फॉलोअप: पादरी यालम शंकर की हत्या के बाद भय और आतंक के साये में है पूरा बीजापुर

अंगमपल्ली (बीजापुर)। विगत 17 मार्च, 2022 को छत्तीसगढ़ के दक्षिणी जिले बीजापुर के मद्देड़ थाना क्षेत्र के अंगमपल्ली गांव के रहने वाले पादरी यालम शंकर की धारदार हथियार से बेरहमी से हत्या की घटना के बाद पूरे इलाके में खलबली मची हुई है। जनचौक ने 23 मार्च को इस मामले में विस्तृत खबर “छत्तीसगढ़: बीजापुर में पादरी यालम शंकर की निर्मम हत्या से उठे कई सवाल” के शीर्षक से प्रकाशित किया था।

विगत दिनों, बस्तर संभाग के बस्तर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, नारायणपुर तथा कांकेर जिलों के विभिन्न इलाकों में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलायन्स (पीसीए) के संयुक्त तत्वावधान में एक फैक्ट फाइंडिंग इन्वेस्टिगेशन टीम ने दौरा किया। इस दौरान ऐसे सैकड़ों मामले सामने आये जिसकी कोई भी रिपोर्टिंग नहीं हुई है और न ही सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। अधिकांश मामलों में यह पाया गया है कि स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने पीड़ितों को राहत और न्याय दिलाने के बजाय उनके ही ऊपर केस ठोककर उन्हें और ज्यादा तंग किया है।

यालम शंकर का भी मामला ऐसा ही कुछ है, जिसमें आज तक पुलिस ने हत्यारों को न पकड़ने की कोशिश की और न ही इस पर कोई ठोस कार्रवाई की। इस निर्मम हत्या की गंभीर जांच पड़ताल करने के बजाय पुलिस-प्रशासन माओवादियों के सिर इसका ठीकरा फोड़ कर अपना हाथ धोने की कोशिश कर रहा है। 

भय, तनाव और आतंक के साये में बीजापुर

4 अप्रैल को यालम शंकर के गृहगांव अंगमपल्ली में एक शांति सभा का आयोजन हुआ जिसमें लगभग 1500 के आस पास लोग शामिल हुए। यालम शंकर के बड़े बेटे गोपाल शंकर का कहना है कि इस आयोजन में काफी लोगों ने भाग लिया पर हमारी उम्मीद और ज्यादा लोगों के शामिल होने की थी। स्थानीय लोग जो इस कार्यक्रम में शामिल हुए उनका कहना है कि डर, भय और कई अन्य कारणों की वजह से लोगों का आना शायद नहीं हो पाया। यालम शंकर के संयोजक रहे नागेन्द्र जेना का मानना है कि मसीही लोगों को ऐसे समय में ज्यादा हिम्मत और धैर्य से काम लेने की आवश्यकता है। 

यालम शंकर की श्रद्धांजलि सभा के लिए बना पोस्टर

ऊपरी तौर से देखा जाए तो अंगमपल्ली में माहौल सामान्य सा नज़र आया पर अंदर से शायद ऐसा नहीं है। एक तरफ माओवादियों का भय तो दूसरी तरफ हिंदू कट्टरपंथियों की दहशत। ग्राउंड जीरो में लोगों के साथ बातचीत के दौरान दोनों तरह के लोग मिले जिसमें से कुछ को माओवादियों ने मार-पीटकर, डरा-धमकाकर भगा दिया था, तो कुछ लोग कट्टरपंथियों के शिकार बने। इसी तरह एक तीसरा तबका भी मिला जिसे पुलिस ने समस्या के बीच बचाव करने के बजाये उसी में मार खाने के लिए छोड़ दिया। इन तीनों तरह के लोगों के बयान को उनके अनुरोध पर और सुरक्षा दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर उनके नाम के साथ नहीं दिया जा रहा है। फिर भी कुछ बयान इसमें शामिल करना अनिवार्य है।

संदेश गोपाल (नाम परिवर्तित) के अनुसार पुलिस आये दिन पास्टर और विश्वासियों के ऊपर धर्मपरिवर्तन का झूठा आरोप लगाकर केस बनाती है। आजकल सभी पादरियों और पास्टरों को पुलिस बार-बार थाना बुलाकर उनके कलीसिया में जाने वाले विश्वासियों का विवरण मांग रही है। जब भी किसी गांव में पास्टर या विश्वासी के साथ कोई हादसा या हिंसात्मक घटना होती है तब पुलिस मदद करने के बजाय उन्हें ऐसे ही छोड़ देती है।  यहां तक कि प्राथमिक उपचार तक मुहैया नहीं करवाती। 

यालम शंकर का परिवार

गोपाल दुर्गम के अनुसार इन दोनों के अलावा एक और खतरा पुलिस का भी है, जो आये दिन पास्टर और विश्वासियों के ऊपर धर्मपरिवर्तन का झूठा आरोप लगाकर केस बनाती रहती है। 

बीजापुर जिले के एक अन्य इलाके में काम करने वाले दुर्गैइया (नाम परिवर्तित) 4 अप्रैल को अंगमपल्ली जाना चाहते थे, पर किसी कारणवश जा नहीं पाए। एक अन्य पास्टर, स्वामी (नाम परिवर्तित) ने बताया कि वे विगत 30-35 सालों से यीशु मसीह का प्रचार कर रहे हैं, पर उनको कभी माओवादियों से इस तरह की परेशानी नहीं हुई। उन्हें पुलिस-प्रशासन ने कई बार कई तरह से परेशान किया। वह आगे कहते हैं, इन परेशानियों के बावजूद मैं गांववाले, आदिवासी, पुलिस, प्रशासन, अधिकारी, माओवादी सभी से एक समान प्रेम करता हूं।

इसी तरह से जिले के एक अन्य पास्टर ऐयप्पा (नाम परिवर्तित) के मुताबिक वे स्वयं एक चरमपंथी माओवादी गांव से हैं और वहां काम भी कर रहे हैं, पर कभी ऐसी घटना उनके साथ नहीं हुई। उनके साथ कई बार आदिवासी समाज ने हिंदू कट्टरपंथियों के बहकावे पर “घर वापसी” करने के लिए दबाव डाला। इसी तरह श्यामलाल (नाम परिवर्तित) की भी पिटाई हुई। जब गांव वालों के “घर वापसी” के दबाव से वह मुकर गया तो, उन्होंने माओवादियों के पास शिकायत कर उसकी भी पिटाई करवाई।

यालम शंकर की समाधि

इसी जिले में काम कर रहे एक अन्य पास्टर प्रभाकर (नाम परिवर्तित) के साथ विगत दिनों एक घटना हुई जिसका विवरण कुछ इस तरह है। वे 16 मार्च 2022 की शाम एक गांव में प्रार्थना के लिए पहुंचे थे। प्रार्थना के दौरान कुछ लोग घर के बाहर गाली-गलौज कर रहे थे। जब प्रार्थना लगभग समाप्त हो चुकी थी, तब वे घर से एक सदस्य को बाहर ले गए और उसे घर वापसी के नाम से पीटने लगे। “यीशु मसीह को छोड़ दो, गोंडवाना समाज में मिल जाओ, नहीं तो अगली बार जान से मार देंगे,” ऐसा बोल बोलकर पीट रहे थे। थोड़ी देर बाद वे लोग प्रभाकर को बुलाने आये, और बहुत मुश्किल से वो वहां से बचे। “वे लोग मुझे जबरदस्ती ले जाना चाहते थे, पर मैं नहीं गया और बच गया, नहीं तो वे लोग उस दिन मुझे मार डालते। उन्होंने मुझे मार डालने की धमकी दी है। और अगले ही दिन यालम शंकर की हत्या हो गई। इस घटना के बाद से बहुत डर लग रहा है, कि हम कैसे काम करेंं।“

एक अन्य घटना में माओवादियों ने एक विश्वासी को बुलाकर पिटाई की और गांव से ही उसको भगा दिया। वह अब अपने गांव जाना नहीं चाहता, क्योंकि उसे डर है कि अगली दफा वे लोग उसको जान से ही मार देंगे। अपने घर और जमीन को छोड़कर वह इन दिनों बीजापुर में कुली-मजदूरी का काम कर अपना जीवन यापन कर रहा है।  

फैक्ट फाइंडिंग टीम के सामने पेश हुए पीड़ित

जेना दावा करते हैंं कि कट्टरपंथियों के भय और धमकी के वे स्वयं शिकार हैंं। उनके अनुसार उनको भी जान का खतरा है और यदि परिस्थितियों में सुधार नहीं हुआ तो उनको भी कभी भी मारकर फेंक दिया जा सकता है। लोग ऐसे मामलों में अक्सर शिकायत नहीं करना चाहते हैं क्योंकि जैसे ही शिकायत होगी वैसे ही उन्हें टारगेट किया जायेगा। जेना कहते हैं कि वे कई मामलों में इसी तरह से टारगेट में हैं। 

नई ऊर्जा के साथ वासम शंकर

यालम शंकर के सह-ग्रामवासी वासम शंकर भी उसी तथाकथित माओवादी पर्चे वाले सूची में थे, जिसमेंं अन्य ईसाई पादरियों का नाम शामिल था। उस पर्चे में इनका नाम पहले नंबर पर था। दो बकरों की बलि वाली सूची में वासम शंकर का नाम सबसे ऊपर था। दोनों दोस्त बचपन से लेकर विगत मार्च 17, 2022 तक साथ पले-बढ़े, साथ रहे, साथ चले, साथ प्रचार किये, पर अब उसमें से एक शंकर दूसरे का साथ छोड़ हमेशा के लिए सो गया। पर वासम ने अभी हार नहीं मानी है। वे कहते हैं कि आतंक और तनाव से नहीं डरेंगे। लोगों का मनपरिवर्तन जरूरी है, ताकि वे गुलामी से बाहर निकल पाएं।

वासम शंकर

इन सब बातों के बावजूद वासम शंकर के अंदर भी एक तरह का डर समाया हुआ है। वो नहीं जानते कि उनके जिगरी दोस्त को किसने मौत के घाट उतारा – गोंडवाना समाज, माओवादी या फिर और कोई। गांव का माहौल कई महीनों से बिगड़ने की बात वो बताते हैं। पर इन सबसे उनके काम करने की ऊर्जा में कोई कमी नहीं हुई है। वे अपने मित्र यालम शंकर के अधूरे सपनों को पूरा करना चाहते हैं और वे इस मसले में अपनी निरंतरता जारी रखे हुए हैं।

आखिर क्यों जांच नहीं हो रही?

अंगमपल्ली की घटना के बाद पुलिस का शांत होना लोगों में कई प्रकार की आशंकाएं पैदा कर रही हैं। वैसे अन्य कोई माओवादी वारदात के बाद पुलिस प्रशासन बहुत ज्यादा सक्रिय नज़र आता है, पर इस मामले में अब तक कोई विशेष कार्रवाई हुई या हो रही है ऐसा बिलकुल प्रतीत नहीं हो रहा है।

फैक्ट फाइंडिंग टीम के सामने अपनी बात रखते पीड़ित

पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान सवाल उठाते हैंं कि यदि इसे एक माओवादी वारदात मानें तो इस मामले को जांचने में पुलिस की अब तक क्या भूमिका रही? प्रदेश में कभी भी इस तरह की कोई घटना अगर माओवादियों द्वारा अंजाम दिया जाता है तो उसमें पुलिस-प्रशासन और ज्यादा सक्रिय होकर काम करता है। पर इस मामले में अभी तक कोई कारवाई नहीं हुई है। ऐसा लगता है कि इस मसले को पुलिस ने अभी तक गंभीरता के साथ नहीं लिया है। जांच पड़ताल इसी वजह से नहीं आगे बढ़ी। या फिर क्या प्रशासन और सरकार इस तरह के जघन्यतम अपराध करने वालों को जानती है और उन्हें संरक्षण दे रही है?

(अंगमपल्ली गांव से डॉ. गोल्डी जॉर्ज की रिपोर्ट।)

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