अडानी समूह के खिलाफ खबर लिखने पर एक संपादक सहित चार पत्रकारों को अहमदाबाद पुलिस ने किया तलब

मामला अडानी समूह से जुड़ा हो ,घटना स्थल गुजरात हो, राज्य में भाजपा की सरकार हो तो क्या दीवानी मामला, क्या फौजदारी, आरोपी का उत्पीड़न तय मानकर चलिए। तो क्या हुआ कि उच्चतम न्यायालय ने अभी पिछले ही हफ्ते व्यवस्था दिया है कि सिविल नेचर के विवाद को आपराधिक केस का रंग दिया जाना स्वीकार्य नहीं है। अब अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा ने तीन स्टॉक निवेशकों द्वारा दायर एक आवेदन की जांच करते हुए दावा किया है कि अडानी समूह पर भ्रामक समाचार रिपोर्टों के कारण उनके निवेश पर भारी नुकसान हुआ है और इसके पीछे एक साजिश का आरोप लगाते हुए, एक संपादक सहित दो मीडिया हाउस के चार पत्रकारों को तलब किया है। यदि भ्रामक ख़बरें हैं तो इन्हें पहले मानहानि कि नोटिस दी जानी चाहिए थी। फिर मानहानि का मुकदमा। लेकिन इसमें त्वरित उत्पीड़न संभव नहीं था इसलिए अहमदाबाद कि पुलिस ने सिविल नेचर के विवाद को आपराधिक केस का रंग दे दिया।

अहमदाबाद के कुछ निवेशकों ने अपराध शाखा के समक्ष एक आवेदन दायर कर आरोप लगाया कि अडानी समूह में एफपीआई की संदिग्ध हिस्सेदारी के बारे में भ्रामक, असत्य और असत्यापित कहानी प्रकाशित करके देश के निवेशकों को धोखा देने की देशव्यापी साजिश रची गई है।

अहमदाबाद अपराध शाखा के पुलिस निरीक्षक निखिल ब्रह्मभट्ट के अनुसार सीआरपीसी की धारा 160 के प्रावधानों के तहत जांच अधिकारी समन जारी कर सकता है और हमने आवेदन के संबंध में एक प्रमुख समाचार चैनल के एंकर के साथ-साथ एक संपादक सहित एक प्रमुख वित्तीय समाचार पत्र के तीन पत्रकारों को तलब किया है। आवेदन अडानी समूह के बारे में भ्रामक समाचारों के कारण भारी नुकसान का दावा करने वाले अहमदाबाद के तीन निवेशकों द्वारा दायर किया गया।

निखिल ब्रह्मभट्ट ने कहा कि अपराध शाखा ने आवेदन के संबंध में सभी चार पत्रकारों के साथ-साथ स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारी के बयान दर्ज किए हैं। हम आवेदन की जांच कर रहे हैं और जांच कर रहे हैं कि क्या टीवी मीडिया आउटलेट्स द्वारा स्पष्ट इरादों और इससे संबंधित अन्य चिंताओं के साथ साजिश रची गई थी। अगर एसीबी को आवेदन में किए गए दावों में कोई योग्यता मिलती है, तो हम मीडिया आउटलेट्स के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज करेंगे।

पुलिस ने कहा कि आवेदन चैनल और अखबार द्वारा उपरोक्त विषय पर प्रसारित समाचारों के आधार पर दायर किया गया था। आवेदन के अनुसार, उस दिन ‘भ्रामक और असत्यापित समाचार’ प्रसारित करके देश के निवेशकों के खिलाफ साजिश रची जा रही थी।आवेदन में कहा गया है कि अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई, जिससे निवेशकों को नुकसान हुआ। याचिका में कहा गया है कि अहमदाबाद के कुछ निवेशकों को समाचार चैनल द्वारा चलाए जा रहे इस तरह के ‘भ्रामक अभियान’ के कारण भारी मौद्रिक नुकसान हुआ।

उच्चतम न्यायालय की जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने पिछले सप्ताह ही व्यवस्था दिया था कि हाईकोर्ट को इस बात की जांच करनी चाहिए कि जिस अपराध के बारे में शिकायत की गई है उसमें आपराधिक तत्व मौजूद हैं या नहीं। पीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्रवाई को रद्द करते हुए कहा कि मौजूदा केस में क्रिमिनल केस याचिकाकर्ता को प्रताड़ित करने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया। पीठ ने कहा कि सिविल नेचर के विवाद को आपराधिक केस का रंग दिया गया या नहीं यह हाईकोर्ट को देखना होगा।

गौरतलब है कि इसके पहले जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने प्रो आर के विजय सारथी बनाम सुधा सीताराम एवं अन्य, विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) 1434 / 2018,मामले में फरवरी 2019 में व्यवस्था दिया था कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए हाईकोर्ट इस बात की पड़ताल कर सकता है कि जो मामला दीवानी प्रकृति का है उसे आपराधिक मामला तो नहीं बनाया जा रहा है।पीठ ने कहा था कि अगर किसी दीवानी मामले को यदि आपराधिक मामला बनाया गया है तो इस मामले का जारी रहना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इस मामले को निरस्त किया जा सकता है।

वर्तमान मामले में याची रंधीर सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 15 दिसंबर 2020 के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने याची की अर्जी खारिज कर दी थी। याचिकाकर्ता एक संपत्ति का खरीददार था और उसकी पावर ऑफ एटार्नी के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज किया गया था जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने अर्जी दाखिल की थी। याची के खिलाफ गोरखपुर स्थित एक थाने में धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया था और वहां की निचली अदालत में केस पेंडिंग था। याची ने क्रिमिनल केस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। उच्चतम न्यायालय ने याची के खिलाफ शुरू की गई क्रिमिनल कार्रवाई को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट को देखना चाहिए था कि क्या सिविल नेचर के मामले को आपराधिक रंग दिया गया है? हाईकोर्ट को ऐसे मामले में क्रिमिनल केस रद्द करने को लेकर संकोच नहीं करना चाहिए था।

पीठ ने कहा कि ऐसे मामले में जब हाईकोर्ट के सामने सीआरपीसी की धारा-482 के तहत केस अपील में आता है तो यह प्रावधान इसलिए बनाया गया है कि हाईकोर्ट को इस बात का परीक्षण करे कि क्या आपराधिक कार्यवाही का इस्तेमाल हथियार के तौर पर किसी को प्रताड़ित करने के लिए तो नहीं किया गया है? देखा जाए तो सीआरपीसी का यह प्रावधान यह कहता है कि हाई कोर्ट अपने ज्यूरिडिक्शन का इस्तेमाल कर इस बात की जांच करे कि आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए तो शिकायत में आपराधिक आरोप नहीं लगाए गए हैं? साथ ही न्याय पाने का जो सिद्धांत है उसको सुनिश्चित करना ध्येय होना चाहिए।

पीठ ने कहा कि शिकायत में क्रिमिनल नेचर का अपराध हुआ है या नहीं यह देखना जरूरी है साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि अपराध का तत्व मौजूद है या नहीं है। यह सब आरोप के नेचर पर निर्भर करता है। मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ जो एफआईआर दर्ज किया गया है वह मामला चार्जशीट में नहीं बनता है और ऐसे में याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार की जाती है और क्रिमिनल केस खारिज किया जाता है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जेपी सिंह
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