पाकिस्तानी हिंदुओं ने खारिज किया भारत के नागरिकता का प्रस्ताव, कहा- धार्मिक समुदायों को आपस में लड़ाना चाहते हैं मोदी

नई दिल्ली। पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों ने नागिरकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता देने के भारत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक आधार पर उत्पीड़न का हवाला देकर भारतीय संसद ने हाल में नागरिकता संशोधन कानून पारित किया है। इसके तहत इन तीनों देशों के हिंदू, बौद्ध, ईसाई, पारसी और जैन समुदायों के निर्वासित लोगों को नागरिकता देने की बात कही गयी है।

हालांकि इसमें मुसलमानों को छोड़ दिया गया है। इसी बात को लेकर देश भर में विरोध खड़ा हो गया है।

पाकिस्तान हिंदू कौंसिल के पैट्रन राजा असर मंगलानी ने अनाडोलू एजेंसी को बताया कि “पाकिस्तान के हिंदू समुदाय ने एकमत से इस कानून को खारिज कर दिया है। यह भारत को सांप्रदायिक आधार पर बांटने के बराबर है।”

उन्होंने कहा कि “यह पाकिस्तान के पूरे हिंदू समुदाय की तरफ से एकमत से भारतीय प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी को संदेश है। एक सच्चा हिंदू कभी भी इस कानून का समर्थन नहीं करेगा।”

उन्होंने कहा कि यह कानून खुद भारत के अपने संविधान का उल्लंघन करता है।

दि ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर के मुताबिक पाकिस्तान के ऊपरी सदन यानि सीनेट के एक ईसाई सदस्य अनवर लाल डीन ने भी कहा कि इस कानून को धार्मिक समुदायों को आपस में लड़ाने के लिए लाया गया है।

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता डीन ने कहा कि “यह बिल्कुल साफ-साफ बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। हम किसी भी कीमत पर इसको खारिज करते हैं।”

जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त करने, बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ रहे हमलों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि “इस तरह के अन्यायपूर्ण और गैरजरूरी कदमों के जरिये मोदी सरकार धार्मिक समुदायों को आपस में लड़ाने की कोशिश कर रही है।”

पाकिस्तान के छोटे सिख समुदाय ने भी इस विवादित कानून का विरोध किया है।

बाबा गुरु नानक के नेता गोपाल सिंह ने कहा कि “न केवल पाकिस्तानी सिख बल्कि पूरी दुनिया के सिख समुदाय के लोग जिसमें भारत के सिख भी शामिल हैं, सरकार की इस पहल की निंदा कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि “भारत और पाकिस्तान दोनों जगहों पर सिख समुदाय अल्पसंख्यक है। एक अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य होने के नाते मैं भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के दर्द को महसूस कर सकता हूं।”

सिंह ने मोदी से अल्पसंख्यकों को दीवार तक धकेलने से बाज आने की गुजारिश की।

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या के मामले में भारत का दावा खारिज

केंद्रीय गृहमंत्री जब नागरिकता कानून को सदन में पेश कर रहे थे तो उन्होंने संसद को बताया कि पिछले सालों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में भारी पैमाने पर गिरावट दर्ज की गयी है।

उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के गठन के समय वहां अल्पसंख्यकों की जनसंख्या 23 फीसदी थी। लेकिन अब ये गिरकर 3.7 फीसदी रह गयी है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि इससे लगता है कि या तो उनकी हत्या कर दी गयी या फिर वे निर्वासित कर दिए गए या फिर जबरन उनका धर्म परिवर्तन करा दिया गया।

हालांकि पाकिस्तान के जो आधिकारिक आंकड़े हैं वे इसको खारिज करते हैं।

पश्चिमी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या कभी भी 23 फीसदी नहीं थी।

1961 की जनगणना के मुताबिक गैर मुस्लिम जनसंख्या का आंकड़ा 2.83 फीसदी था। एक दशक बाद 1972 में यह बढ़कर 3.25 फीसदी हो गया। इसका मतलब है कि इसमें .42 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गयी।

1981 की जनगणना में यह आबादी 3.30 फीसदी हो गयी। अगली जनगणना जो 1998 में हुई उसमें यह आंकड़ा 3.70 को छू लिया।

हालांकि पाकिस्तान में 2017 में नई जनगणना हो गयी है लेकिन उसका धार्मिक आंकड़ा अभी बाहर आना शेष है। हालांकि पाकिस्तान हिदू कौंसिल के नेता मंगलानी का कहना है कि हिंदुओं की आबादी 4 फीसदी यानी 2 करोड़ 10 लाख के आसपास है। पाकिस्तान के तकरीबन 80 फीसदी हिंदू आबादी सिंध सूबे के दक्षिणी हिस्से में रहती है।

पाकिस्तान की सरकार ने बीजेपी के नेतृत्व वाली भारत सरकार पर हिंदुत्व के वर्चस्व वाली विचारधारा के पक्षपोषण का आरोप लगाया है।

वहां के विदेश मंत्री महमूद शाह कुरेशी ने कहा कि हिंदुत्व के वर्चस्व वाली विचारधारा के तहत मोदी सरकार लगातार अल्पसंख्यकों के अधिकारों की कटौती करने या फिर उसको नजरंदाज करने की कोशिश कर रही है।     

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