स्कॉटलैंड से नीतीश की बिहार की राजनीति पर नज़र और बिहार एनडीए में मचा बवाल

बिहार एनडीए के भीतर बवाल मचा हुआ है। बवाल तो महाराष्ट्र में भी है। महाराष्ट्र एनडीए में सीट बंटवारे के नाम पर बीजेपी घटक दलों को आश्वासन तो दे रही है लेकिन शिंदे शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के भीतर कोहराम मचा हुआ है। बीजेपी वहां अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी यह तय हो चुका है। शिंदे शिवसेना को दस से बारह सीटें देने की बात की जा रही है जबकि अजित पवार एनसीपी को चार से पांच सीटें दी जायेगी। अभी तक की यही कहानी है। उधर शिंदे गुट के कई सांसदों ने कहा है कि अगर उन्हें टिकट नहीं मिलेगा तो वे कोई निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं। कुल मिलाकर महाराष्ट्र में अभी खेला हो सकता है। कई सांसद इधर से उधर हो सकते हैं। 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश यूके की यात्रा पर हैं और इस समय स्कॉटलैंड में हैं। जानकारी के मुताबिक़ वे अगले सप्ताह वहां से पटना लौटेंगे। खबर यह भी है कि पटना पहुँचने से पहले वे दिल्ली में बैठकी भी करेंगे। कुछ अपने सांसदों के साथ बातचीत करेंगे और फिर बीजेपी के नेताओं से मुलाकात और बात भी करेंगे। संभव है कि पीएम मोदी और अमित शाह से भी उनकी मुलाकात होगी। 

कई तरह की खबरें पटना से निकल रही हैं। कुछ खबर तो ऐसी है जिसे जानकार लगता है मानो कोई बड़ा खेला अभी भी होने वाला है। यह खेला कोई सत्ता परिवर्तन से जुड़ा नहीं है। यह तो चिराग पासवान की जमीन को खोदने वाला खेला है। इस संभावित खेला में सच क्या है यह कोई नहीं जानता लेकिन पीठ पीछे जो गपशप होती है उसमें इस खेले की चर्चा जदयू के नेता ही कर जाते हैं। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार किसी भी कीमत पर नहीं चाहते कि चिराग और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के साथ रहें और रहें भी तो उनकी मर्जी पर। उन्होंने इस बात की जानकारी भी बीजेपी वालों को दे दी है।

इस बात की जानकारी चिराग पासवान को भी है और उपेंद्र कुशवाहा को भी है। लेकिन अभी न तो चिराग इस पर कोई बात कर रहे हैं और न ही उपेंद्र ही कुछ बोल रहे हैं। इन दोनों नेताओं की पहली प्राथमिकता एनडीए में ही रहने की है। इसके पीछे की कहानी यह है कि इन दोनों नेताओं को लग रहा है कि एनडीए में रहकर ही उनको कुछ हासिल हो सकता है। कुछ सीटें जीती जा सकती हैं। मोदी का करिश्मा अभी भी जारी है। मोदी का इकबाल भी बिहार में बरकरार है और मोदी की ताकत के सामने अभी कोई नहीं है। ऐसे में मोदी के साथ रहकर ही लोकसभा की कुछ सीटें जीती जा सकती हैं। 

उपेंद्र कुशवाहा हों या चिराग पासवान। इन दोनों नेताओं की पहचान भी एनडीए में रहते हुए ही हुई थी। 2014 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को तीन सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उपेंद्र कुशवाहा मंत्री भी बन गए थे। इधर चिराग पासवान की पार्टी भी 2019 के चुनाव में 6 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी। यह बात और है कि चाचा भतीजा के बीच पार्टी का बंटवारा हुआ और चिराग अकेले रह गए और चाचा पशुपति पारस पांच सांसदों को लेकर अलग हो गए। मोदी सरकार में मंत्री भी बन गए। अब दोनों ही गुट की अपनी दावेदारी है। हर गुट खुद को बड़ा गुट मानता है लेकिन मोदी और शाह की कहानी तो यही है कि वह दोनों गुटों को अपने साथ रखना तो चाहते हैं लेकिन सीटें नहीं देना चाहते। सीट देंगे भी तो कहां से?

बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें ही हैं। इसी सीट में बंटवारा किया जाना है। अब बिहार से जो कहानी सामने आ रही है उसमें कहा जा रहा है कि बीजेपी और जदयू के बीच अधिकतर सीटों का बंटवारा किया जाना है। जदयू ने कह दिया है कि वह 16 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ेगी। इसी शर्त के साथ जदयू बीजेपी के साथ आई भी है। शर्त तो कई और बातों को लेकर थी। लेकिन अभी उन शर्तों का बखान ज़रुरी नहीं है। अब अगर बीजेपी भी 17 सीटों पर चुनाव लड़ती है तो बाकी बचीं सात से आठ सीटों पर ही मुकेश साहनी, चिराग पासवान, पशुपति पारस और मांझी की पार्टी के बीच सीटों का बंटवारा किया जाना है। चिराग पासवान अब भी पांच से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हैं। पशुपति पारस भी पांच सीट मांग रहे हैं। जीतन राम मांझी को एक सीट दी जा सकती है जबकि उपेंद्र कुशवाहा भी तीन सीटों की मांग कर रहे हैं। एनडीए के भीतर एक तरह से कोहराम मचा हुआ है। 

जानकार कह रहे हैं कि बिहार एनडीए में जदयू और बीजेपी के अलावा पांच और दलों के बीच सीट का बंटवारा किया जाना है लेकिन सीटें तो अब आठ ही बच रही हैं। आठ सीटों में पांच दल। या तो बीजेपी को कम सीटों पर चुनाव लड़ना होगा और ऐसा नहीं हुआ तो चिराग और कुशवाहा एनडीए से अलग हो सकते हैं। लेकिन बीजेपी की मुश्किल ये है कि वह चिराग पासवान को भी नहीं छोड़ना चाहती। चिराग के जरिए बीजेपी नीतीश कुमार पर नकेल कसने को तैयार है। लेकिन जदयू भी बीजेपी के इस खेल को समझ रही है। नीतीश कुमार किसी भी तरह से चिराग और कुशवाहा को अलग करने को तैयार हैं। जदयू चिराग से बदला भी लेना चाहती है और बीजेपी के खेल को भी ख़राब करना चाहती है। इस खेल को सभी नेता समझ रहे हैं। बिहार की जनता भी सब समझ रही है। 

अब मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी भी चाहती है कि वह एनडीए के साथ ही चुनाव लड़े लेकिन उसकी बात राजद के साथ भी हो रही है। मुकेश साहनी तीन सीटों की मांग कर रहे हैं। एक सीट तो मुजफ्फरपुर की ही है। इस सीट पर अभी बीजेपी के सांसद हैं। बीजेपी इस सीट को छोड़ने को तैयार नहीं है। माना जा रहा है कि बीजेपी मुकेश साहनी को अपने साथ लेकर चिराग को अलग कर सकती है। अब बीजेपी यह भी कह रही है कि जिन्हें ज्यादा सीटों की जरूरत है वह जदयू से बात करे।

बीजेपी कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी। खेल पेंचीदा हो गया है। अब देखना यह है कि कौन किसके साथ रहता है और किसको छोड़ता है। इसी बीच एक खबर यह भी मिल रही है कि बीजेपी जिन सात सांसदों का टिकट काटने वाली है वे कहीं और जुगाड़ करते फिर रहे हैं। लेकिन उन्हें टिकट कौन देगा? ऐसे में लगता है कि एनडीए के भीतर कई ऐसे उम्मीदवार निर्दलीय भी मैदान में उतर सकते हैं जिनके टिकट काटे जाने हैं। और ऐसा हुआ तो खेल रोचक होगा और एनडीए की कई सीटों पर मुसीबत बढ़ेगी। 

इन तमाम खेलों को नीतीश कुमार स्कॉटलैंड से ही निहार रहे हैं। उनकी जदयू के नेताओं से हर रोज बात भी हो रही है और खेल की जानकारी से नीतीश कुमार को अवगत कराया जा रहा है। लगता है कि जब सीटों को लेकर आपसी मारामारी होगी तब नीतीश कुमार पटना पहुंचकर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाएंगे।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अखिलेश अखिल
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