बेंगलुरु से नयी गाथा लिखने जा रहा है विपक्ष

बेंगलुरु में विपक्षी दलों का जुटान ऐतिहासिक है, तो इसके समांतर एनडीए की प्रतिस्पर्धात्मक बैठक विपक्षी एकजुटता के मारक प्रभाव को प्रदर्शित कर रहा है। विपक्ष का मारक प्रभाव हमेशा सत्ता पक्ष महसूस करता है और इस बार एकता बनाने की कोशिशों से महसूस किया जाने लगा है।

बेंगलुरु में 26 दलों का जुटान है तो दिल्ली में 38 का दावा रखा गया है। दोनों संख्या अपने-अपने कुनबे के लिए अधिकतम है। मगर, मल्लिकार्जुन खड़गे ने सही जानना चाहा है कि बीजेपी जिन दलों को एनडीए में जोड़ रही है वे चुनाव आयोग में पंजीकृत भी हैं या नहीं। अब तक 38 दलों के नामों का खुलासा नहीं हुआ है। सवाल यह है कि क्या बड़ा कुनबा सत्ता पक्ष के लिए सकारात्मक सोच पैदा करेगा?

अपनी छाती पीट-पीट कर संसद में और संसद के बाहर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बोलते देश ने देखा है- ‘एक अकेला सब पर भारी’। मगर, एनडीए में 38 की संख्या को देखकर नरेंद्र मोदी के दावे ही उलट गये हैं। अब भी ‘एक अकेला सब पर भारी’ का दावा जिन्दा है मगर वह नरेंद्र मोदी के लिए नहीं, बल्कि राहुल गांधी के लिए हो गया है। राहुल गांधी ने देश की राजनीतिक फिजा बदल दी है।

‘भारत जोड़ो’ ने विपक्ष को जोड़ दिया

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान देश के विपक्षी दलों का जुटना शुरू हुआ था। दक्षिण में कम्युनिस्ट पार्टियां, शिवसेना, एनसीपी जैसी पार्टियां इस यात्रा से जुड़ीं तो तमिलनाडु में डीएमके व दूसरी राजनीतिक पार्टियां। जिस प्रदेश से राहुल की यात्रा गुजरी लोग जुड़े, दल जुड़े और सबसे बड़ी बात कि दिल जुड़े। जुड़ते चले गये। कश्मीर तक यह सिलसिला चला। इसी दौरान हिमाचल प्रदेश का चुनाव कांग्रेस ने जीता। फिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने बीजेपी को हराया।

कर्नाटक चुनाव आते-आते वो सारे प्रयास दम तोड़ गये जो राहुल गांधी और कांग्रेस को छोड़कर विपक्ष को जोड़ने की कोशिश करते दिख रहे थे। नीतीश कुमार ने उन प्रयासों का रुख कांग्रेस के साथ मिलकर मोड़ दिया। पटना में ऐतिहासिक समागम हुआ। टीएमसी और आप जैसी पार्टियां इकट्ठा हुईं। कांग्रेस के साथ बैठने में समूचा विपक्ष सहज हो गया। बेंगलुरु आते-आते ये बातें पुरानी हो गयीं। अब सिर्फ और सिर्फ एजेंडा हो गया कि कैसे सत्ता से बीजेपी को बेदखल करना है और लोकतंत्र को बचाना है।

बेचैन हो गयी बीजेपी

सत्ताधारी दल बेचैन रहा। विपक्ष पर लगातार हमले होते रहे। तेजस्वी के खिलाफ आरोप पत्र, राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता का जाना और उनका घर से बेघर होना, तमिलनाडु के मंत्रियों के खिलाफ ईडी की जांच, राज्यपाल का तमिलनाडु में मंत्री को बर्खास्त करने जैसी असंवैधानिक पहल, एनसीपी में टूट जैसी घटनाएं होती रहीं ताकि विपक्ष का मनोबल टूट सके। मगर, ये प्रयास नाकाम रहे।

विपक्षी नेताओं में सबसे अनुभवी और उम्र दराज शरद पवार को झटका जरूर लगा। बेंगलुरु के पहले दिन उनकी अनुपस्थिति इसकी पुष्टि करती है लेकिन परिस्थिति को भांप चुकीं सोनिया गांधी ने आगे आकर बैटन संभाल लिया। डिनर पॉलिटिक्स दिखी। तमाम नेताओं को रात्रि भोज में बुलाने और जोड़ने में सोनिया गांधी कामयाब रहीं।

आम चुनावों में एनडीए और यूपीए में शामिल दल

जब-जब विपक्ष इकट्ठा हुआ, दिल्ली का सिंहासन डोला

सत्ता पक्ष के खिलाफ जब-जब विपक्ष एकजुट हुआ है सत्ता का सिंहासन डोला है। 1998 हो या 1999, विपक्ष की सफलता के पीछे एनडीए था। एक बार फिर 2004 में यूपीए ने विपक्ष की अगुआई की और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को बेदखल किया। 2009 में एनडीए विपक्ष की एकता की अगुआई नहीं कर पाया और उसका कुनबा सत्ता पक्ष से छोटा रहा। नतीजतन यूपीए सरकार फिर से सत्ता में लौटी।

2014 में एनडीए की जीत के पीछे इस कुनबे का ऐतिहासिक रूप से बड़ा होना था। 2019 में विपक्षी एकता बन नहीं सकी। यूपीए का आकार एनडीए के मुकाबले सिमटा रहा। 2024 के लिए विपक्ष का कुनबा 26 तक जा पहुंचा है। हालांकि बीजेपी का दावा एनडीए को 36 के स्तर पर ला खड़ा करने का है लेकिन यह दावा स्वाभाविक नहीं लगता। बीते पांच साल में एनडीए ने अपने सहयोगियों को जोड़ने का कोई प्रयास नहीं किया है। ऐसे में इस बात के पूरे आसार हैं कि इतिहास खुद को दोहराएगा और विपक्ष की मजबूत और वास्तविक एकता से सत्ता सिंहासन डोलेगा।

बड़ी बात यह नहीं है कि 2024 की लड़ाई में साझा प्रत्याशी होगा या नहीं, बड़ी बात यह है कि सभी दल एक-दूसरे से सहयोग करेंगे। सत्ता से बीजेपी को उखाड़ने का साझा संकल्प होगा। लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता को बचाने के लिए सारे दल इकट्ठा होकर जनता के बीच जाएंगे। यूपी में एसपी, आरएलडी और कांग्रेस का गठजोड़ होता है तो बीजेपी के लिए 80 में से 65 सीटों वाला प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होगा। बीजेपी तभी मुकाबला कर सकेगी जब बीएसपी उसके साथ आ जाए।

बिहार, महाराष्ट्र, यूपी और बंगाल पर है नज़र

महाराष्ट्र में जनता महाविकास अघाड़ी के साथ है। सर्वेक्षण में ये बात सामने आ रही है। इसलिए ऐसा लगता है कि दलों को तोड़ने का उल्टा असर बीजेपी पर पड़ने वाला है। यहां बीजेपी की सीटें तो घटेंगी ही और उनके साथ खड़ी एकनाथ शिंदे या अजित पवार को चुनावी सफलता इतनी मिलेगी जिससे 48 सीटों वाले महाराष्ट्र में एनडीए बड़ा कुनबा हो सके, इसमें भारी संदेह है। इसके उलट महाविकास अघाड़ी महाराष्ट्र की पूरी सियासत पलटने जा रही है।

बिहार में 40 लोकसभा सीटे हैं और नीतीश कुमार के एनडीए छोड़कर विपक्षी खेमे में आने के बाद बिहार में भी बीजेपी को भारी नुकसान की गारंटी हो चुकी है। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी के लिए दो-चार लोकसभा सीट भी निकालना मुश्किल होने वाला है।

आम आदमी पार्टी विपक्ष को मिला नया उपहार

आम आदमी पार्टी के विपक्षी खेमे से जुड़ने के बाद पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में बीजेपी को भारी नुकसान होगा। इसका असर राजस्थान पर भी पड़ेगा। स्वयं कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में बीजेपी को सीधी टक्कर दे रही है और बीजेपी के माथे पर पसीना है।

एनडीए का बिन मौसम अपनी बैठक का आयोजन करना और अपने कुनबे के विस्तार होने की बात रखना यह बताता है कि विपक्षी बैठक से बीजेपी घबरा गयी है। विपक्ष पर अनैतिक आक्रमण उनकी मन: स्थिति को बताता है। विपक्ष की बैठक से क्या नतीजा निकलता है इसका इंतज़ार बीजेपी को भी है और पूरे देश को भी। बेंगलुरु से विपक्ष नयी गाथा लिखने जा रहा है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

प्रेम कुमार
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