अडानी की मुसीबतों का अंत नहीं: जतिन मेहता एक और बम

अडानी प्रकरण में अब एक और नया मोड़ आ गया है। ऐसा लगता है कि भले ही ईडी या सीबीआई इस मामले पर दम साधकर बैठी रहे, लेकिन अडानी प्रसंग ही इतना विशाल है कि हर एक सप्ताह में कोई न कोई गांठ निश्चित रूप से देश के सामने उजागर होती रहेगी। यह मामला उन 36 चोटी के आर्थिक अपराधियों में से एक का है, जो भारत के बैंकों से कर्ज लेकर पैसों का गबन कर देश छोड़कर भागे हुए हैं।

लेकिन रोचक तथ्य यह है कि इनमें से एक जतिन मेहता असल में अडानी परिवार के निकट संबंधी हैं। गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी की बेटी कृपा की शादी जतिन मेहता के बेटे सूरज से 2012 में हुई थी। जतिन मेहता के ऊपर भारतीय बैंकों का 7,000 करोड़ रुपये का बकाया कर्ज था, जिसे उन्होंने अपने ज्वेलरी के निर्यात में लगा रखा था और भुगतान न मिलने की सूरत में यह कर्ज बट्टे खाते में चला गया। बता दें कि आर्थिक भगोड़ों में जतिन मेहता सबसे पहले पलायन करने वाले लोगों में से एक हैं।

2014 में जतिन और उनकी पत्नी सोनिया मेहता ने कैरिबियाई द्वीप सेंट किट्स की नागरिकता ग्रहण कर ली थी। यह देश उन देशों में से एक है, जिसके साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। इसलिए जतिन मेहता को भारत लाना भी अपने आपमें एक टेढ़ी खीर है। बुधवार को कांग्रेस पार्टी की ओर से सुप्रिया श्रीनेत ने एक प्रेस कांफ्रेंस में इस मामले का खुलासा करते हुए मोदी सरकार के ऊपर आरोप लगाया है कि वह अडानी को बचाने के लिए जतिन मेहता पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

इससे पहले जतिन मेहता की इस स्टोरी पर न्यूज़क्लिक ने परंजॉय गुहा ठाकुरता, दानिश खान और अबीर दास गुप्ता के दो लेख प्रकाशित किये हैं, जिसमें भगोड़े जतिन मेहता की अनकही कई बातों को प्रकाश में लाया गया है। विन्सम डायमंड एंड ज्वेलरी लिमिटेड और इसकी सहायक कंपनी फॉरएवर प्रेशियस ज्वेलरी एंड डायमंड्स लिमिटेड के मालिक जतिन मेहता के द्वारा भारत के करीब 6 बैंकों को लगभग 7,000 करोड़ रूपये का चूना लगाने की बात 2013 में ही प्रकाश में आ गई थी।

बैंक ऑफ़ इंडिया, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, कैनरा बैंक, एक्सिस बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, एक्सिम बैंक, आईडीबीआई बैंक, ओरिएण्टल, पंजाब नेशनल बैंक सहित कुल 14 बैंकों का हजारों करोड़ रुपया लूटकर भागने वाले इस भगोड़े पर बैंकों की ओर से 2014 से ही कार्रवाई करने के लिए सरकार को शिकायत की गई थी। लेकिन सीबीआई ने 3 साल बाद एफआईआर दर्ज की, लेकिन इसको भी साढ़े तीन साल बीत चुके हैं, आजतक कोई एक्शन नहीं लिया गया है।

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा “भले मोदी और उनका समूचा तंत्र इस मुद्दे को कितना भी छुपाने की कोशिश करे, मैं आज आपको अडानी के समधी का कच्चा चिट्ठा सुनाने जा रही हूं। वे भी भगोड़े हैं और मेहुल और नीरव भाई की तरह देश छोड़कर भागे हुए हैं। जतिन मेहता ही विनसम डायमंड और सूरज डायमंड के मालिक हैं, जिसने पंजाब नेशनल बैंक सहित कई भारतीय बैंकों पर 7,000 करोड़ की चपत लगाई और भाग गया। जबकि मोदी सरकार आंख पर पट्टी और मुंह में दही जमाकर बैठी रही।

जतिन मेहता के भागने और उनकी काली करतूतों की लिंक अडानी के स्कैम से जुड़ी हुई हैं। जतिन मेहता के लड़के की शादी गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी की लड़की से हुई है। भला इससे अधिक घनिष्ट संबंध क्या हो सकता है।”

हकीकत यह है कि जतिन मेहता ने भारत के बैंकों के साथ जो भी धोखाधड़ी की है, उसको लेकर कहीं कोई हलचल नहीं थी। लेकिन इनमें से एक बैंक स्टैण्डर्ड चार्टर्ड भी शामिल है जिसका 406 करोड़ रुपया भी भारत में बकाया है। स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक ने ब्रिटेन की अदालत में जतिन मेहता पर केस कर रखा है, और लंदन की वेल्स कोर्ट में उन पर तगड़ा मुकदमा चल रहा है।

मेहता के खिलाफ वर्ल्डवाइड फ्रीजिंग आर्डर पास हो गया है, साथ ही जो काम भारतीय सरकार और बैंक कर पाने में असफल रहे, वह काम स्टैण्डर्ड चार्टड ने कर दिखाया है। लंदन में चल रहे इस मुकदमे के कारण एक बार फिर से जतिन मेहता दुनिया की निगाह में आ गये हैं, और अडानी के साथ उनकी नजदीकियों पर भी भारत सहित दुनिया के आर्थिक विशेषज्ञों की निगाहें गईं हैं।

इस पर कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि भारत सरकार इस मुद्दे पर मुंह सिले हुए है, क्योंकि इसके तार अडानी के काले कारनामे से जुड़ हुये हैं। जतिन मेहता ने मेहुल-नीरव की तरह बैंकों का कर्ज गबन करने का हथकंडा अपनाया। उसने ज्वेलरी एक्सपोर्ट करने का धंधा अपनाया। इसके लिए बैंकों से लैटर ऑफ़ क्रेडिट लिया। ज्वेलरी का निर्यात किया।

लेकिन जिन 13 कंपनियों को ज्वेलरी का निर्यात किया गया था, अब जांच से पता चल रहा है कि असल में वे सभी 13 कंपनियां जतिन मेहता की ही थीं। इस प्रकार पेमेंट न मिलने का बहाना बनाकर, बैंकों के 7,000 करोड़ रूपये डकार लिए गये। यह निर्यात अपनी ही कंपनी को किया जा रहा था, लेकिन पता नहीं ईडी अभी तक किस चीज की जांच कर रही है, वह इस पूरे मामले में सन्नाटा खीचे हुए है।

इस मामले को अडानी के 20,000 करोड़ के निवेश से जोड़ते हुए कांग्रेस इसे बेनामी पैसा बता रही है। उसके अनुसार, मोंटेरोसा नाम का कंपनियों का एक समूह है, जो कि एक शेल कंपनियों का समूह है और मारीशस में मोंटेरोसा का केंद्र है। मोंटेरोसा समूह की कंपनी तथाकथित रूप से उन शेल कंपनी में अपना पैसा डाल रही है, जिनके जरिये अडानी को पैसा आ रहा है।

कांग्रेस भी यही सवाल लगातार पूछ रही है कि यह 20 हजार करोड़ रुपया किसका है? यह पैसा उन शेल कंपनियों से आ रहा है, जिसका मालिकाना मोंटेरोसा समूह के पास है। वहीं जतिन मेहता और मोंटेरोसा आपस में जुड़े हुए हैं। इसके सीईओ और चेयरमैन के साथ जतिन मेहता कई कंपनियों में डायरेक्टर हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ने दावा किया है कि मोंटेरोसा के साथ चेंग चुइंग लिंग नामक चीनी राष्ट्रीयता वाले व्यक्ति का कनेक्शन है, जिसकी अडानी की कई कंपनियों में भागीदारी है। इस प्रकार मोंटेरोसा और जतिन मेहता का सीधा कनेक्शन है।

कांग्रेस ने 4 प्रश्न पूछे हैं, जिसका जवाब उसे केंद्र सरकार से चाहिए

1: पहला, जतिन मेहता को कौन बचा रहा है? अडानी मोदी जी के परम मित्र हैं और जतिन मेहता उनके समधी हैं। 5 अप्रैल 2017 को सीबीआई ने 3 साल बाद एफआईआर दर्ज की, जबकि बैंकों ने 2014 से ही कहना शुरू कर दिया था कि जतिन मेहता विल्फुल डिफाल्टर है। फिर एफआईआर में 3 साल क्यों लग गये?

2: एफआईआर में देरी क्यों की गई? इस पर क्या कार्रवाई की जा रही है? सीबीआई, ईडी कहां हैं?

3: ईडी हो या आर्थिक अपराध शाखा या वित्त मंत्रालय, इन्होंने साढ़े तीन साल तक इस घोटाले पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? सब लोग चुप क्यों रहे? क्या इसलिए क्योंकि वे गौतम अडानी के समधी हैं? उनके तार अडानी की काली करतूतों और अडानी स्कैम से जुड़ते हैं, इसलिए मोदी जी चुप रहे?

4: जतिन मेहता इतनी बड़ी धोखाधड़ी करके भारत से भाग जाता है, अपनी पत्नी के साथ दूसरे देश की नागरिकता ले लेता है और विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय सहित वित्त मंत्रालय कुछ नहीं करता। जतिन मेहता को सेंट किट्स की नागरिकता दिए जाने पर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट किसने दी? यह बड़ा सवाल है। किसी को ऐसे ही नागरिकता नहीं मिल जाती है। उसे उस देश की नागरिकता के लिए एनओसी दे दी गई, जहां से आप उसे वापस नहीं ला सकते। उस पर किसने हस्ताक्षर किये, किसने एनओसी दी?

निश्चित रूप से ये झकझोर देने वाले प्रश्न हैं, क्योंकि जतिन मेहता सिर्फ अडानी परिवार के निकट संबंधी ही नहीं हैं, बल्कि उनका समूचा कारोबार ही सवालिया घेरे में है। अपनी ही कंपनी को निर्यात कर भुगतान न मिलने पर बैंकों का हजारों करोड़ रुपये डकारकर कोई व्यक्ति सेंट किट्स जैसे सेफ हेवेन की नागरिकता पा जाता है और सरकार और उनकी जांच एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती हैं।

वहीं दूसरी तरफ देश में जोड़तोड़ से भाजपा की सरकार बनाने के लिए आये दिन ईडी सीबीआई के छापे मारे जाते हैं, जो सोचने को मजबूर कर देता है कि क्या भारत में वाकई कोई लोकतंत्र और संवैधानिक सरकार काम भी कर रही है? ऊपर से करेला नीम चढ़ा यह है कि अडानी समूह में शेल कंपनियों की भूमिका और उनके बड़े भाई की रहस्यमय भूमिका सेबी के रडार पर है।

ऐसे में एक भूतपूर्व भगोड़े को लंदन की अदालत में एक विदेशी बैंक की रिपोर्ट पर आरोपित ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि उसकी संपत्ति को फ्रीज कर दिया गया है। वही आदमी मॉरीशस की शेल कंपनियों से आज भी कथित रूप से अडानी कंपनियों में पैसे का निवेश कर रहा है। क्या इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी सरकार अपनी बची-खुची साख बचाने के लिए जरूरी कार्रवाई करेगी?

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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