संसद की सुरक्षा में सेंधमारी के आरोपियों की याचिका में पुलिस पर इलेक्ट्रिक शॉक देने सहित कई गंभीर आरोप

नई दिल्ली। लाइव लॉ की रिपोर्ट बताती है कि पटियाला कोर्ट में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरदीप कौर के समक्ष एक दिल दहला देने वाली रिपोर्ट पेश की गई, जिसका नाता पिछले वर्ष संसद के भीतर सुरक्षा में सेंध से जुड़े आरोपियों से है।

खबर है कि यूएपीए के तहत हिरासत में रखे गये इन आरोपियों ने पटियाला कोर्ट को सूचित किया है कि उनके इस कथित अपराध को विपक्षी दलों के आधार पर कृत्य करने का दबाव डालने के लिए प्रशासन ने उन्हें बिजली के झटके देने सहित विभिन्न प्रकार की यातनाएं दी हैं। इतना ही नहीं, इन आरोपियों का तो यहां तक कहना है कि उन्हें सादे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करने के लिए भी मजबूर किया गया है।

कुल 6 में से 5 आरोपियों, सागर शर्मा, मनोरंजन डी, ललित झा, महेश कुमावत और अमोल शिंदे की ओर से पटियाला की अदालत में इस बाबत याचिका दायर की गई है। लाइव लॉ के अनुसार, अपनी याचिका में आरोपियों ने स्पष्ट किया है कि ऊन्हें अपने-अपने सोशल मीडिया साइट्स एकाउंट्स, ईमेल और फोन के पासवर्ड देने के लिए मजबूर किया गया है।

इस याचिका में यह भी बताया गया है कि पॉलीग्राफ अथवा नार्को टेस्ट करने वाले अधिकारियों के द्वारा दो आरोपियों के ऊपर राजनीतिक पार्टी या नेता के इस मामले में संलिप्तता के लिए नाम लेने का दबाव डाला गया था।

बता दें कि नीलम आज़ाद सहित सभी आरोपियों को आज अदालत में हाजिर किया गया था, जिसके उपरान्त इन सभी आरोपियों की न्यायिक हिरासत की अवधि को 1 मार्च तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

पिछले वर्ष 13 दिसंबर 2023 के दिन संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान शून्य काल में यह घटना घटित हुई थी, जिसे बेहद गंभीर चूक का मामला माना जा रहा था।

तब एएनआई ने दिल्ली पुलिस का बयान जारी करते हुए, उसके हवाले से बताया था कि, “संसद सुरक्षा उल्लंघन मामले में प्रारंभिक जांच विवरण से जानाकारी मिली है कि दो लोग नीलम और अमोल (परिसर के अंदर संसद भवन के बाहर पकड़े गए) उनके पास मोबाइल फोन नहीं था। उनके पास कोई बैग या पहचान पत्र नहीं था। उनका दावा है कि वे खुद संसद पहुंचे और उन्होंने किसी भी संगठन से जुड़ने से इनकार किया है। दिल्ली पुलिस आगे की पूछताछ के लिए विशेष टीम का गठन कर रही है।”

सनद रहे कि 13 दिसंबर 2023 को देश की संसद के भीतर निचले सदन में जारी सत्र के दौरान सुरक्षा में बड़ी चूक का मामला तब सामने आया था, जब दर्शक दीर्घा में बैठे दो शख्स अचानक नीचे कूद आये। यह दिन संसद भवन पर आतंकवादी हमले की 22वीं बरसी का था, जिसमें एक शख्स को मेज़ों पर कूदते देखा गया, जिसे सुरक्षाकर्मियों सहित कुछ सांसदों द्वारा भी पकड़ने की कोशिश की गई।

सदन से दोनों आरोपियों को पकड़ लिया गया था, जबकि संसद के बाहर भी नारेबाजी कर रहे दो लोगों को हिरासत में ले लिया गया था। बाद में इस घटना को अंजाम देने से जुड़े अन्य आरोपियों को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। 

कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के लिए 17 फरवरी की तारीख मुकर्रर की है, और इसके साथ ही दिल्ली पुलिस से इस बाबत उनका पक्ष रखने के लिए कहा है। आरोपी नीलम आज़ाद ने हाल ही में जमानत याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने ख़ारिज कर दिया था।

यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि कोर्ट ने नीलम आजाद के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर प्राथमिकी की प्रतिलिपि आज़ाद को सौंपने का निर्देश दिया था, जिसे दिल्ली पुलिस की ओर से चुनौती दिए जाने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई थी।

देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि बिहार से लेकर दिल्ली की सड़कों पर लाखों की संख्या में युवाओं का धरना प्रदर्शन जारी है। संसद की सुरक्षा में सेंध लगाकर विरोध जताने वाले इन युवाओं के फोन और सोशल मीडिया साइट्स को पुलिस कब का खंगाल चुकी है, और इनसे जुड़ी तमाम जानकारियां तक सार्वजनिक जानकारी में आ चुकी हैं।

ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि जब सब कुछ शीशे की तरह साफ़ है तो फिर नार्को टेस्ट या जबरन दबाव डालकर विपक्षी पार्टी या उसके नेताओं का नाम स्वीकारने के लिए इन्हें क्यों बाध्य किया जा रहा है? इलेक्ट्रिक शॉक देकर क्या राजनैतिक प्रयोजन सिद्ध किया जा सकता है?

द हिंदू की वरिष्ठ पत्रकार विजेता सिंह ने सहकर्मी इशिता मिश्रा के हवाले से सोशल मीडिया X पर लिखा है-

“@khabrimishra की रिपोर्ट के मुताबिक, संसद की सुरक्षा के उल्लंघन मामले में छह में से पांच आरोपियों ने पटियाला हाउस कोर्ट में अर्जी दी है। उन्होंने अदालत को सूचित किया है कि कथित अपराध एवं राजनीतिक दलों के साथ उनके जुड़ाव को कबूल करने के लिए उन्हें बिजली के झटके दिए गए, उनसे 70 खाली पन्नों पर हस्ताक्षर कराए गए और एक राजनीतिक दल का नाम बताने के लिए मजबूर किया गया। मामले की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के द्वारा की जा रही है।” 

एक सप्ताह पहले ही खबर में एक बार फिर से दिल्ली पुलिस के बयान में कहा गया था कि 40 दिनों से संसद सुरक्षा में सेंध मामले के सभी छह आरोपी खुद को मशहूर करने के लिए “कुछ बड़ा” करने के उद्येश्य से “सेल्फ-फंडेड एवं स्व-प्रेरित” थे।

ऐसे में पटियाला कोर्ट के समक्ष आरोपियों की ओर से दाखिल प्रार्थनापत्र को लेकर कल से एक बड़ा विवाद शुरू होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यदि आरोपियों द्वारा लगाये गये आरोपों में जरा भी सच्चाई है तो आम चुनाव के मद्देनजर यह एक बड़ा गंभीर मामला बन जाता है।

एक सोशल मीडिया यूजर ने इसे विपक्ष को फिक्स करने की ऐसी साजिश करार दिया है, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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