताकत, जिसमें ऋण प्रोफ़ाइल भी शामिल है उसमें बदलाव नहीं है। घटना के जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता में भी कोई खास बदलाव नहीं आया है।
मूडीज ने रेटिंग को अपग्रेड या निगेटिव ग्रेडिंग देने के संबंध में स्पष्ट करते हुए अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि यदि भारत के राजकोषीय मजबूती के प्रयासों से सरकार के ऋण बोझ में कमी आती है और उसकी ऋण वहन करने की क्षमता में सुधार होता है तो मूडीज शायद रेटिंग में सुधार करे। इससे संभवतः ढांचागत सुधारों का प्रभावी रूप से कार्यान्वयन किया जा सकता है, जिसके चलते निजी क्षेत्र के निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ-साथ प्रति व्यक्ति जीडीपी एवं आर्थिक विविधीकरण को व्यापक बनाना संभव हो सकता है।
लेकिन इसके स्थान पर यदि राजनीतिक तनाव में वृद्धि होती है या सरकारी नियंत्रण और संतुलन और कमजोर पड़ने की स्थिति में भारत की दीर्घकालिक विकास की क्षमता में कमजोरी उसके गिरावट में योगदान करेगी। मौजूदा विकास दर का जो अनुमान भारत ने पेश किया है, उसकी तुलना में यदि वृद्धि दर में कमी आती है तो यह ऋण के बोझ में निरंतर वृद्धि में अभिवृद्धि करेगा, जो देश के राजकोषीय ताकत को कमजोर कर रेटिंग पर दबाव बनायेगा। इसके अलावा, वित्तीय क्षेत्र में यदि फिर तनाव की स्थिति पैदा होती है, जिसके तत्काल एवं प्रभावी ढंग से निपटने की संभावना नहीं है, उस स्थिति में भी रेटिंग पर दबाव पड़ सकता है।
स्पष्ट है कि मूडीज ने भारत की आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक सहित पर्यावरणीय आकलन का समग्र मूल्यांकन करते हुए 3 वर्ष पहले की ग्रेडिंग को ही फिलहाल के लिए बरकरार रखा है। दुनिया के बड़े निवेशकों के आर्थिक हितों की रक्षा करने वाली इन रेटिंग एजेंसियों पर आज के दिन भारी दबाव की स्थिति है जरा सी चूक और बड़े बड़े बैंकों के धराशाई होने की घटना हाल के दिनों में आम हो गई हैं।
अडानी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद से पश्चिमी देशों के संस्थागत निवेशकों के लिए भारत में निवेश एक बड़ा जोखिम बन गया है ऐसे में भारत सरकार के लिए आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर दुधारी तलवार पर चलना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। एक तरफ उसे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, राजकोषीय घाटे में कमी और सरकार पर कर्ज के बोझ को कम करने की बड़ी चुनौती है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक लाभ एवं हिन्दुत्ववादी परियोजना को आधी दूरी तक ले जाकर बीच मंझधार पर छोड़ देने का प्रश्न उसके समूचे राजनीतिक अस्तित्व के लिए ही संकट का खतरा उत्पन्न कर देता है। अहम सवाल यह है कि जो बातें एक विदेशी निवेशक के लिए बेहद अहम हैं, जिसके लिए ये रेटिंग संस्थाएं अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं, वही बात एक आम भारतीय के जेहन को अभी तक क्यों हैरान-परेशान नहीं कर पा रही है?
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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Apne Desh ke agencies par log yakin karen to videshi kaise misguide kar sakenge. Mere Desh ke jaychandi Desh ko pichhe le jaati hai