नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो -7: एनसीबी नहीं जानती ‘ड्रग्स के केस में उसके सामने दिया गया इकबालिया बयान मान्य साक्ष्य नहीं’

क्या आप विश्वास करेंगे कि नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अधिकारियों को अक्टूबर 2020 में पारित उच्चतम न्यायालय के तूफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में दिए गये फैसले की जानकारी नहीं है? या धन उगाही के लिए एनसीबी अज्ञानता का नाटक करती है? इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में 628.28 किलोग्राम गांजा की तस्करी के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दे दी है। जस्टिस चंद्रधारी सिंह की एकल-पीठ ने राजवीर सिंह बनाम भारत संघ मामले में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) की धारा 8 और 20 के तहत दर्ज एक राजवीर सिंह को जमानत दे दी।

एकल पीठ ने कहा कि न तो आवेदक का नाम प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में है और न ही उससे कोई मादक पदार्थ बरामद किया गया है। इसके अतिरिक्त एकल पीठ ने पाया कि आवेदक के खिलाफ मामला केवल एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज सह-अभियुक्तों के इकबालिया बयानों के आधार पर था और आरोपों को साबित करने के लिए कोई अन्य पर्याप्त सबूत सामने नहीं रखा गया था।

अक्टूबर 2020 में उच्चतम न्यायालय ने अपने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दिया था कि एनडीपीएस (मादक पदार्थ निरोधक कानून) के तहत उनके अधिकारी के सामने दर्ज इकबालिया बयान साक्ष्य के तौर पर ट्रायल में इस्तेमाल नहीं होगा। यानी एनडीपीएस एक्ट के तहत पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयान साक्ष्य के तौर पर मान्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने पहले के फैसले को पलट दिया। और कहा कि आरोपी का एनडीपीएस एक्ट की धारा-67 के तहत दिए गए बयान को इकबालिया बयान नहीं माना जाएगा और उसे ट्रायल के दौरान इकबालिया बयान के तहत नहीं देखा जा सकता।

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा ने बहुमत से दिए फैसले में कहा कि इस तरह का बयान एविडेंस एक्ट की धारा-25 के विपरीत है और पुलिस ऑफिसर के सामने दिया ये बयान मान्य साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने अल्पमत में इनके विपरीत मत व्यक्त किया। तूफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य [आपराधिक अपील संख्या 152/ 2013] पीठ : जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी।

उच्चतम न्यायालय के पहले के जजमेंट अलग थे। 2013 में उच्चतम न्यायालय के दो जजों की पीठ ने मामले को रेफर किया था। तब सवाल भेजा गया था कि क्या एनडीपीएस एक्ट के तहत जो ऑफिसर हैं वह पुलिस ऑफिसर माने जाएंगे। और दूसरा सवाल था कि क्या एनडीपीएस की धारा-67 के तहत लिए गए बयान को इकबालिया बयान माना जाए या नहीं। उच्चतम न्यायालय ने कन्हैया लाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में पहले कहा था कि एनडीपीएस के तहत ऑफिसर पुलिस ऑफिसर नहीं हैं और ऐसे में एविडेंस एक्ट लागू नहीं होता। सवाल ये उठा था कि एनडीपीएस एक्ट के तहत अधिकारी जो छानबीन करते हैं और आरोपी का बयान दर्ज करते हैं ये ऑफिसर पुलिस ऑफिसर माने जाएं या नहीं।

जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि इकबालिया बयान अधिकृत अधिकारी के सामने एनडीपीएस के तहत होता है। इस आधार पर एनडीपीएस के तहत आरोपी को दोषी करार दिया जाता है। इस मामले में एविडेंस एक्ट की धारा-25 के अलावा और कोई सेफगार्ड नहीं है। ये सीधे तौर पर अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) अनुच्छेद-20 (3) यानी खुद के खिलाफ गवाही के लिए बाध्य न करने का अधिकार यानी चुप रहने का अधिकार और अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है।

उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से पहले के दिए फैसले को पलट दिया और कहा है कि एनडीपीएस की धारा-53 के तहत अधिकारी का जो अधिकार है वह पुलिस अधिकारी ही है और वह एविडेंस एक्ट की धारा-25 के दायरे में है। यानी उक्त अधिकारी यानी पुलिस अधिकारी के सामने दिए गए इकबालिया बयान एविडेंस एक्ट की धारा-25 के तहत प्रतिबंधित है और उस आधार पर आरोपी को दोषी नहीं करार दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर अधिकारी एनडीपीएस की धारा-67 के तहत किसी आरोपी को बयान के लिए बुलाता है और वह इकबालिया बयान देता है तो वह बयान एविडेंस एक्ट की धारा-25 के तहत मान्य नहीं होगा और ट्रायल के दौरान उसका इस्तेमाल नहीं हो सकता। साक्ष्य अधिनियम की धारा-25 में प्रावधान है कि कोई भी बयान जो पुलिस अधिकारी के सामने दिया जाता है वह इकबालिया बयान आरोपी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं हो सकता।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस चंद्रधारी सिंह की एकल-पीठ ने राजवीर सिंह बनाम भारत संघ मामले में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) की धारा 8 और 20 के तहत दर्ज एक राजवीर सिंह को जमानत दे दी। एकल पीठ ने कहा कि न तो आवेदक का नाम प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में है और न ही उससे कोई मादक पदार्थ बरामद किया गया है। एकल पीठ ने पाया कि आवेदक के खिलाफ मामला केवल एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज सह-अभियुक्तों के इकबालिया बयानों के आधार पर था और आरोपों को साबित करने के लिए कोई अन्य पर्याप्त सबूत सामने नहीं रखा गया था।

उड़ीसा से झांसी, उरई, कानपुर, लखनऊ होते हुए अलीगढ़ जा रहे मादक पदार्थों से लदे ट्रक की विशेष सूचना मिलने पर राजस्व खुफिया निदेशालय के अधिकारियों की टीम गठित की गयी। इसे रोका गया और ट्रक में सवार दो लोगों को पकड़ लिया गया। उन्होंने शुरू में ट्रक में प्रतिबंधित सामग्री के बारे में अनभिज्ञता जताई, लेकिन पूछताछ के बाद उन्होंने तलाशी दल को सूचित किया कि ट्रक में गांजा था। ट्रक की तलाशी लेने पर ट्रक में विशेष गड्ढा मिला जहां से करीब 628.28 किलोग्राम गांजा बरामद हुआ।

पकड़े गए दोनों व्यक्तियों द्वारा इकबालिया बयान दिए जाने के बाद वर्तमान आवेदक का नाम प्रकाश में आया। बाद में, आवेदक ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दिए गए अपने बयान में यह भी स्वीकार किया कि उसने अपने पैसे से जब्त प्रतिबंधित पदार्थ खरीदा है।

एकल पीठ ने इस बात का संज्ञान लिया कि प्राथमिकी में न तो आवेदक-आरोपी का नाम था और न ही वह मौके पर मौजूद था। इसके अलावा, आरोपी-आवेदक से कोई वसूली नहीं की गई थी। एकल पीठ ने कहा कि उसका नाम एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज सह-आरोपी राकेश और वीरपाल के इकबालिया बयानों के आधार पर सामने आया, जिसमें कहा गया था कि वे आरोपी आवेदक के निर्देश पर जब्त गांजा को अलीगढ़ ले जा रहे थे।

इसके अलावा, एनसीबी ने स्वयं आवेदक के बयान पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 पर भी भरोसा किया था। लेकिन एकल पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून आरोपी की मदद के लिए आएगा।इस प्रकार एकल पीठ ने माना कि मुकदमे के दौरान पेश किए गए सबूतों की गुणवत्ता के आधार पर आवेदक की जटिलता का निर्धारण करना होगा।

एकल पीठ ने कहा कि जहां तक स्व-अपराधी बयान पर भरोसा है, अदालत की प्रथम दृष्टया राय है कि तूफान सिंह के मामले में निर्धारित अनुपात आवेदक की सहायता के लिए उसे नियमित जमानत का लाभ देने के लिए आएगा। एकल पीठ ने कहा कि यद्यपि सह-अभियुक्त ने कहा कि जब्त किया गया ट्रक आवेदक का है, अभियोजन पक्ष जब्त वाहन के संबंध में आवेदक-अभियुक्त के स्वामित्व को स्थापित करने के लिए कोई दस्तावेजी साक्ष्य रिकॉर्ड में लाने में विफल रहा।

आवेदक को जमानत देते हुए एकल पीठ ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के संदर्भ में यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आवेदक आरोपी अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है। मुझे लगता है कि यह आवेदक को जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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